शिवाजी महाराज के बेटे संभाजी महाराज के जीवन पर बनी फिल्म छावा जब रिलीज हुई तो लोगों को वामपंथियों और मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा देश के इतिहास के साथ किए गए छल का एक बार फिर से बोध हुआ। मुगल आक्रांता औरंगजेब के द्वारा हिन्दुओं पर किए गए अत्याचारों को जानने के बाद स्वत: देशभक्तों का खून खौल उठा। कुछ इतिहासकारों के द्वारा औरंगजेब की क्रूरता, इस्लाम के प्रति उसकी धर्मान्धता, हिन्दू और हिन्दू संस्कृति से नफरत के चलते उसने सबसे अधिक सनातन संस्कृति की पहचान को नष्ट करने की कोशिश की। औरंगजेब ने ही काशी विश्वनाथ मंदिर, सोमनाथ मंदिर जैसे हजारों की संख्या में मंदिरों को तुड़वाया था। इसका जिक्र तो अंग्रेजों तक ने किया था।
अंग्रेज अधिकारियों के आपसी पत्रों से भी सामने आया, कैसा धर्मांध था औरंगजेब
1685 में औरंगजेब ने पंढरपुर में विठोबा के मंदिर को ध्वस्त कर दिया था (Mogal Darbarchi Batmipatre, Setu Madhavrao Pagadi, Volume III, page 472)। औरंगजेब को लेकर 1670 में दो अंग्रेजों गैरी से लॉर्ड अर्लिंगटन के बीच हुए पत्राचार को देखा जा सकता है। ये तत्कालीन समय की स्थितियों को एक-दूसरे के बीच साझा कर रहे थे, उसमें वे लिखते हैं , ‘‘एक कट्टर विद्रोही सेवगी (शिवाजी) फिर से ओरंगशा (औरंगजेब) के खिलाफ युद्ध में लगे हुए हैं, दूसरी ओर एक अंधे उत्साह से औरंगजेब ने कई गैर-यहूदी, (हिन्दू) मंदिरों को ध्वस्त कर दिया और कई लोगों को मुसलमान बनने के लिए मजबूर किया है, उसने सेवगी (शिवाजी) के कई महलों पर कब्ज़ा कर लिया है…दक्कन युद्ध क्षेत्र बनने वाला है (Letter from Gary to Lord Arlington, 23rd January 1670, English Records on Shivaji, Volume I, page 140)।
आज जो भी औरंगजेब के समर्थन में खड़े हो रहे हैं, उन्हें यह समझना ही होगा कि इतिहास इस बादशाह की गैर मुसलमानों खासकर हिन्दुओं के प्रति किए गए उसके गुनाहों के लिए कभी माफ नहीं करेगा। वह कितना असहिष्णु शासक था। वह उसके आरंभ से लेकर अंत तक के जीवन के कई उदाहरणों से समझा जा सकता है, जब वह 1644 में (वह एक राजकुमार था और गुजरात में वायसराय के रूप में तैनात था), तभी उसने चिंतामन के एक नए बने मंदिर को मस्जिद में बदल दिया था (मिरत-ए-अहमदी , पृष्ठ 222)। जैसा बताया जाता है, उसने मंदिर में एक गाय का वध करके उसे अपवित्र भी किया (स्रोत: बॉम्बे प्रेसीडेंसी का गजेटियर (खंड I, भाग I, पृष्ठ 280)।
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बुढ़ापे में भी चेन नहीं था इसे, तुड़वा रहा था मंदिर
इसके बाद आप उसके अंतिम समय को भी देखें, तो मरने के पहले भी वह चैन से नहीं बैठा था, उसके हृदय में हिन्दुओं के प्रति घोर अपमान और उन्हें लगातार यातनाएं देने की सूझ रही थी। ये 80 साल का बुड्डा बादशाह 1698 में हामिद-उद-दीन खान बहादुर को बीजापुर के मंदिर को नष्ट करने और एक मस्जिद बनाने के लिए नियुक्त करता है। (औरंगजेब का इतिहास, खंड III, पृष्ठ 285, यदुनाथ सरकार)।
औरंगजेब ने अपने शासनकाल में गुजरात के सोमनाथ मंदिर को भी दो बार तोड़ने के आदेश जारी किए थे। पहली बार 1659 में और दूसरी बार 1706 में सोमनाथ मंदिर को जमींदोज करने का फरमान सुनाया गया। अपनी मौत के पहले औरंगजेब की उम्र जब 88 साल हो चुकी थी तब भी वह हिन्दू नफरत नहीं छोड़ पाया, उसे जैसे ही पता चलता है कि कुछ हिंदुओं ने सोमनाथ के खंडित मंदिर में भी पूजा-अर्चना शुरू कर दी है, तो उसे शेष बचे हिस्से को भी फरमान सुनाकर और अपनी शाही सेना भेजकर ध्वस्त करा दिया था। मुराक़त ए अबुल हसन के प्रस्तुत साक्ष्य कहते हैं कि अपने शासनकाल के 10-12 सालों में ही औरंगजेब ने हर उस मंदिर को तुड़वा दिया जिसे ईंट, मिट्टी या पत्थर से बनाया गया था।
वास्तव में उनकी धार्मिक ज्यादतियों की सूची इतनी लंबी है कि एक लेख कभी भी संपूर्ण वर्णन नहीं कर सकता। कुछ इतिहासकार हैं जो औरंगजेब के नाम पर कसीदे गढ़ने का काम करते हैं और तर्क देते हैं कि अगर औरंगजेब इतना ही निष्ठुर और हिंदू द्रोही था तो फिर उसने अपने राज्य के संपूर्ण मंदिरों को नष्ट क्यों नहीं कर दिया? यह हिंदू राजाओं को अपने साथ क्यों मिलाकर रखता था? किंतु उन लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि तत्कालीन समय में हिंदू राजाओं की आपसी फूट का लाभ मुगल सल्तनत उठाती रही। छत्रपति शिवाजी की एक इच्छा अधुरी रह गई है, वे चाहते थे कि भारत में मराठा, सिख और राजपूत यह तीनों शक्तियां मिलकर एक हो जाएं तो भारत का प्राचीन वैभव वर्तमान में जीवंत हो उठेगा। वह कामना करते थे कि ऐसा होने पर ही भारत के जितने शत्रु हैं, उनका नाश आसानी से संभव है।
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काश; स्वतंत्र भारत में ही सही छत्रपति शिवाजी जी की यह इच्छा हिन्दू समाज एकता का मंत्र गुनगुनाकर पूरा कर दे! तब फिर शायद किसी की हिम्मत न हो कि वह झुंड में आकर के हिन्दू आस्था, उनके घर, दुकान, मंदिर, संपत्ति को किसी भी तरह से चोट पहुंचा सकें। आखिर संगठन में शक्ति है, यह मंत्र समझना ही होगा, सिर्फ शासन, सरकार के भरोसे नहीं रहा जा सकता। अन्यथा नागपुर, मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, जयपुर, भोपाल जैसे तमाम दंगे होते रहेंगे! हां, इतना तय है कि औरंगजेब से मुहब्बत करनेवाले भारत के हिमायती बिल्कुल नहीं हैं और इनसे निपटना अकेले शासन का काम नहीं है, यह समाज का सामूहिक कार्य है।
(लेखक, पत्रकार हैं और केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड एडवाइजरी कमेटी में सदस्य हैं)
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