गत 6 अप्रैल को सुरेंद्र नगर जिले के ध्रांगध्रा स्थित श्री स्वामिनारायण संस्कारधाम गुरुकुल में पाञ्चजन्य द्वारा ‘भारतीय ज्ञान परंपरा का विस्तार एवं आधार : गुरुकुल’ विषय पर एक दिवसीय कार्यक्रम गुरुकुलम् का आयोजन किया गया। इसका उद्देश्य था भारतीय शिक्षा की प्राचीन जड़ों को खंगालना, उनकी ऐतिहासिक विरासत को उजागर करना और आधुनिक संदर्भ में उनकी उपयोगिता को प्रमाणित करना।
इसका उद्घाटन गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया। इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (साैराष्ट्र प्रांत) के संघचालक मुकेश भाई मलकान, भारत प्रकाशन (दिल्ली) लि. के निदेशक बृज बिहारी गुप्ता, पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर और अनेक संत उपस्थित थे। इसके बाद संपादक हितेश शंकर ने आयोजन की भूमिका रखते हुए कहा, “हजारों वर्ष से भारतीय शिक्षा का मूल आधार रही गुरुकुल परंपरा को पुनर्जन्म देने के उद्देश्य से पाञ्चजन्य ने यह कार्यक्रम आयोजित किया है। यह भारतीय विचार को समाज के सामने रखने का अपने आपमें एक विशिष्ट प्रयास है। जब भारत की बात होती है, तो किसी भूगोल की बात नहीं होती। भारत की बात करना यानी भारतीयता की बात करना, ज्ञान की बात करना है। और यदि भारतीय ज्ञान की बात है, तो उसका आधार गुरु-शिष्य परंपरा और गुरुकुल परंपरा है।”

आचार्य देवव्रत ने ‘भारतीय ज्ञान परंपरा का महत्व, ऐतिहासिक विरासत एवं वर्तमान प्रासंगिकता’ पर कहा, “मैं पाञ्चजन्य परिवार को बहुत-बहुत बधाई देता हूं कि उसने भारत की प्राचीन शिक्षा-पद्धति को जनमानस तक पहुंचाने और भारतीय जीवन-मूल्यों में भारतीय विरासत की स्थापना के लिए एक बहुत बड़ी पहल की है। मानव के जीवन में परिवर्तन का शिक्षा से बड़ा और कोई दूसरा साधन नहीं होता।
अंग्रेजों ने इस देश पर राज करने के दौरान पूरे देश का भ्रमण कर यह तय किया कि हम भारत में लंबे समय तक शासन तभी चला पाएंगे, जब यहां की शिक्षा नीति को बदल दिया जाएगा। इसके लिए 1835 में लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया। लॉर्ड मैकाले ने दो बार भारत का भ्रमण किया। उसने कहा कि भारत में अंग्रेजों का स्थायी राज तभी चल पाएगा, जब यहां की गुरुकुल और शिक्षा पद्धति को पूरी तरह नष्ट कर दिया जाएगा। अंग्रेजों ने ऐसा ही किया। जो दानदाता गुरुकुलों को अपने सहयोग से चलाते थे, उन पर दबाव डाला गया और दान देना बंद कराया गया। इसके बाद भी जो दान देते थे, उन्हें दंडित किया गया। जो गुरुकुल राजाओं की व्यवस्था से चलते थे, उन पर दबाव डालकर सहयोग बंद करवाया गया। पूरे देश में उन्होंने भारतीय गुरुकुल परंपरा को तोड़ा और अपनी स्कूली व्यवस्था को लागू किया।’’ उन्होंने कहा, ‘’उनका (अंग्रेजों) उद्देश्य था कि हम भारत में ऐसे लोग पैदा करें, जो हमारे काम को बढ़ाने में सहयोग दें, अपनी मूल्यवान विरासत को भूल जाएं और अंग्रेजों को सर्वोपरि बुद्धिमान मानते हुए हमारे चरणों में रहें।
यह दुर्भाग्य रहा कि उस समय जो अभियान उन्होंने चलाया, उसमें वे पूर्ण रूप से सफल हुए। आश्चर्य की बात यह है कि भारत के स्वतंत्र होने के बाद भी कुछ ऐसे लोग थे, जो अंग्रेजों के समय उनकी व्यवस्था का विरोध करते रहे, लेकिन अंग्रेजों के जाने के बाद उनकी व्यवस्था को और मज़बूती से लागू किया। उन्होंने उसी पाठ पद्धति को आगे बढ़ाया, जिसने हमारी भाषा को बदल दिया, हमारी वेशभूषा को बदल दिया, जिसने हमारी संस्कृति पर सीधी चोट की, जिसने हमारे खान-पान और जीवनशैली में आमूलचूल परिवर्तन किया। उसमें वे लोग सफल हुए और उसका आधार बनी शिक्षा।”

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, नई दिल्ली के ए.बी. शुक्ल ने ‘भारतीय ज्ञान परंपरा एवं गीता में प्रबंधन के सूत्र’ विषय पर अपने वक्तव्य में कहा, ‘’भारतीय वाङ्मय सत्य, तथ्य और कथ्य में विभाजित है। सत्य के बारे में कहा गया है ‘सत्यं वेद:’ (वेद ही सत्य है), तथ्य जितने भी उपांग हैं वे इसके तथ्य हैं। लेकिन भगवद्गीता एक ऐसा ग्रंथ है, जो सत्य, तथ्य और कथ्य तीनों से परे है और यही कारण है कि यह अद्भुत है। महाभारत में एक श्लोक आता है—
‘आपत्सु रामः समरेषु भीमः दानेषु कर्णश्च नयेषु कृष्णः।
भीष्मः प्रतिज्ञापरिपालनेषु विक्रान्तकार्येषु भवाञ्जनेयः।’
इसका अर्थ है कि आपदा में भगवान राम को, समर में भीम, दान में कर्ण और नीति के लिए भगवान श्रीकृष्ण को याद कीजिए। सवाल यह उठता है कि आखिर अर्जुन को छोड़कर भीम के स्मरण की बात क्यों की गई? उन्होंने कहा कि पांडवों की अंतिम यात्रा थी। पांचों कैलाश चढ़ने लगे, लेकिन द्रौपदी नहीं चढ़ पाईं। भीम ने युधिष्ठिर से पूछा कि अगर आपकी आज्ञा हो तो द्रौपदी को कंधे पर उठा लूं। बिना मुड़े युधिष्ठिर ने कहा कि यह अंतिम यात्रा है। इसमें केवल जीवात्मा और उसके कर्म ही जाएंगे। मोह और माया का बंधन त्यागकर आगे बढ़ो। कुछ आगे बढ़ने पर सहदेव गिर गए। भीम ने फिर वही सवाल किया और युधिष्ठिर ने फिर वही चेतावनी दी।

आगे नकुल के साथ भी ऐसा ही हुआ। लेकिन अर्जुन के गिरने पर भीम ने जबरन युधिष्ठिर को पकड़ा और फिर वही सवाल किया। इस पर युधिष्ठिर ने पूछा कि जब हम लोग छोटे थे तो दुर्योधन ने किस भाई से ईर्ष्या रखी, किसे गंगा में फेंका था? लाक्षागृह में जब सब बेहोश होने लगे थे तो किसने फर्श तोड़ा और किसने सभी को बचाया? भीम ने जवाब दिया कि मैंने। विराटनगर में कीचक जब द्रौपदी को सता रहा था तो उसका अंत किसने किया? महाभारत के युद्ध में 100 के 100 कौरवों को किसने मारा? भीम ने जवाब दिया-मैंने। महाभारत में पितामह भीष्म केवल एक बार पीछे हटे थे, उन्हें किसने हटाया? भीम बोले-मैंने। युधिष्ठिर ने कहा, “सच्चाई यह है कि तुम्हारे कारण हमने महाभारत का युद्ध जीता। इस सबके दौरान तुम पूरी तरह निश्छल थे, तुममें अभिमान नहीं था, लेकिन अब तुम भी गिरोगे। इसके बाद भीम भी गिर गए।’’ उन्होंने निष्कर्ष निकाला- “यह प्रबंधन का सूत्र है- निश्छलता और नम्रता सफलता की कुंजी है। भीम का योगदान निस्वार्थ था, जो आज के नेतृत्व में दुर्लभ है।”
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के निदेशक (सांस्कृतिक सायंत्रिक संचार) प्रतापानंद झा ने ‘कन्वर्जेंस आफ ट्रेडीशन एंड माडर्निटी इन डिजिटल मीडिया’ विषय पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, ‘अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष जीवन के मुख्य लक्ष्य हैं। इन्हें पाने के लिए दो तरह के मार्ग हैं-प्रवृत्ति मार्ग और निवृत्ति मार्ग। मोक्ष निवृत्ति मार्ग का सूचक है, जबकि काम और अर्थ प्रवृत्ति मार्ग के सूचक हैं।

धर्म इन सबके बीच सामंजस्य स्थापित करता है। इनके कार्यान्वयन के लिए हमारे यहां चतुर्दश और अष्टादश विद्याओं की एक विस्तृत योजना बनाई गई। यह रूपरेखा मुंडकोपनिषद् में स्पष्ट कर दी गई थी। मुंडकोपनिषद् में परा और अपरा विद्याओं का विस्तृत विवरण मिलता है। परा विद्या अक्षर विद्या है, जबकि अपरा विद्या में चारों वेद और वेदांगों का वर्णन मिलता है। जब हम वेदों की बात करते हैं, तो वेदों में केवल संहिता की बात नहीं होती। वेदों में संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद्-इन सबका समग्र रूप शामिल है। इसीलिए जब हमने वैदिक हेरिटेज पोर्टल बनाया था, तो इसे इस व्यापक दृष्टिकोण के साथ तैयार किया गया।”
समापन सत्र में महामंडलेश्वर स्वामी परमात्मानंद सरस्वती ने अपने वीडियो संदेश में कहा, “सबसे पुराने ज्ञान का ग्रंथ भारत भूमि में है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी स्वीकार किया है कि पृथ्वी पर सबसे पुराना ज्ञान का ग्रंथ हमारे वेद हैं। भारत वह स्थान है जहां विद्वान रहते हैं। भारत में राजा से ज़्यादा महत्व विद्वानों को दिया जाता है। उनका सर्वत्र पूजन होता है। ऋषियों का पूरा जीवन ज्ञान को समर्पित था। उन्होंने जो दर्शन दिए, वह ज्ञान न केवल वेदों में, बल्कि अन्य वेदांगों और शास्त्रों में भी है। हमारी गुरुकुल परंपरा, पिता-पुत्र परंपरा और गुरु-शिष्य परंपरा से वह ज्ञान आज तक सुरक्षित है और उसका संवर्धन भी हुआ है।’”
इस अवसर पर अनेक वरिष्ठ संत, विद्वान और गुरुकुल में अध्ययन करने वाले छात्र बड़ी संख्या में उपस्थित थे।
प्रदर्शन और प्रस्तुतियां
कार्यक्रम में विश्व भाई वोरा ने ज्योतिषीय भविष्यवाणियां प्रस्तुत कीं। उन्होंने कहा, ”2025 में भारत को वैश्विक स्तर पर नई और सशक्त पहचान मिलेगी। 2027 में कई सारे राजनीतिक बदलाव देखने को मिलेंगे, जिससे सकारात्मकता का निर्माण होगा अप्रैल से लेकर सितंबर 2026 तक का समय रियल एस्टेट के लिए चुनौतीपूर्ण रहने वाला है। इस साल खेती-बाड़ी में नुकसान की संभावना है।” उन्होंने तत्काल ही मंच पर एंड्रॉयड और इंटरनेट पर भी श्लोक बनाया-
“प्राचीनस्थान संप्राप्य विरोधी एप्पलस्य च शुक्ल वर्णि विजीदृष्टम सदा गम्यम एंड्रायडम्”।
अर्थ-है इस हार्डवेयर और सॉफ्वेयर के जगत में सबसे पुराना, उसका एप्पल विरोधी है। उसका लोगो एक नीले रंग का रॉबर्ट है जो विचित्र—विचित्र आकृति बनाता है। सबसे ज्यादा सबसे जुड़ने वाला यह एंड्रॉइड है। ”सकलहरूप प्रतिष्ठानम् अधिष्ठानम् बहुजनाः भूभर्वः स्वः श्रेष्ठ प्रापक्यम् माया जालाहि कथियते”। अर्थ सबके दिलों और सबकी रोजमर्रा की जिंदगी में जिसने राज कर लिया है और सभी लोगों की निर्भरता जिस पर टिकी हुई है। जो जमीन पर हो, पाताल में हो या अंतरिक्ष में हो, तीनों में जिसकी उपलब्धता हो उस मायाजाल को इंटरनेट बोलते हैं। उनकी प्रस्तुति ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। वहीं ध्रांगध्रा गुरुकुल के छात्रों ने वैदिक मंत्रों का पाठ, योग, और शारीरिक कौशल का प्रदर्शन किया। हेमचंद्र गुरुकुल के छात्रों ने मल्लखंभ, कुश्ती, वैदिक गणित, और आंखों पर पट्टी बांधकर पढ़ने की कला दिखाई।
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