हरियाणा स्थानीय निकायों के चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी को कई अन्य राज्यों के स्थानीय निकायों के चुनाव की तरह ही करारी हार का सामना करना पड़ा है। हाल ही में गुजरात, उत्तराखंड और छत्तीसगढ़ राज्यों के स्थानीय निकायों के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भाजपा के हाथों बुरी तरह शिकश्त का सामना करना पड़ा। हरियाणा इस कड़ी में अगला नाम है।
हरियाणा की यह हार कांग्रेस पार्टी और गाँधी परिवार के लिए बड़ी हार है। हरियाणा से कांग्रेस पार्टी और परिवार दोनों को बड़ी उम्मीदे थीं। कांग्रेस पार्टी और आम आदमी पार्टी के गठबंधन ने 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को में हरियाणा में 2019 लोकसभा चुनाव के वनिस्पत आधे सीटों पर लाकर खड़ा कर दिया था। जहाँ भाजपा ने 2019 के लोकसभा चुनाव में हरियाणा की सभी 10 सीटों पर जीत दर्ज़ किया था, वहीं 2024 के चुनाव में भाजपा महज 5 सीट ही जीत सकी थी।
कांग्रेस पार्टी और गांधी परिवार को हरियाणा के विधानसभा के चुनाव से काफी उम्मीदें थीं। लोकसभा चुनाव के बाद झारखण्ड, जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, हरियाणा राज्यों के विधानसभा के चुनाव हुए मगर गांधी परिवार को सबसे अधिक उम्मीदें हरियाणा राज्य से ही थी। कांग्रेस पार्टी ने हरियाणा में अपने को इतना अधिक मजबूत समझ लिया था कि उसने आप को गठबंधन के लिए भी उपयुक्त भी नहीं समझा। हालात ये हो गए कि उसकी हालत बुरी हो गई।
हरियाणा में कुल 10 मेयर के पदों के चुनाव में, जहाँ भाजपा 9 सीटों पर जीत दर्ज़ की, वहीं कांग्रेस पार्टी का खाता भी नहीं खुल सका।
भाजपा और कांग्रेस पार्टी दोनों के लिए हरियाणा, गुजरात राज्य का दूसरा स्वरूप बनता जा रहा है। हरियाणा जो कि 2014 के पहले कांग्रेस पार्टी का मजबूत स्तम्भ हुआ करता था, वहां कांग्रेस पार्टी अपने अनिर्णय के कारण कमजोर होती जा रही हैं। हरियाणा में 2024 के विधानसभा चुनाव में 90 सदस्यीय विधानसभा में 37 सीट जीतने के बावजूद भी अभी तक कांग्रेस पार्टी ने विधानसभा में अपनी नेता या यों कहें कि विपक्ष का नेता नहीं चुन सकी हैं।
गाँधी परिवार राज्य के मजबूत नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा को किनारे लगाना चाहती है, जिनका अपना जनाधार है। गांधी परिवार को जनाधार वाले नेताओं से शुरुआती दिनों से परहेज रहा है।
गांधी परिवार के इस तरह के व्यवहार के कारण भूपिंदर सिंह हुड्डा भी आने वाले दिनों में शरद पवार, ममता बनर्जी और जगनमोहन रेड्डी की तरह अपनी खुद की पार्टी बना सकते हैं.
आने वाले दिनों में कांग्रेस पार्टी की स्थानीय निकायों के चुनाव में कड़ी परीक्षा है। महाराष्ट्र, लद्दाख, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक, केरल, आंध्र प्रदेश, असम, पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर और हावड़ा नगर निगमों, कांग्रेस पार्टी शाषित तेलंगाना में ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम, अरुणाचल प्रदेश के ईटानगर नगर निगम, पूर्वोत्तर के राज्यों मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, ओडिशा, राजस्थान सहित कई राज्यों में स्थानीय निकायों के चुनाव इस साल आहूत हैं। कांग्रेस पार्टी के लिए इन स्थानीय निकायों के चुनावों में ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम और कर्नाटक में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
इन दोनों राज्यों में कांग्रेस पार्टी की सरकार है। अतएव इन राज्यों में कांग्रेस के प्रदर्शन पर सबकी नज़रें टिकी है। अगले साल होने वाले केरल विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का सब कुछ दाव पर लगा है। अगर कांग्रेस पार्टी केरल के महत्वपूर्ण स्थानीय निकायों के चुनावों में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाती हैं तो आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी का स्थान भाजपा ले सकती है। केरल स्थानीय निकायों के चुनाव में भाजपा कांग्रेस को पीछे छोड़कर अगले विधानसभा के चुनाव में एलडीएफ के मुकाबले राज्य में मुख्य चुनावी लड़ाई में आ जाएगी।
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