जिन्ना के देश के सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर ने अपने देश के इस्लामी नेताओं से अपील की है कि वे ‘उग्रवादी सोच के खिलाफ लोगों को जागरूक करें’। उन्होंने कहा है कि इस तरह की सोच न केवल पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा को खतरे में डालती है, बल्कि देश की अंतरराष्ट्रीय छवि को भी मिट्टी में मिलाती है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान अपने ही पाले तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) और बलूचिस्तान में जिन्ना के देश के सालों से होते आ रहे दमन के विरुद्ध हथियार उठाने वाले विद्रोही गुटों की हिंसक कार्रवाइयों को झेलने को मजबूर है। इसके साथ ही अमेरिका के नेता और अधिकारियों सहित विश्व के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित अनेक नेताओं ने इस बात को बार बार उठाया है कि पाकिस्तान का सत्ता अधिष्ठान जिहादी सोच से ग्रसित है और अपने यहां आतंकवादी गुटों को पनाह दिए हुए है।
विश्व के अनेक रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान के सत्ता अधिष्ठान को अब अपनी छवि की चिंता सताने लगी है जो उसकी कथनी और करनी को देखते हुए एक अजीब बात मालूम देती है। लेकिन अगर सच में जिन्ना के देश के नेता ऐसा चाहते हैं तो इसका एक कारण यह हो सकता है कि अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप ने सत्ता में आने के साथ ही, आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाया गया है। ट्रंप प्रशासन ने पहले भी पाकिस्तान को आतंकवादियों के समर्थन के लिए फटकार लगाई थी। इसके अलावा, पाकिस्तान की सेना ने हाल ही में अपनी गुटनिरपेक्ष नीति पर जोर दिया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि वे अमेरिका और चीन के बीच तनाव के बीच संतुलन बनाए रखना चाहते हैं।

फौजी मुखिया जनरल मुनीर ने अपने ताजा बयान में राष्ट्रीय कार्य योजना का भी जिक्र किया है, जो 2014 में आतंकवाद और उग्रवाद से निपटने के लिए बनाई गई थी। उन्होंने कहा कि यदि सभी पक्ष मिलकर काम करें, तो स्थिति में सुधार हो सकता है।
पाकिस्तान के इस कदम पर विशेषज्ञों के दो तरह के रवैए हैं। एक ओर, यह देश की आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करने का प्रयास जैसा लगता है। दूसरी ओर, यह अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ऐसा जताने की एक कोशिश भी हो सकती है कि ‘जिन्ना का देश अपने मूल स्वभाव से अलग हटते हुए आतंकवाद के खिलाफ गंभीर है’।
यहां एक बार फिर, अमेरिका की तरफ नजर डालें तो राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में पाकिस्तान को दी जाने वाली आर्थिक सहायता पर रोक लगाने का निर्णय लिया है। यह कदम उनकी “अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत उठाया गया है, जिसमें विदेशी सहायता का पुनर्मूल्यांकन किया जा रहा है। इस निर्णय का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अमेरिकी करदाताओं का पैसा केवल उन्हीं परियोजनाओं पर खर्च हो, जो अमेरिकी हितों को प्रत्यक्ष रूप से लाभ पहुंचाती हैं। और दुनिया जानती है कि जिन्ना के देश के भ्रष्टाचारी नेता ‘राहत राशि’ की भी बंदरबांट करते रहे हैं।
ट्रंप प्रशासन के उक्त निर्णय से पाकिस्तान में कई विकास परियोजनाएं प्रभावित हुई हैं। इनमें ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ्य और सांस्कृतिक संरक्षण से जुड़ी परियोजनाएं शामिल हैं। उदाहरण के लिए, अमेरिकी सहायता से चल रहीं चार शिक्षा और चार स्वास्थ्य परियोजनाओं को निलंबित कर दिया गया है। इसके अलावा, ऊर्जा क्षेत्र की पांच प्रमुख परियोजनाएं और कृषि विकास से जुड़ी कई योजनाएं भी रुक गई हैं। इस बात का रोना वहां के प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ अनेक अवसरों पर रो चुके हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि व्हाइट हाउस का यह निर्णय उस पाकिस्तान के लिए एक गंभीर झटका है, जो पहले से ही गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। अमेरिकी सहायता पर निर्भर कई परियोजनाओं के रुकने से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और कई क्षेत्रों में पड़ता दिखने भी लगा है। लेकिन व्यापक तौर पर अमेरिका का यह कदम ट्रंप की आतंकवाद के खिलाफ सख्त नीति का हिस्सा माना जा रहा है। अपने पिछले कार्यकाल में भी ट्रंप ने पाकिस्तान को आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप में फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ग्रे सूची में डालने का समर्थन किया था।
विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि राहत राशि के रुकने का असर अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों में तनाव बढ़ा सकता है। हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि पाकिस्तान इस स्थिति से कैसे निपटता है और अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए क्या कदम उठाता है। संभव है अपनी सूरत चमकाने या कम से कम चमकाने की कोशिश दिखाने के लिए जनरल मुनीर ने उक्त बयान दिया है। लेकिन सवाल है कि क्या वास्तव में पाकिस्तान की जिहाद को पोसने वाली विदेश नीति में बदलाव का संकेत दिखेगा? और कि क्या वह बदलाव स्थायी होगा? क्योंकि पहले अनेक बार, पाकिस्तान के नेता ‘अपने देश को आतंकवाद पीड़ित बताकर पीओजेके में अपने पल रहे जिहादी गुटों को हवा देते रहे हैं।’ सबसे बड़ा सवाल है कि क्या आतंकवाद की फैक्ट्री कहलाया जाने वाला देश और उसका सत्ता अधिष्ठान क्या अपने शैतानी मंसूबे रचने से बाज आएंगे?
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