पंजाब में हरियाणा के साथ लगती शंभू और खनौरी सीमा पर 13 माह से चल रहे किसानों के धरने को राज्य सरकार ने बुधवार रात पुलिस की मदद से हटा दिया। पुलिस ने बुलडोजर चलाकर खनौरी और शंभू बॉर्डर पर बने मंच ढहा दिए और टेंट भी उखाड़ दिए। किसान यहां पिछले साल 13 फरवरी से धरने पर बैठ थे। केंद्र सरकार और किसान संगठनों की बुधवार को चंडीगढ़ में हुई बैठक बेनतीजा रही। बैठक खत्म होने के बाद खनौरी व शंभू बॉर्डर लौट रहे किसान नेताओं जगजीत सिंह डल्लेवाल, सरवण सिंह पंधेर समेत 300 से अधिक किसानों को हिरासत में ले लिया।
सूत्रों के अनुसारी पंजाब के डीजीपी गौरव यादव और स्पेशल डीजीपी लॉ एंड ऑर्डर अर्पित शुक्ला की अध्यक्षता में मंगलवार दोपहर 12 बजे हाईलेवल मीटिंग हुई थी, जिसमें बुधवार शाम को शंभू व खनौरी बॉर्डर को खाली कराने की प्लानिंग हो गई थी। यही कारण रहा कि किसान पुलिस के चक्रव्यूह में फंस गए। बॉर्डर खाली कराने के लिए 5000 हजार पुलिस जवानों की टुकड़ी को तैयार रखा गया था। चंडीगढ़ स्थित पुलिस मुख्यालय से पहले ही सूचना दे दी गई थी कि शंभू व खनौरी बॉर्डर को वीरवार सुबह तक हर हाल में खाली कराना है।
किसानों और केंद्र की लगातार बैठकों से एमएसपी की कानूनी गारंटी सहित अन्य मांगों पर कोई हल नहीं निकल पा रहा था। सरकार को आशंका थी कि यदि इस बार भी सहमति नहीं बनी तो आंदोलन और लंबा खिंच जाएगा। किसानों के 13 माह से चल रहे पक्के मोर्चे के कारण प्रदेश के व्यापार और अन्य कामकाज पर काफी असर पड़ रहा था।
किसान आंदोलन का इस तरह से अंत राजनीतिक दलों के साथ-साथ खुद किसान संगठनों के लिए एक सबक है। राजनीतिक दलों के लिए सबक है कि विपक्ष में रहते हुए कोई दल किसी आंदोलन के नाम पर हुल्लड़बाजी व कुछ लोगों की जिद्द को हल्लाशेरी देता है तो एक न एक दिन उसे भी इन लोगों से दो चार होना पड़ सकता है। जैसा कि सभी जानते हैं कि दिल्ली सीमा पर साल से अधिक चली आंदोलनजीवियों की हुल्लड़बाजी को आम आदमी पार्टी ने हर तरह से समर्थन दिया। यहां के प्रदर्शनकारियों को राजनीतिक समर्थन के साथ-साथ भीड़ व संसाधन जुटाने तक का काम किया गया। लेकिन जब पंजाब में यही पार्टी सत्ता में आई तो इन्हीं दलों के गुस्से का इस पार्टी को भी शिकार होना पड़ा और वहीं परेशानियां झेलनी पड़ीं जो दिल्ली की सीमा पर चले आंदोलन के दौरान देश की जनता को झेलनी पड़ी थीं। दिल्ली आंदोलन की तरह शंभू बार्डर के आंदोलन ने भी देश की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव डाला और आसपास रहने वाले लोगों का जीवन नरक बना दिया। और अब थक हार कर आम आदमी पार्टी को उन्हीं आंदोलनजीवियों के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ी जिनकी वह हिमायती होने का दिखावा करती रही।
आंदोलन का ऐसा हश्र खुद किसान संगठनों के लिए भी कड़वा सबक है। सर्वोच्च न्यायालय कई बार स्पष्ट कर चुका है कि प्रदर्शन करने की स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं कि आम लोगों का जनजीवन ही रोक दिया जाए। असल में किसान संगठन आंदोलन कम चलाते दिखते हैं और अपनी जिद्द अधिक। आए दिन के धरने प्रदर्शन, सडक़ों-रेल गाडिय़ों को पहिए रोक देना, आम लोगों को परेशान करना कहां तक उचित है। किसान संगठनों की इन्हीं हरकतों के कारण यह संगठन जनता में बड़ी तेजी से सहानुभूति खो रहे हैं। आम लोग जिन किसानों को अन्नदाता कहते रहे अब उनमें किसानों को लेकर प्रचलित धारना कम हो रही है और वे किसान संगठनों का अर्थ हुल्लड़बाजों के रूप में लेने लगे हैं। किसान संगठनों के लिए एक और सबक है कि अपनी व्यवहारिक या अव्यवहारिक जिद्द को लम्बे समय तक मांगों का शीर्षक नहीं दिया जा सकता। लोकतंत्र में किसी वर्ग का भला करने या न करने का अधिकार देश की जनता अपने प्रतिनिधियों को देती है ना कि आंदोलनकारियों को। और यह आवश्यक भी नहीं है कि आंदोलन के दौरान जो-जो मांगें उठाई जा रही हैं वे सभी उचित हों।
आओ जानें पंजाब में 13 फरवरी 2024 से 19 मार्च 2025 के बीच क्या क्या हुआ
- – 13 फरवरी 2024 को किसानों ने दिल्ली कूच किया। पुलिस ने शंभू और खनौरी बॉर्डर पर बैरिकेडिक करके रोका।
- – दिल्ली कूच को लेकर 21 फरवरी 2024 को किसानों व पुलिस के बीच टकराव हुआ। युवा किसान नेता शुभकरण सिंह की मौत हुई।
- – 17 अप्रैल 2024 को किसानों ने रेलवे ट्रैक जाम किया।
- – 2 सितंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी बनाई। कमेटी ने किसानों व हितधारकों से की बैठकें।
- – 18 नवंबर2024 किसानों ने 6 दिसंबर को दिल्ली कूच का एलान किया।
- – 26 नवंबर 2024 को किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल को पुलिस ने हिरासत में लिया। डल्लेवाल ने आमरण अनशन शुरू किया।
- – 6 दिसंबर 2024 को किसानों ने दिल्ली कूच का प्रयास किया। हरियाणा पुलिस के साथ फिर टकराव हुआ। पुलिस ने आंसू गैस से खदेड़ा।
- – 8 व 14 दिसंबर 2024 को फिर से दिल्ली कूच का प्रयास किया, लेकिन असफल रहे।
- – 4 जनवरी 2025 को किसानों ने खनौरी बॉर्डर पर महापंचायत की।
- – 14 फरवरी 2025 को केंद्र के साथ दोबारा बैठक शुरू हुई। 22 फरवरी को फिर बैठक हुई, पर बेनतीजा रही।
- – 19 मार्च 2025 को चौथी बार केंद्र और किसानों के बीच बैठक हुई, जिसमें को नतीजा नहीं निकाला और शाम होते पुलिस ने शंभू और खनौरी बॉर्डर से किसानों को खदेड़ दिया।
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