उत्तराखंड: रिस्पना, बिंदाल आदि नदियों किनारे अतिक्रमण, डेमोग्राफी चेंज
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उत्तराखंड: रिस्पना, बिंदाल आदि नदियों किनारे अतिक्रमण, डेमोग्राफी चेंज की बड़ी वजह

देहरादून की रिस्पना और बिंदाल नदियों पर अवैध अतिक्रमण ने पर्यावरण और जनसुरक्षा को खतरे में डाला है। प्रशासन ने एनजीटी और हाई कोर्ट के दबाव में कार्रवाई शुरू की।

by उत्तराखंड ब्यूरो
Apr 17, 2025, 11:23 am IST
in उत्तराखंड
Uttarakhand encroachment

रिस्पना, बिंदाल नदियों के किनारे किया गया अतिक्रमण

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देहरादून: राजधानी और आसपास  में नदियां नाले सब जगह सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे ही कब्जे हो रहे हैं देहरादून की रिस्पाना बिंदाल और अन्य नदियों के मुहाने तक अतिक्रमण हो गया है। सरकारी जमीनों, नदी श्रेणी की भूमि पर बाहर से आए लोग कब्जे कर रहे हैं। हाई कोर्ट ने इस अतिक्रमण को लेकर सरकार का जवाब तलब किया है जिस पर शासन ने हाई कोर्ट से 30 जून तक अतिक्रमण हटाने की मोहलत मांगी है।

पिछले साल रोशनी के नदी नालों किनारे हो रहे अवैध कब्जों पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के दबाव में प्रशासन ने मई जून माह में रिस्पना नदी किनारे अतिक्रमण हटाने के लिए एक्शन लेना शुरू किया था। उम्मीद की जा रही थी कि ये अभियान जारी रहेगा कुछ अतिक्रमण एन जी टी को दिखाने के लिए हटाए भी, किंतु अब वो फिर से काबिज हो गए। उल्लेखनीय है पूर्व में अतिक्रमण नहीं हटाने पर एन जी टी द्वारा जिला अधिकारी सहित अन्य अधिकारियो पर एक एक लाख का जुर्माना भी डाला था और इसे प्रशासनिक लापरवाही माना था।

देहरादून प्रशासन, नगर निगम और एमडीडीए अब 2016 के बाद हुए अतिक्रमण को हटाने के लिए अवैध कब्जेदारों को नोटिस देकर कब्जा हटाने की कारवाई कर रहा है। जबकि 2016 के बाद के 534 से ज्यादा अतिक्रमण प्रशासन द्वारा चिन्हित हुए हैं।
2016 से पहले के अतिक्रमण की बात इसलिए नहीं की जा रही, क्योंकि तत्कालीन सरकार ने रिस्पना और बिंदाल बरसाती नदियों किनारे हुए अतिक्रमण को मलिन बस्तियों का रूप देते हुए इन्हें रूगुलाइज किए जाने का फैसला लिया था। देहरादून के बीच बहने वाली ये बिंदाल और रिस्पना नदियां अब नाले में तब्दील हो चुकी है। इनके किनारे बदसूरत बस्तियां, राजनेताओं की राजनीति का अखाड़ा बन चुकी है।

तुष्टिकरण, वोट बैंक की राजनीति ने यहां बाहरी लोगों को बसने दिया जो कि अब देहरादून की सबसे बड़ी समस्या का रूप ले चुकी है। ये अवैध कब्जे ही उत्तराखंड की डेमोग्राफी चेंज की समस्या का भी कारण बने हुए हैं। एनजीटी का मानना है कि ये अवैध अतिक्रमण नदी के फ्लड जोन में है और एक दिन कोई बड़ा जानमाल का नुकसान हो सकता है। नदी विशेषज्ञ भी मानते हैं कि नदियां तीस पैंतीस साल में अपने पुरानी मार्ग पर जरूर लौट कर आती है। इसलिए बिंदाल और रिस्पना में भी हमेशा खतरा बना रहेगा।

इसे भी पढ़ें: उत्तराखंड: UCC को लेकर शासन ने की समीक्षा बैठक, पंजीकरण की समीक्षा

पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट में रिस्पना रिवर फ्रंट को बनाए जाने को रखा था। लेकिन उनकी सरकार के जाते ही ये योजना भी ठंडे बस्ते में चली गई। एनजीटी ने इन नदियों के अतिक्रमण को नहीं हटाने पर देहरादून की डीएम और अन्य अधिकारियों पर एक-एक लाख रु का जुर्माना भी डाला और आगे अतिक्रमण नहीं हटाने पर उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को अग्रिम कारवाई के लिए निर्देशित भी कर दिया था।

इस अतिक्रमण को बचाने या संरक्षण के लिए राजनीति भी शुरू हो चुकी है, स्थानीय पार्षद, विधायक, मंत्री, विपक्षी दलों के नेताओ को इसमें अपना वोट बैंक दिखता है लिहाजा वो प्रशासन की अतिक्रमण हटाओ कार्रवाई को रोकने के लिए अपने-अपने प्रभाव का इस्तेमाल भी करते रहे हैं। प्रशासन के आगे एक तरफ कुआं एक तरफ खाई जैसी कहावत चरितार्थ हो रही है।
एक तरफ राजनीतिक प्रभाव तो दूसरी तरफ एनजीटी के भय उन्हें सता रहा है। बताया जाता है कि एनजीटी बेहद सख्त कारवाई का संकेत दे चुकी है। ऐसे में अतिक्रमण हटाना प्रशासन की मजबूरी बना हुआ है।

रिस्पना बिंदाल नदी पर सर्वाधिक अवैध कब्जे

जानकारी के मुताबिक, विधानसभा के पीछे से बहने वाली रिस्पना नदी की खूबसूरती कभी देहरादून की शान होती थी, इस नदी के 13 किमी क्षेत्र में 27 मलिन बस्तियों बन चुकी है। बिंदाल और रिस्पना में 129 बस्तियां चिन्हित हुई हैं, जिनमें करीब 40 हजार से अधिक  लोग सरकार की जमीन पर अतिक्रमण करके बैठे हुए हैं और ये नदी श्रेणी की भूमि फ्लड जोन का हिस्सा है। इस मामले में हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका पर भी सुनवाई चल रही है।

कोर्ट ने राज्य सरकार को तत्काल ये अतिक्रमण हटाने को कहा है। देहरादून प्रशासन ने अतिक्रमण प्रभावित नदी क्षेत्र में अवैध कब्जों का सर्वे कर निशान भी लगा दिए हैं, किंतु ये अवैध कब्जे क्या मुक्त होंगे? ये अभी सवाल ही है।

कांग्रेस की सरकार ने दिया था संरक्षण

राज्य और राजधानी बनने के बाद हजारों लोग यहां अवैध रूप से बाहरी प्रदेशों से यहां आकर बसते चले गए। जिनमें ज्यादातर अल्पसंख्यक समुदाय से थे। 2016 में हरीश रावत सरकार ने वोट बैंक की लालच में अपने स्थानीय विधायकों पार्षदों के कहने पर इन मलिन बस्तियों को रेगुलाइज करने का जिओ जारी कर दिया, जिसके बाद से ये अवैध कब्जे की जमीन सौ-सौ के स्टांप पेपर पर बिकने लगी। 2017 में जब बीजेपी सरकार आई तो एक हाई कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका पर एक आदेश के बाद इन बस्तियों के नियमितकरण की प्रकिया पर रोक लगानी पड़ी। अब इस पर एनजीटी भी संज्ञान ले रहा है, जिसके बाद प्रशासन को अतिक्रमण हटाना पड़ रहा है।

Topics: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनलNational Green Tribunalदेहरादून अतिक्रमणDehradun encroachmentरिस्पना नदीबिंदाल नदीमलिन बस्तियांअवैध कब्जाRispana riverillegal occupationBindal riverहाई कोर्टslumsHigh Court
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