एबी शुक्ल
गुजरात के सुरेंद्रनगर में पाञ्चजन्य के ‘भारतीय ज्ञान परंपरा का विस्तार एवं आधार: गुरुकुल’ शीर्षक के मुद्दे पर आयोजित कार्यक्रम में IGNCA के एबी शुक्ल ने ‘भारतीय ज्ञान परंपरा एवं गीता में प्रबंधन के सूत्र’ विषय पर अपने विचार रखे।
उन्होंने कहा कि भारतीय वाड़्गमय को देखें तो ये तीन भागों में ये विभाजित सत्य, तथ्य और कथ्य। सत्य के बारे में कहा गया है सत्यं वैद: (वेद ही सत्य है), तथ्य जितने भी उप अंग हैं वे इसके तथ्य हैं। लेकिन, भगवदगीता एक ऐसा है, जो कि सत्य, तथ्य और कथ्य तीनों से ही परे है और यही कारण है कि ये अद्भुत है। श्रीसुक्तम में कहा गया है प्रादुर्भोतोस्मि राष्ट्रेस्मि इति मृधिंदतात्वमेव।
महाभारत में एक श्लोक आता है आपत्सु रामः समरेषु भीमः दानेषु कर्णश्च नयेषु कृष्णः । भीष्मः प्रतिज्ञापरिपालनेषु विक्रान्तकार्येषु भवाञ्जनेयः ।। (मतलब ये कि आपदा में भगवान राम को, समर में भीम, दान में कर्ण और नीति के लिए भगवान श्री कृष्ण को याद कीजिए)। सवाल ये उठता है कि आखिर अर्जुन को छोड़कर भीम के स्मरण की बात क्यों की गई है। तो मुझे याद आता है कि महाभारत शुरू होने से पहले दुर्योधन ने कहा था कि जब तक हमारे पक्ष में भीष्म खड़े हैं, हमारी सेना सुरक्षित है।
एक कहानी सुनाते हुए एबी शुक्ल कहते हैं कि पांडवों की अंतिम यात्रा थी, पांचों कैलाश चढ़ने लगे, लेकिन द्रौपदी नहीं चढ़ पाई तो भीम ने युधिष्ठिर से पूछा कि अगर आपकी आज्ञा हो तो द्रौपदी को कंधे पर उठा लूं, लेकिन बिना मुड़े ही युधिष्ठिर ने कहा कि ये अंतिम यात्रा है, इसमें केवल जूवात्मा और उसके कर्म ही जाएंगे। मोह और माया का बंधन त्यागकर आगे बढ़ो। कुछ आगे बढ़ने पर सहदेव भी गिर गए, भीम ने फिर वही सवाल किया और युधिष्ठिर ने फिर वही चेतावनी दी। आगे नकुल के साथ भी ऐसा ही हुआ, तब भी युधिष्ठिर ने वही चेतावनी दी। लेकिन, अर्जुन के गिरने पर भीम ने जबरन युधिष्ठिर को पकड़ा और फिर वही सवाल किया। इस पर युधिष्ठिर ने सवाल किया कि जब हम लोग छोटे थे तो दुर्योधन ने किस भाई से ईर्ष्या रखी, किसे गंगा में फेंका था। लाक्षागृह में जब सब बेहोश होने लगे थे तो किसने फर्श तोड़ा और किसने सभी को बचाया। भीम ने जबाव दिया कि मैंने।
इसके बाद युधिष्ठिर अगला सवाल करते हैं कि जब हम लोग आगे बढ़ रहे थे तो मां को किसने अपने कंधे पर उठाया था? भीम बोले मैंने। हिडिम्ब राक्षस को किसने मारा? भीम बोले-मैंने, एकचक्र नगरी में बकासुर का वध किसने किया, जरासंध से कौन लड़ा था?विराटनगर में कीचक जब द्रौपदी को सता रहा था तो उसका अंत किसने किया? महाभारत के युद्ध में 100 के 100 कौरवों को किसने मारा? भीम ने जबाव दिया-मैंने। महाभारत में पितामह भीष्म केवल एक बार पीछे हटे थे, उन्हें किसने हटाया? भीम बोले-मैंने। युधिष्ठिर सच्चाई ये है कि तुम्हारे कारण हमने महाभारत का युद्ध जीता। इन सब के दौरान तुम पूरी तरह से निश्छल थे, तुम्हारे अंदर अभिमान नहीं था, लेकिन, अब तुम भी गिरोगे। इसके बाद भीम भी गिर गए।
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को ही गीता क्यों सुनाई? इस पर बात करते हुए एबी शुक्ल बताते हैं कि भगवान कृष्ण एक ऐसा व्यक्ति चाहते थे, जिसके जरिए वो संदेश दे सकें, जिससे आने वाली पीढ़ियों को जो भी समस्याएं हों, उन्हें खत्म किया जा सके। हमारा ज्ञान इतना प्रबुद्ध है कि इसे बताने की आवश्यकता नहीं है। आज चैत्र शुक्ल की नवमी है। इसे आकाश में देखकर साबित किया जा सकता है। लेकिन, अभी तक ऐसा कोई सिस्टम नहीं है, जिससे ये साबित हो सके कि आज 6 अप्रैल 2025 है। आज पुष्य नक्षत्र है, इसे आकाश में देखकर बताया जा सकता है। हमारी भारतीय ज्ञान परंपरा स्वयं सिद्ध है, लेकिन ये दुख की बात है कि आज इसे सिद्ध करने की कोशिश करनी पड़ रही है।
ज्योतिष को श्रीमदभगवदगीता के जरिए बताते हुए एबी शुक्ल कहते हैं कि इसकी सबसे बड़ी विशेषता ये है कि ज्योतिष के वो सूत्र, जिनका उत्तर कहीं नहीं मिलता है, उसका उत्तर भगवदगीता में मिलता है। भगवदगीता एक ऐसा ग्रंथ है, जिसके माध्यम से व्यक्ति कुछ भी जानना चाहे, उसका उत्तर उसे उसमें मिलता है। ये ग्रंथ 8 आदमियों के माध्यम से पहुंची है। जिसमें एक व्यक्ति ने तो कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन सात लोगों ने इस पर अपने विचार रखे। पहले-दूसरे भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन, तीसरे-चौथे धृतराष्ट्र और संजय, पांचवे-छठे भगवान वेदव्यास और गणेश जी। सातवें शुचि, जिन्होंने इसे जाकर सभी को सुनाया। आठवें धनवान जी, जिन्होंने सिर्फ सुना कुछ कहा नहीं।
एबी शुक्ल कहते हैं कि भगवद्गीता के एक श्लोक के कम से कम 8 अर्थ हैं। इसमें से एक सामान्य है और बाकी 7 विशेष हैं। जिसे जो देखना हो वो उस संदर्भ में जाता है। उदाहरण के तौर पर कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ आप भारत सरकार के ऑफिस में जाएंगे, तो वहां ये श्लोक लिखा है, नीचे इसका अर्थ लिखा है अपना कर्तव्य करो। लेकिन, भगवान कहते हैं कि कर्म करना तुम्हारा अधिकार है, करो या न करो। भगवद्गीता जो भी पहली बार बोलता है, एक प्रश्न करता है और इसका उत्तर 18वें अध्याय में मिलता है। गीता का पहला श्लोक, कुतस्त्वा कशमलमिदं विषमे समुपस्थितम्। अनार्यजुष्टमस्वर्ग्यं अकीर्ति-करं अर्जुन। इसका उत्तर18वें अध्याय में मिलता है। दो प्रश्नों के बीच पूरी भगवद्गीता समाई हुई है।
भगवान के पहले प्रश्न का जबाव अर्जुन इसलिए नहीं दे पाए, क्योंकि इसमें सबसे पहले ही भगवान ने उनके विवेक पर प्रश्न उठा दिया। उन्होंने कहा कि अर्जुन तुम्हारे मन में मोह आ गया है। इस विकार के कारण बुद्धि काम करना बंद कर देगी और तुम विषम परिस्थिति में फंस जाओगे। और तुम अनाड़ी हो जाओगे, कुछ भी नहीं कर पाओगे। कर्म का फल भी नहीं मिलेगा और तुम्हारी कीर्ति भी नष्ट हो जाएगी। इस श्लोक को ज्योतिष से जोड़ते हुए एबी शुक्ल बताते हैं कि विवेक का प्रतीक है बुद्ध, चंद्रमा मन का प्रतीक है, काल का निर्णय करते हैं शनि। इसके बाद कार्यकुशलता के लिए मंगल जिम्मेदार है। फल मिलता है शुक्र से, कीर्ति आती है सूर्य से। इसमें से गुरु को अलग रखा गया है, क्योंकि उसके (अर्जुन ) अंदर अपने गुरु (कृष्ण ) के प्रति समर्पण नहीं है। इसका अर्थ ये है कि अगर आप गुरुकुल में पहुंचकर भी उसके प्रति समर्पित नहीं है, तो आपके गुरु के पास जाने का कोई अर्थ नहीं है।
भगवान ने 15वां अध्याय पहुंचने के बाद इति कह दिया। लेकिन, उन्होंने देखा कि अर्जुन को कोई फर्क ही नहीं पड़ा तो उन्होंने 15-18 अध्याय तक उसी को फिर से दोहराया। उसके बाद उन्होंने अर्जुन से पूछा, ‘कच्चिदेतच्छ्रुतं पार्थ त्वयैकाग्रेण चेतसा। कच्चिदज्ञानसंमोहः प्रनष्टस्ते धनञ्जय।।’ तब जाकर अर्जुन कहते हैं कि ये सब मैंने कुछ नहीं किया, ये तो आपकी करुणा थी। अब आप जो भी कहेंगे, मैं करूंगा। इसका अर्थ ये है कि जब तक आपके अंदर अपने गुरु के प्रति श्रद्धा और समर्पण नहीं होगा, आपका गुरु के पास जाना और न जाना एक बराबर रहेगा।
इस टॉपिक पर बोलते हुए एबी शुक्ल कहते हैं कि प्रणिपात वो प्रणिपात (प्रणाम) है, जिसमें दृदय से समर्पण हो। अगर दिल से श्रद्धा आ गई तो वो सच में प्रणाम होगा। अन्यथा गुरुजी आपसे मिल गए और आपने दंडवत कर लिया। ये प्रणिपात नहीं होता। श्रद्धा के बिना ज्ञान कभी नहीं मिलता है। इसीलिए कहा गया है श्रद्धावान लभते ज्ञानं। प्रश्न भी तीन प्रकार के होते हैं, प्रश्न, परिप्रश्न और अतिप्रश्न। अक्सर लोग अति प्रश्न करते हैं, ताकि उत्तर न मिल सके। फिर लोग कहते हैं कि हमने ऐसा प्रश्न किया, जिसका उत्तर नहीं मिल सका।
इसके साथ ही एबी शुक्ल गुरु शिष्य के संबंधों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि आचार्य पाराशर के शरीर छोड़ने के बाद वेदव्यास और जैमिनी जो उनके शिष्य थे। दोनों एक बार अपने गुरु के ग्रंथों को अलग-अलग रख रहे थे। उसी दौरान एक श्लोक आया, मात्रा, स्वसुरा, दुहित्रा इन तीन शब्दों को पढ़ते ही जैमिनी को कुछ गलत लगा तो उन्होंने उस श्लोक को उठाकर रख दिया। जैमिनी ने अपने गुरु पर संदेह व्यक्त करते हुए कहा कि इसमें कहा गया है कि बहुत समय तक एकांत में मां, बहन और बेटी के साथ भी नहीं रहना चाहिए। एक बार जैमिनी जंगल में बैठे हुए थे, भारी बारिश के बीच एक स्त्री, जिसके उसकी सास ने घर से निकाल दिया था, वो भीग रही थी। उसने जैमिनी से उनकी कुटी में रहने की इजाजत मांगी। महिला कुटिया के अंदर चली गई और जैमिनी उसके बाहर बैठ गए।
जैमिनी ने उस महिला से कहा कि अब से मैं तुम्हारा गुरु हूं, मैं तुम्हें आज्ञा दे रहा हूं कि कोई भी बुलाए, दरवाजा मत खोलना। लेकिन, पानी में भीगते हुए, हवा लगी तो उन्होंने कामवश होकर खुद ही महिला को दरवाजा खोलने को कहा। लेकिन, महिला ने मना कर दिया। जैमिनी कुटिया की छत पर चढ़ गए और उसकी झाड़-फूस हटाकर अंदर देखने की कोशिश की। अंदर देखा कि वेद व्यास बैठे हुए हैं और उनके हाथ में वही अलग किया हुआ श्लोक था। ये देख जैमिनी शर्मिंदा हुए और बोले कि गुरु का वचन सत्य होता है, मेरे ही समझने में भूल हुई।
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