बिहार की राजनीति में गाँधी परिवार का लालू यादव के परिवार को लगातार दो बड़े झटके देकर घुटनों के बल लाकर खड़ा कर दिया है। राहुल गाँधी ने पहले अपने चहेते कन्हैया कुमार को बिहार की राजनीति में सीधे प्रवेश करवाकर तेजस्वी यादव को सबसे बड़ा चुनौती दे दिया है। कन्हैया कुमार को राहुल गांधी ने नीतीश कुमार या भाजपा के विरोध के लिए नहीं, बल्कि तेजस्वी यादव के खिलाफ बिहार के राजनीतिक मैदान में उतारा है।
सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि गांधी परिवार और कांग्रेस पार्टी ने अपने बिहार प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह को हटाकर राजेश कुमार को नया अध्यक्ष नियुक्त कर दिया है। अखिलेश प्रसाद सिंह को लालू यादव परिवार का करीबी माना जाता है। अखिलेश प्रसाद सिंह कई अवसरों पर कांग्रेस पार्टी के बदले लालू यादव के परिवार के राजनीतिक फायदे के लिए काम करते पाए गए थे।
अखिलेश प्रसाद सिंह के प्रदेश अध्यक्ष रहते लालू यादव के राजनीतिक हितों पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता दिख रहा था। क्योंकि जातिगत तौर पर अखिलेश प्रसाद सिंह भूमिहार जाति से हैं, जिसका मत लालू यादव के पार्टी में नहीं के बराबर मिलता है। वहीं नवनियुक्त अध्यक्ष राजेश कुमार दलित समुदाय से आते हैं और इस जाति के मत के लिए लालू यादव की पार्टी लालायित है। राजेश कुमार को अध्यक्ष बनाकर गाँधी परिवार ने लालू यादव के समक्ष बड़ी राजनितिक चुनौती पैदा कर दिया है।
असल में गांधी परिवार का यह कदम लालू यादव के परिवार से राजनीतिक बदला की तरह का है। दिल्ली विधानसभा चुनाव से पूर्व लालू यादव और उनके परिवार के अन्य सदस्यों ने इंडि गठबंधन के संयोजक का पद ममता बनर्जी को सौंपने की पेशकश की थी। यह गांधी परिवार को लालू यादव का सीधे चुनौती के तौर पर देखा गया था। साथ ही दिल्ली विधानसभा के चुनाव में लालू यादव वो उनकी पार्टी ने कांग्रेस को जीत दिलवाने के लिए कोई विशेष प्रयास करता नहीं दिखा। गांधी परिवार ने लालू यादव के इन राजनीतिक क्रियाकलापों पर तत्काल अवश्य चुप्पी साधे रहा, लेकिन अब गांधी परिवार इसका जोरदार प्रतिकार करता दिख रहा है।
गांधी परिवार, लालू यादव को 2009 लोकसभा चुनाव और 2010 विधानसभा के चुनाव की याद दिलाने की कोशिश कर रहा है। 2009 के लोकसभा के चुनाव में रामविलास पासवान और लालू यादव ने बंद कमरे की बैठक में आपस में सीटों का बंटवारा कर लिया और कांग्रेस पार्टी को महज तीन लोकसभा की सीट छोड़ी। सोनिया गाँधी ने भी इसका बदला लिया और बिहार की सभी 40 लोकसभा की सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए। इसका असर ये हुआ कि लालू यादव पाटलिपुत्र लोकसभा सीट से अपना चुनाव हार गए। वहीं रामविलास पासवान अपनी परम्परागत मजबूत गढ़ हाजीपुर की लोकसभा सीट पर भी चुनाव हार गए। कांग्रेस पार्टी ने राजद और पासवान की लोजपा के बागियों को मुख्यतः उम्मीदवार बनाया, जिससे कि उनका वोट बंटे और इन दोनों दलों की हार हो।
सोनिया गांधी का लालू यादव और पासवान पर गुस्सा इतने भर से शांत नहीं हुआ और 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी सोनिया गांधी ने इसी राजनीतिक दांव का इस्तेमाल किया और राजद को महज 22 सीट और पासवान की पार्टी को तीन सीटों पर लेकर समेत दिया। राजद और पासवान के गठबंधन को 49 विधानसभा की सीटों पर कांग्रेस पार्टी की उम्मीदवारी के कारण चुनावी हार का सामना करना पड़ा। 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में तत्कालीन विपक्ष की नेता और राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी राघोपुर और सोनपुर दो विधानसभा की सीटों से चुनाव हार गई थी।
मगर उसके बाद लालू यादव ने कभी भी कांग्रेस को नज़रअंदाज नहीं किया और 2014 के लोकसभा चुनाव में गठबंधन के तहत कांग्रेस पार्टी को 12 सीट दिया। 2015 के विधानसभा चुनाव में राजद और जेडीयू के गठबंधन के बाजवूद भी कांग्रेस पार्टी को 41 सीट देना पड़ा। यह सब कांग्रेस पार्टी के 2009 के लोकसभा और 2010 के विधानसभा के चुनाव में दिए सबक का परिणाम था।
क्या गांधी परिवार लालू यादव को 2009 और 2010 के चुनावों की याद दिलाकर गठबंधन में अधिक सीट झटकने के लिए प्रयासरत है? या गांधी परिवार राजनीतिक तौर पर लालू यादव के परिवार को घुटनों पर लाकर उसे अपना पिछलग्गू बनाकर रखना चाहती है? आने वाले दिनों में इन सवालों का जवाब देखने को मिलेगा।
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