अश्वनी मिश्र, पारलालपुर (मालदा) से
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के धुलियान और इसके आसपास के इलाके में 10-12 अप्रैल को हुई हिंसा के पीछे के कड़वे सच से धीरे-धीरे परदा उठने लगा है। हजारों इस्लामी कट्टरपंथियों ने हिंदुओं को चुन-चुन कर निशाना बनाया। पथराव के बाद घरों-दुकानों में लूटपाट की, फिर आग लगा दी। दंगाइयों ने पुरुषों को बेरहमी से पीटा और महिलाओं से दुर्व्यवहार किया। शहर के वार्ड नंबर 16 (बेदवना) में ही 12 अप्रैल को कट्टरपंथियों ने हिंदुओं के लगभग 130 घरों को जला दिया और मंदिरों को पूरी तरह से तहस-नहस कर दिया। यहां तक कि मवेशियों को भी जला दिया।
नमाज के बाद वक्फ संशोधन कानून के विरोध के नाम पर मजहबी दंगाइयों ने पहले शमशेरगंज में डाकबंगला मोड़ से सुतिर सजुर मोड़ तक राष्ट्रीय राजमार्ग-12 के एक हिस्से को बाधित कर पुलिस वाहन पर पथराव किया। फिर देखते-देखते पूरे जिले में हिंसा फैल गई। दंगाइयों ने हरगोविंद दास (65 वर्ष), चंदन दास (35 वर्ष) सहित तीन लोगों को मार डाला, जबकि दर्जनों लोग घायल हुए हैं। कुछ लोग लापता हैं, जिनका रिपोर्ट लिखे जाने तक पता नहीं चल पाया था। इस हिंसा से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से हजारों हिंदू परिवार प्रभावित हुए हैं।
कट्टरपंथियों की भीड़ ने न केवल हिंदुओं को निशाना बनाया, बल्कि उन्हें जान से मारने की धमकी दी और घर खाली करने को कहा। हजारों हिंदू जान बचाने के लिए राज्य के अन्य हिस्सों के अलावा दूसरे राज्यों को पलायन कर गए हैं। मालदा के पारलालपुर हाई स्कूल में बने राहत शिविर में ही 300-400 परिवारों के लगभग 1,000 लोगों ने शरण ली है। ये सभी नाव से गंगा पार कर यहां पहुंचे हैं। बाहर पुलिस का कड़ा पहरा है। किसी को पीड़ितों से मिलने नहीं दिया जा रहा। यहां तक कि प्रशासन पीड़ितों तक राहत सामग्री भी पहुंचाने नहीं दे रहा है। मालदा का हिंदू समाज इन बेसहारा लोगों के भोजन और जरूरत की चीजों की व्यवस्था कर रहा है। हिन्दू इतने सहमे हुए हैं कि वापस लाैटने का नाम लेते ही सिहर उठते हैं।

कड़ी सुरक्षा, पर खौफ बरकरार
हालांकि मुर्शिदाबाद के हिंसाग्रस्त इलाकों में भारी संख्या में पुलिस, आरएएफ और बीएसएफ की तैनाती की गई है। 150 से अधिक उपद्रिवयों को गिरफ्तार किया गया है, फिर भी लोग डरे हुए हैं। जिले की सड़कों पर सन्नाटा पसरा है। पूरा मुर्शिदाबाद दंगे की आग में झुलसा नजर आ रहा है। जिले में जिन स्थानों पर सबसे ज्यादा हिंसा हुई, उनमें पारलालपुर, नूतन डाकबंगला, पाकुड़ रोड, चुनुबाबुर बाड़ी, पुरातुन डाकबंगला, रतनपुर, धुलियान घोषपारा, धुलियान शिवमंदिर, चादीपुर, बाशबोना, रानीपुर, सुती, जंगीपुर, धुलियान, जाफराबाद और शमशेरगंज शामिल हैं। हिंदुओं ने इन इलाकों से बड़ी संख्या में पलायन किया है।
धुलियान में हालात बेहद खराब हैं। पीड़ितों का कहना है कि उन्होंने ऐसा मंजर पहले कभी नहीं देखा। स्थानीय निवासी सोहन मंडल बताते हैं कि उनके कई रिश्तेदार धुलियान से भागकर पाकुड़ गए हैं। धुलियान में उनकी लगभग 70 साल पुरानी दुकान है। लेकिन दंगाइयों ने उनकी दुकान के साथ सामने की दुकान में भी आग लगा दी। उनका कहना है कि हिंसा के दौरान लोग पुलिस को फोन करते रहे, लेकिन उन्हें मदद नहीं मिली। महिलाओं का कहना है कि जिन्हें हम अपना समझते थे, उन्होंने हमें ही नहीं छोड़ा, तो आगे बच्चों के साथ ऐसा कुछ नहीं करेंगे, इसकी क्या गारंटी है?
प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि कट्टरपंथियों ने गैस सिलिंडर खोलकर और पेट्रोल डालकर घरों में आग लगाई। उन्होंने बड़ी संख्या में घरों व दुकानों में लूटपाट भी की। यही नहीं, मजहबी दंगाइयों ने बीएसएफ के जवानों को भी निशाना बनाया। मुर्शिदाबाद में तीन जगहों पर बीएसएफ जवानों पर हमले किए गए। जवाबी कार्रवाई में उपद्रवियों को तितर-बितर करने के लिए बीएसएफ को हवाई फायरिंग करनी पड़ी। इस पूरे मामले पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा कि ममता बनर्जी के शासन में जिहादियों के हौसले बुलंद हैं। उन्हें प्रशासन का पूरा संरक्षण रहता है। यही वजह है कि वे पुलिस की मौजदूगी में उत्पात मचाते हैं। बंगाल के हालत बहुत खराब हैं। उन्होंने हिंसा की जांच एनआईए से कराने की मांग की है।
पुलिस-प्रशासन की विफलता और घटना की संवदेनशीलता को देखते हुए कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जिले के हिंसाग्रस्त व संवेदनशील इलाकों में केंद्रीय बलों की 17 कंपनियों की तैनाती की है। इसमें बीएसएफ की नौ और सीआरपीएफ की आठ कंपनियां शामिल हैं।

हिंसा के एक सप्ताह बाद भी धुलियान में सन्नाटा पसरा है। इक्का-दुक्का दुकानें खुल रही हैं। सड़क पर एक-दो छोटे वाहनों को छोड़ कर केवल पुलिस और केंद्रीय बलों की गाड़ियां ही दिखाई देती हैं। हालांकि मुर्शिदाबाद पुलिस प्रशासन का दावा है कि धुलियान में जहां हिंसा की शुरुआत हुई थी, वहां स्थिति सामान्य है। लेकिन पीड़ितों का कहना है कि जब तक बीएसएफ है, तब तक हालात सामान्य रहेंगे। उसके बाद हमें कौन देखेगा? उनकी मांग है कि बीएसफ की स्थायी तैनाती की जाए। स्थानीय दुकानदार दुकान खोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहे हैं। बाहर से भले ही शांति दिखाई दे रही है, अंदर से लोग सहमे हुए हैं।
दुकानदारों का कहना है कि जब तक पूरी तरह से शांति स्थापित नहीं होती, तब तक दुकान खोलने का सवाल ही नहीं उठता। केंद्रीय बलों की मौजूदगी के कारण मुर्शिदाबाद के हालात में सुधार तो हुआ है, लेकिन स्थित अभी भी नाजुक बनी हुई है। प्रशासन के शांति के दावे के बीच घुलियान में 16 अप्रैल को फिर से हिंसा भड़कते वाली थी। लेकिन सुरक्षा बलों ने तत्काल उस पर काबू पा लिया। उपद्रवियों ने एक दुकान को आग के हवाले कर दिया था। स्थानीय लोगों ने बताया कि दुकान पर पेट्रोल छिड़कर आग लगाई गई, जबकि पुलिस ने आग लगने की वजह शॉट सर्किट बताई। दुकान के मालिक प्रवीर शाह का कहना है कि पेट्रोल की गंध आ रही थी।
‘पुलिस पर भरोसा नहीं रहा’
शहर के बीचोंबीच एक हिंदू अपनी क्षतिग्रस्त दुकान के बाहर नाप-जोख कर रहा था। उसने पूछने पर बताया कि उसने कर्ज लेकर दुकान खोली थी लेकिन दंगाइयों ने सब तहस-नहस कर दिया। दूसरा कोई विकल्प नहीं है, इसलिए वह दुकान को सुरक्षित बनाने के लिए लोहे की ग्रिल से घेरना चाहता है, ताकि भविष्य में अगर फिर से ऐसी घटना हो तो कम से कम नुकसान हो। वह रुआंसे स्वर में कहता है, पता नहीं, कब तक इस खाैफ में रहना पड़ेगा। एक बुजुर्ग ने अपना जला हुआ घर दिखाते हुए कहा कि अब पुलिस पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं है।
दंगाइयों ने जब हमारे घर पर हमला किया, तब हम एक कमरे में बच्चों को लेकर दुबके हुए थे। पुलिस को लगातार फोन कर रहे थे। लेकिन पुलिस वाले नहीं आए, जबकि थाना हमारे घर से महज दो सौ मीटर दूरी पर है। पुलिस चार घंटे बाद आई।
पारलालपुर स्कूल में शरण लेने वाली मुर्शिदाबाद के वार्ड नंबर 5 की एक महिला ने बताया, “जब दंगाई हम पर, हमारे घरों पर हमले कर रहे थे, तब पुलिस चुपचाप तमाशा देख रही थी। हमने गुहार लगाई, लेकिन कोई नहीं आया। पुलिस वाले कहते रहे, ‘जाओ, हम आते हैं।’ हमें अब पुलिस पर भरोसा नहीं है। जब तक हमें सेना की सुरक्षा नहीं मिलती, घर और रोजगार का कोई जरिया नहीं दिया जाता, हम वापस लौट कर क्या करेंगे?”
मस्जिद से हुई घोषणा
धुलियान के ही एक अन्य बुजुर्ग षष्टी घोष ने बताया, ‘‘शुक्रवार (11 अप्रैल) को दोपहर 12 बजे मस्जिद से घोषणा की गई कि वक्फ कानून के विरोध में दो बजे प्रदर्शन किया जाएगा। आप जहां भी हैं, वहां इकट्ठा हो जाइए।’’ उस प्रदर्शन में लगभग 15,000-20,000 मुस्लिम थे। प्रदर्शनकारी जब हिंदुओं के इलाके में पहुंचे तो घोषपाड़ा में उन्होंने पथराव किया और गाड़ियों में आग लगा दी। कई दुकानों को तोड़फोड़ के बाद आग के हवाले कर दिया गया। गौरांग मंदिर, फिर दुर्गा मंदिर को भी के हवाले कर दिया गया। हिंदुओं ने विरोध किया तो वे चले गए। लेकिन आगे जाकर डाकबंगला, शीतला माता मंदिर और काली मंदिर में तोड़फोड़ की। हिंदुओं के घरों में तोड़फोड़, लूटपाट और आगजनी की। इस तरह, उत्पात मचाते हुए जिहादी रेल गेट का सिग्नल, ट्रेफिक लाइट तोड़ते हुए आगे बढ़े। दंगाइयों ने लगभग 40 मंदिरों, हिंदू बहुल इलाके में दर्जनों घरों में तोड़फोड़ के बाद आग लगाई। लेकिन पुलिस नहीं आई।’’ उन्होंने बताया कि बीएसएसफ के आने के बाद इलाके में थोड़ी शांति है। लेकिन लोग अब भी डरे हुए हैं। अगर ये अगर ये सुरक्षार्मी नहीं आते, तो हिंसा नहीं रुकती।
‘डरे हिंदू कर रहे पलायन’
जब मुर्शिदाबाद जिले में हिंसा फैली, तो 30 वर्षीय उत्पल मंडल भी उसकी चपेट में आ गए। वह अपने बच्चे को डाॅक्टर को दिखाने जा रहे थे। लेकिन दंगाइयों ने उन्हें न केवल बेरहमी से पीटा, बल्कि स्कूटी से घसीटा और गले में जो तुलसी की माला पहनी रखी थी, उसे भी तोड़ दिया। उत्पल बताते हैं कि तुलसी की माला देखने के बाद दंगाइयों की आंखों में जैसे खून उतर आया था। वे मुझे मार डालना चाहते थे। चारों तरफ से मेरे ऊपर हमला हो रहा था। मेरे सिर, पैर, पेट, पीठ पर धारदार हथियार से हमला किया जा रहा था। जिहादियों ने बच्चे पर भी हमला किया। किसी तरह मेरी जान बच गई है। लेकिन इलाके के हिंदू डरे हुए हैं। बहुत से लोग जान बचाने के लिए दूसरी जगह को पलायन कर रहे हैं।
‘हमें बचाने वाला कोई नहीं’
आठ माह के बच्चे के साथ अपना घर छोड़ सुरक्षित जगह की तलाश में भागीं मुर्शिदाबाद की सुनीता मंडल (परिवर्तित नाम) कुछ भी बोलने से पहले रोने लगती हैं। वे रूंधे गले से बांग्ला में कहती हैं कि टोपी वाले मुसलमानों ने हमारे घरों को लूटकर जला दिया। हमें धमकाया कि अगर इलाका नहीं छोड़ा तो सबको मार डालेंगे। सभी हिंदुओं की लाशें सड़कों पर पड़ी मिलेंगी। वह पूछती हैं, “हमने इन मुसलमानों का क्या बिगाड़ा है, जो ये हमें हमारे घर से ही भगा रहे हैं। क्यों हमारे घरों को लूटकर आगजनी कर रहे हैं? हम अपनी जमीन छोड़कर कहां जाएं? इन दंगाइयों से हमारी रक्षा कौन करेगा?”
वार्ड नंबर 5 की एक अन्य महिला ने कहा, “दंगाई हमले कर रहे थे, चारों तरफ अफरा-तफरी मची हुई थी। लेकिन पुलिस चुपचाप तमाशा देख रही थी। हमने गुहार लगाई, लेकिन कोई सहायता नहीं मिली। वे यह कह कर टालते रहे कि हम आते हैं। हम बेबस अपने घर और सामान को जलता देख रहे थे। अब हमें पुलिस पर भरोसा नहीं है। जब तक वहां बीसीएसएफ कैंप, हमारे घर और रोजगार का कोई जरिया नहीं दिया जाता, हम वहां जाकर क्या करेंगे?”
दो बच्चों के साथ शिविर में पहुंचीं सुनयना का 6 साल का बच्चा बार-बार उन्हें रोटी खिलाने की कोशिश करता है, लेकिन वह कुछ नहीं खातीं। पूछने पर कहती हैं कि दंगाइयों ने हमें अपने ही घर से भगा दिया। हमने उनका कुछ नहीं बिगाड़ा, फिर उन्होंने हमारे साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया? उस दिन वे हमारे घरों में ऐसे घुस रहे थे, जैसे दुश्मन हों। उनमें अधिकांश हमारे पड़ोसी और बस्ती के आसपास रहने वाले मुसलमान थे। मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि वे ऐसा भी कर सकते हैं। लेकिन उन्होंने दंगाइयों का साथ दिया। हमारे घरों में लूटपाट की और हमें घर से बेघर कर दिया।
‘तीन घंटे तक लाशें पड़ी रहीं’
राहत शिविर में शमशेरगंज क्षेत्र के जाफराबाद की पिंकी (32 वर्ष) मिलीं। वे एकटक दीवार को देखकर आंसू बहाती रहती हैं। फिर रोते-रोते अचेत हो जाती हैं। शुक्रवार को नमाज के बाद हुई हिंसा ने पिंकी की जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया। दंगाइयों ने घर में घुसकर उनके पति चंदन और ससुर हरगोविंद दास की बेरहमी से हत्या कर दी। पिंकी कांपती आवाज में कहती हैं, ‘’हमने बार-बार पुलिस को फोन किया, पर कोई नहीं आया। मेरे पति और ससुर को दंगाई घर से घसीट कर बाहर ले गए और मार डाला। उनकी लाशें तीन घंटे तक बाहर पड़ी रही, पर किसी ने मदद नहीं की।’’ वे बताती हैं कि शुक्रवार सुबह 10 बजे कट्टरपंथियों ने गांव में पथराव शुरू किया। वे बम भी फेंक रहे थे। उन्मादी भीड़ ने हमारे घर पर चार बार हमला किया। अंत में वे दरवाजा तोड़कर अंदर घुसे और घर को तहस-नहस कर डाला। फिर मेरे पति और ससुर को घसीट कर बाहर ले गए और धारदार हथियार से काट डाला। उनकी पास बैठी सास परुल दास ने बताया, “हमने बच्चों को छत पर छिपा दिया था। वे हर पल पिता और दादा को खोजते रहते हैं।’’ पिंकी के तीन बच्चे हैं, जिनकी उम्र क्रमश: 6, 11 और 16 वर्ष है।
‘अब कहां जाएं हम?
बेदवना गांव की सप्तमी मंडल को चार दिन की बच्ची को लेकर भागना पड़ा। रोजमर्रा की तरह वे अपने घर पर ही थीं। सब कुछ ठीक था। लेकिन जुमे की नमाज के बाद सब कुछ बदल गया। जिहादियों की भीड़ ने उनके घर को तहस-नहस कर दिया और इलाका खाली करने की धमकी दी। यह पूछने पर कि उस रात क्या हुआ था? सप्तमी कहती हैं, “उस रात का दर्द सुनाने के लिए मेरे पास न तो साहस है और न ही शब्द। उस सबको को याद करके ही कलेजा बैठ जाता है। रात को नींद नहीं आती। कानों में गूंजता है, ‘मारो-मारो’।” मजदूरी करके गुजारा करने वाली सप्तमी बताती हैं कि बेटी को कई दिन से तेज बुखार है। लेकिन जिहादियों के डर से भागते समय वह दवाई भी नहीं उठा सकीं। पति भी घर पर नहीं थे। वे कहती हैं, ‘‘नई जगह पर अब दूसरों के सहारे हैं। पता नहीं दोबारा घर जा भी पाएंगे या नहीं? और अगर घर गए और मुसलमानों ने फिर से हमला कर दिया तो? अब न घर रहा और न खाने को अन्न है। हम कहां जाएंगे, नहीं पता।’’
धुलियान की 24 वर्षीया सुमन ने बताया कि जुमे की नमाज के बाद मुसलमानों की भीड़ सड़कों पर उतर आई और घरों में लूटपाट व आगजनी करने लगी। वे हिंदुओं की दुकानें लूट रहे थे और गाड़ियों में आग लगा रहे थे। उनके हाथों में धारदार हथियार थे। दूर-दूर तक पुलिस नजर नहीं आ रही थी। अचानक भीड़ ने हमारे पड़ोसी के घर में आग लगा दी और हमारे घर पर भी पथराव शुरू कर दिया। वे जोर-जोर से अल्लाह-हू-अकबर के नारे लगा रहे थे। किसी तरह मैं पापा और मां को लेकर घर से भागी। बीएसएफ की मदद से हम घाट तक पहुंचे और नदी पार करके दूसरे गांव आ गए। हमारे पास पहनने के लिए कपड़े तक नहीं हैं। पता नहीं कब यहां से घर जा पाएंगे।”
‘पानी में जहर मिलाया’
लगभग सभी महिलाओं ने एक ही बात कही कि हिंदुओं को मारने के लिए कट्टरपंथियों ने पानी में जहर मिला दिया था। तालाबों में जहर मिलाने से बड़ी संख्या में मछलियां मर गईं। पान के बागानों में भी आगजनी की गई। शमशेर गंज थाना क्षेत्र के जयदेव सरकार अपनी पत्नी पूजा सरकार और छोटे बच्चे के साथ किसी तरह जान बचाकर झारखंड के साहिबगंज जिले में पहुंचे। वे बताते हैं कि जब हिंसा हो रही थी तो सिर्फ एक बात सता रही थी-कैसे परिवार के साथ भागूं। जिहादी गांव में घुसकर घर जला रहे थे। पानी में जहर मिला रहे थे। इतना ही नहीं, उन्होंने महिलाओं से अभद्रता भी की। इन्हीं कारणों से हिंदू भागने को मजबूर हुए हैं। हृदय दास, नीलिमा दास, मोटेरी बाला दास, बापी दास, सुचेरिता सरकार, रूपचंद सरकार, सुष्मिता सरकार, संचिता सरकार, संगीता सरकार, सुचित्रा सरकार, पार्थो माझी, रुद्र सरकार सहित आराध्या दास की भी यही कहानी है।
हिंदू हूं इसलिए सताई जा रही
एक पीड़िता ने कहा, “मैं हिंदू हूं, इसलिए मेरे साथ यह सब हुआ। मेरा घर जला दिया गया। मैं दो बच्चियों के साथ किसी तरह से भाग कर यहां पहुंची। मेरा कसूर केवल इतना है कि मैं हिंदू घर में जन्मी। आज बंगाल में ऐसा लगता है कि कोई भी हिंदू सुरक्षित नहीं रह गया है। मुर्शिदाबाद के हिन्दू दोयम दर्जे के नागरिक बनकर रह गए हैं।
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‘हमारे साथ चलो, पति को छोड़ दूंगा’
दंगाइयों की हैवानियत बताते हुए बेदवान की महिलाएं फफक फफक कर रो पड़ती हैं। इस्लामी कट्टरपंथियों ने बेदवान को तीन तरफ से घेर कर हिंदुओं के घरों पर हमला किया और लूटपाट के बाद आग लगा दी। उनका सब कुछ जल कर खाक हो गया। एक महिला ने रोते हुए बताया, ‘’उन्मादियों की भीड़ मेरे घर में घुस आई और मुझे पकड़ लिया। वे मेरे साथ जबरदस्ती करने लगे। कुछ दंगाई घर के पुरुष सदस्यों को बेरहमी से पीट रहे थे, उन्हें घसीट रहे थे।’’ इस पीड़िता ने हाथों पर खरोंच के निशान दिखाते हुए आगे कहा, “उपद्रवियों ने मुझे पकड़ लिया और कहा कि जिंदा रहना चाहती हो, तो सिंदूर पोंछो, चूड़ियां तोड़ो और हमारे साथ चलो। तुमने अगर हमारी बात मानी, तो तु्म्हार पति को छोड़ देंगे।”
धुलियान की एक महिला ने बताया, ‘’उस दिन मुसलमान जैसे हैवान हो गए थे। वे पेट्रोल डाल कर घरों में आग लगा रहे थे। आंखों के सामने सब कुछ जल रहा था, लेकिन हम बेबस थे। एक तरफ घर जल रहे थे और दूसरी तरफ हमारे पड़ोसी, जिन्हें हम अपना मानते आए थे, वे हमारे साथ गलत व्यवहार कर रहे थे। हमें खींच रहे थे।’’
भारतीय मुसलमानों को यूएई की नसीहत
वक्फ संशोधन कानून पर हंगामा कर रहे भारतीय मुसलमानों को संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के इमाम और ग्लोबल इमाम काउंसिल के गवर्निंग मेंबर मोहम्मद तौहीदी ने नसीहत दी है। उन्होंने कहा कि वक्फ बोर्ड पर सरकार की निगरानी होनी चाहिए। इस पर भारत के मुसलमानों को सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए कानून का पालन करना चाहिए। यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि वक्फ बोर्ड को केवल मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि हिंदुओं सहित दूसरे मत-पंथों और मानवता की सेवा पर ध्यान देना चाहिए। इस मामले में यूएई का वक्फ बोर्ड उनके के लिए और दूसरे मुस्लिम देशों के लिए रोल मॉडल हो सकता है। यूएई में वक्फ बोर्ड सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि मंदिरों, चर्च और अन्य उपासना स्थलों के लिए भी है। सभी कानून के तहत संरक्षित हैं और सरकार द्वारा उनकी सेवा और देखभाल की जाती है।
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