डॉ. आम्बेडकर
बाबा साहब आम्बेडकर केवल दलित सुधारक अथवा भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माता ही नहीं थे, अपितु एक कुशल राजनेता, वकील, पत्रकार, अर्थशास्त्री, धर्मवेत्ता भी थे। उन्होंने विश्व के तीन प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों कोलम्बिया, लन्दन और जर्मनी के बान विश्वविद्यालयों से उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने इकोनॉमिक्स विषय के गरीबों के कल्याणकारी अर्थशास्त्र और रुपयों की समस्या और समाधान विषय पऱ डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी। उन्होंने अपनी मेधा, योग्यता का प्रयोग सदैव समाज और राष्ट्र के उत्थान के लिए किया।
डॉ. आम्बेडकर का कांग्रेस और गांधी से मतभेद था। गांधी हिंदू समाज की वर्णव्यवस्था के समर्थक थे, जबकि आम्बेडकर वर्णव्यवस्था को जातिवाद की उत्पत्ति का मूल कारण मानते थे। उनका कहना था कि कांग्रेस और गांधी जी ने अस्पृश्यता निवारण के लिए ईमानदारी से कोई प्रयास नहीं किया। वह कहते हैं कि स्वामी श्रद्धांनंद को जब कांग्रेस द्वारा 1922 में अस्पृश्यता निवारण समिति का संयोजक बनाया गया था तब उन्हें न तो कोई फंड मिला और न ही कोई सहयोग, जिसके कारण स्वामी श्रद्धांनंद को खिन्न होकर त्यागपत्र देना पड़ा ।
आम्बेडकर मुस्लिम कट्टरपंथ के कटु आलोचक थे। उन्होंने खिलाफत के मुद्दे को असहयोग आंदोलन में शामिल करने के फैसले का तीखा विरोध किया। 1916 के लखनऊ कांग्रेस और मुस्लिम लीग समझौते और साइमन कमीशन के बाद गठित नेहरू रिपोर्ट द्वारा मुस्लिम समुदाय को आरक्षित सीटें देने का विरोध कर दलित विरोधी और राष्ट्र विरोधी बताया। 19 जनवरी 1929 को आम्बेडकर ने अपने समाचार पत्र बहिष्कृत भारत में लेख में कहा, “जिस योजना से हिन्दुओं का अहित होता हो वह योजना किस काम की। हम इस रपट का इसलिए विरोध नहीं करते है कि वह अस्पृश्यों के अधिकारों का हनन करती है वरन इसलिए कि उससे हिंदुओं को खतरा है और सारा हिंदुस्तान इससे भविष्य में मुसीबत में पड़ सकता है।”
उन्होंने तत्कालीन भारतीय सेना में मुस्लिमों की बढ़ती तादात पऱ चिंता व्यक्त कर इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चिंताजनक बताया। भारत की सांप्रदायिक समस्या के स्थाई समाधान के हिंदू और मुस्लिम जनसंख्या के अदला-बदली करने का मशविरा दिया, भारत की 1946 की अंतरिम सरकार में मुस्लिम लीग के शामिल होने पऱ भारत सरकार को दो राष्ट्रों की सरकार बताया। कम्युनिस्ट लम्बे समय से बाबा साहब के विचारों की गलत मीमांसा कर तमाम राष्ट्रविरोधी विमर्श गढ़कर देश में भ्रम फैलाते हैं। कम्युनिस्टों के लिए जो बाबा साहब ने कहा और लिखा उनको समाज और देश का जानना जरूरी है। बाबा साहब पर लिखी गई प्रमाणित पुस्तक धनंजय कीर की बाबा साहब आम्बेडकर लाइफ एंड मिशन जिसे बाबा साहव ने खुद अपनी आत्मकथा माना है, में लिखा है कि कम्युनिस्टों से दलित समाज को दूर रहना चाहिए, उनकी हड़तालो में शामिल नहीं होना चाहिए, कम्युनिस्टों का भक्षक नहीं बनना चाहिए क्योंकि इससे दलितों का नुकसान होगा। ब
बा साहब का 20 नवम्बर 1956 कों नेपाल की राजधानी काठमांडू में दिया गया भाषण ‘बुद्ध या कार्ल मार्क्स ‘ में कहा कि कम्युनिस्ट धर्म कों नहीं मानते जबकि धर्म के बिना जीना मानव के लिए असम्भव है। हिंसा द्वारा वे कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना चाहते हैं तथा राज्य पर बल और खूनी हिंसा द्वारा शासन करने कों उचित मानते हैं, जबकि बौद्ध धर्म की शिक्षाओं, अहिंसा, समता, आत्मानुशासन से ही कम्युनिस्टों की परिकल्पना से अधिक कल्याणकारी राज्य की स्थापना की जा सकती है । थोड़े समय के लिए ही सही राज्य को बल से मुक्ति करके मानव हत्याओं को कैसे उचित ठहराया जा सकता है ? धनंजय कीर अपनी किताब में रस्योद्घाटन करते है बाबा साहब जब 21 मई 1932 कों पूना प्रवास पऱ गए तो उनकी गाड़ी में भगवा ध्वज लहरा रहा था जिसमें ॐ अंकित था। ऐसा ही एक प्रकरण 3 जुलाई 1947 मुंबई में घटित हुआ जब एयरपोर्ट पर वह पहुंचे तो कुछ हिंदू महासभा के लोग उनसे मिलने पहुंचे और उनसे झंडा समिति के सदस्य होने के नाते भारत के भगवा ध्वज को राष्ट्रीय ध्वज घोषित करवाने की मांग की। उन्होंने प्रस्ताव आने पर हरसंभव सहयोग करने का आश्वासन दिया। लेकिन अन्य सदस्यों का अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने पर यह प्रस्ताव सफल नहीं हो सका।
बाबा साहब संस्कृत भाषा के महत्व को भलीभांति जानते थे वह इसे राजभाषा बनाने के लिए प्रस्ताव भी बंगाल के सदस्य नजरुद्दीन अहमद से 13 नवम्बर 1949 कों करवाया था तथा खुद भी प्रस्तावक थे। उन्होंने स्वयं संस्कृत भाषा बोलचाल की दक्षता हासिल कर ली थी, संविधान सभा भवन में उन्हें लक्ष्मीकांत मैत्रे से संस्कृत में बातचीत करते हुए देखा गया था जिसे तत्कालीन समाचार पत्रों लीडर, दैनिक आज, हिंदुस्तान, हेराल्ड सहित कई अखबारों ने प्रकाशित भी किया था। प्रस्ताव पर बराबर बराबर वोटिंग हुई, अध्यक्ष ने अपने मत का प्रयोग नहीं किया लिहाजा संस्कृत भाषा राष्ट्रभाषा बनने से वंचित रह गई। आर्यों के आगमन और आक्रमण के मिथक सिद्धांत के विमर्श कों कम्युनिस्टों ने समाज में भ्रम फैलाकर आत्महीनता और द्वेष देश में फैलाया जिसमें कुछ हदतक सफल भी हुए। बाबा साहब ने शूद्र कौन थे वेदों में वर्णित विषय और एंथ्रोपोमेट्री ( नृजातीय विज्ञान ) से सिद्ध किया कि आर्य भारत के निवासी थे तथा शूद्र भी आर्य थे।
बाबा साहब कितने बड़े युगदृष्टा थे, उन्होंने धारा 370 धारा कों लिखने से मना कर दिया था तब नेहरू ने अब्दुल्ला शेख से फिर से आम्बेडकर से लिखने के लिए मनाने के लिए कहा परन्तु शेख के बात करने पर बाबा साहब ने कड़ा जबाब देते हुए कहा भारत सरकार कश्मीर में सड़कें बनवायेगी, स्कूल बनवायेगी, अन्य विकास कार्य करवाएगी फिर भारत के अन्य राज्यों से अलग कश्मीर को विशेष दर्जा देना राष्ट्रहित में नहीं होगा । बाद में नेहरू के दबाव में अनमने मन से गोपाल आयेंगर ने धारा 370 को लिखा । कई मामले जैसे कृषि, सिंचाई का मामला हो, राज्यों के बटवारे का मामला हो, विदेश नीति का मामला हो बाबा साहब ने सदैव सटीक राय देशहित में रखी, इसलिए उन्हें केवल दलित सुधारक और संविधान निर्माता मानना उनके व्यक्तित्व और कृतित्व कों कमतर मानना होगा।
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