राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने को लेकर बात करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नागपुर में इसकी तुलना वट वृक्ष से की। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय चेतना के संरक्षण और संवर्धन के लिए जो विचारों का बीज 100 वर्ष पहले बोया गया, वो एक महान वटवृक्ष के रूप में दुनिया के समक्ष है। सिद्धांत और आदर्श इसे ऊंचाई देते हैं। लाखों करोड़ों स्वयं सेवक इसकी टहनी हैं।
ये कोई साधारण वट वृक्ष नहीं है। बल्कि, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भारत की अमर संस्कृति का अक्षयवट है। ये अक्षय वट आज भारतीय संस्कृति को, हमारी राष्ट्रीय चेतना को निरंतर ऊर्जावान बना रहा है। आज जब हम माधव नेत्रालय की बात कर रहे हैं तो दृष्टि की बात स्वाभाविक है। जीवन में दृष्टि ही दिशा देती है। वेदों में भी कामना की गई है। पश्यम सरल: शतम। हमारे पास बाह्य और अंत: दृष्टि भी होनी चाहिए।
संघ बना सेवा का पर्याय
विदर्भ के महान संत श्री गुलाबराव को प्रज्ञा चक्षु कहा जाता था। बहुत ही कम आयु में उन्हें आंखों से दिखाई देना बंद हो गया था, लेकिन फिर भी उन्होंने कई पुस्तकें लिखी। उनके पास एक दृष्टि थी, जो कि बोध से आती है। हमारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी एक ऐसा संस्कार यज्ञ है, जो कि अंत: और बाह्य दोनों ही दृष्टि के लिए काम कर रहा है। बाह्य दृष्टि के तौर पर माधव नेत्रालय है। लेकिन अंत: दृष्टि ने संघ को सेवा का पर्याय बना दिया।
पीएम मोदी कहते हैं कि हमारे यहां कहा गया है कि परोपकाराय फलन्ति वृक्ष:, परोपकाराय वहन्ति नद्यः:, परोपकाराय दुहन्ति गावः परोपकारार्थमिदं शरीरं। हमारा शरीर सेवा के लिए ही है। जब ये सेवा संस्कारों में आ जाती है तो ये साधना बन जाती है और ये साधना हर एक स्वयंसेवक के जीवन की प्राणवायु होती है। ये सेवा संस्कार औऱ साधना हर स्वयंसेवक को तप के लिए प्रेरित कर रही है। ये साधना स्वयंसेवक को निरंतर गतिमान रखती है। उसे कभी भी थकने नहीं देती है, रुकने नहीं देती।
पीएम मोदी ने श्री गुरुजी का जिक्र करते हुए कहा कि वह कहा करते थे कि जीवन की अवधि नहीं, उसकी उपयोगिता का महत्व होता है। हम देव से देश और राम से राष्ट्र के जीवन मंत्र लेकर करके चले हैं। हम देखते हैं, बड़ा छोटा कैसा भी काम हो, सीमाई गांव हो, पहाड़ी हो या वन क्षेत्र हो संघ के स्वयंसेवक निस्वार्थ भाव से काम करते रहते हैं। वनवासी कल्याण संघ इसे अपना ध्येय बनाकर जुटा है। कहीं कोई एकल विद्यालय के जरिए वनवासी बच्चों को पढ़ा रहा है, कहीं कोई सांस्कृतिक जागरण कर रहा है तो कोई सेवा भारती से जुड़कर वंचितों और गरीबों की सेवा कर रहा है।
महाकुंभ का जिक्र
महाकुंभ का जिक्र करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि प्रयागराज में हमने महाकुंभ में देखा है कि नेत्र कुंभ में कैसे स्वयंसेवकों ने लाखों लोगों की मदद की। मतलब ये कि जहां सेवा कार्य वहीं स्वयंसेवक हैं। कहीं कोई आपदा, बाढ़ की तबाही या भूकंप की विभीषिका हो। स्वयंसेवक एक अनुशासित सिपाही की तरह ही मौके पर तुरंत पहुंचते हैं। कोई अपनी परेशानी और पीड़ा नहीं देखता। बस सेवा भावना से कार्य में लग जाते हैं। हमारे तो हृदय में बसा है, ‘सेवा है यज्ञकुंड समिधा हम जलें, ध्येय महासागर में सरित रूप हम मिले।’
प्रधानमंत्री बताते हैं कि एक बार एक इंटरव्यू में गुरुजी से संघ को सर्वव्यापी कहे जाने को लेकर प्रश्न किया गया था। उस पर उन्होंने संघ को प्रकाश बताया था। हमें गुरूजी के वचनों के अनुसार प्रकाश बनकर अंधेरा दूर करना है। हमें बाधाएं दूर करके रास्ता बनाना है और इसी ध्येय के साथ हर कोई कम या अधिक मात्रा में जीने का प्रयास करता रहा। मैं नहीं आप, अहं नहीं वयम्। जब राष्ट्र प्रथम की भावना सर्वोपरि होती है और नीतियों व निर्णयों में देश के लोगों का हित ही सबसे बड़ा होता है तो सर्वत्र उसका प्रभाव और प्रकाश दिखता है।
विकसित भारत के लिए आवश्यक है कि हम उन बेडियों को तोड़ें, जिनमें देश उलझा हुआ था। आज भारत गुलामी की मानसिकता को छोड़कर आगे बढ़ रहा है। अब इस मानसिकता की जगह राष्ट्रीय गौरव के नए अध्याय लिखे जा रहे हैं। अंग्रेजी कानूनों को बदल दिया गया है। पीएम मोदी ने कहा कि गुलामी की मानसिकता से बनी आईपीसी की जगह भारतीय न्याय संहिता ने ले ली है। लोकतंत्र के प्रांगण में राजपथ नहीं कर्तव्यपथ है। नौसेना के ध्वज से गुलामी के प्रतीकों को हटाकर उसकी जगह क्षत्रपति शिवाजी महाराज का प्रतीक लहरा रहा है।
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