जिनेवा में एक महत्वपूर्ण चर्चा आयोजित की गई। ग्लोबल ह्यूमन राइट्स डिफेंस (GHRD) द्वारा यह कार्यक्रम जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) के 58वें सत्र के दौरान आयोजित किया गया था। कार्यक्रम में उपस्थित दुनियाभर से आए विद्वानों के वक्तव्य बांग्लादेश और पाकिस्तान में पांथिक और जातीय अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों पर ध्यान केंद्रित करना था।
उपस्थित विद्वानों में मानवाधिकार कार्यकर्ता और विषय के अनेक विशेषज्ञ थे, जिन्होंने उक्त दोनों देशों में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती हिंसा और भेदभाव पर विस्तार से चर्चा की। वक्ताओं का कहना था कि कैसे मजहबी कट्टरता और राजनीतिक अस्थिरता ने इन देशों में विशेष रूप से हिन्दुओं के अधिकारों का सुनियोजित हनन किया है, उनके लिए गंभीर चुनौतियां पैदा की हैं।
पाकिस्तान में हिन्दुओं पर अत्याचार
पाकिस्तान में हिंदू समुदाय को अक्सर पांथिक भेदभाव, कन्वर्जन और उनकी संपत्तियों पर कब्जे जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। समाचारों और पीड़ितों के बयानों के अनुसार, हिंदू लड़कियों को अगवा किया जाता है और किसी अधेड़ कठमुल्ले से जबरन ब्याह दिया जाता है। हिन्दू बच्चियों का घर से निकलना दूभर बना दिया गया है। इसके अलावा हिन्दुओं के मंदिरों—तीर्थों, देव स्थानों पर सुनियोजित हमले किए जाते हैं। उनके घर—जमीन पर तोड़फोड़ की घटनाएं अब आम हो चली हैं, उन पर अवैध कब्जे किए जाते हैं।
बांग्लादेश में आहत हिन्दू
बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों को भी हिंसा, संपत्तियों पर कब्जा और उनके मंदिरों पर हमलों का सामना करना पड़ रहा है। अगस्त 2024 में वहां हुए तख्तापलट से पैदा हुईं स्थितियों में तो हिन्दू बहुल गांव के गांव जला दिए गए। हाल ही में बांग्लादेश सरकार ने 2,374 घटनाओं में से केवल 1,254 मामलों की पुष्टि की है और उनमें से भी 98 फीसदी घटनाओं को ‘राजनीतिक’ करार दिया गया है। यह दुर्भाग्य की बात है कि वहां की अंतरिम सरकार और स्थानीय प्रशासन मजहबी कट्टर तत्वों के सामने हतबल नजर आया है। कट्टर मुसलमान मनमर्जी कर रहे हैं और हिन्दू जन उनके निशाने पर हैं।

कार्यक्रम में वक्ताओं ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से अपील की कि वे इन घटनाओं पर ध्यान दें और इन देशों की सरकारों को इसके लिए जवाबदेह ठहराएं। GHRD ने संयुक्त राष्ट्र संघ से आग्रह किया है कि वह बांग्लादेश में एक स्थायी कार्यालय स्थापित करके अल्पसंख्यकों के लिए न्याय सुनिश्चित करे। इस चर्चा में भारत से भाग लेने गईं मानवाधिकार कर्मी सुश्री रोहिणी ने हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यक समूहों के खिलाफ हिंसा में खतरनाक वृद्धि के आंकड़े सामने रखे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मजहब की आड़ में बढ़ते चरमपंथ ने मानवाधिकारों के गंभीर हनन को जन्म दिया है। रोहिणी ने वैश्विक समुदाय से अपील की कि इस ओर लोगों का जितना ध्यान आकर्षित किया जाएगा, उतनी ही समस्या को दूर करने में मदद मिलेगी।

इस चर्चा के माध्यम से उक्त दोनों कट्टर इस्लामी देशों में अल्पसंख्यकों, विशेषकर हिन्दुओं की दुर्दशा को उजागर करने का एक प्रयास किया गया था। इस चर्चा में यह बात खुलकर सामने आई कि कैसे पांथिक और जातीय भेदभाव हिन्दुओं के मानवाधिकारों के लिए एक गंभीर चुनौती बना हुआ है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय की इस ओर सक्रिय भागीदारी और इन देशों की सरकारों की जवाबदेही निश्चित करने से उन पर एक प्रकार से इस बात का दबाव बनेगा कि उनकी यह करतूत पूरी दुनिया देख—समझ रही है। जीएचआरडी ने जेनेवा में इस कार्यक्रम से दक्षिण एशिया में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के खिलाफ दुनिया का ध्यान आकर्षित करने में अपनी भूमिका निभाई है। दिलचस्प बात यह भी है कि जिस वक्त जिनेवा में यह कार्यकम हो रहा था, उस वक्त संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंतोनियो गुतेरस बांग्लादेश में थे। वे वहां उन्मादी रोहिंग्या ‘शरणार्थियों’ से तो मिले लेकिन उन्हें आहत हिन्दुओं से मिलने या सरकार से इस ओर ध्यान देने को कहने का समय नहीं मिला!

नीदरलैंड के हेग में स्थित अंतरराष्ट्रीय एनजीओ जीएचआरडी मानवाधिकारों की वकालत को समर्पित है। यह दुनियाभर में मानवाधिकार उल्लंघन और दमन झेल रहे अल्पसंख्यक समुदायों पर गौर करके उनकी पीड़ा को वैश्विक मंच पर लाने का काम करती है। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार अधिकारी चार्लोट ने बताया कि इस संस्था का उद्देश्य अल्पसंख्यकों से हो रहे दुर्व्यवहार के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
टिप्पणियाँ