जिन्ना के इस्लामी देश में घट रहे घटनाक्रमों पर नजर डालें तो एक अजीब सी तस्वीर उभरती है। राजनीति—सामाजिक—आर्थिक क्षरण के साथ ही, वहां जिन जिहादी टोलियों को बढ़ावा दिया जाता रहा है, जिनके नेताओं को सरकारी संरक्षण दिया जाता रहा है, उन्हीं में से एक अब उस देश की नाक में दम करने का प्रण कर चुका है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान या टीटीपी के प्रमुख सरगना नूर वली महसूद का एक वीडियो सामने आया है जिसमें उसने पाकिस्तानी सेना के विरुद्ध मोर्चा खोलने की बात कही है। इसे नाम दिया गया है ‘ऑपरेशन अल-खांदक’। करीब दो साल बाद साझा किए अपने इस ताजा वीडियो में वह पाकिस्तान की जनता से अपील करता दिख रहा है कि पाकिस्तान की फौज के खिलाफ जिहाद छेड़ें। उसने आरोप लगाया है कि बलूचों और पश्तूनों को फौज हिंसा का निशाना बना रही है, उनके कुदरती संसाधनों का दोहन कर रही है।

टीटीपी द्वारा पाकिस्तान की फौज के विरुद्ध जिहाद के आह्वान तथा आम जनता और सैनिकों से भी इससे जुड़ने की अपील करना दिखाता है कि जिन्ना के देश के सामने चुनौती गंभीर है। यह घटनाक्रम पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा के लिए ही नहीं, यह क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी एक बड़े खतरे के तौर पर देखा जा रहा है।
टीटीपी के इस ‘ऑपरेशन अल-खंदक’ नामक ‘जिहाद’ के तहत, टीटीपी ने फौज पर कई आरोप लगाए हैं, जिसमें बलूचों और पश्तूनों को हिंसा का शिकार बनाए जाने का आरोप सबसे गंभीर है। इसके अलावा टीटीपी ने कहा है कि फौज ने मस्जिद हक्कानिया पर बम धमाके करके मजहबी आलिमों की हत्या की है। इसमें संदेह नहीं है कि टीटीपी के बढ़ते हमलों और जनता को जिहाद में शामिल होने के लिए उकसाने से पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा पर बड़ा संकट खड़ा होने वाला है। खैबर पख्तूनख्वा जैसे इलाकों में टीटीपी का प्रभाव बढ़ता दिख रहा है। यह सरकार के लिए अगल सिरदर्द बना हुआ है।
दूसरी तरफ, अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान के संबंध और खराब होते दिखे हैं। टीटीपी के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के तहत पाकिस्तान द्वारा अफगान सीमा पर किए गए हमलों ने संबंधों में और खटास पैदा की है। सीमा पर अस्थिरता उस पाकिस्तान को भारी पड़ सकती है जिसकी आर्थिक स्थिति पहले से डावांडोल है। ऐसे में टीटीपी के हमलों और सेना के जवाबी अभियानों से देश की आर्थिक स्थिति गर्त में जा सकती है।

दरअसल, तहरीक-ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को हल्के में नहीं लिया जा सकता है। वह अनेक उग्रवादी समूहों का एक गठबंधन है, जो 2007 में पाकिस्तान के जनजातीय क्षेत्रों में अल-कायदा आतंकवादियों के खिलाफ पाकिस्तान सैन्य अभियानों के बाद, साथ आया था। अब मर चुके बैतुल्लाह महसूद के नेतृत्व में टीटीपी की जड़ें अफगानिस्तान/पाकिस्तान सीमा पर सबसे गहरी होती गईं। कुछ अनुमान बताते हैं कि टीटीपी में 30 से 35,000 तक जिहादी हैं।
टीटीपी का घोषित उद्देश्य पाकिस्तान की निर्वाचित सरकार को उखाड़ फेंकना है ताकि इस्लामी कानून या शरिया की अपनी व्याख्या के आधार पर इस्लामी अमीरात की स्थापना की जा सके। इस उद्देश्य से, टीटीपी ने पाकिस्तानी सेना पर सीधे हमला करके और राजनेताओं की हत्या करके पाकिस्तान को अस्थिर करने का काम किया है।

टीटीपी के हमलों में, जिसमें कई आत्मघाती बम विस्फोट शामिल हैं। इसने पाकिस्तान के रक्षा बलों, कानून प्रवर्तन कर्मियों और नागरिकों की हत्याएं की हैं। टीटीपी के तत्कालीन सरगना बैतुल्लाह महसूद ने सार्वजनिक रूप से 30 मार्च 2009 को लाहौर में एक पुलिस अकादमी पर हुए हमले की जिम्मेदारी ली थी, जिसमें हमलावरों ने पुलिस भर्ती की निहत्थे भीड़ पर स्वचालित मशीनगनों से गोलीबारी की थी। तब आठ लोग मारे गए थे और 100 अन्य घायल हुए थे। सितंबर 2009 में दक्षिण वजीरिस्तान में अल-कायदा से जुड़े समूहों (विशेष रूप से इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान और इस्लामिक जिहाद ग्रुप) के खिलाफ पाकिस्तान के सैन्य अभियानों के बाद, टीटीपी ने कई हाई प्रोफाइल आत्मघाती हमलों की जिम्मेदारी ली थी।
इसी प्रकार टीटीपी ने अक्तूबर 2009 में इस्लामाबाद में विश्व खाद्य कार्यक्रम मुख्यालय पर आत्मघाती हमले और जुलाई 2010 में एक हमले की जिम्मेदारी भी ली थी, जिसमें 50 से अधिक लोग मारे गए थे। इसके बाद से टीटीपी लगातार बम विस्फोटों और आतंकवादी कृत्यों में सैकड़ों सैनिकों और नागरिकों की जान ले चुका है। इसलिए पाकिस्तान की सत्ता जानती है कि टीटीपी की चुनौती कितनी गंभीर है। इस्लामाबाद का यह भी मानना है कि टीटीपी को अफगानिस्तानी तालिबान से हर प्रकार की सहायता मिल रही है। तालिबान से संबंधों में आई खटास के पीछे यह भी एक बड़ा कारण माना जाता है।
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