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उच्चतम मान, सब निवासी समान

देश में मेडिकल कॉलेजों में स्नातकोत्तर की सीटों में अब राज्यों द्वारा डोमिसाइल यानी निवास के स्थान पर वरीयता नहीं दी जा सकेगी। इसके बाद से अब एमबीबीएस में इस कोटे को रद्द करने की मांग पकड़ रही जोर

by आशीष राय
Feb 20, 2025, 04:26 pm IST
in भारत, विश्लेषण, शिक्षा
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एक देश-एक नागरिक की बात करते हुए हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर से शिक्षण संस्थानों के पीजी मेडिकल कोर्स में ‘डोमिसाइल’ अर्थात निवास के आधार पर दिए जा रहे आरक्षण को रद्द करते हुए कहा कि इस देश के प्रत्येक नागरिक के पास एक ही डोमिसाइल होता है जो है ‘भारत का डोमिसाइल’। क्षेत्रीय या प्रांतीय ‘डोमिसाइल’ की अवधारणा भारतीय कानून प्रणाली में नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि हमारे पास देश में कहीं भी अपना आवास चुनने का अधिकार है। स्वतंत्र होकर अपना पेशा चुनने का अधिकार है। हमारा संविधान भी हमें भारत में कहीं भी किसी भी शिक्षण संस्थान में दाखिला लेने का अधिकार देता है।

आशीष राय
वरिष्ठ अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय

दरअसल ‘डोमिसाइल’ अर्थात निवास के आधार पर दिए जा रहे आरक्षण वाला मुद्दा वर्षों पहले उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने सौरभ चौधरी बनाम भारत संघ (2003) के मामले में पहले ही निर्णित कर दिया था लेकिन राज्यों द्वारा अनुपालन न करने के कारण उच्चतम न्यायलय की न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति सुधांशु धुलिया और न्यायमूर्ति एस वी. एन. भट्टी के खंडपीठ को सिविल अपील संख्या 9289 वर्ष 2019 डॉ. तन्वी बहल बनाम श्रेया गोयल एवं अन्य सहित तीन अन्य मामलों की सुनवाई के दौरान एक बार फिर से ‘डोमिसाइल’ अर्थात निवास के आधार पर आरक्षण पर स्थिति स्पष्ट करनी पड़ी है। अब स्नातक एमबीबीएस कोर्स में भी सामान अवसर की मांग जोर पकड़ने लगी है।

अनुच्छेद 14 का था उल्लंघन

दरअसल प्रतिभाशाली युवाओं के साथ प्राय: डोमिसाइल अर्थात निवास के आधार पर भेदभाव होता रहा है और इसी कारण डोमिसाइल अर्थात निवास संबंधी मुद्दे अक्सर अदालतों के समक्ष आते हैं। जब राज्य राजनीतिक विवशताओं के चलते अपनी सीमाओं के भीतर निवास के आधार पर नीतियों को लागू करने का प्रयास करते हैं और खासकर जब शिक्षा में प्रवेश या सरकारी नौकरियों जैसे मुद्दों की बात आती है, जो कि अन्य राज्यों के निवासियों के साथ भेदभाव करती हैं तब ऐसे मामले न्यायालयों के समक्ष आ ही जाते हैं।

शिक्षण संस्थानों में आरक्षण के मामलों पर उच्चतम न्यायालय में निर्णित किए गए तीन मामले जगदीश सरन, प्रदीप जैन और सौरभ चौधरी प्रमुख हैं। जगदीश सरन और प्रदीप जैन के मामले तीन-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा वहीं सौरभ चौधरी का मामला पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ द्वारा निर्णीत किया गया था। जगदीश सरन मामले में उच्चतम न्यायालय ने पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों में संस्थान-आधारित आरक्षण को स्वीकृति योग्य माना और कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन नहीं करता हालांकि, जगदीश सरन मामले में प्रत्यक्ष रूप से निवास-आधारित या डोमिसाइल-आधारित आरक्षण से संबंधित मामले विचारणीय नहीं थे फिर भी न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर ने अपने अनूठे तरीके से निवास की भूमिका और इसकी प्रासंगिकता पर विचार किया था। उन्होंने पीजी मेडिकल पाठ्यक्रमों में मेरिट-आधारित आरक्षण के महत्व पर विशेष जोर दिया। प्रदीप जैन मामले में न्यायालय के कहा कि हालांकि संस्थान-आधारित आरक्षण स्वीकृति योग्य है, लेकिन निवास के आधार पर स्नातकोत्तर मेडिकल सीटों में आरक्षण अस्वीकृत है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है। सौरभ चौधरी मामले की संविधान पीठ ने भी प्रदीप जैन मामले में स्थापित सिद्धांत का पूरी तरह से पालन किया।

चंडीगढ़ मामले में ताजा निर्णय

उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में चंडीगढ़ मेडिकल कॉलेज में स्नाकोत्तर मेडिकल सीटों को लेकर डोमिसाइल अर्थात निवास के आधार पर आरक्षण को लेकर निर्णय दिया है। ऐसा निर्णय आने से पहले सारी स्नाकोत्तर मेडिकल 64 सीट या तो चंडीगढ़ के निवासियों द्वारा या उसी मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस करने वाले छात्रों द्वारा संस्थागत वरीयता के तहत भरी गईं थी। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में उपरोक्त प्रावधान को चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर कर दी गईं थीं। उच्च न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय के कई फैसलों पर विचार करने के बाद यह निष्कर्ष निकाला कि मेडिकल कॉलेज में पीजी मेडिकल कोर्स के लिए किया गया आरक्षण लंबे समय से त्यागे जा चुके डोमिसाइल या निवास के सिद्धांत पर आधारित था, जो अनुचित था।

उच्च न्यायालय ने कहा कि इस तरह का आरक्षण देने में संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन हुआ है। न्यायालय ने याचिकाओं को स्वीकार करते हुए ऐसे छात्रों के प्रवेश को रद्द कर दिया। उच्च न्यायालय के इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी। 9 मई, 2019 को उच्चतम न्यायलय ने विशेष अनुमति याचिका स्वीकार करते हुए अगली सुनवाई तक विवादित आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी। हालांकि न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि जो प्रवेश प्रक्रिया पहले से ही निर्धारित प्रावधानों के आधार पर पूरी हो चुकी है, वह अगले आदेश पर निर्भर करेगी। फिर इस मामले को तीन सदस्यों की खण्डपीठ को भेज दिया गया। खण्डपीठ ने एस मामले को पूर्व में निर्णीत सौरभ चौधरी मामले की व्याख्या करते हुए यह निर्णय दिया क्योंकि याचिकाकर्त्ता भी सौरभ चौधरी मामले को अपने पक्ष में मानते हुए दलीलें रख रहे थे।

दरअसल सौरभ चौधरी मामले में याचिकाकर्ता वे 52 छात्र थे, जो दिल्ली के निवासी थे, लेकिन अखिल भारतीय कोटा के तहत दिल्ली के बाहर विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस करने गए थे। एमबीबीएस पूरा करने के बाद वे दिल्ली के मेडिकल कॉलेजों में स्नातकोत्तर मेडिकल कोर्स में प्रवेश लेना चाहते थे। इन छात्रों का दावा यह था कि वे दिल्ली के निवासी हैं, इसलिए उन्हें स्थानीय निवास कोटे के तहत के तहत प्रवेश दिया जाना चाहिए। जबकि यहां पर कोटा केवल दिल्ली से एमबीबीएस करने वाले छात्रों के लिए आरक्षित था। न्यायालय ने इस दावे को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि निवास-आधारित आरक्षण स्वीकृति योग्य नहीं है।

इस मामले में दिलचस्प बात यह थी कि अपीलकर्ताओं ने यह तर्क दिया कि सौरभ चौधरी मामले में न्यायालय ने कहा था कि निवास-आधारित आरक्षण अनुच्छेद 15 के तहत निषिद्ध नहीं है। न्यायालय ने कहा कि यह सच है कि सौरभ चौधरी में ऐसा कहा गया था, और यह विधि की सही स्थिति भी है। लेकिन, सिर्फ यही बात पढ़ना सौरभ चौधरी मामले की पूरी व्याख्या नहीं होगा। सौरभ चौधरी मामले में न्यायालय ने संस्थागत वरीयता को मंजूरी दी और कहा कि यह अनुच्छेद 14 के तहत एक तर्कसंगत वर्गीकरण है, जो संवैधानिक रूप से वैध है। उच्चतम न्यायालय ने स्नातकोत्तर मेडिकल पाठ्यक्रमों में निवास-आधारित आरक्षण को खारिज करते हुए ‘मेडिकल एजुकेशन रिव्यू कमेटी’ की सिफारिशों को उद्धृत किया है, जिसमें कहा गया था ‘‘सभी स्नातकोत्तर मेडिकल पाठ्यक्रमों में प्रवेश अखिल भारतीय स्तर पर खुला होना चाहिए और राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के अधिवास (डोमेसाइल) पर कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए।’’

उच्चतम न्यायालय के ताजा फैसले से स्नातक एमबीबीएस कोर्स में भी डोमिसाइल अर्थात निवास के आधार पर राज्यों द्वारा दिए जा रहे आरक्षण को रद्द करने की मांग उठने लगी है। यह तो स्पष्ट ही है कि राज्य-आधारित निवास की अवधारणा को भारतीय संविधान भी मान्यता नहीं देता। भारतीय संविधान की उद्देशिका तो ‘हम भारत के लोग’ के साथ ही शुरू होती है और संविधान का अनुच्छेद 14 भारत के भीतर सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता और कानूनों की समान सुरक्षा की गारंटी देते हुए प्रावधान करता है कि राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या भारत के क्षेत्र के भीतर कानूनों के समान संरक्षण से इनकार नहीं करेगा।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि राज्य सरकारें और शिक्षण संस्थान अक्सर गलत तरीके से डोमिसाइल को निवास के बराबर मान लेते हैं, जिससे निवास आधारित आरक्षण की गलत अवधारणा विकसित होती है। उच्चतम न्यायालय ने अपने निर्णय में बताया कि न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर ने कहा था कि देश धीरे-धीरे संकीर्ण घरेलू दीवारों में बंट रहा है, जो राष्ट्रीय एकता के लिए खतरनाक है। शिक्षा एक राष्ट्रीय संसाधन है। इसे क्षेत्रीय सीमाओं से मुक्त रखा जाना चाहिए। ताजा निर्णय से स्नातक एमबीबीएस कोर्स में भी सामान अवसर की मांग जोर पकड़ने लगी है।

Topics: डोमिसाइलसर्वोच्च न्यायालयभारतीय कानून प्रणालीSupreme Courtडोमिसाइल के आधार पर आरक्षणपाञ्चजन्य विशेषडोमिसाइल के आधार पर स्नातकोत्तर मेडिकल सीटों में आरक्षणOne country-one citizenशिक्षा एक राष्ट्रीय संसाधनDomicileIndian legal systemReservation on the basis of domicileReservation in postgraduate medical seats on the basis of domicileEducation is a national resourceएक देश-एक नागरिक
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