मुगल आक्रांता औरंगजेब की क्रूरता का इतिहास साक्षी है। इस्लामिक कन्वर्जन, जजिया, मंदिरों को तोड़ना, हिन्दू घृणा और कुंभ नरसंहार जैसे उसके कुकृत्य उसकी इसी क्रूरता को दिखाते हैं। उसने मौत का भय एवं प्रताड़ना की हर सीमा पार कर न जानें कितनों को इस्लाम में धर्मांतरित होने के लिए मजबूर किया। उसी ने काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ा था। इस घटना के संदर्भ में यहां बताना है कि औरंगजेब की सबसे प्रमाणिक जीवनी ‘मासिर-ए-आलमगीरी’ को माना जाता है, इस किताब में औरंगजेब के द्वारा काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़े जाने की घटना का पूरा जिक्र मौजूद है। मंदिर तोड़कर ज्ञानव्यापी मस्जिद का निर्माण हुआ था। मुहम्मद ताहिर (1628-671) जिन्हें उनके नाम इनायत खान के नाम से जाना जाता है, ने शाहजहाँनामा में औरंगजेब के अब्बा शाहजहाँ का जीवन वृत्तांत लिखा है, उनके मुंशी मोहम्मद साफी मुस्तइद खां ने ही यह मआसिर-ए-आलमगीरी लिखी है।
हिन्दुओं से इतनी नफरत कि उनके मंदिरों को तोड़ने कई फरमान दिए गए
मासिर-ए-आलमगीरी के मुताबिक, 9 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने अपने सभी प्रांतों के गवर्नर को आदेश जारी किए कि हिंदुओं के सभी स्कूलों और मंदिरों को ध्वस्त कर दिया जाए। मासिर-ए-आलमगीरी के ही एक और प्रमाण के मुताबिक, एक बार जब औरंगजेब चित्तोड़ पहुंचा तो उसने वहां कई मन्दिरों में हिन्दुओं को पूजा करते हुए देखा, जिसके बाद उसने चित्तौड़ के मन्दिरों को ध्वस्त करा दिया। “शनिवार, 24 जनवरी 1680 दूसरे मुहर्रम को बादशाह राणा द्वारा निर्मित उदयसागर झील देखने गए और उसके किनारे पर स्थित तीनों मंदिरों (जिसमें कि अन्य 189 मंदिर थे) को ध्वस्त करने का आदेश दिया।…और उदयपुर के आसपास के बहत्तर अन्य मंदिर नष्ट कर दिए गए थे…सोमवार, 22 फरवरी/माह के पहले सफ़र को सम्राट चित्तौड़ देखने गए, उनके आदेश से उस स्थान के 63 मंदिर नष्ट कर दिए गए…” (मासिर-ए-आलमगिरी, पृष्ठ 116-117) उसने उज्जैन के मंदिरों को ध्वस्त करने सेना भेजी।
वह दक्कन के जिन गाँवों में गया, वहाँ के मंदिरों को नष्ट किया और उन ज़मीनों पर मस्जिदें बनवाईं। महाराष्ट्र के कई किलों पर बने मंदिरों को औरंगजेब द्वारा ध्वस्त करने के प्रमाण मौजूद हैं, जैसे वसंतगढ़ और पन्हाला के मंदिर। वसंतगढ़ की मस्जिद की नींव औरंगजेब ने अपने हाथों से रखी थी। अहमदाबाद के पास सरसपुर शहर में काफी मशहूर चिंतामण मंदिर था। भगवान गणेश के इस मंदिर में पूरे इलाके के लोग पूजा करने के लिए आते थे। इस मंदिर को औरंगजेब के आदेश पर कुव्वत-इल-इस्लाम नाम की एक मस्जिद में बदल दिया गया। आज से 350 साल पहले जयपुर शहर अजमेर प्रांत का हिस्सा था। यहां एक भव्य मलरीना मंदिर था, जिसे औरंगजेब ने सेना भेजकर गिरवाया था। मंदिर गिराने के 22 साल बाद 23 जून 1694 को दोबारा से औरंगजेब ने अजमेर के गवर्नर को मूर्ति पूजा पर रोक लगाने के आदेश दिए थे। ‘मुगल सम्राटों की धार्मिक नीति’ किताब के पेज नंबर-149 में इतिहासकार श्रीराम शर्मा ने इस घटना का जिक्र किया है। ये संदर्भ मुगल दरबार के समाचारपत्रों में आए हैं।
इलियट, हेनरी एम,और जॉन डाउसन, संपादक भारत का इतिहास, जैसा कि इसके अपने इतिहासकारों द्वारा बताया गया । 5 खंड। लंदन: ट्रबनर, 1873-1877 से प्रकाशित में पाँच खंडों का उद्देश्य भारत में मुस्लिम शासन के इतिहास को पूरी तरह से फ़ारसी इतिहास के अंशों के अनुवाद के माध्यम से बताना है। मुगल शासन की निरंकुश प्रकृति और मुगलों के अधीन उत्पीड़ित बहुसंख्यकों के रूप में हिंदुओं की कहानी को पढ़कर कोई भी यह सहज अंदाजा लगा सकता है कि हिन्दुओं ने अपने ही देश भारत में कितना भयंकर उत्पीड़न सहा है!
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बृज संस्कृति को समाप्त करने के किए उसने कई जतन
इस सिरफिरे और जिहादी औरंगजेब के मन में हिन्दू नफरत किस तरह से रही, वह इसकी इस करतूत से भी पता चलता है- वर्ष 1670 में मथुरा में केशव राय के देहरा को नष्ट करने के बाद, उसने मूर्तियों को आगरा लाकर “बेगम साहब की मस्जिद” की सीढ़ियों के नीचे दफना दिया, ताकि उन पर लगातार पैर रखे जा सकें ( मासीर-ए-आलमगीरी , पृष्ठ 60)। औरंगज़ेब ने ब्रज संस्कृति को खत्म करने के लिए ब्रज के नाम तक बदल डाले थे। उसने मथुरा को इस्लामाबाद, वृन्दावन को मेमिनाबाद और गोवर्धन को मुहम्मदपुर का बना दिया था। यह अलग बात है कि श्रीकृष्ण और राधारानी की भक्ति भारत के रोम-रोम में बसी थी, इसलिए उसके मंसूबे विफल हो गए और उसके दिए नाम प्रचिलत नहीं हो सके, उल्टा जो औरंगजेब श्री कृष्ण की संस्कृति को वह खत्म करने चला था, उन्हीं की भक्ति में उसकी बेटी ‘जेबुन्निसा’ डूब गई और श्री कृष्ण भक्त बनकर उसके सामने खड़ी हो गई थी। वे किले में कैद होकर भी श्रीकृष्ण की भक्ति में डूब कर गजलें, शेर और रुबाइयां लिखती रहीं। 20 सालों की कैद के दौरान उन्होंने लगभग 5000 रचनाएं कीं, जिसका संकलन उनकी मौत के बाद दीवान-ए-मख्फी के नाम से छपा।
भारत की प्राचीन भव्यता से भयंकर चिढ़ थी औरेंगजेब को
विलियम जेम्स ड्यूरेंट एक सुप्रसिद्ध अमेरिकी इतिहासकार और दार्शनिक थे, जो अपने ग्यारह-खंड में किए गए ऐतिहासिक कार्य ‘‘द स्टोरी ऑफ़ सिविलाइज़ेशन’’ के लिए जाने जाते हैं, इसमें इन्होंने पूर्वी और पश्चिमी सभ्यताओं के इतिहास का अध्ययन किया है और इसका सविस्तार विवरण प्रस्तुत किया है। वे अपनी इस पुस्तक ‘स्टोरी ऑफ सिविलाइजेशन’ में औरंगजेब की धर्मान्धता का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि उसने अपनी नजर में आने वाली ‘हर मूर्ति को तोड़ डाला’।
उन्होंने लिखा, “औरंगजेब को कला की कोई परवाह नहीं थी, उसने घोर कट्टरता के साथ (इस्लाम को छोड़) उसकी नजर में आए सभी अन्य पंथों के धार्मिक स्मारकों, मंदिरों को नष्ट कर दिया, और आधी सदी के शासनकाल में, भारत से अपने धर्म (इस्लाम) को छोड़कर लगभग सभी धर्मों को मिटाने के लिए संघर्ष किया। उसने प्रमुख शासकों और अपने अन्य अधीनस्थों को आदेश जारी किया कि वे हिंदुओं या ईसाइयों के सभी मंदिरों को जमींदोज कर दें, हर मूर्ति को तोड़ दें और हर हिंदू स्कूल को बंद कर दें।
एक साल (1679-80) में अकेले आमेर में 66 मंदिर, चित्तौड़ में 63 मंदिर, उदयपुर में 123 मंदिर तोड़ दिए गए; और बनारस के एक मंदिर की जगह पर, जो हिंदुओं के लिए विशेष रूप से पवित्र था, उसने जानबूझकर अपमान करते हुए एक मुस्लिम मस्जिद बनवाई। उसने हिंदू धर्म की सभी सार्वजनिक पूजा पर रोक लगा दी और हर अपरिवर्तित हिंदू पर भारी कैपिटेशन टैक्स लगा दिया। उसकी कट्टरता के परिणामस्वरूप, हजारों मंदिर जो एक सहस्राब्दी से भारत की कला का प्रतिनिधित्व करते थे, खंडहर में तब्दील हो गए। आज के भारत को देखकर हम कभी नहीं जान सकते कि एक समय में इसमें कितनी भव्यता और सुंदरता थी।”
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