भारत के दो छोर पर स्थित 1971 से पहले एक लेकिन उसके बाद से दो इस्लामी देश बने बांग्लादेश और पाकिस्तान, बदली भू राजनीतिक परिस्थितियों में एक दूसरे के निकट आते जा रहे हैं। दोनों की नीतियां आज कट्टर मजहबी तत्वों के प्रभाव में बन रही हैं और दोनों को संभवत: डीप स्टेट के तत्व भारत के विरोध में उकसा रहे हैं। गत दिनों दोनों भारत विरोधी इस्लावादी देशों की सरकारों ने पुरानी बातों को, अत्याचारों को भुलाकर आपस में ‘सौहार्दपूर्ण’ संबंध बनाने पर जोर दिया है। इसी की अगली कड़ी के तौर पर दोनों के बीच संपन्न हुई विदेश सचिव स्तर की वार्ता ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर किया है।
यह वार्ता 15 वर्ष के लंबे अंतराल के बाद हुई, जिसमें दोनों देशों ने व्यापार, कनेक्टिविटी और द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने पर चर्चा की। इस वार्ता का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि यह 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान हुए घटनाक्रमों और उनके प्रभावों को लेकर दोनों देशों के बीच तनावपूर्ण इतिहास रहा है। लेकिन आज कैमरों के सामने दोनों तरफ के नेता हंसते और गले मिलते दिख रहे हैं।
व्यापार और कनेक्टिविटी को लेकर दोनों देशों के विदेश सचिवों—पाकिस्तान की आमना बलोच और बांग्लादेश के विदेश मामलों के सलाहकार मोहम्मद तौहीद हुसैन—ने गत 17 अप्रैल को ढाका में बात की। कारोबार और क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के लिहाज से बांग्लादेश अति पिछड़ा देश कहा जा सकता है। अगर इस तरफ काम हुआ तो यह कदम उसे आर्थिक सहयोग दे सकता है। लेकिन चर्चा का एक और महत्वपूर्ण पहलू रहा 1971 के युद्ध का हर्जाना। बांग्लादेश ने 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान हुए नुकसान के लिए पाकिस्तान से हर्जाने की मांग की है। इतना ही नहीं उन अत्याचारों के लिए इस्लामाबाद से कथित रूप से सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने को कहा गया है।

स्पष्ट रूप से इस भारत विरोधी गठजोड़ की मंशा सकारात्मक तो नहीं लग रही है। बांग्लादेश में और पाकिस्तान में भी नफरत की बात और कर्म करने वालों की कमी नहीं है। ढाका का अपने यहां के कट्टरपंथी तत्वों पर कोई दबाव नहीं है और वे भारत और हिन्दुओं के विरुद्ध मनमाने कृत्य कर रहे हैं। ऐसे बांग्लादेश और जिन्ना के मजहब के आधार पर दो राष्ट्र सिद्धांत के तहत बनाए गए देश के बीच बढ़ते संबंध भारत के लिए रणनीतिक और भू-राजनीतिक तौर पर चुनौतियों को ही जन्म देंगे। मोटे तौर पर, इन दोनों देशों का निकट आना भारत के लिए कई चुनौतियां प्रस्तुत कर सकता है। जैसे, भारत को क्षेत्रीय शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए अपनी रणनीतियों को पुनः परिभाषित करना पड़ सकता है।

दोनों के बीच व्यापार और कनेक्टिविटी के क्षेत्र में सहयोग में आगे बढ़ने की बात है। कंगाल हो चुका जिन्ना का देश आर्थिक मार सहने की कगार पर आ चुका है। बांग्लादेश के साथ व्यापारिक संबंधों को सुधारकर वह अपनी स्थिति को मजबूत करना चाहता है। कनेक्टिविटी को लेकर खबर है कि कराची से चटगांव के बीच सीधा पानी का जहाज चलाया जाएगा। हवाई मार्ग से भी सीधी उड़ानें शुरू की जाएंगी। यह कदम भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाने के साथ ही, आर्थिक प्रतिस्पर्धा को भी बढ़ा सकता है। साथ ही दोनों देशों के वर्तमान हावभाव देखकर कहा जा सकता है कि अब भारत के पूर्वी् छोर पर भी और अधिक सतर्कता की आवश्यकता है। भारत को अपनी सीमाओं पर सुरक्षा को लेकर और सतर्क रहते हुए देखना होगा कि दोनों किनारों पर ये देश भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ाने की साजिशें तो नहीं रच रहे।के लिए किया जाता है।
दोनों देशों का यूं निकट आना दक्षिण एशिया की राजनीति में भी नए आयाम जोड़ता है। क्षेत्रीय और वैश्विक राजनीति में भी इसके दूरगामी प्रभावों से इनकार नहीं किया जा सकता।
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