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Taliban का तोरखम पर ​कब्जा, चौकी छोड़ भाग खड़े हुए जिन्ना के देश के फौजी

कभी मजहब की दृष्टि से एक दूसरे के अति निकट रहे अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच तोरखम सीमा ने ऐसा चुभता मुद्दा पैदा कर दिया है कि जिसका ओर—छोर फिलहाल नजर नहीं आ रहा है

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Alok Goswami

अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच, भीषण संघर्ष का केन्द्र रही तोरखम सीमा को अंतत: तालिबान लड़ाकों ने अपने कब्जे में ले लिया है। पिछले ​कुछ समय से इसे लेकर तालिबान हुकूमत पाकिस्तान को धमकाती आ रही थी और दोनों के बीच हिंसक झड़पें भी हो रही थीं। अब तालिबान ने बयान जारी करके कहा है कि यह सीमा क्रॉसिंग अब उस​के अधीन आ गई है। इस महत्वपूर्ण बॉर्डर क्रॉसिंग पर अब तालिबान के कब्जे के बाद, जिन्ना के देश के फौजी भाग खड़े हुए हैं।

लेकिन यहां यह जानना आवश्यक है कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच विवाद का विषय बनी इस तोरखम सीमा का महत्व केवल वर्तमान संघर्ष तक सीमित नहीं है। यह सीमा 1893 में ब्रिटिश राज के दौरान खींची गई डूरंड रेखा का हिस्सा बताई जाती है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच इस सीमा रेखा की लंबाई 2,640 किलोमीटर है। अंग्रेजों द्वारा इस डूरंड रेखा को खींचने के पीछे उद्देश्य था ब्रिटिश भारत और अफगानिस्तान के बीच एक ‘बफर जोन’ बनाना। यह अलग बात है कि अफगानिस्तान शुरू से ही इस रेखा को मान्य नहीं करता और इसे जबरन खींची लाइन बताता रहा है। यहीं से पाकिस्तान और उसके बीच विवाद पनपा था जो अब तक सुलग रहा है।

तालिबान ने लेजर अस्त्रों को प्रयोग किया था, इसी वजह से पाकिस्तान की सेना को जबरदस्त नुकसान झेलना पड़ा।

जैसा पहले बताया, पिछले कुछ हफ्तों से तोरखम सीमा पर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता जा गया था। ताजा कारण था तालिबान द्वारा सीमा के निकट एक नई चौकी बनाने का काम शुरू करना। जिन्ना के देश को इससे आपत्ति थी, उसने तालिबान से ऐसा न करने को कहा था और वहां अपने सैनिक भेजकर चौकसी बढ़ाई थी। लेकिन तालिबान लड़ाकों ने उन सैनिकों को हिंसक हमलों में कड़ा सबक सिखाया। इसमें कई पाकिस्तानी सैनिकों की जान तक गई है। एक मौके पर पाकिस्तान ने इस क्षेत्र को अपना मानकर सीमा को बंद कर दिया था। उसके बाद तो दोनों देशों के बीच चले आ रहे ​कारोबार और रोजमर्रा की जरूरतों की चीजों सहित आवाजाही पर काफी असर पड़ा था।

यह सीमा 1893 में ब्रिटिश राज के दौरान खींची गई डूरंड रेखा का हिस्सा बताई जाती है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच इस सीमा रेखा की लंबाई 2,640 किलोमीटर है। अंग्रेजों द्वारा इस डूरंड रेखा को खींचने के पीछे उद्देश्य था ब्रिटिश भारत और अफगानिस्तान के बीच एक ‘बफर जोन’ बनाना। यह अलग बात है कि अफगानिस्तान शुरू से ही इस रेखा को मान्य नहीं करता और इसे जबरन खींची लाइन बताता रहा है। यहीं से पाकिस्तान और उसके बीच विवाद पनपा था जो अब तक सुलग रहा है।

गत 3 मार्च 2025 को यानी दो दिन पहले, तालिबान और पाकिस्तानी सेना के बीच हिंसक झड़पें एकाएक बढ़ गई थीं। तालिबान ने पाकिस्तानी चौकियों पर जबरदस्त प्रहार करते हुए भारी हथियारों का प्रयोग किया। इसमें संघर्ष में 8 पाकिस्तानी फौजी मारे गए थे, उनकी कई चौकियां भी बर्बाद हो गई थीं। बताया गया कि इस बार तालिबान ने लेजर अस्त्रों को प्रयोग किया था, इसी वजह से पाकिस्तान की सेना को जबरदस्त नुकसान झेलना पड़ा।

कल देर शाम तालिबान ने बयान जारी करके दावा किया कि तोरखम सीमा पर अब पूरी तरह से उनका कब्जा हो गया है। इस कार्रवाई के बाद वहां तैनात पाकिस्तानी सैनिक भाग खड़े हुए हैं। इस बयान में तालिबान ने पाकिस्तान के उस ‘दुष्प्रचार’ को भी गलत बताया कि उसने इस संषर्घ में अपनी ओर से आतंकवादी उतारे थे।

फिलहाल व्यापार स्थ​गित है। ट्रकों को लौटा दिया गया है और लोगों का भी सीमा के आर-पार जाना बंद है

उधर इस्लामाबाद ने अभी तक इस हमले और ‘कब्जे’ को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि ताजा घटनाक्रम दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा सकता है। सीमा पर हिंसा में बढ़ोतरी देखने में आ सकती है। पाकिस्तान ने सीमा के आसपास अपनी हरकतें बढ़ा दी हैं। उसके इस कदम से तालिबान गुस्से में है और प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई करने को बाध्य हुआ है।

तोरखम जैसी महत्वपूर्ण सीमा पर ऐसे संकट के हालात होने से दोनों देशों के बीच चल रहे कारोबार पर खराब असर पड़ने के अलावा अन्य कई रणनीतिक चुनौतियां भी देखने में आ सकती हैं। इस सीमा के बंद होने की वजह से पाकिस्तान को रोजाना के हिसाब से जबरदस्त नुकसान झेलना पड़ रहा है। फिलहाल व्यापार स्थ​गित है। ट्रकों को लौटा दिया गया है और लोगों का भी सीमा के आर—पार जाना बंद है।

कभी मजहब की दृष्टि से एक दूसरे के अति निकट रहे अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच तोरखम सीमा ने ऐसा चुभता मुद्दा पैदा कर दिया है कि जिसका ओर—छोर फिलहाल नजर नहीं आ रहा है। ताजा संघर्ष ने इस इलाके की उलझनों और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को फिर एक बार सामने ला दिया है। सीमा विवाद से इतर दोनों देशों के बीच इस संघर्ष के पीछे अन्य अनेक आर्थिक, राजनीतिक तथा सामाजिक कारण भी रहे हैं।

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