मध्य प्रदेश में कभी एक रिपोर्ट ‘नियोगी कमीशन’ की आई थी, उसने साफ बताया था कि कैसे इस राज्य में ईसाई संस्थाएं, (चर्च) पादरी और नन द्वारा अनुसूचित जाति-जनजाति समाज के बीच मतान्तरण (कन्वर्जन) की धीमी प्रक्रिया को अंजाम दिया जा रहा है। यदि ऐसे ही चलता रहा तो आनेवाले समय में मध्य प्रदेश जनजाति विहीन हो जाएगा। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 1956 में दो खंडों और तीन भागों में विभाजित कर प्रकाशित इस रिपोर्ट को आए अब 68 साल बीत चुके हैं। जब नियोगी कमीशन ये बात कह रहा था, तब कई आवाजें उठी थीं, कमीशन की रिपोर्ट को दबाने के लिए। रिपोर्ट दब भी गई। दूसरी ओर चर्च है, जो लगातार अपने मंसूबों को कामयाब करने में लगा हुआ दिख रहा है।
कहने को वक्त के साथ बहुत कुछ बदला है, लेकिन यदि कुछ नहीं बदला तो मतान्तरण के अपनाए जानेवाले प्रयोग और अभ्यास, जिसके आसान शिकार पहले भी हिन्दू रहे और आज भी हिन्दू ही हो रहे हैं। देश भर से समय-समय पर आनेवाले मतान्तरण के अनेक मामलों के बीच फिर एक बार चर्च की कन्वर्जन रील मध्य प्रदेश से उजागर हुई है। इस बार की कहानी में इसके असली पात्रों ने खुद कहा है कि वे नाम के लिए हिन्दू नाम लिखते हैं, लेकिन प्रार्थना ईशु और मरियम की कर रहे हैं।
वे भविष्य के होने वाले पास्टर और सिस्टर हैं। उन्हें अभियंता (इंजीनियर), प्रशासनिक अधिकारी या चिकित्सक बनने में कोई रुचि नहीं। समाज सेवक के रूप में या अन्य जगह कोई नौकरी अथवा अपना खुद का व्यवसाय खड़ा करने में भी वे कोई दिलचस्पी नहीं रखते हैं, वह तो ईशू की शरण में रहकर जीवन भर प्रार्थना करना चाहते हैं । एक हॉस्टल, 48 बच्चों के बीच 33 लड़के एवं शेष 15 छात्राओं ने आगे का यही अपना भविष्य तय कर रखा है।
दरअसल, ये मामला मध्य प्रदेश के जिला मंडला के बिछिया जनपद में ‘साइन फॉर इंडिया विद्यालय’ का है। ईसाई मिशनरी द्वारा चलाए जा रहे इस स्कूल में मध्यप्रदेश बाल अधिकार संरक्षण आयोग की टीम जब अचानक से अपनी जांच करने पहुंची तो वहां के हालात देखकर दंग रह गई। विद्यालय बिना आवासीय मान्यता के आवास के रूप में संचालित हो रहा है। प्रशासनिक स्तर पर कोई रोकनेवाला और कोई भी टोकनेवाला नहीं।
आयोग द्वारा बड़ी मात्रा में यहां से ईसाई मतान्तरण से जुड़ा साहित्य बरामद किया गया। स्थानीय लोगों से बात करने पर सामने आया कि बहुत ही सहजता से धीरे-धीरे बच्चों का ब्रेनवॉश कराने का कार्य यहां वर्षों से चल रहा है, जिसके चलते अब तक पता नहीं कितने बच्चे जो कभी अजा-जनजा या अन्य हिन्दू समाज के थे वे कन्वर्ट होकर ईसाई हो चुके हैं। फिलहाल आयोग इसकी पहले की सही संख्या भी जानने का प्रयास कर रहा है। पर अभी जो स्थिति है, वह भी मध्यप्रदेश में धर्म स्वातंत्र्य कानून के होते हुए इस तरह से कन्वर्जन किए जाने के कारण बहुत ही अधिक चिंता का विषय है।
इस संबंध में जब मध्य प्रदेश बाल संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा से बात की गई, तो उन्होंने बताया, ‘‘हमने अपनी जांच में पाया कि विद्यालय में बिना अनुमति के छात्रावास संचालित है। पूरा स्कूल ही छात्रावास के रूप में यहां मिला है। प्रदेश के जिलों अनूपपुर, मंडला, दमोह के अलावा ओडिसा के कुल 48 बच्चों का होना यहां पाया गया, जिसमें 33 छात्र एवं 15 छात्राएं हैं।
इसमें जो सबसे गंभीर बात है, वह यह है कि इन सभी बच्चों का माइंडवॉश कुछ इस तरह का कर दिया गया है कि जब उनसे बात की गई तो एक भी ऐसा बालक नहीं था जिसने कि डॉक्टर, इंजीनियर या अन्य सेवा के क्षेत्र में जाने में अपनी रुचि दिखाई हो। सभी पास्टर, फादर या नन, सिस्टर बनना चाहते हैं। जब बच्चों से पूछा गया कि क्या इसी तरह की प्रार्थना एवं प्रेक्टिस आप सभी के घरों में भी होती है? यह पूछने पर बच्चों का जवाब था कि नहीं, हम अपने घर पर यह सब नहीं करते हैं, यहीं आकर इस तरह की प्रार्थना करते हैं।’’
डॉ. निवेदिता शर्मा कहती हैं कि ‘‘हमें जांच में अभिभावकों के कोई कागजात नहीं मिले, जिनसे ये पता चलता हो कि उनकी अनुमति अन्य धर्म में कन्वर्जन कर देनेवाले साहित्य एवं प्रार्थना के लिए अपने बच्चों को अनुमति देते हों, यानी कि पेरेंट्स की अनुमति लिए बगैर बच्चों को धार्मिक गतिविधियों में शामिल किया जा रहा है। इतना ही नहीं, जिन बच्चों को यहां रखा हुआ है उन सभी 48 बच्चों के इस हॉस्टल में रखने के संबंध में पूरे दस्तावेज ही आयोग को नहीं मिले। जब इन बच्चों के बारे में यहां रह रहे फादर (पादरी) से बात की गई तो उनका कहना था कि ये सभी क्रिश्चियन हैं, जबकि जो कागज उनके यहां मिले भी तो उसमें धर्म बच्चों का हिन्दू और जाति उनकी गोंड लिखी हुई थी’’
शौचालय में कैमरे
डॉ. निवेदिता शर्मा ने कहा कि ‘‘यहां पर शौचालयों में कैमरे लगे हुए पाए गए हैं। वास्वत में यह कानूनों की घोर अवहेलना है। बच्चों की निजता का हनन है। कानून की भाषा में कहें तो यह अपराध है। किसी के भी शौचालयों में इस तरह से कैमरे नहीं लगाए जा सकते हैं। यहां जो ओडिशा से आकर स्कूल और छात्रावास चला रहे हैं, वे ‘ज्योति राज’ बिना अनुमति के यह सब इतने खुले रूप से कर रहे हैं, जो कि सीधे तौर पर अपराध की श्रेणी में आता है।
जबकि वे यह जानते हुए भी कर रहे हैं कि मध्य प्रदेश सरकार ने मप्र धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 2021 पारित किया है जिसका उद्देश्य गैरकानूनी धार्मिक रूपांतरणों पर रोक लगाकर धर्म की स्वतंत्रता प्रदान करना है। वास्तव में इससे पता चलता है कि जिन्हें कन्वर्जन कराना है, उन्हें किसी कानून का कोई भय नहीं रहा। आयोग ने इस पूरे मामले को संज्ञान में लिया है, जरूरी कार्रवाई होगी’’
चल रहा धर्मांतरण का खेल ?
जांच टीम में राज्य बाल संरक्षण आयोग के सदस्य ओंकार सिंह ने बताया कि स्कूल में अवैध तरीके से बाईबिल पढ़ाते हुए दो बच्चे मिले । साफ तौर पर यहां धर्मांतरण का खेल चल रहा है। जब हम यहां पहुंचे तो प्रार्थना होते हुए पाई गई। हॉल में प्रार्थना करते बच्चों के हाथों में बाइबिल पाई गई, यहां रहनेवाले बच्चों में हिन्दू बच्चे बड़ी संख्या में हैं। हिन्दू बच्चों का ईसाई प्रार्थना से क्या काम!लेकिन ऐसा यहां होता हुआ पाया गया है।
ओंकार सिंह कहते हैं, ‘‘बिना पेरेन्ट्स की अनुमति के कोई इस तरह से बच्चों को दूसरे धर्म की प्रेक्टिस नहीं करा सकता, यह कानून के विरुद्ध है। मप्र राज्य बाल संरक्षण आयोग ने इस मामले को बेहद गंभीरता से लिया है, बाल आयोग इस पर जरूरी कार्रवाई करेगा।’’ वहीं, इस मामले में मप्र बाल संरक्षण आयोग की टीम की ओर से ईसाई प्रार्थना कर रहे बच्चों का वीडियो बनाने की जानकारी भी सामने आई है। ताकि भविष्य में जहां कानूनी तौर पर जरूरी हो, वहां साक्ष्य के रूप में इन वीडियो फुटेज को प्रस्तुत किया जा सके।
क्या कहते हैं डीपीसी
इस संबंध में जब मंडला जिला परियोजना समन्वयक (डीपीसी) के.के. उपाध्याय से बात की गई तो उनका कहना रहा कि यह सही है कि मप्र बाल संरक्षण आयोग की टीम ने यहां छापामार कार्रवाई में धर्मांतरण की गतिविधियां पकड़ी हैं। हम कठोर कार्रवाई करेंगे। उन्होंने कहा कि जब हमारी टीम इस स्कूल में गई तो वहां बच्चे (लड़के-लड़कियां) हॉल की ओर जिसे प्रार्थना सभागार बताया जा रहा था, वहां बाइबिल लेकर जा रहे थे।
जब हमने उनसे पूछा तो उनका कहना था कि हर शाम साढ़े छह पर यह प्रार्थना होती है। इनका कहना था कि अब सभी को ईसाई धर्म अच्छा लगने लगा है, जबकि वे पहले दूसरे धर्म को मानते आए थे। ऐसे में शासन नियमानुसार इस स्कूल के खिलाफ सभी कार्रवाई करेगा।
कन्वर्जन पर सरकार सख्त
उल्लेखनीय है कि मध्यप्रदेश में कन्वर्जन को लेकर डॉ. मोहन यादव की सरकार बहुत सचेत और सख्त है और वह इस संबंध में पहले से राज्य में बने कन्वर्जन विरोधी कानून का सख्ती से पालन कराने में विश्वास रखती है। मप्र में बने कन्वर्जन से जुड़े कानून में गलत बयानी या धोखाधड़ी को अपराध घोषित किया गया है। इसमें प्रलोभन के तहत किसी व्यक्ति को उपहार, भौतिक लाभ, नकद, धार्मिक संगठन द्वारा संचालित स्कूल में शिक्षा, रोजगार, दैवीय आनंद आदि का लालच देकर धर्म परिवर्तन के लिए लुभाना अपराध की श्रेणी में आता है।
वहीं, किसी को उसकी इच्छा के विरुद्ध धर्म परिवर्तन करने के लिए मजबूर करना, या धर्म परिवर्तन न करने पर उसके परिवार या संपत्ति को नुकसान पहुँचाने की धमकी देना, किसी व्यक्ति पर व्यक्तिगत शक्ति या प्रभाव का अनुचित उपयोग करके उसे धर्म परिवर्तन के लिए राजी करना अपराध है। इसमें अपराध की श्रेणी को देखते हुए गैरकानूनी धार्मिक रूपांतरण के दंड के रूप में एक से पांच साल तक की जेल और न्यूनतम पच्चीस हजार रुपये का जुर्माना है।
कानून यह भी कहता है
किसी का अवैध धार्मिक रूपांतरण करते पाए गए जिसमें कि मुख्य तौर पर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को धर्मांतरित किए जाने पर दो से दस साल तक की जेल और न्यूनतम पचास हजार रुपये का जुर्माना रखा गया है। आप जिस व्यक्ति से विवाह करना चाहते हैं, उसे यह बताकर गुमराह करना कि आप किस धर्म को मानते हैं (अंतर-धार्मिक जोड़ों के लिए लागू) तीन से दस साल तक की जेल और न्यूनतम पचास हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया है। गैरकानूनी तरीकों का उपयोग करके दो से अधिक लोगों का सामूहिक धर्म परिवर्तन में पांच से दस साल तक की जेल और न्यूनतम एक लाख रुपये का जुर्माना तय किया गया है।
60 दिन पहले देनी होगी सूचना
इस कानून में यह भी तय किया गया है कि कोई धार्मिक पुजारी या कोई अन्य व्यक्ति जिला मजिस्ट्रेट को साठ दिन पहले सूचित किए बिना धर्म परिवर्तन का आयोजन करता है तो उसे तीन से पांच साल तक की जेल और न्यूनतम पचास हजार रुपये का जुर्माना भरना होगा। फिर भी यदि कोई अपना धर्म बदलना चाहे तो ऐसे में जो कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे धर्म में धर्म परिवर्तन करना चाहता है, उसे जिला मजिस्ट्रेट के समक्ष घोषणा पत्र प्रस्तुत करना चाहिए कि वह स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करना चाहता है, तथा इसमें किसी भी प्रकार का गैरकानूनी तरीका शामिल नहीं है। उसे धर्म परिवर्तन से साठ दिन पहले घोषणा पत्र प्रस्तुत करना अनिवार्य है।
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