बलूचिस्तान में पाकिस्तानी फौज कई नामों से आपरेशन चलाती रही है, लेकिन विषम भौगोलिक स्थितियों के कारण बलूचों का पलड़ा भारी रहता आया है लिहाजा फौज को कोई खास सफलता नहीं मिली। लेकिन अब सभी बलूच विद्रोही गुटों के एक साथ आने से तो पाकिस्तान सरकार और फौज के लिए नई मुसीबत पैदा हो जानी तय है। बलूच वैसे भी ‘आजादी’ की मांग करते रहे हैं।
पाकिस्तान में बलूचिस्तान में मचल रहा उफान अब और तीव्र होने जा रहा है। बलूच विद्रोही गुटों ने एक प्रकार से पाकिस्तान की सेना और उसे पैसा खिला रहे चीन के विरुद्ध मिलकर लड़ने की कसमें खाई हैं। बलूचिस्तान के पांच मुख्य विद्रोही गुटों की ओर से एलान किया गया है कि अब वे मिलकर पाकिस्तानी सेना और चीन के आर्थिक गलियारे की ईंट से ईंट बजाएंगे। बलूचों में गुस्सा उबल रहा है और पाकिस्तान की हुकूमत उन पर हर प्रकार की बंदिशों के साथ ही जबरदस्त सैन्य चोट भी कर रही है। बलूचों को इस बात पर भी नाराजगी है कि उनके यहां के संसाधनों का चीन मालिक बना बैठा है और वे घोर गरीबी में जीने को विवश हैं।
बलूच विद्रोही गुट एक लंबे समय से पाकिस्तानी सेना के विरुद्ध जंग छेड़े हुए हैं, लेकिन अब तक अलग अलग रहकर मोर्चे बांधते आए थे। लेकिन उनका ताजा फैसला एक बहुत बड़े उफान का संकेत दे रहा है। इन बलूच गुटों की बैठक, जिसे बलोच राजी आजोई संगर कहा जाता है, उसमें मौजूद सभी बलूच गुटों ने एक स्वर से कहा है कि लड़ाई को और मारक बनाने के लिए अब मिलकर पाकिस्तानी सरकार और उसकी फौज की नाक में दम करेंगे।

इस बैठक में बलूच लिबरेशन आर्मी, बलूच रिपब्लिकन गार्ड्स, बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट, सिंधु देश रिवोल्यूशनरी आर्मी और सिंधी लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन नाम के गुट साथ बैठे थे। सभी बलूच गुटों को पाकिस्तानी फौज और सरकार से संघर्ष करते हुए लंबा वक्त हो चला है। लेकिन उनको उनकी उम्मीद के हिसाब से नतीजा नहीं मिला है। ये गुट चीन के आर्थिक गलियारे की विभिन्न परियोजनाओं पर भी अनेक बार हमले बोल चुके हैं।
बलोच राजी आजोई संगर की बैठक तीन दिन तक कई मुद्दों पर चर्चा करती रही। इसी दौरान पाकिस्तानी फौज से संघर्ष के नए पैंतरों और तैयारी पर भी बात हुई। योजना बनी कि अगर ताकत एकजुट कर लें तो ज्यादा गहरी चोट कर पाएंगे। इस बात पर सभी बलूच विद्रोही गुटों की एक राय बनी। बलूचिस्तान में पाकिस्तानी फौज कई नामों से आपरेशन चलाती रही है, लेकिन विषम भौगोलिक स्थितियों के कारण बलूचों का पलड़ा भारी रहता आया है लिहाजा फौज को कोई खास सफलता नहीं मिली। लेकिन अब सभी बलूच विद्रोही गुटों के एक साथ आने से तो पाकिस्तान सरकार और फौज के लिए नई मुसीबत पैदा हो जानी तय है। बलूच वैसे भी ‘आजादी’ की मांग करते रहे हैं।

पाकिस्तान के राजनीतिज्ञ जानते हैं कि बलूचों में ‘आजादी’ का भाव जोर मार रहा है। पाकिस्तान सरकार बलूचों के संसाधनों का दोहन कर चीन से पैसा कमा रही है लेकिन उसका कोई लाभ बलूचों को नहीं मिल रहा है। यह मुद्दा बलूचों को लंबे समय से चुभ रहा है। वे अब आजाद होने को बेचैन हैं। बलूच विद्राकही गुटों के साझा बयान को देखें तो उसमें उन्होंने साफ कहा है कि चीन हो या कोई और ताकत, किसी को भी पाकिस्तान सरकार की साठगांठ से बलूचों के संसाधनों का दोहन नहीं करने दिया जाएगा। बयान फौजी तरीके और कूटनीतिक तरीके से संघर्ष को और मारक बनाने की ओर भी संकेत करता है।
यहां यह जानना दिलचस्प रहेगा कि क्षेत्रफल के हिसाब से देखें तो पाकिस्तान के इस सबसे बड़े सूबे में कुल आबादी के दो फीसदी नागरिक रहते हैं। नस्लीय बलूच अलगाववादी अपने क्षेत्र के लिए और ज्यादा स्वायत्तता की मांग करते आ रहे हैं। चे चाहते हैं कि उनके संसाधनों पर उनका हक होना चाहिए। उन्होंने बड़ी संख्या में बलूच युवाओं को अगवा करने या उनकी हत्या करने को लेकर भी विरोध का झंडा उठाया हुआ है। बलूच लोगों को पाकिस्तानी फौजी जब जी चाहे गैरकानूनी हिरासत में लेकर प्रताड़ित करते हैं, उनके परिवारों के साथ जानवरों जैसा सलूक करते हैं। पूरे बलूचिस्तान में पाकिस्तानी फौज का एक अजीब सा खौफ छाया रहता है।
इन सब बातों से बलूचिस्तान में आक्रोश और ज्यादा उफान पर है। बलूचस्तिान का अफगान सीमा से सटा पूरा पहाड़ी इलाका एक प्रकार से पाकिस्तानी फौज के लिए हद से बाहर हो चला है। पिछले दिनों पाकिस्तान की सीनेट के कट्टरपंथी माने जाने वाले नेता मौलाना फजलुर्रहमान ने सदन में कहा भी कि बलूचिस्तान सूबे का एक भाग कभी भी खुद को आजाद घोषित करने को उफन रहा है।
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