डीएमके की अगुवाई वाली एमके स्टालिन सरकार सियासत में कुछ इस तरह से अंधी हो गई है कि अब उसे रुपए के सिंबल ‘₹’ से भी नफरत हो गई है। भाषा विवाद को बढ़ाते हुए डीएमके सरकार ने राज्य के बजट से ₹ सिंबल को गायब कर दिया है। उसकी जगह अब ‘ரூ’ का इस्तेमाल किया गया है। दोनों का अर्थ एक ही है, लेकिन ये एक तमिल शब्द है।
क्या है पूरा मामला
असल में ये सारा मामला भाषा विवाद से जुड़ा हुआ है। डीएमके आरोप लगा रही है कि केंद्र सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत राज्य पर हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है। केंद्र सरकार के समझाने के बाद भी राज्य की डीएमके और कांग्रेस पर सियासत कर रही हैं। केंद्र ने बार-बार स्पष्ट किया है कि एनईपी भाषाई विविधता का सम्मान करती है और किसी भी राज्य पर कोई भाषा लादने का इरादा नहीं रखती, लेकिन डीएमके और उसकी सहयोगी कांग्रेस इस मुद्दे को सियासी रंग देने से पीछे नहीं हट रही हैं। सी के तहत भाषा विवाद को और अधिक गंभीर बनाते हुए डीएमके ने राज्य के बजट से ‘₹’ सिंबल को ‘ரூ’ तमिल रुपए से रिप्लेस कर दिया। इसका अर्थ भी रुपए ही होता है।
एक तमिल ने ही ‘₹’ सिंबल को बनाया
‘₹’ के सिंबल को एक तमिल शिक्षाविद उदय कुमार धर्मलिंगम ने ही डिजाइन किया था। खास बात ये कि उदय धर्मलिंगम डीएमके से विधायक रहे एन धर्मलिंगम के बेटे हैं। जिनके द्वारा बनाए गए डिजाइन को भारत सरकार ने अप्रूव किया और उसे देश में रुपए का सिंबल बनाया। उस वक्त तो केंद्र ने तमिलनाडु की संस्कृति या उसकी भाषा के साथ भेदभाव नहीं किया। उस दौरान तो किसी ने ये नहीं देखा था कि ये सिंबल (‘₹’ ) डीएमके के नेता के बेटे ने बनाए हैं तो इसे क्यों लें। लेकिन अब डीएमके इस पर राजनीति कर रही है।
तिरंगे पर आधारित है ‘₹’ सिंबल
खास बात ये है कि ऐसा करके डीएमके न केवल व्यवस्था का हनन कर रही है। बल्कि वह राष्ट्रध्वज का भी अपमान कर रही है, जो कि तिरंगे से ही प्रेरित होकर बनाया गया है। सबसे बड़ी बात ये कि इससे पहले ऐसा किसी भी राज्य ने नहीं किया था। उल्लेखनीय है कि हाल ही कई ऐसी घटनाएं भी तमिलनाडु में घटी हैं, जिससे ये स्पष्ट होता है कि डीएमके केंद्र के साथ भाषा विवाद को आगे बढ़ाकर तमिलनाडु में अपना जनाधार मजबूत करने की कोशिश कर रही है।
डीएमके की सियासी रणनीति?
हाल के दिनों में तमिलनाडु में कई ऐसी घटनाएँ सामने आई हैं, जो डीएमके की भाषा और क्षेत्रीय अस्मिता को लेकर आक्रामक रणनीति को दर्शाती हैं। मसलन, हिंदी फिल्मों या विज्ञापनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन, और केंद्र की योजनाओं को “तमिल विरोधी” करार देना। जानकारों का मानना है कि डीएमके इस तरह के कदमों के जरिए तमिलनाडु में अपनी सियासी जमीन को मजबूत करने की कोशिश कर रही है। खास तौर पर 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद, जहाँ डीएमके गठबंधन ने शानदार प्रदर्शन किया, पार्टी इस भावनात्मक मुद्दे को भुनाकर अपने वोट बैंक को और सुदृढ़ करना चाहती है।
क्या कहते हैं आलोचक और समर्थक?
आलोचकों का कहना है कि यह कदम अनावश्यक और विभाजनकारी है। उनका तर्क है कि ‘₹’ एक राष्ट्रीय प्रतीक है, जिसे बदलना न केवल अव्यवहारिक है, बल्कि आर्थिक और प्रशासनिक एकरूपता को भी नुकसान पहुँचाता है।
टिप्पणियाँ