मुस्लिम बहुल देश मलेशिया में एक 130 वर्ष पुराने मंदिर पर संकट के बदल छाए हुए हैं। यह मंदिर एक सरकारी जमीन पर बना था, जिसे एक ट्रेडिंग कंपनी ने खरीदा है और अब वहाँ पर मस्जिद बनाने की तैयारी है।
इस मंदिर में देवी श्री पार्थ कालीअम्मा अम्मा की पूजा कई पीढ़ियों से लोग करते हुए आ रहे हैं। यह मंदिर एक सरकारी जमीन पर बना था, जिसे अब टेक्स्टाइल के एक बहुत बड़े समूह जकेल ने खरीद लिया है। इस जमीन को खरीदे जाने की मंशा भी यही थी कि यहाँ पर एक बहुत बड़ी मस्जिद बनाई जाए।
समूह द्वारा मंदिर को दूसरे स्थान पर ले जाए जाने की भी बात की जा रही है। कंपनी का कहना है कि वह इसके स्थानांतरण का सारा व्यय देगी। मगर मंदिर को मस्जिद के लिए दूसरे स्थान पर ले जाने की बात से देश में काफी लंबे समय से चली आ रही धार्मिक सहिष्णुता की बहस एक बार फिर से तेज हो गई है।
मस्जिद के लिए आधिकारिक समारोह 27 मार्च को निर्धारित है, जिसमें मलेशिया के प्रधानमंत्री अनवर इब्राहीम इस मस्जिद की नींव डालेंगे। इसे लेकर लगातार बातचीत चल रही है।
मंदिर समिति का कहना है कि मस्जिद मंदिर के बगल में भी बनाई जा सकती है, तो वहीं कुछ कट्टर पंथी लोग इस मामले में मस्जिद निर्माण को लेकर भड़काने वाले बयान भी दे रहे हैं। परंतु इस मंदिर को लेकर मलेशिया में भी पक्ष में आवाजें उठ रही हैं। लॉयर्स फॉर लिबर्टी के इग्ज़ेक्यटिव डायरेक्टर ज़ैद मलेक ने जकेल समूह की जल्दबाजी पर प्रश्न उठाते हुए कहा कि “”अनवर उस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए आवश्यक स्थान और समय देने के लिए तैयार क्यों नहीं हैं? यह बिल्कुल भी स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि अनवर को लगता है कि मंदिर को हटाना उचित है ताकि उसकी जगह पर मस्जिद बनाई जा सके,”
यह मंदिर चूंकि सरकारी जमीन पर बना हुआ था, जो कि अब किसी व्यापारिक समूह ने खरीद ली है, तो कट्टरपंथियों का कहना है कि किसी और की जमीन पर बना हुआ मंदिर अवैध है और मंदिर को अब मस्जिद के लिए जमीन खाली कर देनी चाहिए।
वहीं प्रधानमंत्री अनवर इब्राहीम का यह कहना है कि उनका इस मस्जिद विवाद से कोई लेना देना नहीं है और वे खुद भी नहीं चाहते कि किसी मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई जाए। सोशल मीडिया पर भी लोग यही कह रहे हैं कि “मस्जिद मदानी” को कहीं और किसी स्थान पर बनाया जा सकता है। wion के अनुसार प्रधानमंत्री अनवर ने पिछले सप्ताह यह स्पष्ट किया कि मस्जिद तभी बनेगी जब मंदिर को दूसरे स्थान पर बना दिया जाएगा।
चूंकि मलेशिया में जो मंदिर हैं, वे लगभग उसी समय के हैं, जब भारत से अंग्रेज रबर और रेलवे आदि के लिए भारत से श्रमिकों को ले गए थे। सेलंगोर प्रांत में लगभग 7,00,000 मलेशियाई भारतीय हैं, और यहाँ पर लगभग 773 मंदिर हैं और ये सभी कथित रूप से सरकारी जमीन पर हैं।
जहां प्रधानमंत्री अनवर और जकेल समूह इस बात पर बल दे रहे हैं कि मस्जिद को तभी यहाँ पर बनाया जाए, जब मंदिर को पूरी तरह से किसी दूसरी भूमि पर स्थानांतरित कर दिया जाए तो वहीं मंदिर समिति इसी बात पर बल दे रही है कि मस्जिद को मंदिर के बगल में ही बनाया जा सकता है और वहीं कट्टरपंथी राजनीतिक दल जकेल समूह को लेकर कह रही हैं कि यह उनका हक है कि वे अपनी जमीन पर मस्जिद बनाएं।
भारतीय मूल के लोगों की पार्टी उरीमाई के नेता और पेनाङ के पूर्व उपमुख्यमंत्री पी रामासामी ने मंदिर के विषय में कहा कि यह मंदिर मलेशिया की आजादी से पहले से ही एक महत्वपूर्ण और धार्मिक प्रतीक है। किसी भी उद्देश्य के लिए इतने पुराने मंदिर को हटाया जाना अस्वीकार्य है और विशेषकर उस देश में जिसे अपने बहुधार्मिक होने की परंपरा पर गर्व है।
कई मीडिया पोर्टल्स यह भी लिख रहे हैं कि इसी विवाद के बीच एक मुस्लिम मौलाना के वीडियो भी फैलाए जा रहे हैं, जिसमें वह दावा कर रहा है कि मंदिर एक मस्जिद के लिए आरक्षित जमीन पर बिना अनुमति के बना है। मगर मंदिर से जुड़े लोगों का यह कहना है कि मंदिर वैध रूप से बना हुआ है। यदि यह अवैध होता तो स्थानीय सरकार इसे वर्ष 2008 में ही नष्ट कर देती, जब उसका सौंदर्यीकरण आदि कराया गया था। उनका दावा है कि जब यह जमीन सरकार के अंतर्गत थी तो इस जमीन की स्थिति को “मिश्रित विकास” के रूप में वर्गीकृत किया गया था।
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