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जिन्ना के देश में अब गधों की खैर नहीं, ग्वादर में बना गधों का कत्लखाना! लाखों डॉलर खर्चे जिन्ना के देश ने

गधों की खालों को चीन में एजियाओ नाम की पारंपरिक औषधि बनाने के लिए भेजा जाएगा। बताते हैं इस दवा से रक्त संचार को बढ़ाने, इम्युनिटी को मजबूत करने और कैंसर को रोकने में मदद मिलती है

by Alok Goswami
Feb 24, 2025, 06:05 pm IST
in विश्व, विश्लेषण
गधों की खालों को चीन में एजियाओ नाम की पारंपरिक औषधि बनाने के लिए भेजा जाएगा

गधों की खालों को चीन में एजियाओ नाम की पारंपरिक औषधि बनाने के लिए भेजा जाएगा

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पाकिस्तान में गधों की कमी नहीं है। शायद दुनिया में सबसे ज्यादा गधे जिन्ना के देश में ही हैं। वहां गधागाड़ी आज भी देहातों में लोगों के लिए परिवहन के काम आती है। बताते हैं, वहां की मजहबी परंपरा में कहीं कहीं गधों के बड़े गुणगान किए गए हैं। इस्लामिक कानून गधे के मांस का भक्षण हराम ठहराता है। इसलिए उनका मांस विदेशों में भेजा जाता है। अब तो और भी निर्यात किया जाएगा। पाकिस्तान की राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और अनुसंधान मंत्रालय के अफसर बताते हैं कि गधों से बनने वाले उप-उत्पादों का निर्यात जिंदा गधों के निर्यात के मुकाबले ज्यादा व्यावहारिक है।


पाकिस्तान ने हाल ही में ग्वादर में अपना पहला गधों का कत्लखाना खोला है। बताया गया है कि यह चीन में गधों के मांस, हड्डी और चमड़े की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए खोला गया है। इस परियोजना पर पाकिस्तान ने 70 लाख डॉलर खर्च किए हैं। इस कत्लखाने को चीन की कंपनी हांगेंग संचालित कर रही है।

सरकारी सूत्रों के अनुसार, ग्वादर में यह कत्लखाना चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का ही एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस कत्लखाने में हर साल 3,00,000 गधों की खालें साफ की जानी हैं। फिर इन खालों को चीन में एजियाओ नाम की पारंपरिक औषधि बनाने के लिए भेजा जाएगा। बताते हैं इस दवा से रक्त संचार को बढ़ाने, इम्युनिटी को मजबूत करने और कैंसर को रोकने में मदद मिलती है। यह भी मालूम चला है कि चीन में अब गधे उतने बचे ही नहीं हैं कि दवा के लायक खालें मिल सकें। इसलिए अपने यहां के गधों को निपटा कर अब ड्रैगन अपने पिट्ठू जिन्ना के देश के गधों पर नजरें गढ़ा चुका है।

इधर पाकिस्तान में गधों की कमी नहीं है। शायद दुनिया में सबसे ज्यादा गधे जिन्ना के देश में ही हैं। वहां गधागाड़ी आज भी देहातों में लोगों के लिए परिवहन के काम आती है। बताते हैं, वहां की मजहबी परंपरा में कहीं कहीं गधों के बड़े गुणगान किए गए हैं। इस्लामिक कानून गधे के मांस का भक्षण हराम ठहराता है। इसलिए उनका मांस विदेशों में भेजा जाता है। अब तो और भी निर्यात किया जाएगा। पाकिस्तान की राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और अनुसंधान मंत्रालय के अफसर बताते हैं कि गधों से बनने वाले उप-उत्पादों का निर्यात जिंदा गधों के निर्यात के मुकाबले ज्यादा व्यावहारिक है।

हालांकि गधों के इस कत्लखाने के बनने को लेकर पाकिस्तान में जबरदस्त विवाद उठ खड़ा हुआ है। मजहबी नेताओं और स्थानीय निवासी अड़ गए हैं कि गधों को न कटने देंगे। ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत काम आ रहे गधों के कम हो जाने का डर उन्हें अभी से सता रहा है। लेकिन अब चीन कदम आगे बढ़ा चुका है तो गधों का कत्लखाना बनना तय है। जिन्ना के देश के नेता इस पर पैसा भी बहुत खर्च कर चुके हैं।

कई अन्य देशों में पाकिस्तान की इस परियोजना को लेकर चिंता जताई जा रही है। यूके की धर्मादा संस्था ‘डंकी सैंक्चुअरी’ का कहना है कि वैश्विक मांग को पूरा करने के लिए हर साल लगभग 59 लाख गधों का कत्ल किया जा रहा है। अफ्रीकी संघ गधों की खाल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा चुका है। इसलिए अब चीन की इस दिशा में सारी उम्मीदें जिन्ना के देश पर टिकी हैं।

जिन्ना के देश की आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2023-24 बताती है कि उस देश में गधों की तादाद 55 लाख से बढ़कर 59 लाख हो गई है। लेकिन अब आगे संख्या में तेजी से कमी आने के पूरे आसार हैं। परियोजना से पाकिस्तान के कृषि क्षेत्र में भी बदलाव ने विवाद खड़ा कर दिया है। गधों को काटना नैतिक रूप से गलत माना जा रहा है। लेकिन अब चीन की दवा के लिए गधे काटने हैं तो काटने हैं।

Topics: पाकिस्तानPakistanचीनbaluchistangwadarmedicineChinaगधाdonkey tradeskin export
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