संकल्प राष्ट्र उत्थान, कार्य स्वयंसेवक निर्माण - शताब्दी सोपान (4)
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संकल्प राष्ट्र उत्थान, कार्य स्वयंसेवक निर्माण – शताब्दी सोपान (4)

शताब्दी सोपान (4) : रा.स्व.संघ की शाखा का स्वरूप ही ऐसा है कि उसमें ऐसे स्वयंसेवकों का निर्माण होता है जो राष्ट्र उत्थान के ध्येय को सामने रखकर काम जुटते हैं। स्वामी विवेकानंद ने ऐसे युवकों का आह्वान किया था जो संकल्पबद्ध होकर भारत माता को परम वैभव पर प्रतिष्ठित कराएं। संघ स्वामी जी के विचारों को साकार करने वाले स्वयंसेवक तैयार कर रहा है

by मधुभाई कुलकर्णी
Mar 14, 2025, 07:57 am IST
in संघ
1939 के इस चित्र में डॉ. हेडगेवार और श्री गुरुजी (मध्य में) के साथ संघ के कुछ तत्कालीन वरिष्ठ कार्यकर्ता

1939 के इस चित्र में डॉ. हेडगेवार और श्री गुरुजी (मध्य में) के साथ संघ के कुछ तत्कालीन वरिष्ठ कार्यकर्ता

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संघ का ध्येय है-अपने राष्ट्र को परम वैभव के पद पर आसीन करना। प्रतिदिन गाई जाने वाली संघ प्रार्थना में उसी का उच्चारण किया जाता है-‘परम­­ वैभवंनेतुमेतत् स्वराष्ट्रम।’

मधुभाई कुलकर्णी
वरिष्ठ प्रचारक, रा.स्व.संघ

परम वैभव प्राप्त करने के लिए आवश्यक है समाज का संगठित होना। वर्तमान में बहुसंख्यक हिंदू समाज ऊंच-नीच की भावना से भरा, एक-दूसरे से दूर, जातिभेद से परिपूर्ण, अस्पृश्यता सरीखी हीन भावना से विभाजित दिखता है। महात्मा ज्योतिबा फुले, डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर, स्वातंत्र्यवीर सावरकर इत्यादि समाज सुधारकों ने हिंदू समाज को इन सब व्याधियों से मुक्त कराने की कोशिश की। हिन्दू समाज में ‘समाज’ के रूप में आवश्यक गुणों की कमी दिखाई देती है। हिन्दू समाज आज भी कमोबेश ‘मैं और मेरा’ जैसे संकुचित विचारों से ग्रस्त दिखता है।

देश स्वतंत्र रहे, समृद्ध तथा सुखी रहे, इसके लिए हिंदू समाज को अवगुणों से दूर करके संगठित करना अति आवश्यक है। परम वैभव प्राप्त करने के लिए यह पहली शर्त है। इसे पहचान कर संघ ने हिंदू समाज के संगठन का काम करने का निश्चय किया। संघ का ध्येय है-परम वैभव और उसे प्राप्त करने के लिए हिंदू संगठन का काम। ‘हिंदू संगठन’ शब्द में समाज सुधार की सभी संकल्पनाएं शामिल हैं।

वस्तुत: हिंदू समाज का संगठन कोई सरल काम नहीं है, यह धैर्य की परीक्षा लेने वाला काम है। मेंढकों को तोलने जैसा अथवा उससे भी अधिक कठिन काम है हिंदू समाज को संगठित करना। हिंदू समाज अपने भेदाभेद के कारण इतना खोखला हो गया है कि संगठन का काम जीवनपर्यन्त भी चलता रहेगा। लेकिन, ऐसा असंभव होते हुए भी वह करना आवश्यक है। सतत करते रहना, निराश एवं हताश नहीं होना, बीच में ही काम नहीं छोड़ना, ऐसे संगठन कुशल कार्यकर्ता निर्माण करते रहना होगा। संघ की शाखा इसीलिए चलाई जाती है कि वहां से संगठन कुशल कार्यकर्ता निर्माण हों। संघ ने उनके लिए ‘स्वयंसेवक’ का संबोधन स्वीकार किया है।

समाज-संगठन का संकल्प

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अर्थ संक्षेप में इस प्रकार समझा जा सकता है। ‘राष्ट्रीय’ यानी हिंद, ‘संघ’ यानी समाज, और जिन्होंने हिंदू समाज को संगठित करने का बीड़ा उठाया है वे, ‘स्वयंसेवक’। संपूर्ण हिंदू समाज के संगठन की संकल्पना सरलता से समझ नहीं आ सकती। किसी जाति के, एक भाषा बोलने वालों के, किसानों के, मजदूरों के, कांग्रेस के, भाजपा के संगठन की संकल्पनाएं समझने में सरल हैं। हिंदू समाज के संगठन की संकल्पना संघ संस्थापक डॉ. हेडगेवार के अतिरिक्त किसी ने समाज के सामने नहीं रखी। ग्रामवासी, शहरवासी, गिरीवासी, वनवासी, धनवान, निर्धन आदि 6 लाख गांवों में फैले एवं विविध भाषाएं बोलने वाले विराट समाज के संगठन का संकल्प एक चमत्कार से कम नहीं है। डॉक्टर जी इसे एक ईश्वरीय कार्य मानते थे। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन इसी काम को समर्पित किया था। डॉक्टर जी का आदर्श सामने रखकर सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने अपना जीवन इस कार्य के लिए होम कर दिया। परम पूजनीय श्री गुरुजी, पूजनीय सरसंघचालक श्री बालासाहेब देवरस, प्रोफेसर राजेंद्र्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया जी, माननीय सुदर्शन जी और माननीय मोहनराव भागवत जी ने वही आदर्श हम सबके सामने रखा है।

हिंदू समाज के असंभव से लगने वाले संगठन के लिए निकले स्वयंसेवकों में कौन से गुण आवश्यक हैं, इसका संघ निर्माता डॉ. हेडगेवार ने गहन चिंतन किया होगा। सार्वजनिक जीवन में काम करने वाली अनेक विभूतियों से उनका परिचय था। यहां लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, महर्षि अरविंद, त्रैलोक्यनाथ चक्रवर्ती, भाई परमानंद जैसे कुछ नामों का उल्लेख किया जा सकता है।

साधारणत: किसी अधिवेशन के लिए कार्यक्रम की व्यवस्था करने वालों को ‘स्वयंसेवक’ कहा जाता है। लेकिन डॉ. हेडगेवार के मन में ‘स्वयंसेवक’ की संकल्पना बिल्कुल अलग थी। उनके अनुसार स्वयंसेवक में कुछ आवश्यक गुण परिलक्षित होने आवश्यक थे, जैसे—1. संगठन करना यानी मानव को मानव से जोड़ना। जोड़ने का स्वभाव होना चाहिए, तोड़ने का नहीं। जोड़ना अति कठिन होता है। 2. स्वयंसेवक अहंकारी नहीं होना चाहिए। उसके मन में संपूर्ण समाज के प्रति आत्मीयता होनी चाहिए। 3. किसी को जोड़ने के लिए उसके घर जाना पड़ता है, स्वत: पहल करके अनजान व्यक्ति के यहां जाने का स्वभाव बनाना पड़ता है। 4. नए लोगों के यहां जाने के लिए समय निकालना पड़ता है। अन्य जिम्मेदारियां कम समय में पूर्ण कर ज्यादा से ज्यादा समय संगठन के लिए देने वाले स्वयंसेवक चाहिए। 5. स्वयंसेवक मृदु एवं मित भाषी होना चाहिए। 6. उसे प्रतिज्ञा लेकर काम करने वाला होना चाहिए।

शाखा की कार्यपद्धति

हिंदू समाज के संगठन का कार्य हमारे धैर्य को कसौटी पर कसने वाला कार्य है। ‘कार्यं वा साधयेयम् देहं वा पातयेयम्…’ की मनोभूमिका रखकर सतत काम करना होता है। यही जिम्मेदारी आने वाली पीढ़ी को देनी होती है। डॉ. हेडगेवार के बाद पांच सरसंघचालक हुए हैं। संघ कार्य निरंतर चल रहा है। डॉक्टर जी ने स्वयंसेवक निर्माण करने वाली शाखा की कार्यपद्धति विकसित की। संघ की शाखा भगवा ध्वज को प्रणाम कर प्रारंभ होती है और भारत माता को वंदन कर पूर्ण होती है। शाखा में किसी भी देवता या व्यक्ति की प्रतिमा नहीं रखी जाती। ध्वज को सर्वोच्च स्थान दिया जाता है। ध्वज के सामने सभी समान होते हैं। उच्च-निम्न, शिक्षित-अशिक्षित, शहरी-ग्रामीण, सभी की एक ही आराध्य हैं-भारत माता। भारत माता के लिए सर्वस्व त्याग करने की तैयारी यानी स्वयंसेवक।

‘पतत्वेष कायो’ की इच्छा स्वयंसेवक रोज प्रार्थना में व्यक्त करता है। भारत माता हमारी आराध्य देवी। समाज परमेश्वर तथा भगवा ध्वज का आदर्श संघ शाखा की रचना है। अहंकार तथा स्वार्थ के लिए कोई स्थान नहीं होता। शाखा के लिए एक घंटे के समय का नियोजन शरीर-मन-बुद्धि को समन्वित करने वाला होता है। पहले के 5 मिनट ध्वज वंदन के लिए, अंत के 5 मिनट भारतमाता वंदन के लिए, 40 मिनट खेल, सूर्य नमस्कार, योग, समता, संचलन इत्यादि शारीरिक कार्यक्रमों के लिए। रोज 10 मिनट बौद्धिक कार्यक्रम के लिए तय रहते हैं। खेल खेलने से मन प्रसन्न, उत्साही और विजयाकांक्षी बनता है। ‘मैं जीतूंगा’ में विजय प्राप्त करने की, आगे बढ़ने की महत्वाकांक्षा आवश्यक होती है। योग, समता, संचलन इत्यादि कार्यक्रमों से स्वयंसेवक को अनुशासित रखने में सहायता मिलती है। शरीर की इंद्र्रियों की मनमानी कम होती है। शरीर मन के वश में रहता है।

सूर्य नमस्कार सर्वांग सुंदर व्यायाम के रूप में जाना जाता है। इसमें सात आसन तथा प्राणायाम का मेल है। सूर्य नमस्कार के कारण शरीर को मजबूती मिलती है। परिश्रम करने वाला शरीर तैयार होता है। ‘शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्’, यह अमृत वचन प्रसिद्ध है। शरीर बड़ा और बुद्धि छोटी होती है। हिंदू समाज के प्रति निष्ठा, वर्तमान समाज की अव्यवस्थित अवस्था, एकात्मता का अभाव, समरसता का भाव निर्माण करने के लिए किए जाने वाले प्रयत्न आदि के लिए समय दान जैसे विषयों पर चर्चा के कार्यक्रम 10 मिनट के बौद्धिक कार्यक्रमों में होते हैं। बौद्धिक कार्यक्रम में समाज प्रेम, शौर्य, पराक्रम, चारित्र्य, सेवा, समर्पण इत्यादि गुण वाले छोटे प्रेरक प्रसंग बताए जाते हैं। शाखा में देशभक्ति के गीत सामूहिक रूप से गाए जाते हैं। रोज गाई जाने वाली प्रार्थना बौद्धिक विभाग का महत्वपूर्ण विषय है।

शाखा का संचालन करने वाले स्वयंसेवक को ‘मुख्य शिक्षक’ कहा जाता है। उससे थोड़ा बड़ा स्वयंसेवक, जो मुख्य शिक्षक की सहायता करता है, शाखा कार्यवाह कहलाता है। शिशु, बाल, विद्यार्थी, तरुण तथा प्रौढ़-इन श्रेणियों के अनुसार गण शिक्षक नियुक्त किए जाते हैं। शिशु, बाल, विद्यार्थी, तरुण, व्यवसायी तरुण, व्यवसायी प्रौढ़ श्रेणी के अनुसार शाखा के प्रकार होते हैं। शाखा में 5-7 स्वयंसेवकों के गट बनाए जाते हैं। प्रत्येक गट का एक ‘गटनायक’ होता है। गटनायक अपने गट के प्रत्येक स्वयंसेवक के घर जाता है। घर में सबके साथ संपर्क करके परिचय करता है।

गटनायक से ही संगठन शास्त्र कौशल्य प्रारंभ होता है। शाखा स्तर से ही ‘योजना कौशल्य’ विकसित होता है। सूक्ष्म स्तर पर विस्तृत तक जाने का स्वभाव बनता है। योजना कौशल्य तथा शरीर में रचा-बसा अनुशासन, इसके कारण स्वयंसेवक बड़े से बड़ा काम भी सहज रूप से पूर्ण करते हुए दिखाई देते हैं। भूकंप, बाढ़, चक्रवात या कोरोना जैसी महामारी के समय स्वयंसेवक के ये गुण प्रखरता से दिखाई देते रहे हैं।

तपोनिष्ठ कार्यकर्ता, प्रेरक जीवन

अनेक वर्ष हुए। गंगामाता-भारतमाता यात्रा संपन्न हुई थी। 50,000 किलोमीटर के प्रवास में समय का पालन हुआ। व्यवस्था में कहीं गड़बड़ नहीं हुई। इंडियन एक्सप्रेस दैनिक के कॉलम में लिखा गया कि यात्रा में ‘मिलिट्री प्रिसीजन’ दिखाई दिया। पूरे कार्यक्रम के अखिल भारतीय संयोजक आदरणीय मोरोपंत पिंगले थे, जो बाल्यकाल में ही संघ के स्वयंसेवक बन गए थे। ‘मैं विजयी होऊंगा ही’ के विश्वास से एक-एक कदम बढ़ाने वाले तथा विवेकानंद शिला स्मारक को साकार रूप देने वाले माननीय एकनाथ रानडे जी संघ के संस्कारों में पगे एक अप्रतिम व्यक्तित्व थे! रानडे जी शिला स्मारक के निर्माण के बाद भी सक्रिय रहे। स्वामी विवेकानंद की प्रेरणा से समाज सेवा के लिए अग्रसर युवक-युवतियों को योग्य प्रशिक्षण मिले, इसके लिए विद्यापीठ का निर्माण किया। विवेकानंद केंद्र में प्रशिक्षित सैकड़ों कार्यकर्ता देशभर में समाज संगठन का कार्य कर रहे हैं।

प्रारंभ में नागपुर से ही नहीं वरन् संपूर्ण महाराष्ट्र से अनेक ‘स्वयंसेवक’ अपना घर छोड़कर दूसरे प्रांतों, अनजान प्रदेशों में संघ कार्य बढ़ाने के लिए गए। जिन संघ शाखाओं ने उन्हें तैयार किया, उनकी जितनी सराहना की जाए, कम है। पंजाब में राजाभाऊ पातुरकर तथा माधवराव मुल्ये, दिल्ली में वसंतराव ओक, उत्तर प्रदेश में श्री भाऊराव देवरस तथा नानाजी देशमुख, बिहार में मधुसूदन देव, ओडिशा में बाबूराव पालधिकर, दक्षिण में दादाराव परमार्थ, दत्तोपंत ठेंगड़ी तथा यादवराव जोशी जैसे अनेक नाम गिनाये जा सकते हैं। ये कार्यकर्ता कहां सोते होंगे, कब खाते होंगे? उनकी कल्पनाशक्ति और योजनाबद्धता की, एक-एक व्यक्ति के साथ उनकी आत्मीयता की प्रशंसा करनी होगी।

भगवा ध्वज के साथ संघ शाखा में उपस्थित स्वयंसेवक

आज भारत में स्वयंसेवक निर्माण करने वाली 80,000 संघ शाखाएं चल रही हैं। स्वामी विवेकानंद के साहित्य में एक वाक्य पढ़ने को मिलता है—‘व्यक्ति चाहिए, उसी से सब साध्य होगा। मैं ऐसे व्यक्तियों की खोज में हूं’ जिनके शब्दों में ‘एम’ अक्षर ‘कैपिटल’ हो। अंग्रेजी में कहें तो-I am in search of man making machine. Man with capital ‘M’. स्वामी कहते थे-‘ऐसे व्यक्ति चाहिए जो मृत्यु के जबड़े में प्रवेश कर जाएं, अथाह सागर को तैरकर पार कर जाएं; ऐसे अनेक बुद्धिमान और धैर्यशील युवक चाहिए। उनके मन में उद्देश्यपूर्ति की आग धधकती हो, जो पवित्रता के तेज से चमकते हों, भगवान पर श्रद्धा का शुभ कवच जिन्होंने धारण कर रखा हो, जो सिंह जैसे बलशाली हों, ऐसे युवक मुझे चाहिए। दीन-दलितों के बारे में अपार करुणा रखने वाले हजारों युवक-युवती हिमाचल से लेकर कन्याकुमारी तक प्रवास करेंगे, ऐसा मुझे विश्वास है। मुक्ति, सेवा और सामाजिक उत्थान तथा सभी प्रकार की समानता का वे आवाहन करेंगे और यह देश पौरुष से खड़ा हो जाएगा।’

यह कहने में अतिश्योक्ति नहीं कि संघ द्वारा व्यक्ति निर्माण यानी स्वयंसेवक निर्माण (Man with capital M) के उद्देश्य को सामने रखकर शाखा कार्यपद्धति के अनुरूप स्वामी विवेकानंद के राष्ट्र के पुनरुत्थान का विचार साकार करने के प्रयत्न किए जा रहे हैं।

https://panchjanya.com/2025/03/07/393925/bharat/from-aham-to-we/

संघ शाखा : ‘अहं’ से ‘वयं’ तक…­ शताब्दी सोपान (3)

 

Topics: भगवा ध्वज को प्रणामसंघ प्रार्थनाराष्ट्र उत्थान के ध्येयभारत माता को परम वैभवस्वयंसेवकों का निर्माणडॉ. हेडगेवार और श्री गुरुजीहिंदू समाज के संगठनरा.स्व.संघपतत्वेष कायोसंघ की शाखामहात्मा ज्योतिबा फुलेस्वातंत्र्यवीर सावरकरडॉ. बाबासाहेब आम्बेडकरपाञ्चजन्य विशेष
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