हिजाब के लिए सादिया की जान चली गई (फोटो साभार: सुदर्शन न्यूज)
जोधपुर में 19 वर्षीय लड़की सादिया की घर में लगी आग से जलकर मौत हो गई। सादिया की जान बच सकती थी। वह घर से बाहर भी आ गई थी।
सादिया 11 वर्ष की उम्र से ही हिजाब में रह रही थी और यह भी कहा जा रहा है कि वह दीनी तालीम भी ले रही थी। परिवार हज जाने की तैयारी कर रहा था। पूरा परिवार एक साथ बैठकर खाना खाने जा रहा था। गैस सिलेंडर फटने के कारण घर में आग लग गई और जब घर में आग लगी तो सादिया ऊपर के कमरे में बैठकर नमाज पढ़ रही थी। उसने अपने घरवालों को फोन करके बताया कि वह कहां फंसी है, तो उसके चाचा और अग्निशमन कर्मचारी उसे बचाने के लिए भी आ गए थे। वह कमरे से बाहर निकल भी आई थी, मगर फिर उसे याद आया कि वह अपना हिजाब तो कमरे में ही भूल आई है, वह उसे लेने के लिए कमरे के भीतर गई और जलता हुआ दरवाजा उस पर गिर गया। हालांकि उसे आग के बीच से तो निकाल लिया, मगर अस्पताल ले जाते समय उसकी मौत हो गई।
यह दुखद है कि एक हिजाब की जिद्द के चलते 19 साल की एक लड़की को अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा। जब भी लोग हिजाब को पर्सनल चॉइस कहते हैं, तो उस समय सादिया के उदाहरण से यह भी समझने का प्रयास करना चाहिए कि क्या पर्सनल चॉइस इस सीमा तक जुनूनी हो सकती है कि वह आग का दरिया ही न देखे? या फिर यह बचपन से ही की गई किसी ब्रेन वाशिंग के कारण हो सकती है?
भारत में शायद यह पहली ऐसी घटना होगी जो हिजाब के कारण किसी मुस्लिम लड़की की जान गई हो। वैसे तो हिजाब के चलते कई जानें जा चुकी हैं, जैसे ईरान में लगातार जा रही हैं। मगर वहाँ पर जान जाने और भारत के जोधपुर में सादिया की मौत में अंतर है, क्योंकि ईरान में लड़कियां इस कारण मारी जा रही हैं क्योंकि वे अनिवार्य हिजाब की कैद से बाहर आना चाहती हैं।
सादिया की इस दर्दनाक मौत की तुलना की जाए तो वर्ष 2002 में सऊदी में घटित एक घटना याद आती है, जिसमें एक स्कूल में लगी आग में 15 बच्चियों की केवल इसलिए जलकर मौत हो गई थी, क्योंकि मजहबी पुलिस के सदस्यों ने सिविल डिफेंस के अधिकारियों को प्रवेश करने से और छात्राओं को बाहर जाने देने से इनकार कर दिया था, क्योंकि लड़कियों ने अबाया नहीं पहना था।
वर्तमान में सऊदी में अबाया को लेकर नियम उतने सख्त नहीं है। परंतु 2002 में ऐसा नहीं था। इस घटना में 15 लड़कियां केवल अबाया की जिद्द के चलते जान से हाथ धो बैठी थीं। इस घटना के कारण इस्लामिक जगत में काफी सवाल उठे थे और यह भी पूछा गया था कि क्या अबाया इतना महत्वपूर्ण है कि इसके लिए लड़कियां जलकर मर जाएं?
हालांकि देश और विदेश में इस घटना को लेकर हो रही आलोचनाओं के बीच सऊदी सरकार ने एक जांच करवाई थी, जिसमें यह निष्कर्ष निकाला था कि स्कूल के अधिकारियों द्वारा स्कूल में अग्नि से सुरक्षा के उचित उपाय न होने के कारण इतनी बड़ी दुर्घटना हुई थी। सरकार ने इन आरोपों का खंडन कर दिया था कि मजहबी पुलिस का कोई भी कदम इन मौतों के लिए जिम्मेदार था।
कई प्रत्यक्षदर्शियों एवं सिविल डिफेंस अधिकारियों के बयान इससे इतर गवाही दे रहे थे। arab news के अनुसार, “अरब न्यूज़ की एक टीम ने कल स्कूल का दौरा किया और पाया कि आग लगने के बाद इमारत से बाहर निकलने की जल्दी में लड़कियों ने काफी संख्या में अबाया (काले गाउन), जूते और बैग छोड़ दिए थे।” इस घटना के बाद लड़कियों की शिक्षा का संचालन करने वाली जनरल प्रेसीडेंसी को समाप्त कर दिया था, जिसका नियंत्रण रूढ़िवादी मौलानाओं के हाथों में था।
उस घटना में इसलिए और लड़कियां घिर गई थीं, क्योंकि जब आग लगी तो स्कूल की मुख्य इमारत का ताला बंद था, और इसे खोलने और बंद करने वाला पुरुष गार्ड उस समय वहाँ नहीं था। अग्निशमन अधिकारी समय से स्कूल पहुँच गए थे, मगर स्कूल के बाहर घूमने वाली मजहबी पुलिस के सदस्यों ने किसी भी अधिकारी को इसलिए अंदर नहीं जाने दिया था, क्योंकि स्कूल के अंदर लड़कियां और फ़ीमेल कर्मी अपनी उस पोशाक में नहीं थीं, जिसमें वे घर से आती थीं और घर जाती थीं। समय बर्बाद होता रहा और लड़कियां अंदर जलती रहीं।
मगर जोधपुर में घर के मर्द सादिया को बचाने के लिए पहुँच गए थे, वह बाहर भी आ गई थी, लेकिन हिजाब लेने के लिए वह फर घर में गई और आग में फंस गई। क्या इसे भी ‘हिजाब इज अ पर्सनल चॉइस’ कहकर खारिज किया जाएगा, या फिर इतनी जिद्द क्यों है, इस पर बात होगी?
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