कांग्रेस पार्टी मुस्लिम मतों को अपने पाले में करने के लिए काफी मशक्कत करती नजर आ रही है। कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी की सरकार पूरे देश और अन्य राज्यों में संदेश देने के वास्ते ठेकों में मुस्लिमों को आरक्षण देने जा रही है। ऐसी उम्मीद है कि कांग्रेस पार्टी अपने द्वारा शासित दो बड़े राज्यों—तेलंगाना और कर्नाटक—जहां मुस्लिमों की बहुतायत है, वहां और भी कई इस तरह के निर्णय ले सकती है। कांग्रेस पार्टी असल में अन्य राज्यों के मुस्लिमों को इन निर्णयों से अपने हितैषी होने का संदेश देना चाहती है। कांग्रेस पार्टी इन सरकारी निर्णयों के साथ ही कुछ राजनीतिक निर्णय लेने पर विचार कर रही है, जिसमें अपने लंबे समय के केरल और दक्षिण के राज्यों के सहयोगी दल इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का दक्षिण के बाहर के राज्यों में उपयोग करना है।
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का कांग्रेस पार्टी बिहार की राजनीति में पहला प्रयोग कर सकती है, जहां इस साल के अंत में चुनाव आहूत हैं। बिहार में 40 से अधिक विधानसभा की सीटें मुस्लिम बहुल हैं। ये सीटें मुख्यतः सीमांचल के इलाके में हैं। इस इलाके से बाहर भी कुछ मुस्लिम बहुल सीटें हैं। बिहार में इसी मुस्लिम बहुलता के कारण लालू यादव ने ‘माय समीकरण’ बनाया था। इस समीकरण के आधार पर लालू यादव लंबे समय तक बिहार की राजनीति में सबसे मजबूत स्तंभ रहे। कांग्रेस पार्टी और लालू यादव की पार्टी का आपस में गठबंधन मुस्लिम मतों के लिए ही मुख्यतः होता रहा है। हाल के दिनों में ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने बिहार की राजनीति में अपनी पैठ बनाना शुरू किया है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन मुख्यतः अपने क्षेत्र बिहार के मुस्लिम बहुल सीमांचल इलाके में प्रभाव जमाने का प्रयास कर रही है। इस इलाके की किशनगंज सीट पर ओवैसी की पार्टी विगत दो लोकसभा चुनावों में मजबूत चुनौती देने के साथ ही 2020 के विधानसभा चुनाव में पांच सीटें जीतने में सफल रही। यद्यपि उनकी पार्टी के चार विधायक बाद में राजद में शामिल हो गए। कांग्रेस पार्टी का बिहार के मुस्लिम मतदाताओं और मुस्लिम बहुल इलाकों में गहरा असर रहा है। 1989 के लोकसभा चुनाव में किशनगंज लोकसभा सीट से गांधी परिवार के तत्कालीन करीबी एम. जे. अकबर ने जीत दर्ज की थी, मगर 90 के दशक में लालू यादव के बिहार की राजनीति में उभार के बाद बिहार की राजनीति में मुस्लिमों का रुख लालू यादव की ओर हो गया। कांग्रेस पार्टी और अन्य दल इसका काट खोज रहे हैं। कांग्रेस पार्टी का मुस्लिम मतों के लिए लालू यादव की पार्टी राजद से गठबंधन करना उनकी मजबूरी के समान है।
मगर विगत एक महीने में कांग्रेस पार्टी ने बिहार में काफी बड़े और कड़े कदम उठाए हैं। मगर ये कदम भाजपा या जेडीयू के लिए नहीं बल्कि अपने सहयोगियों, खासकर राजद के लिए ज्यादा परेशान करने वाले हैं। राजद, कांग्रेस पार्टी के दो निर्णयों—जिनमें प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाकर राजेश राम को नियुक्त करना और कन्हैया कुमार को बिहार की राजनीति में प्रवेश दिलाना—से असहज है। अखिलेश प्रसाद सिंह लालू यादव परिवार से अपनी करीबी के लिए जाने जाते हैं। अखिलेश प्रसाद सिंह कांग्रेस पार्टी से अधिक लालू यादव की पार्टी के राजनीतिक हितैषी के तौर पर जाने जाते थे।
कांग्रेस पार्टी ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन की काट और लालू यादव की पार्टी को उनकी औकात में रखने के वास्ते केरल की पार्टी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को बिहार की राजनीति में लाने का प्रयास कर सकती है। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग केरल में कांग्रेस पार्टी के यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट का हिस्सा है। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के साथ कांग्रेस पार्टी का 70 के दशक से संबंध है। कांग्रेस पार्टी राजद के साथ गठबंधन टूटने की स्थिति में मुस्लिम मतों को अपनी ओर खींचने के लिए इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को सीमांचल इलाके में कुछ सीटें देने के साथ ही इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के अध्यक्ष के. एम. कादर मोहिदीन और अन्य नेताओं जैसे पी. के. कुन्हालीकुट्टी को चुनाव प्रचार के लिए इस्तेमाल कर सकती है।
कांग्रेस पार्टी ने इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को तमिलनाडु में अपने इंडी गठबंधन के तहत रामनाथपुरम लोकसभा सीट 2019 और 2024 के लोकसभा चुनाव में लड़ने के लिए आवंटित करवाया है। कांग्रेस पार्टी का यह कदम इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को वायनाड लोकसभा सीट पर गांधी परिवार को समर्थन के एवज में दिलवाया गया था। 2019 से पूर्व रामनाथपुरम लोकसभा से इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के चुनाव लड़ने का कोई इतिहास नहीं मिलता है। कांग्रेस पार्टी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को बिहार के बाद पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के गठबंधन में नहीं होने की स्थिति में इस्तेमाल कर सकती है। साथ ही असम के विधानसभा चुनावों में बदरुद्दीन अजमल की पार्टी ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट से गठबंधन नहीं होने पर इसका उपयोग कर सकती है। इसके एवज में इन राज्यों और अन्य जगहों पर इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग को कुछ सीटें कांग्रेस पार्टी आवंटित करेगी। कांग्रेस पार्टी का अंतिम निशाना 2027 में उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव होगा। वहां अगर अखिलेश यादव से गठबंधन नहीं होता है तो कांग्रेस पार्टी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का भरपूर इस्तेमाल करेगी।
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