उधम सिंह नगर: उत्तराखंड वन विभाग की बेशकीमती भूमि पर अवैध कब्जेदार जमे हुए है, विभागों की आपसी खींचतान के वजह से उत्तराखंड सरकार की सौ हैक्टेयर से अधिक भूमि केवल दो जलाशयों के पास अतिक्रमण की चपेट में है और विभाग इसे खाली नहीं करवा पा रहा है।
उधम सिंह नगर जिले में बौर जलाशय के निर्माण के दौरान वन विभाग ने सिंचाई विभाग को 5फरवरी 1960 को 3270.645 एकड़ भूमि को दी थी। करीब सात साल में उक्त जलाशय बन कर तैयार हुआ। लेकिन उस दौरान 66.05 हैक्टेयर भूमि अप्रयुक्त रह गई जिसके लिए वन विभाग ने सिंचाई विभाग से पत्राचार किया , ये उस दौर की बात है जब उत्तराखंड ,उत्तर प्रदेश का हिस्सा था।
ऐसे ही बौर जलाशय के बाद हरिपुर जलाशय के प्रोजेक्ट के लिए 29.07.1967 को वन विभाग ने सिंचाई विभाग को 1139.718 एकड़ भूमि दी जिसमें से 33.07 हैक्टेयर भूमि अप्रयुक्त रह गई, इस भूमि को भी वन विभाग ने सिंचाई विभाग से वापिस मांगा लेकिन आज तक वापिस नहीं की गई। इन जलाशय का उपयोग तराई क्षेत्र की बरसाती नदियों का जल एकत्र कर उसका सिंचाई में उपयोग करना और भू जल की उपलब्धता बनाए रखना था। 2000 में उत्तराखंड राज्य यूपी से अलग हो जाने के बाद ये दोनों जलाशय यूपी के सिंचाई विभाग के अधीन चले गए लेकिन इनकी सीमा उत्तराखंड में ही रही।
यानि संपत्ति उत्तराखंड की लेकिन प्रबंधन यूपी का रहा। ऐसा लगभग तराई क्षेत्र के सभी जलाशयों और गंगा , शारदा और अन्य सभी नदियों के लिए प्रावधान किया गया। अब उत्तराखंड के वन विभाग के दस्तावेजों में बौर और हरिपुरा जलाशयों की अप्रयुक्त भूमि पर अतिक्रमण दर्ज किया गया है। ऐसा इसलिए हुआ है कि इस जलाशय के रखरखाव के लिए सैकड़ों मजदूरों ने अप्रयुक्त वन भूमि पर अवैध कब्जे किए हुए है।
उत्तराखंड वन विभाग,बार बार सिंचाई विभाग से उक्त कब्जे खाली करवा कर अपनी जमीन वापिस दिए जाने के लिए पत्राचार कर रहा है, ये पत्राचार दोनों राज्यों के बीच सालों से ऐसे ही चल रहा है और उक्त कब्जे की भूमि भू माफिया तंत्र द्वारा सौ पचास रु के स्टाम्प पेपर पर खुर्दबुर्द की जाने लगी है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण द्वारा उत्तराखंड वन विभाग से उसकी अतिक्रमण भूमि की जानकारी मांगी थी,जिसमें ऐसे मामलों का जिक्र किया गया है।
उत्तराखंड वन विभाग के अतिक्रमण हटाओ अभियान के नोडल अधिकारी डा पराग मधुकर धकाते से जब इस बारे में जानकारी मांगी गई तो उन्होंने बताया कि ये दो राज्यों की संपत्ति विभाजन के कारण पैदा हुई समस्या है, इस पर वन विभाग ,सिंचाई विभाग से लगातार पत्राचार कर रहा है। हम उत्तराखंड में वन भूमि पर से अतिक्रमण हटाने के लिए संकल्पित है।
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