‘वयं’ का भाव जगाती है रा.स्व.संघ की शाखा। (प्रकोष्ठ में) संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार
संघ संस्थापक डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार के व्यक्तित्व की विराटता सिर्फ इतना कहने में नहीं है कि वे 20वीं सदी के अनेक महापुरुषों में से एक थे। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि उनका जन्म ही ‘समष्टि’ के भाव के साथ हुआ था। परिस्थिति का सूक्ष्म निरीक्षण, घट रही घटनाओं का विश्लेषण, सामाजिक दृष्टिकोण से उन घटनाओं का निष्कर्ष व ऐसे में करणीय कार्य का विचार कर उसे क्रियान्वित करना उनकी कार्यशैली की विशेषता थी।
नागपुर से उस समय प्रकाशित होने वाले ‘महाराष्ट्र’ नामक समाचार पत्र में एक सभा का समाचार छपा था। उसमें लिखा था-‘सभा में कुछ लोग अचानक खड़े हो गए। देखते ही देखते, 5 सैकेंड के अंदर वॉकर रोड के बगल के सभी लोग ऐसे अचानक खड़े हुए जैसे बिजली का करंट लग गया हो या कोई शेर उन पर हमला कर रहा हो और वे अपनी जान बचाने को भागें। इसी बीच किटसन लाइट की बत्तियां भीड़ के धक्के से नीचे गिरकर बुझ गईं। दौड़ते हुए लोग वेंकटेश थियेटर की दीवार से टकरा गए। लोगों के अचानक भागने के कारण हुई धक्का-मुक्की में किसी की छड़ी गुम हो गई, किसी के जूते, टोपी, दुपट्टा गुम हो गया। किसी की धोती खुल गई।
4000 लोग क्षण भर में डर से अपनी सुध-बुध खो बैठे। इस घटना की जांच से समझ में आया कि सभा के मध्य में बैठे एक व्यक्ति को लगा जैसे उसके पैर के नीचे कोई छोटा सा मेंढक आ गया है इसलिए वह खड़ा होकर नीचे देखने लगा। उसके आस-पास के और 5-10 लोग भी खड़े हो गए। उन्हीं में से एक व्यक्ति सांप-सांप कहकर चिल्लाया। यह सुनते ही लोग भागने लगे। एक को देखकर दूसरा भी डर के मारे भागने लगा। 99 प्रतिशत लोगों को यह पता ही नहीं था कि वे भाग क्यों रहे हैं। परंतु भागने वालों के साथ वे भी डर के कारण भागने लगे।’
यदि हम भी उस वक्त होते तो उस खबर को मिर्च मसाला लगाकर बताते और थोड़ी देर के लिए अपना मनोरंजन कर लेते। क्या है यह? एक मेंढक का पराक्रम? उसने 4000 की सभा भंग कर दी। जो सभा में नहीं थे वे यह समाचार पढ़कर हंसे होंगे। बहुतों ने तो कहा होगा, ‘लोग भी जाने कैसी कैसी हरकतें करते हैं।’
डॉ. हेडगेवार उस दिन नागपुर में नहीं थे। बाद में ‘महाराष्ट्र’ समाचार पत्र में सभा का यह वर्णन पढ़कर वे विचारमग्न हो गए। सभा के संचालकों में से कुछ लोगों से वे अपनी ओर से मिलने गए। उन्होंने उनसे पूछा, ‘श्रोताओं की बात छोड़ें, यह बताएं कि आप लोगों ने समय पर आगे आकर लोगों को नियंत्रित क्यों नहीं किया?’ इस पर सबका एक ही उत्तर था, ‘मैं अकेला क्या करता’।
डॉक्टर जी ने विचार किया कि अनेक बार ऐसा सुनने में आता है कि मैं अकेला क्या कर सकता हूं। उन्हें लगा कि एक हिंदू व्यक्ति चाहे सभा में हो, यात्रा में, कुंभ के मेले में हो या कहीं और, वह अकेला ही होता है। यह अकेलेपन की हीन भावना हिंदू समाज को आत्मविनाश की ओर ले जाएगी। इसके बजाय हमें यह लगना चाहिए कि मैं अकेला नहीं, आसपास का समाज मेरा है, मेरे साथ है। ‘मैं नहीं हम’ का भाव हिंदू समाज में गहरे तक पैठना चाहिए। इसका विचार करके ही डॉक्टर साहब ने कार्य प्रारंभ किया, जिसका नाम है ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’। संघ यानी रोज एक घंटा लगने वाली संघ की शाखा। शाखा यानी सामूहिकता का अनुभव। प्रतिदिन एकत्र होकर हम अकेले ना होकर अनेक में एक होते हैं। उनका मानना था कि ‘सिंधु के एक बिंदु हैं’ की भावना गहराई से आत्मसात हो जाए तो अकेलेपन से उत्पन्न होने वाली भयग्रस्तता दूर होगी।
संघ शाखा यानी व्यक्ति का ‘अहं’ से ‘वयं’ की ओर जाना। ‘अहं’ का संकोच और ‘वयं’ का विस्तार करना। संघ शाखा में गाए जाने वाले गीत सरल और ‘हम’ के भाव को पुष्ट करने वाले होते हैं। जैसे, ‘केवल मैं नहीं’, हम लोग पहाड़ पर रहने वाले, शिवाजी के अनुचर होकर ही रहेंगे। इत्यादि। ‘समाज संघ का, संघ समाज का’ की भूमिका पहले दिन से ही रही है। शाखा गांव की होती है, संपूर्ण बस्ती की होती है। शाखा चलाने वाला स्वयंसेवक किसी भी जाति से आता हो, फिर भी विचार संपूर्ण गांव का होता है, समग्र बस्ती का होता है।
1926 में संघ शाखा प्रारंभ हुई। नागपुर में कुछ तरुणों के मन में ‘हम’ का भाव निर्माण हो गया था इसलिए 1927 में नागपुर में हुए दंगों में हिंदुओं की रक्षा हो सकी। ‘हम’ का दायरा कितना भी बड़ा हो सकता है। समाज में ‘हम’ का भाव निर्माण करने वाली आज 80,000 से अधिक संघ की शाखाएं चल रही हैं। अरुणाचल हो या गुजरात, उत्तराखंड हो या केरल, सभी जगह यह प्रयत्न चल रहा है। ‘हम’ शब्द में अपनत्व का भाव है। भूकंप, बाढ़, चक्रवात, अकाल जैसी प्राकृतिक आपदाओं के समय सहायता के लिए जुटने की प्रवृत्ति सहज निर्माण होती है। ‘हम’ यानी सह-संवेदना। शाखाओं में संवेदना उत्पन्न करने वाले गीत बड़े चाव से गाए जाते हैं। जैसे-
संघ शाखा में अनुभव आता है कि जो काम दस भाषण भी नहीं कर सकते, वह एक गीत से होता है। वर्तमान में स्वयंसेवकों द्वारा 1,60,000 सेवा कार्य इस ‘हम’ के भाव के साथ चलाए जा रहे हैं।
संघ की शाखा यानी समाज में कर्तव्य भाव जाग्रत करने वाला काम। भारत मेरा देश है, सारे भारतीय मेरे बंधु हैं, इस वाक्य के साथ संविधान में प्रतिज्ञा प्रारंभ होती है। ‘भारत माता की जय’ का उद्घोष संघ ने पहले दिन से स्वीकार किया है। संघ शाखा में उपस्थित सभी स्वयंसेवक सामूहिक रूप से ‘भारत माता की जय’ का जयघोष करते हैं। समूह कितना भी बड़ा हो, कोई भी भाषा-भाषी हो, किसी भी संप्रदाय को मानने वाला हो, किसी भी प्रांत का रहने वाला हो, सभी एक स्वर से ‘भारत माता की जय’ कहते हैं तो ‘भारत मेरा देश है’ का भाव प्रगाढ़ होता है। ऊंच—नीच, छुआछूत, भाषा भेद, प्रांत भेद, उत्तर-दक्षिण या पूर्व-पश्चिम जैसे भेद ‘एक माता की संतान’ कहने पर शेष नहीं रहते। सभी पर समान रूप से प्रेम करना, नियमों का पालन करना स्वाभाविक रूप से आता है। अधिकार बोध नहीं, कर्तव्य का बोध जाग्रत होता है।
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