डोनाल्ड ट्रंप, अमेरिका के राष्ट्रपति (फोटो साभार : बीआई)
अमेरिका ने धीरे-धीरे ही सही अपना रंग दिखाना शुरू हो गया है। उसे इस बात का डर सता रहा है कि कहीं भारत या कोई और देश उसके डॉलर के लिए मुसीबतें न खड़ी कर दे। क्योंकि अगर देशों ने डॉलर की जगह अपनी करेंसी में लेनदेन करना शुरू कर दिया तो अमेरिका का तो बंटाधार हो जाएगा। अमेरिका का ताजा बयान इसी डर की तरफ इशारा करता है। दरअसल, अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से हथियारों को खरीदना छोड़कर केवल अमेरिका से अपनी जरूरत का हथियार खरीदे।
इंडिया टुडे के कॉन्क्लेव में बात करते हुए अमेरिका के वाणिज्य सचिव हार्वर्ड लुटनिक ने अपना यह डर जाहिर कर दिया। साथ ही उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों का भी खुलासा कर दिया। उन्होंने रूसी हथियारों की खरीद को बंद करने की मांग करते हुए कहा कि भारत के द्वारा लगाए जा रहे ऊंचे टैरिफ, BRICS संगठन (ब्राजील, रूस, इंडिया, चीन और दक्षिण अफ्रीका) में भारत की भूमिका दिल्ली और वाशिंगटन के बीच बाधा बन रही है।
लुटनिक ने स्पष्ट तौर पर अपनी मंशा जाहिर की भारत रूस से बड़े पैमाने पर सैन्य उपकरणों की खरीद करता है, जिसे खत्म किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत BRICS का ‘I’ है, जो कि डॉलर से मुकाबले के लिए एक नई मुद्रा को परिचालन में लाने की कोशिशें कर रहा है। इससे हमारे बीच वो प्यार और स्नेह का भाव कम हो रहा है। हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप ने भी BRICS पर डॉलर के विकल्प के तौर पर एक नई मुद्रा को खड़ी करने की कोशिशों की आलोचना की थी। वो इस मुद्दे को पीएम मोदी के समक्ष उठा चुके हैं।
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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी भी देश से व्यापार हो वो होता डॉलर में ही है। इससे अमेरिका को अच्छा खासा फायदा होता है। यही वजह है कि जब से भारत ने अंतरराष्ट्रीय लेनदेन के लिए नए विकल्पों की ओर इशारा किया है तो अमेरिका का डर सबके सामने आ गया है। अमेरिका को लगता है कि अगर विश्व के ताकतवर देशों ने किसी अन्य वैकल्पिक मुद्रा में व्यापार करना शुरू कर दिया तो डॉलर की अंतरराष्ट्रीय कीमत धराशाई हो जाएगी।
एक तो अमेरिका एक सुपर पॉवर है, दूसरा जो भी अंतरराष्ट्रीय व्यापार होता है वो अमेरिकी डॉलर की शक्ल में होता है, जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को हर तरफ से मजबूती मिलती है। डॉलर के बल पर ही अमेरिका जब भी चाहता है किसी भी देश पर प्रतिबंध लगा देता है, जिसका असर ये होता है कि संबंधित देश व्यापार ही नहीं कर पाता।
उसकी आर्थिक स्थिति चरमराने लगती है। रूस और यूक्रेन के युद्ध में ये देखा जा चुका है कि रूस की आक्रामकता पर लगाम लगाने के लिए अमेरिका ने उसके विदेशी बॉन्ड को सीज कर दिया था, जिससे रूस की अर्थव्यवस्था को झटका लगा। ऐसा ही ईरान के साथ हुआ।
इसी कारण से अब विश्व के ताकतवर गठबंधन डॉलर के विकल्प के तौर पर एक नई मुद्रा के परिचालन को शुरू करने की फिराक में है, जिससे अमेरिका के माथे पर बल पड़ा हुआ है।
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