ब्रिटेन की लेबर सरकार इस्लामोफोबिया को लेकर एक काउंसिल का गठन करने जा रही है। इसके माध्यम से वह कथित घृणा से निबटने पर बात करेगी। मगर यह भी बात सच है कि केवल इस्लामोफोबिया ही क्यों, शेष और धार्मिक समूह हैं उनके प्रति की जाने वाली घृणा का क्या होगा?
यह भी ब्रिटेन में ही देखा गया कि कैसे पाकिस्तानी मूल के कुछ लोगों ने दशकों तक ब्रिटेन की श्वेत ईसाई लड़कियों को सेक्सुअली ग्रूम किया और उनके साथ बलात्कार किया। उन्हें देह व्यापार और ड्रग्स के धंधे में धकेला। अभी भी सोशल मीडिया पर रोज इस संबंध में नई कहानियां सामने आ रही हैं। पीडिताएं अपनी व्यथा को किताबों में सामने ला रही हैं, मगर ब्रिटेन में उप प्रधानमंत्री एंजेला रेनर का यह कहना है कि चूंकि ऐसे मामलों के कारण मुस्लिमों के प्रति घृणा बढ़ रही है, इसलिए मुस्लिमों के प्रति इस घृणा को कम करने के लिए इस्लामोफोबिया पर काउंसिल बनाई जाए।
हालांकि अभी तक यह भी नहीं पता चल सका है कि इस्लामोफोबिया की परिभाषा क्या होगी? आखिर वे कौन से कदम होंगे, जो इस्लामोफोबिया के अंतर्गत आएंगे। इस्लामोफोबिया की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है और विशेषज्ञों का यह कहना है कि चूंकि इसकी कोई निश्चित परिभाषा नहीं है इसलिए यह बहुत ही घातक सिद्ध होगा।
अब इस्लामोफोबिया के लिए बनने वाले कानून को लेकर यूके की हिन्दू काउंसिल ने चेतावनी दी है। हिन्दू काउंसिल यूके ने एक वक्तव्य जारी किया है, जिसमें उसने यह स्पष्ट किया है कि हिन्दू काउंसिल यूके किसी भी धार्मिक समूह के प्रति भेदभाव और घृणा मिटाने की महत्ता को समझती है। न्याय और समानता के सिद्धांतों के लिए समर्पित एक संगठन के रूप में, वे किसी भी धार्मिक तंत्र के प्रति किसी भी घृणा की निंदा करते हैं और हिंसा के हर रूप को अस्वीकार करते हैं तथा हिन्दू धर्म के मूल सिद्धांत अहिंसा का पालन करते हैं। फिर भी उन्हें इस बात की चिंता है कि सरकार ने दूसरे धार्मिक विश्वास वाले समुदायों पर असर का आँकलन किये बिना और साथ ही अभिव्यक्ति की आजादी के मूलभूत सिद्धांत पर असर का आँकलन किये बिना इस्लामोफोबिया की विवादास्पद परिभाषा को अपनाया है।
हिन्दू काउंसिल यूके के डाइवर्सिटी एवं इक्वालिटी के निदेशक दिपेन राज्यगुरु ने हिन्दू धर्म की सहिष्णु परंपरा के विषय में बात करते हुए लिखा, “दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक हिंदू धर्म ने हमेशा स्वतंत्र विचार, आलोचनात्मक प्रश्न और दार्शनिक और धार्मिक विचारों की विविध व्याख्याओं को प्रोत्साहित किया है।” उन्होंने यह भी लिखा कि मुस्लिमों के प्रति घृणा को लेकर उठाए जा रहे कदम स्वागत योग्य हैं। उसके साथ यह भी हिन्दू काउंसिल के वक्तव्य में था कि सरकार को वर्ष 2018 में इस्लामोफोबिया पर सर्वदलीय संसदीय समूह की रिपोर्ट को तर्करहित तरीके से स्वीकारने के स्थान पर एक प्रमाण आधारित पद्धति अपनानी चाहिए थी। मुस्लिमों के सामने आने वाले सामाजिक और आर्थिक संकटों का सामना करने के स्थान पर एक सैद्धांतिक परिभाषा को जबरन लागू करने को प्राथमिकता दे दी गई है।
हिन्दू काउंसिल यूके ने यह अपने वक्तव्य में यह भी कहा कि एक धार्मिक समूह की दूसरे समूहों की कीमत पर रक्षा करना अनुचित है। हिन्दू काउंसिल यूके काफी लंबे समय से “हिन्दूमिसिया” की पहचान के लिए लड़ाई लड़ रही है। यह शब्द हिंदुओं के प्रति दिखाई जा रही घृणा को बताता है। भारत के मूल में हिन्दू धर्म होने के बावजूद हिंदुओं ने कभी भी जबरन मतांतरण नहीं कराया। हिंदुओं को ही रणनीतिक रूप से शोषण और भेदभाव का सामना करना पड़ा, फिर चाहे वह आधुनिक काल हो या फिर अतीत में। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी देश की सरकार को सभी मतों और धर्मों के प्रति निष्पक्षता का भाव लिए हुए होना चाहिए, न कि किसी एक को दूसरे पर प्राथमिकता देना।
दरअसल इन दिनों ब्रिटेन में पाकिस्तानी मूल के ऐसे लोगों के खिलाफ गुस्सा भरा हुआ है, जिन्होंने ब्रिटिश श्वेत लड़कियों के साथ बलात्कार ही नहीं किया बल्कि उनकी ग्रूमिंग की और उन्हें देह व्यापार तथा अन्य अपराधों में धकेल दिया। न जाने कितनी लड़कियों की हत्याएं हुईं और बलात्कार की पीड़िताएं तो कितनी हैं, यह अभी तक नहीं समझ आ रहा है। यह बहुत ही सुनियोजित अपराध था, जो ब्रिटेन की उन श्वेत लड़कियों के खिलाफ खुलकर किया जा रहा था, जो छोटे कपड़े पहनती थीं या कहें पश्चिमी जीवनशैली का पालन करती थीं। उन लड़कियों के खिलाफ नस्लीय टिप्पणियाँ भी आम बात थीं। जब ये बातें मीडिया में दोबारा से आना आरंभ हुईं, तो कुछ लोगों ने इसे मुस्लिम पहचान से जोड़ दिया और यह डिस्कोर्स बनाया कि इन मामलों के सामने आने से मुस्लिम गंभीर खतरे में आ गए हैं। मगर मुस्लिमों के खतरे में होने की बात करने वाले भी न ही इन ग्रूमिंग गैंग्स के खिलाफ बोलते हैं और न ही इस्लामोफोबिया की परिभाषा ही बताते हैं।
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