केरल

मालाबार मोपला मुस्लिमों द्वारा कत्लेआम, बाबा साहेब अंबेडकर ने कहा था“हिंदुओं का जीनोसाइड”: उसे नकार रहे कथित बुद्धिजीवी

बाबा साहेब अंबेडकर तक ने इस नृशंस हत्याकांड को Bartholomew की संज्ञा दी थी। बाबा साहेब अंबेडकर ने पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया में वर्ष 1921 में हिंदुओं की हत्याओं, हिन्दू लड़कियों के बलात्कार और जबरन धर्मांतरण, हिंदुओं के घरों में लूट, आगजनी आदि के विषय में लिखा है।

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सोनाली मिश्रा

वर्ष 1921 में केरल में मालाबार में मोपिला मुस्लिमों ने कहने के लिए अंग्रेजों के प्रति विद्रोह किया था, मगर इसमें हिंदुओं का जो कत्लेआम किया गया था, वह तमाम पुस्तकों में डॉक्युमेंटेड है। गांधी एंड ऐनर्की नामक पुस्तक में श्री सी. शंकर नायर ने घटनाक्रम के साथ-ही कांग्रेस की एनी बेसेंट के वे बयान भी दिए हैं, जो उन्होंने वहाँ पर जाकर पीड़ितों को देखकर दिए थे।

बाबा साहेब अंबेडकर तक ने इस नृशंस हत्याकांड को Bartholomew की संज्ञा दी थी। बाबा साहेब अंबेडकर ने पाकिस्तान ऑर पार्टीशन ऑफ इंडिया में वर्ष 1921 में हिंदुओं की हत्याओं, हिन्दू लड़कियों के बलात्कार और जबरन धर्मांतरण, हिंदुओं के घरों में लूट, आगजनी आदि के विषय में लिखा है। उन्होंने यह साफ लिखा कि यह सब वहाँ के हिंदुओं के साथ तब तक होता रहा जब तक अंग्रेजी सेना नहीं पहुंची और कानून का शासन नहीं लागू किया।

उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि यदि मोपला विद्रोहियों की घृणा केवल अंग्रेजों और जमींदारों के प्रति होती तो वे हिंदुओं के साथ जो किया वह, विस्मित करने वाला है। फिर उन्होंने लिखा कि यह हिन्दू-मुस्लिम दंगा नहीं था, यह Bartholomew था। यह शब्द फ्रांस में वर्ष 1572 में हुए उस जीनोसाइड का सन्दर्भ है, जिसमें दो महीने तक चली हिंसा और कत्लेआम में कैथोलिक्स के हाथों फ्रांसीसी प्रोटेस्टेंट मारे गए थे।

जहां इस पूरे विद्रोह को पहले केवल अंग्रेजों और जमींदारों के खिलाफ किया गया किसान विद्रोह बताया जाता रहा, वहीं जब से इस विषय पर लगातार शोध हो रहे हैं और पीड़ितों के परिजन दोहरी पीड़ा से गुजर रहे हैं, तो इतिहास की इस नृशंस घटना की सत्यता को सामने लाया जा रहा है। फिर भी कुछ लोग हैं, जो यह नकारने में लगे हुए हैं और साथ ही यह भी कहने में लगे हुए हैं कि 1921 की घटना को हिन्दू-मुस्लिम केवल अंग्रेजों ने किया। बाबा साहेब अंबेडकर ने जिस घटना को स्पष्ट रूप से हिंदुओं के साथ हुआ जीनोसाइड बताया, उसे कुछ लोग नकारने में लगे हैं और यह षड्यन्त्र केवल मौखिक इतिहास पर आधारित है। यह हैरतअंगेज बात है कि रामायण और महाभारत या फिर वेद पुराण जैसे लिखित ग्रंथों को न मानने वाले लोग केरल में मालाबार के हिंदुओं के प्रति हुए इस जघन्य कत्लेआम, जबरन धर्मांतरण और लड़कियों के अपहरण, बलात्कार जैसी नृशंस घटनाओं को मौखिक कहानियों के माध्यम से नकारना चाह रहे हैं।

Print के अनुसार, दिल्ली में इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में लेखक अब्बास पनक्कल की पुस्तक “Musaliar King: Decolonial Historiography of Malabar’s Resistance” पर पूर्व राजनयिक केपी फैबियन, पद्म श्री सैयद इकबाल हसनैन, जामिया हमदर्द की डीन, सलीना बशीर, अशोक विश्वविद्यालय की प्रोफेसर पल्लवी राघवन और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सैयद जाफरी हुसैन ने दो दिन पहले चर्चा की।

लेखक अब्बास पनक्कल इस अभियान पर हैं कि 1921 की घटना को अंग्रेजी सबूतों की दृष्टि से न देखा जाए, क्योंकि वह सच नहीं है। उनका कहना है कि जो लिखा गया, और जो लोगों की स्मृति में है, उनमें अंतर है और इसे डी-कोलोनाइज़ करने की आवश्यकता है।

यह बहुत ही शर्म की बात है कि उस घटना को मौखिक कथाओं के माध्यम से नकारने की कोशिश की जा रही है, जिसके पीड़ितों के परिजन उस घटनाक्रम को बताने के लिए जीवित हैं। अंग्रेजों ने ही नहीं, बल्कि कई स्थानीय लेखकों ने भी उस पूरे घटनाक्रम को लिखा है। कॉंग्रेस की एनी बेसेंट का बयान भी पढे जाने योग्य है। मगर जिस समुदाय को नायक बनाने का प्रयास लगातार होता आ रहा है, उसकी चारित्रिक विशेषताओं के विषय में भी लिखा जाना आवश्यक है।

सभी जानते हैं कि कैसे हैदर अली और टीपू सुल्तान ने मालाबार के हिंदुओं के साथ कत्लेआम, जबरन धर्मांतरण जैसे कुकृत्य किये थे। और जिन मोपिला मुस्लिम्स के विषय में अब्बास लिखते हैं कि मोपिला मुस्लिमों को तो हिन्दू राजाओं ने ही संरक्षण दिया था, तो उन्हें उन तथ्यों को भी संज्ञान में लेना चाहिए कि कैसे उन्हीं मोपिला मुस्लिम्स ने हैदर अली का साथ हिन्दू राजाओं और हिन्दू प्रजा को मारने के लिए साथ दिया था।

टीपू सुल्तान के बेटे प्रिंस गुलाम मोहम्मद ने हैदर अली पर एक पुस्तक लिखी है। उस पुस्तक में वह मोपिला मुस्लिम्स के विषय में क्या लिखते हैं, उसे पढ़ा जाना चाहिए। वे लिखते हैं कि “वैसे तो सूदखोरी इस्लाम में हराम है, मगर मोपिला बारे में कुछ नहीं मानते हैं। माहे में उनकी कट्टरता के बहुत ही खतरनाक परिणाम देखने को मिले हैं।“

फिर वे उनके स्वभाव के बारे में क्या लिखते हैं, उसे पढ़ा जाना चाहिए। वे लिखते हैं “अपने मजहब के प्रति अत्यधिक उत्साह में, मोपिला अफीम का नशा करते हैं, और ईसाइयों और अपने धर्म के अन्य शत्रुओं को मारने के लिए खुद को मौत के घाट उतार देते हैं। वे उग्र रूप से हमला करते हैं और जो भी उनके सामने आता है उसे मार देते हैं, और तब तक नहीं रुकते जब तक कि वे खुद मारे नहीं जाते।“

इसमें उन्होंने लिखा है कि कैसे हिन्दू राजाओं के शासनकाल में उन्हें संरक्षण मिला मगर चूंकि अब हैदर आ गया था, जो कि उनके ही मजहब का था, इसलिए यह सुनिश्चित किया जाए कि वे उसका ही साथ देंगे। इसके बाद पूरा विवरण है कि कैसे कन्नूर के शासक अली हैदर, जो मोपिला मुस्लिम था, उसने आगे बढ़कर हैदर अली का साथ दिया।

जो लोग 1921 की इस घटना को जिसके विषय में एनी बेसेंट ने लिखा था कि मैं चाहूँगी कि मिस्टर गांधी मालाबार आएं और अपनी आँखों से उस विनाश को देखें जो उनके प्रिय भाइयों, मोहम्मद और शौकत अली ने किया है। उन्होंने अस्पताल में एक मोपिला मुस्लिम कैदी का उदाहरण दिया। वह अस्पताल में था और वह asphyxiation के कारण अंतिम समय में था। उसने सर्जन से पूछा कि क्या वह मरेगा या बचेगा, तो सर्जन ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि वह बचेगा। तो उसने कहा “मुझे खुशी है कि मैंने चौदह काफिरों को मार डाला है।“

ये उदाहरण केवल कुछ ही उदाहरण हैं और हैदर और टीपू से लेकर 1921 तक के हिन्दू जीनोसाइड को केवल अंग्रेजों का एजेंडा कहकर वे लोग खारिज करना चाहते हैं, जो हर बात के लिए लिखित प्रमाण की बात करते हैं और जिस घटना के प्रमाण इतिहास में ही नहीं बल्कि पीड़ितों की स्मृतियों में भी अभी तक हैं, उसे मौखिक कथाओं के माध्यम से नकारना चाहते हैं।

यह कथित बुद्धिजीवियों का सबसे शर्मनाक कृत्य है।

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