श्रीमद्भागवत महापुराण में उल्लेख है कि महाभारत युद्ध के बाद कलियुग के प्रारंभ को लेकर चिंतित सारे साधु संतों ने सनक व शौनक ऋषियों के नेतृत्व में ब्रह्मा जी के पास जाकर धरती पर ज्ञान सत्र चलाने के लिए उनसे ऐसे उपयुक्त स्थान की व्यवस्था करने का निवेदन किया जो कलियुग के प्रभाव से अछूता रहे। तब ब्रह्मा जी के आग्रह पर भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र चलाकर चक्रतीर्थ सरोवर की उत्पत्ति कर उस स्थल के चारो ओर की 84 कोस की भूमि कलियुग के प्रभाव से मुक्त कर दिया था। पुराणकार लिखते हैं कि श्री हरि के सुदर्शन चक्र की नेमि धरती के केंद्र की जिस पवित्र भूमि पर गिरी थी तब वह क्षेत्र सघन अरण्य (वन) से आच्छादित था जहाँ सुदर्शन चक्र की नेमि के प्रहार से पाताल गंगा की एक धारा फूटी थी; तभी से सुदर्शन चक्र की दिव्य ऊर्जा से अनुप्राणित 88 हजार ऋषियों की 84 कोस की यह साधना भूमि नैमिषारण्य नाम से लोक विख्यात हो गयी। उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के इस सतयुगीन तीर्थ की महिमा से हमारे पुराण ग्रंथ भरे पड़े हैं। प्रतिवर्ष फाल्गुन माह में इस 84 कोसीय तीर्थ की परिक्रमा की पुरातन परम्परा है। पखवारे भर की इस परिक्रमा का शुभारम्भ फाल्गुन कृष्ण प्रतिपदा को चक्रतीर्थ में डुबकी लगाकर सिद्धविनायक की पूजा-अर्चना के साथ होता है और पूर्णिमा को होलिका दहन के शुभ मुर्हूत में मिश्रिख के दधीच कुंड में डुबकी लगाने के साथ यह तीर्थ परिक्रमा सम्पन्न होती है।
महर्षि दधीचि ने शुरू की थी तीर्थ की 84 कोस की फाल्गुन परिक्रमा
नैमिषारण्य की 84 कोसी परिक्रमा अपने आप में अत्यंत अद्भुत एवं दिव्य है। इस परिक्रमा की कथा महर्षि दधीच के देहदान से जुड़ी है जिन्होंने जीते जी अपनी अस्थियों का दान कर मानवता के इतिहास में एक अमरगाथा रच दी थी। कथानक है अजेय दैत्य वृतासुर के वध के लिए अपनी अस्थियों का बलिदान देने से पूर्व महर्षि दधीच ने तीनों ऋणों से मुक्त होने और मोक्ष की कामना से त्रिदेवों व साधु संन्यासियों के साथ सर्वप्रथम इस तीर्थ क्षेत्र की चौरासी कोसीय परिक्रमा की थी। शास्त्रीय कथानक है कि महर्षि दधीचि की अस्थियां प्राप्त करने के बाद देवताओं ने उनसे साढ़े तीन वज्र अस्त्रों का निर्माण किया था। प्रथम “गाण्डीव” जिससे महाभारत का युद्ध लड़ा गया। दूसरा “पिनाक” जो राम विवाह के समय जनकपुर में तोड़ा गया। तीसरा “सारंग” जो जगत पालक भगवान श्रीहरिविष्णु का धनुष है व चौथा “आधा वज्रशक्ति” देवराज इन्द्र को प्राप्त हुआ जिससे उन्होंने महाआंतकी वृत्तासुर का वध करके देवलोक पर पुन: अधिकार प्राप्त किया।
नैमिषारण्य तीर्थ की पुरातन महिमा
सतयुग में ही मनु-शतरूपा ने इसी भूमि पर हजारों वर्षोंकी कठोर तपस्या से जगत पालक भगवान विष्णु को प्रसन्न कर त्रेतायुग में उन्हें पुत्र रूप में प्राप्त किया था, जिन्होंने इस पुण्यधरा पर अश्वमेध यज्ञ कर देवसंस्कृति दिग्विजय की महापताका लहरायी थी। वहीं द्वापर में महर्षि वेदव्यास ने यहीं पर चारों वेदों का विस्तार कर 18 पुराणों की रचना की थी तथा बाल योगी शुकदेवजी ने यहीं पर राजा परीक्षित को श्रीमद्भागवत की कथा सुनाकर उनके मोक्ष का मार्ग प्रशस्त किया था। महर्षि वाल्मीकि के अनुसार सतयुग के उपरांत त्रेतायुग में रावण वध के कारण भगवान राम को जब ब्रह्म हत्या का पाप लगा था तो कुलगुरु वशिष्ठ के कहने पर उन्होंने नैमिषारण्य की चौरासी कोसी परिक्रमा कर हत्या हरण तीर्थ में स्नान कर से ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति पायी थी।वहीं महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत में भी उल्लेख मिलता है कि महाभारत युद्ध के उपरांत धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा इस तीर्थ की चौरासी कोसी परिक्रमा कर यहां हजारों वर्ष तक कठोर तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न को स्वयं महादेव शिव ने इस तीर्थ को ‘धर्मारण्य’ के रूप में प्रसिद्ध होने का वरदान दिया था। सत्यनारायण भगवान की कथा भी पहली बार यहीं कही गयी थी। ऐसे ही अनेक पौराणिक प्रसंग इस तीर्थ की पुरातन महिमा को प्रतिपादित करते हैं।
84 कोसी परिक्रमा पथ के प्रमुख पौराणिक तीर्थस्थल
शास्त्रकार कहते हैं त्रेतायुग में अपने वनवास काल के दौरान भी मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने ऋषि मुनियों व वनवासियों के साथ इस पुण्यक्षेत्र की पदयात्रा की थी। इसी कारण परिक्रमा करने वाले श्रद्धालुओं के जत्थे को “रामादल” के नाम से पुकारा जाता है। बताते चलें कि 84 कोस का यह तीर्थ परिक्रमा पथ में अनेक पुरा युगीन तीर्थ अवस्थित हैं। इनमें 11 प्रमुख तीर्थ स्थल हैं- 1.श्री सिद्धिविनायक धाम, 2.सूत गद्दी, 3.व्यास गद्दी, 4.स्वयंभुव मनु सतरूपा तपस्थली, 5.आदि गंगा गोमती तट, 6. श्रीराम अश्वमेघ यज्ञशाला, 7. लक्ष्मीनारायण मन्दिर, 8. हनुमान गढ़ी, 9. पाण्डव किला, 10.रुद्रावर्त तीर्थ तथा 11. हत्याहरण तीर्थ।
बताते चलें कि सूबे की योगी सरकार ने काशी, अयोध्या, मथुरा-वृंदावन और विंध्यवासिनी धाम की तर्ज पर पौराणिक नैमिष धाम को संवारने के लिए नैमिषारण्य धाम तीर्थ विकास बोर्ड का गठन कर इस पुरातन तीर्थ का पुनरुद्धार किये जाने से हिन्दू धर्मावलम्बियों में खासा हर्ष है।
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