पाकिस्तान में एक बार फिर से अहमदी समुदाय पर कानून का डंडा चला है। इस समुदाय के 50 सदस्यों पर लोगों द्वारा पाकिस्तान पेनल कोड के अंतर्गत मुस्लिमों की धार्मिक भावना को आहत करने का आरोप लगाया गया है और ये भावनाएं इसलिए आहत हुई हैं, क्योंकि वे खुद को मुस्लिम बता रहे थे और अपने मजहब को इस्लाम कह रहे थे।
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में बेअदबी के कानून के अंतर्गत अल्पसंख्यक अहमदी समुदाय के 50 सदस्यों पर जुमे की नमाज अदा करने को लेकर एफआईआर दर्ज की गई है।
यह एफआईआर मोहम्मद अमानुल्लाह की शिकायत पर दर्ज की गई और इसमें 50 अहमदियों को बुक किया गया और उसके अलावा 8 और अहमदिया लोगों को इसमें नामांकित किया गया है। मोहम्मद अमानुल्लाह ने आरोप लगाया कि अहमदी समुदाय के लोग मुस्लिमों की तरह नमाज पढ़ रहे थे, जबकि कानून में साफ लिखा है कि वे नमाज जैसा कोई भी काम नहीं कर सकते हैं।
पाकिस्तान में अहमदी मुसलमानों के संगठन जमात-ए-अहमदिया ने कहा कि अहमदियों के साथ चरमपंथियों ने जुमे की नमाज के दौरान अभद्रता की। जमात का कहना है कि चरमपंथियों ने करतारपुर, गुजरात और सियालकोट जिलों में अहमदियों की मजहबी जगहों को भी तोड़ दिया।
यह भी जमात की ऑर से कहा जा रहा है कि पिछले महीने चरमपंथी समूह अहमदी मुस्लिमों को 33 अलग-अलग जगहों पर जुमे की नमाज अदा करने से रोक रहे थे। उन्होनें उनके इबादत की जगहों को भी सील करवा दिया है।
कौन हैं अहमदिया मुस्लिम, जिन्हें मुसलमान मुस्लिम नहीं मानते हैं?
पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय के लोग जहां खुद को मुस्लिम मानते हैं तो वहीं पाकिस्तान के कानून के अनुसार वे खुद को मुसलमान नहीं कह सकते हैं। वहाँ पर अहमदिया समुदाय के लोग मुसलमानों वाला ऐसा कोई भी काम नहीं कर सकते हैं, जिससे मुस्लिमों की मजहबी भावनाओं को ठेस पहुंचे।
विवाद दरअसल अहमदिया समुदाय के संस्थापक मिर्जा गुलाम अहमद को लेकर है। अहमदिया समुदाय के लोग गुलाम अहमद को मुहम्मद के बाद एक और पैगंबर मानते हैं, जबकि इस्लाम में यह स्पष्ट लिखा है कि मुहम्मद खुदा द्वारा भेजे गए अंतिम पैगंबर हैं।
इसी बात को लेकर पाकिस्तान ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में अहमदिया समुदाय के लोगों को मुस्लिम मानने से इनकार किया जाता है और उन्हें गैर-मुस्लिम घोषित किया गया है। यहाँ तक कि वे अपने लिए बनाई गई इबादतगाहों को मस्जिद भी नहीं कह सकते हैं। इतना ही नहीं, इनके हज करने पर भी रोक है।
यह बहुत ही हैरान करने वाली बात है कि आज जिस पाकिस्तान में इस समुदाय के लोगों के साथ अन्याय हो रहा है, उन्हें मुस्लिम तक नहीं माना जा रहा है, उसी पाकिस्तान के निर्माण में अहमदी समुदाय के लोगों ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी। ये अहमदिया जफरुल्ला खान ही थे, जिन्होनें वर्ष 1940 में लाहौर रेसोल्यूशन लिखा था, जिसे पाकिस्तान प्रस्ताव के नाम से जाना जाता है। जफरुल्ला खान पाकिस्तान के पहले विदेश मंत्री भी बने थे।
पाकिस्तान के निर्माण से लेकर भारत के साथ युद्धों में पाकिस्तान की खिदमत करने वाले अहमदिया समुदाय को वर्ष 1974 में एक संविधान संशोधन के माध्यम से गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया गया था और उसके बाद उनके साथ शुरू हुआ अत्याचारों का सिलसिला आज यहाँ तक पहुंचा है कि उन्हें मुस्लिमों की तरह नमाज पढ़ने पर ही सजा हो सकती है।
टिप्पणियाँ