पाञ्चजन्य के महाकुंभ पर मंथन में बोलते सीएम योगी आदित्यनाथ
उत्तर प्रदेश के लखनऊ में महाकुंभ पर आयोजित पाञ्चजन्य और ऑर्गनाइजर के ‘मंथन’ कार्यक्रम में पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर और ऑर्गनाइजर के संपादक प्रफुल्ल केतकर ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बात की। इस मौके पर उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि महाकुंभ की भव्यता, दिव्यता और सनातन धर्म को किस प्रकार से दुनिया को रूबरू कराया गया, इन मुद्दों पर बात की। उन्होंने कहा कि महाकुंभ ने भारत की वास्तविक पहचान को दुनिया के सामने रखा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बातचीत के प्रमुख अंश…
महाकुंभ को हर एक ने अलग अलग तरीके से देखा। महाकुंभ के महाराज इस आयोजन की यशश्विता को किस प्रकार से देखते हैं?
महाकुंभ का आयोजन दुनिया को भारत के सामर्थ्य और सनातन धर्म के वास्तविक स्वरूप को प्रस्तुत करने का और देश के अंदर यूपी के बारे में जो धारणा थी, उस धारणा को बदलने का एक माध्यम मानते हैं। हम इन दोनों में ही सफल रहे हैं। दुनिया ने भारत के सामर्थ्य को देखा है। सनातन धर्म क्या है उसके बारे में उन लोगों को क्या बताया गया था, लेकिन उसका वास्तविक स्वरूप महाकुंभ है। दुनिया ने इसे बड़े ही कौतुहल की निगाहों से देख रही थी। उस महाकुंभ के त्रिवेणी के संगम में डुबकी लगाकर खुद भी पुण्य कमाया। इसलिए उत्तर प्रदेश को अपना दृष्टिकोण देश और दुनिया के सामने रखने का भी अवसर मिला।
महाकुंभ ने भारत की वास्तविक पहचान को दुनिया को रखा कि ये भारत है औऱ ये उसका सामर्थ्य है। सनातन धर्म भारत की मूल पहचान है। जाति भेद, पंथ भेद और क्षेत्र के भेद के बारे में जो आप सोचते हैं, यहां ऐसा कुछ नहीं है। त्रिवेणी के महासंगम में आप सभी को एक साथ डुबकी लगाते देख सकते हैं। यही एक भारत और श्रेष्ठ भारत का वास्तविक रूप है और सनातन धर्म का विराट दर्शन भी।
कुछ लोगों में उत्तर प्रदेश को प्रश्न बनाए रखने की जिद देखी गई। कोरोना के दौरान भी ऐसे तत्वों को देखा गया। इसी प्रकार से महाकुंभ को बदनाम करने की कोशिश दुनियाभर में की गई। ऐसे लोगों के लिए आपका क्या संदेश है?
जैसी दृष्टि वैसी श्रृष्टि। जिन लोगों की दृष्टि ही नकारात्मक है, उनको मैं सकारात्मक दृष्टि से देखने आशा ही क्यों रखूं। इसी नकारात्मकता के कारण ये लोग जनता की नजर में गिरे हैं। जब हमने महाकुंभ की पहली बैठक आयोजित की थी, तो उस दौरान भी बहुत से लोगों ने ट्वीट किए थे। मेरे सहयोगियों ने भी उस दौरान इस मामले में मुझसे बात की थी, तो मैंने उनसे कहा था कि ये सभी लोग भी आवश्यक हैं। किसी भी आयोजन में ये लोग नहीं होंगे तो कैसे होगा। सभी प्रकार के ग्रह,उपग्रह आते रहने चाहिए और हम इन्हें अच्छा मानकर चलते हैं। क्योंकि आपकी अच्छाई की तुलना तभी होगी, जब बुरे लोग भी होंगे। यही लोग जनता के बीच बोलेंगे कि हमें इस आयोजन को और अच्छा करना है।
महाकुंभ के दौरान भी तो यही हुआ। इन लोगों ने हर अच्छे कार्य का विरोध किया। ये सामर्थ्यहीन लोग हैं, जिनसे अच्छे की उम्मीद नहीं की जा सकती। ऐसा भी नहीं है कि इन लोगों को मौका नहीं मिला। सभी को मौका मिला। याद कीजिए 1954 में स्वतंत्र भारत का पहला कुंभ हुआ। कांग्रेस की राज्य और केंद्र दोनों में ही सरकार थी। उस दौरान गंदगी, अव्यवस्था और अराजकता का जो दृश्य था, उस दौरान 1000 से अधिक मौतें हुई थीं। कांग्रेस की सरकार के दौरान जब भी महाकुंभ हुआ, कैसी स्थितियां थीं, ये किसी से छुपा नहीं है।
वहीं सपा की सरकार के दौरान 2007 और 2013 इसके इसके जीवंत उदाहरण हैं। 2007 में तो प्रकृति ने भी नहीं बक्शा था। काफी जन हानि हुई थी। 2013 में मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रयागराज पहुंचे, वे संगम गए, लेकिन वहां गंदगी, कीचड़, अव्यवस्था देखकर उनकी हिम्मत गंगा स्नान करने की नहीं हुई। वे अपनी आंख में आंसू लिए दूर से ही प्रणाम करके चले गए। उन्होंने कहा था-क्या यही गंगा है। अन्य अवसरों पर भी ऐसा ही देखने को मिलता था। नकारात्मक टिप्पणी करने वाले इन सभी लोगों ने कुंभ को गंदगी औऱ अराजकता का अड्डा बनाया हुआ था।
उस समय विदेशी और वामपंथी कुंभ देखने के लिए आते थे, तो इसकी नकारात्मकता का इस्तेमाल वो भारत और सनातन धर्म को बदनाम करने के लिए करते थे। 2019 में प्रयागराज कुंभ के आयोजन के साथ जुड़ने का मौका मिला था। तब पीएम मोदी ने हमें कहा था कि कुंभ की इस धारणा को बदलना होगा। इसके लिए आपको मेहनत करनी होगी। 2019 का कुंभ अपनी स्वच्छता के लिए जाना जाता है। प्रयागराज में 2024 में 24 करोड़ श्रद्धालु आए। इस बार के महाकुंभ को हमने स्वच्छता, सुरक्षा और तकनीक के साथ जोड़ा। इससे ये डिजिटल कुंभ भी बना। पहले लोगों को लगा कि ये हवाबाजी है। महाकुंभ के दौरान डिजिटल खोया पाया केंद्र से 54 हजार बिछड़े लोगों को उनके अपनों से मिलाया गया।
डिजिटल टूरिस्ट मैप के माध्यम से हर व्यक्ति आसानी से अपने गंतव्य तक पहुंच सका। 1.5 लाख शौचालय बनाए गए थे, जिन्हें हमने क्यूआर कोड से जोड़ा था। किसी को भी स्वच्छता के बारे में जानना है तो आप उसे डाउनलोड कीजिए और पूरी जानकारी लीजिए। बाकी सुविधाओं को भी इसी प्रकार से देखा जा सकता है। इसके अलावा 11 भाषाओं को भाषा ऐप के जरिए आप अपनी भाषा को समझ सकते हैं। यूएन की उन भाषा को चुनकर किसी भी भाषा में आप बोलिए आपको आपकी भाषा में जबाव मिलता है। महाकुंभ के दौरान मेरी कोशिश ये रही कि किसी भी श्रद्धालु को 3-5 किलोमीटर से अधिक न चलना पड़े। हमने सोचा था कि 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालु नहीं आएंगे। क्योंकि जब मेरे सहयोगी देश के अलग-अलग राज्यों में आमंत्रण देने और रोडशो करने गए थे और उसके बाद जिस प्रकार के सवाल हमारे पास आए। उसी के आधार पर हमने सोचा था कि ये संख्या इस बार 40 करोड़ तक जाएगी।
शुरू में हमने 40 करोड़ लोगों की दृष्टि से तैयारी की थी। लेकिन, दुष्प्रचार करने वाले हमारे मित्रगणों ने महाकुंभ को बदनाम करने के लिए जमकर ट्वीट किए, तो देश और दुनिया के सनातन धर्म को मानने वालों ने भी इनको सबक सिखाने का यही वक्त है। हमारा अनुमान था कि 6 मुख्य स्नान और इनमें से तीन अमृत स्नान हैं। मकर संक्रांति के दिन साढ़े तीन करोड़ लोगों ने स्नान किया। 28, 29, 30 जनवरी को भीड़ को देखते हुए प्रयागराज के आसपास के जिलों में हमने 2 करोड़ लोगों को रोक रखा था, क्योंकि भीड़ बहुत अधिक हो गई थी।
28, 29, 30 जनवरी को 15 करोड़ लोगों ने स्नान किया था। मौनी अमावस्या के बाद हर दिन डेढ़ से दो करोड़ लोग वहां पहुंच रहे थे। भीड़ के स्नान को कुछ इस तरह से काउंट किया जाता था कि अगर एक व्यक्ति 24 घंटे में 4 बार स्नान करता था, तो उसे एक ही बार काउंट किया जाता था। हमने एआई टूल का इस्तेमाल किया था। फेस रकग्निशन के माध्यम से कैमरे के जरिए लोगों की गिनती होती थी। इस तरह 45 दिनों में 66 करोड़ 30 लाख लोगों ने स्नान किया। यह दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक आय़ोजन बना। जिस आयोजन को महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को रूप में इसे यूनेस्को ने 2019 में मान्यता दी थी।
इस बार भी यूनेस्को के डायरेक्टर महाकुंभ आए और उन्होंने कहा कि वास्तव में 2019 में पीएम मोदी के प्रयासों से जिस आयोजन को यूनेस्को ने किया था, उसका साक्षात दर्शन हमें यहां मिल रहा है।
मॉरीशस के प्रधानमंत्री, जिन्हें बिना स्नान किए जाना पड़ा था अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी त्रिवेणी का जल लेकर उनके दरवाजे पर गए हैं। मैं मानता हूं कि ये इस आयोजन का सबसे बड़ा सर्टिफिकेट है?
मैं पीएम मोदी जी का आभारी हूं कि उन्होंने त्रिवेणी का गंगा जल मॉरीशस के पीएम को दिया। इसके साथ ही वाराणसी की साड़ी भी उनकी धर्मपत्नी को दी है। यूपी की दो कृतियां मॉरीशस के साथ अमिट रूप से छाई रहेगी। लेकिन, 2019 के कुंभ में मॉरीशस के पीएम अपने 450 लोगों के डेलीगेशन के साथ आए थे। उन्होंने संगम में स्नान भी किया था। इस बार राष्ट्राध्यक्ष के रूप में भूटान के राजा आए थे। उनके अलावा 100 से अधिक देशों के राजदूत, मंत्रीगण और अन्य प्रमुख हस्तियां भी इस आयोजन का हिस्सा बनी थीं। वे इस अद्भुत, अकल्पनीय क्षण के साक्षी बने।
इस आयोजन में आपने ऐसा क्या किया कि जिससे भी मिलते थे, वो कहते थे इस बार यूपी पुलिस का व्यवहार अलग है। क्या ऐसा परिवर्तन हुआ कि उसी राज्य की व्यवस्था थोड़ा अलग तरीके से हो गई?
महाकुंभ की दृष्टि से नवंबर 2022 में हमने पहली बैठक की थी। उस दौरान हमने कुछ टार्गेट दिए थे। ये केवल एक आयोजन नहीं। ये एक अस्थायी टेंट सिटी में होता है। नाम भले ही प्रयागराज का हो, लेकिन जो अस्थाई शहर होता है वो अपने आप में एक जनपद बनता है। इसके लिए बकायदा अधिकारियों की तैनाती की जाती है। एक साल पहले ही उन अधिकारियों की वहां तैनाती कर दी थी। अधिकारियों को होम वर्क करने के लिए कहा गया कि क्या-क्या होना है। क्योंकि हमारी सपोर्टिंग सिटी अगर कोई हो सकती है तो वो प्रयागराज है। इसके बाद इस पर ध्यान दिया गया कि आसपास के जिलों में ऐसा कौन सा इंफ्रास्ट्रक्चर बनाया जाना है, जिसे महाकुंभ से पहले किया जा सके।
फिर उसके लिए धनराशि की व्यवस्था करके उसे चरणबद्ध तरीके से समय पर पूरा करना। 2019 के पहले और इसके बाद के प्रयागराज में आपको व्यापक परिवर्तन देखने को मिलेगा। शहर का कायाकल्प हुआ है। अगर आप जनता के साथ वफादार रहेंगे तो जनता आपका समर्थन करती है। 2019 से पहले तक पिछली सरकार ने प्रयागराज को माफिया के हवाले कर दिया था। ये माफिया कोई भी कार्य नहीं होने देते थे, जिससे शहर का विकास रुका पड़ा था। कोई नहीं सोच सकता था कि दुनिया का पहला गुरुकुल देने वाले महर्षि भारद्वाज की पावन नगरी अंधकार में डूबी हुई है। कोई सोच सकता है कि जिस पवित्र अक्षय वट का दर्शन करने के लिए लोग लालायित रहते थे,गुलामी के कालखंड से उसे कैद करके रखा गया था।
500 सालों तक श्रद्धालु अक्षयवट का दर्शन तक नहीं कर पाए थे। त्रिवेणी गंगा, यमुना सरस्वती की बात तो हम करते थे, लेकिन सरस्वती मां को कैद करके रखा गया था। पातालपुरी, द्वादश माधव प्रयागराज में जहां भगवान राम को निषादराज ने गंगा पार करवाई उस पौराणिक भूमि को लैंड माफियाओं ने कब्जा कर लिया था। ये सब पिछली सरकारों ने करवाया था। भगवान वेणीमाधव, नागराज वासुकी का प्रयागराज से भी संबंध रहा है। ये सौभाग्य है कि महाकुंभ के बहाने हमने प्रयागराज शहर का कायाकल्प किया।
12 नए कॉरिडोर बनाए। बड़े लेटे हुए हनुमान जी का अपना महत्व है। वर्ष में एक बार मां गंगा उनका अभिषेक करती हैं। वहां भव्य कॉरिडोर बनाया गया है। अक्षय वट को एक कॉरिडोर के साथ जोड़ दिया है और उसका दर्शन भी वर्षभर किया जा सकेगा। पातालपुरी, मां सरस्वती को भी कॉरिडोर के साथ जोड़ दिया है। साल भर उनका दर्शन किया जा सकता है। द्वादश माधव, श्रिंगेरी कॉरिडोर बन गया। महाकुंभ की आलोचना करने वाले इसे देख नहीं सके।
आपको क्या लगता है कि दिल्ली में राजनीति के द्वंद का कांटा, जिसे जनता निकालने की कोशिश कर रही थी वो निकला है। केवल राजनीति एक्सपोज हुई है या ये गवर्नेंस का अलग तरह का मॉडल हो सकता है?
जब राजनीति स्वार्थ से प्रेरित होकर की जाती है तो वो किसी का भी कल्याण नहीं करती है। लेकिन अगर इसे परमार्थ के माध्यम के तौर पर किया जाए तो ये आगे के जीवन भी प्रशस्त करती है। याद रखिए भारत का लोकतंत्र बहुत परिपक्व है। ये लोकतंत्र का ही परिणाम है, भले ही 1952 में हमने इसे संवैधानिक रूप से स्वीकार किया हो, लेकिन लोकतंत्र यहां कूट-कूटकर यहां की रग-रग में भरा पड़ा है। इसीलिए लोकतंत्र में जनता को जनार्दन कहा गया है।
जनता सब जानती है। कहां क्या हो रहा है, इसके मनोविज्ञान के बारे में जानना हो तो गांव में जाकर पूछिए। दिल्ली में मैंने यही कहा था कि प्रयागराज तो प्रयागराज है उस पर उंगली मत उठाओ। हमने व्यवस्था की है, वहां आने वाली भीड़ इसकी साक्षी है। हमारे यहां तो ये मान्यता है कि बहता पानी और रमता जोगी अशुद्ध नहीं होता। वो अपनी अशुद्धि का परिमार्जन चलते-चलते भी कर लेता है। मां यमुना यहीं से जा रही हैं। इसलिए कम से कम दिल्ली तो शुद्ध कर देते।
हम तो पहले से ही कर रहे हैं। जिस बर्मिंघम पैलेस की झुग्गी में बैठकर आप अपना जन्म दिन मनाते हैं उस प्रदेश उस कानपुर सिटी के शीशामऊ में 14 करोड़ लीटर शीवर गंगा में गिरता था। प्रदेश में डबल इंजन की सरकार आते ही हमने वहां एचडीपी लगाकर सीवर प्वाइंट को सेल्फी पॉइंट बना दिया। आज वहां एक बूंद सीवर गंगा में नहीं गिरता। वहां मैं खुद स्टीमर से गया था। इसे कार्य करने का समर्थ्य कहते हैं। ये लोग शुद्धता के बारे में क्या बोलेंगे।
महाकुंभ के आयोजन की व्यवस्था में एक महंत के साथ ही एक मुख्यमंत्री का रहना कितना अहम था?
अगर मैं एक धर्मावलंबी होता तो भी आयोजन अच्छा होता। अच्छा इसलिए होता, क्योंकि सनातन धर्म के प्रति श्रद्धा और आस्था का भाव होना आवश्यक है। तुलसीदास जी कहते हैं कि अगर आपके मन में श्रद्धा का भाव है तो आगे का मार्ग स्वयं ही प्रशस्त हो जाएगा। इस पूरे आय़ोजन के दौरान संतों का सहयोग और सानिध्य अभिनंदनीय था। क्योंकि संतों ने कहा था कि देश और विदेश के आने वाले लोगों का स्वागत होना चाहिए। मौनी अमावस्या के दिन ब्रह्मा मुहूर्त में 4 बजे से अमृत स्नान शुरू हुआ। उससे पहले सबा एक बजे भगदड़ मची तो अमृत स्नान को रोकने के लिए हमने अपील की और अखाड़ों ने तुरंत सहयोग की बात कही। श्रद्धालुओं को स्नान के लिए पहले आगे जाने दिया गया।
ये उन लोगों के लिए एक सबक की तरह है, जो कि लकीर का फकीर बनकर कभी सड़क पर बैठ जाते हैं, कहीं किसी रेलवे स्टेशन पर कभी कहीं और इबादत की दुहाई देते हैं। ये उन लोगों के लिए सबक है कि व्यापक जनहित में निर्णयों को आगे बढ़ाया जा सकता है। ये सनातन धर्म के प्रति श्रद्धा का भाव होता है। हम अपने व्यक्तिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर लोक कल्याण के लिए कार्य कर रहे हैं। इस आयोजन को कराने की जिम्मेदारी मुझपर थी। इसलिए ये फैसला आवश्यक था। हमने अपनी नैतिक ड्यूटी निभाई, लेकिन आयोजन को सफल संतों ने बनाया। मेरे भगवा बाने का इतना लाभ तो हुआ कि संत गणों ने मुझे सहयोग किया।
कुछ लोगों की श्रद्धा औरंगजेब पर अटकी हुई है, नाम तैमूर रखेंगे, इसी पर अड़े हुए हैं। उस श्रद्धा का क्या करेंगे, जो व्यवस्था में आने को तैयार नहीं है ?
जब हम भारत की आस्था की बात करते हैं तो हमें याद रखना चाहिए कि भारत की आस्था के साथ खिलवाड़ करने वाले को अंतत: डूबना ही पड़ा है। उसके लिए इस धरती पर कोई जगह नहीं बचेगी। ऐसे लोगों की बड़ी दुर्गति हुई है, क्योंकि सनातन धर्म की परंपरा तो साक्षात जगतनियंता का सृष्टि है। इस आयोजन की बात करें तो संस्कृति भी सभ्यता की माध्यम बन सकती है, ये हमने सिद्ध किया। बिना भेदभाव के आस्था आजीविका का आधार बन सकती है। हजारों की संख्या में टैक्सी और बस चालक हैं या फिर हवाई जहाज का पायलट, व्यापारी, कर्मचारी हैं, कोई किसी की जाति नहीं देख रहा है।
जहां तक भारत की सनातन परंपरा पर सवाल उठाने वालों के नजरिए की बात करें तो ऐसे लोगों को उसकी दुर्गति भी देखनी चाहिए। मानसिक रूप से विकृत व्यक्ति ही औरंगजेब को अपना आदर्श बनाएगा। मुझे नहीं लगता है कि दिमागी तौर पर परिपक्व, बुद्धिमान व्यक्ति औरंगजेब जैसे क्रूर व्यक्ति को अपना आदर्श मानता हो। अगर यह सच है कोई व्यक्ति अपने पूरे विवेक के साथ ऐसा करता है तो उसे सबसे पहले अपने बेटे का नाम औरंगजेब ही रखना चाहिए। साथ ही औरंगजेब ने जो शाहजहां के साथ किया, उसके लिए भी तैयार होना चाहिए।
औरंगजेब के बारे में स्वयं शाहजहां लिखता है कि इस जैसा कम्बख्त पुत्र किसी को पैदा न हो। शाहजहां औरंगजेब को कोसते हुए कहता है कि तुझसे अच्छा तो वो हिन्दू है, जो जीते जी तो अपने बुजुर्ग मां बाप की सेवा करता है और मरने के बाद वर्ष में एक बार श्राद्ध और तर्पण के जरिए अपने पितरों को जल देता है। तुझ जैसे कम्बख्त ने तो मुझे एक-एक बूंद जल के लिए तरसाया। कहते हैं कि आगरा के किले में औरंगजेब ने शाहजहां को कैद करके रखा था, एक छोटे से मिट्टी के घड़े में 24 घंटे के लिए जल मिलता था।
तड़प-तड़प कर उसकी मौत हो गई। औरंगजेब वही व्यक्ति है, जिसने अपने भाइयों का कत्लेआम किया था। इसलिए अगर किसी को औरंगजेब पसंद है तो बहुत शान के साथ अपने परिवार और बच्चों का नाम उसके नाम पर रखें। उन्हें मेरी तरफ से शुभकामनाएं। ये नया भारत है जो देश की आस्था का सम्मान करना जानता है। नया भारत खुद को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर स्थापित करना भी जानता है। भारत के अंदर इसकी आस्था को नुकसान पहुंचाने वाले तत्वों को जबाव देना भी जानता है। अयोध्या में भगवान राम का मंदिर बनना और 2025 में महाकुंभ का आयोजन होना इस बात का उदाहरण है कि ऐसे तत्वों को आने वाले वक्त में ऐसे और उदाहरण देखने को मिलेंगे। पीएम मोदी के नेतृत्व में नया भारत विकसित भारत बनने की दिशा में अग्रसर हो चुका है।
विश्व के कल्याण का मार्ग यहीं से प्रशस्त होकर गुजरेगा। हाल ही में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति ने बहुत ही महत्वपूर्ण बयान दिया था कि अगर मेरे डीएनए की जांच होगी तो मेरा भारतीय डीएनए होगा। भारत की बुराई करने वालों को अपने डीएनए की जांच करके बोलना चाहिए। विदेशी आक्रांताओं का महिमामंडन करना बंद करें। अन्यथा संभल जैसा सच सामने आएगा तो कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगे। संभल के बारे में मैं एक बात कहूंगा, मैं एक योगी हूं और सभी मत, मजहब, पंथ और संप्रदाय का सम्मान करता हूं। मैं किसी से भेदभाव नहीं करता। लेकिन, जबरन किसी पर कब्जा करके उसकी आस्था को ठेस पहुंचाएं, ये स्वीकार्य नहीं है।
संभल की एक सच्चाई है। उस सच्चाई को इस रूप में हम बोलना चाहेंगे कि संभल के बारे में उसके जो उद्धरण आते हैं, आज से 3500 वर्ष से लेकर 5000 वर्ष पहले तक जिन पुराणों की रचना हुई थी, उनमें भी संभल का उल्लेख मिलता है। जिसमें कहा गया है कि भगवान विष्णु का दशवां अवतार भगवान कल्कि के रूप में होगा। इस्लाम का उदय हुए 1400 वर्ष हुए हैं। 1526 में संभल में भगवान विष्णु का मंदिर तोड़ा गया। इसके बाद 1528 में अयोध्या में राम मंदिर तोड़ा गया। दोनों ही जगहों पर ये कुकृत्य मीर बाकी ने किए थे।
संभल एक तीर्थ रहा है। संभल में सभी तीर्थ रहे हैं। अभी हम केवल 18 निकाल पाए हैं। 19 कूप थे, जिन्हें अपने पता कर लिया है। 56 साल के बाद वहां भगवान शिव के मंदिर में जलाभिषेक हुआ। जाति के नाम पर बांटने का ठेका लिए लोग आखिर अब तक क्या कर रहे थे।
इसीलिए वे कहते हैं कि कागज नहीं दिखाएंगे?
हम लोग तो कागज दिखा रहे हैं, लेकिन उससे पहले पुराणों को तो पढ़ लें। उसके बाद ये मुझसे शास्त्रार्थ करने के लिए आएंगे तो अच्छा होगा।
एक वर्ष में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर हो गया, अयोध्या में श्री राम का भव्य मंदिर बन गया, महाकुंभ का यशस्वी आयोजन भी हो गया। अब इसके आगे क्या?
हमने मथुरा के लिए भी बजट तय कर रखा है। पैसा दे दिया है हमारा कार्य आगे बढ़ने वाला है। क्योंकि जब अवसर मिले तो चूकना नहीं चाहिए।
आपने तो आपदा में भी अवसर देखा था?
उस समय जनता जनार्दन की सेवा और उनका संबल महत्वपूर्ण था। ये जनता जनार्दन है, जब दुनिया पस्त हो रही थी तो हम मजबूती के साथ खड़े थे। अब जब अवसर आया है तो दुनिया मेरे बारे में कुछ भी सोचे मैंने भगवा धारण किया है, ये मेरी पहचान है। ये सनातन धर्म की पहचान है। मुझे इस पर गौरव की अनुभूति होती है। एक दिन पूरी दुनिया भी करेगी।
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