भारत में एक लोकोक्ति प्रचलित है ‘बोया पेड़ बबूल का, आम कहां से पाए’ इसे सामान्य अर्थों में समझने की कोशिश करें तो हमारे कर्म के ही हिसाब से उसके परिणाम आते हैं। पिछले कुछ वक्त में यूरोप में शरणार्थियों खासकर मुस्लिम शरणार्थियों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। इसका असर ये हुआ है कि अपराध भी तेजी से बढ़े हैं। यूरोपीय देश जर्मनी ने इसकी शुरुआत की थी, लेकिन अब शरणार्थी समस्या से वो जूझ रहा है। जर्मनी ने अपनी कथित उदार रणनीतियों के कारण विश्वभर से लाखों की संख्या में मुस्लिम शरणार्थियों को शरण दी। इनमें सबसे अधिक जनसंख्या सारियाई शरणार्थियों की है। 2015 में जर्मनी की पूर्व चांसलर रहीं एंजेला मर्केल ने सीरिया, अफगानिस्तान और ईराक समेत कई देशों के लिए अपने देशों के दरवाजे खोले थे। इसका असर ये हुआ कि वहां जनसंख्या असंतुलन काफी अधिक बढ़ गया है।
जहां भी मुस्लिमों की जनसंख्या बढ़ी तो वहां अपराध भी बढ़ गए। आज हालात ये हैं कि जर्मनी में कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां अब जर्मन नागरिकों को तो छोड़िए पुलिस तक को जाने की इजाजत नहीं है। पिछले साल दिसंबर 2024 की बात है, जब सीरिया में बशर अल असद की सरकार गिरने के बाद जर्मनी में 8 दिसंबर को कई शहरों में सीरियाई शरणार्थी शहर में बाहर निकलकर आए और उन्होंने जमकर जश्न मनाया। लेकिन, एक सवाल फिर उठ खड़ा हुआ कि अब ये यहां क्यों हैं, अगर असद सरकार गिर गई है तो अब इन शरणार्थियों को वापस चले जाना चाहिए। लेकिन, इसके ठीक उल्टा हो रहा है। अब ये शरणार्थी जर्मनी के लिए सबसे बड़े सिरदर्द बन गए हैं।
कैसे बदल रही डेमोग्राफी
जर्मनी में मुस्लिमों की आबादी बीते कुछ सालों में तेजी से बढ़ी है। इसके लिए अगर किसी को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए तो पूर्व चांसलर एंजेला मर्केल को। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि पूरी तरह से वो ही इसके लिए जिम्मेदार हैं। क्योंकि जर्मनी में मुस्लिम समुदाय की नींव 1960 के दशक में तुर्की से आए श्रमिकों ने रखी थी। लेकिन, 2015 के शरणार्थी संकट ने इसे तेज कर दिया। जर्मन सरकार के आंकड़ों के अनुसार, 2009 तक जर्मनी में मुस्लिम आबादी लगभग 30 लाख थी, जो कुल जनसंख्या का 4% थी।
2015 के बाद यह संख्या बढ़कर 50 लाख से अधिक हो गई, जो अब कुल आबादी का लगभग 6-7% है। इसमें से अधिकांश शरणार्थी सीरिया (7 लाख से अधिक), अफगानिस्तान और अफ्रीकी देशों से आए हैं। यह बदलाव खासकर शहरी क्षेत्रों जैसे बर्लिन, हैम्बर्ग, कोलोन और म्यूनिख में स्पष्ट दिखाई देता है। उदाहरण के लिए, बर्लिन के कुछ स्कूलों में मुस्लिम छात्रों की संख्या 80% से अधिक हो गई है। यह जनसांख्यिकीय बदलाव जर्मन समाज की सांस्कृतिक और धार्मिक संरचना को प्रभावित कर रहा है।
बीबीसी के अनुसार 2021 और 2023 के बीच 143,000 सीरियाई लोगों को जर्मन नागरिकता प्राप्त हुई है, जो किसी भी और अन्य देश की तुलना में बहुत अधिक है, मगर अभी भी 7 लाख से अधिक सीरियाई नागरिक शरणार्थी हैं।
शरण लेने के बाद जिस प्रकार से यूरोपीय देशों की डेमोग्राफी में बदलाव आया है, ये केवल उनके लिए नहीं, बल्कि उन सभी देशों के लिए ‘वेक अप’ सिग्नल है कि अभी भी नहीं चेते तो फिर बहुत देर हो जाएगी। इस जनसंख्या असंतुलन से देश के कई हिस्से बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं।
कौन-कौन से इलाके हैं प्रभावित
जर्मनी में जनसंख्या असंतुलन पर शहर के हिसाब से नजर डालें तो पता चलता है कि वहां ये जनसंख्या असंतुलन असमान है। यानि कि कोई एक क्षेत्र इससे प्रभावित नहीं है, बल्कि अलग-अलग शहरों में इसका फैलाव है। उदाहरण के तौर पर देखें तो
डेमोग्राफी में बदलाव र्लिन के न्युकोलन और क्रॉएत्ज़बर्ग जैसे इलाकों में मुस्लिम आबादी का घनत्व बढ़ा है, जिसके साथ सामाजिक तनाव भी बढ़ा है। हैम्बर्ग, जहां 2024 की विवादास्पद रैली हुई, एक और उदाहरण है। बवेरिया राज्य, खासकर म्यूनिख, भी शरणार्थी आगमन से प्रभावित हुआ है, जहां स्थानीय लोग और शरणार्थी समुदायों के बीच सांस्कृतिक मतभेद उभरे हैं। इसके अलावा, नॉर्थ राइन-वेस्टफेलिया जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में शरणार्थियों की बड़ी संख्या ने रोजगार और आवास की प्रतिस्पर्धा को बढ़ाया है, जिससे तनाव और हिंसा की घटनाएं सामने आई हैं।
डेमोग्राफी चेंज से बढ़ी हिंसा
जर्मनी में मुस्लिमों की जनसंख्या में तेजी से हुई इस बढ़ोत्तरी के कारण वहां की डेमोग्राफी बदल रही है। इस बदलाव का असर ये हो रहा है कि कभी शांत और मुक्त वातावरण में रहने वाला जर्मनी सिसक रहा है। आम जर्मन नागरिक अपने ही देश में इस भय के साथ जीता है कि कहीं कोई अश्वेत उन पर हमला न कर दे। ये डर इन मुस्लिम शरणार्थियों की हिंसा से उपजा है। उदाहरण के तौर पर 2016 के कोलोन गैंगरेप की घटना को ही ले लीजिए, जिसने पूरे जर्मनी को हिलाकर रख दिया था। उस दौरान उत्तरी अफ्रीकी मूल के शरणार्थियों की इस बर्बरता का दुनियाभर में विरोध हुआ था।
इसी तरह उसी साल वुर्जबर्ग ट्रेन हमला और बर्लिन क्रिसमस मार्केट हमला जैसे आतंकी कृत्यों को भी इन्हीं मुस्लिम शरणार्थियों ने अंजाम दिया। अभी पिछले साल 2024 की बात करते हैं। हैम्बर्ग में मुस्लिम इंटरएक्टिव नामक समूह द्वारा आयोजित एक रैली में शरिया कानून की मांग और हिंसक नारे लगाए गए, जिसने जर्मन समाज में चिंता बढ़ा दी। एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021-2023 के बीच सीरियाई शरणार्थियों से जुड़े अपराधों में 20% की वृद्धि हुई। यह हिंसा जर्मन नागरिकों में असुरक्षा की भावना पैदा कर रही है, जिसके चलते दक्षिणपंथी समूहों जैसे ‘एल्टरनेटिव फॉर जर्मनी’ (AfD) को समर्थन मिल रहा है।
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