गुणवत्ता देखें, घंटे नहीं
July 10, 2025
  • Read Ecopy
  • Circulation
  • Advertise
  • Careers
  • About Us
  • Contact Us
android app
Panchjanya
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
SUBSCRIBE
  • ‌
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • वेब स्टोरी
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • अधिक ⋮
    • जीवनशैली
    • विश्लेषण
    • लव जिहाद
    • खेल
    • मनोरंजन
    • यात्रा
    • स्वास्थ्य
    • धर्म-संस्कृति
    • पर्यावरण
    • बिजनेस
    • साक्षात्कार
    • शिक्षा
    • रक्षा
    • ऑटो
    • पुस्तकें
    • सोशल मीडिया
    • विज्ञान और तकनीक
    • मत अभिमत
    • श्रद्धांजलि
    • संविधान
    • आजादी का अमृत महोत्सव
    • मानस के मोती
    • लोकसभा चुनाव
    • वोकल फॉर लोकल
    • जनजातीय नायक
    • बोली में बुलेटिन
    • पॉडकास्ट
    • पत्रिका
    • ओलंपिक गेम्स 2024
    • हमारे लेखक
Panchjanya
panchjanya android mobile app
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • मत अभिमत
  • रक्षा
  • धर्म-संस्कृति
  • पत्रिका
होम मत अभिमत

गुणवत्ता देखें, घंटे नहीं

सनातन परंपरा में जीवन का लक्ष्य व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का सर्वांगीण विकास है, न कि एकाग्र भौतिक विकास

by प्रो. रसाल सिंह
Feb 18, 2025, 01:10 am IST
in मत अभिमत, धर्म-संस्कृति
FacebookTwitterWhatsAppTelegramEmail

भारत में ‘वर्क-लाइफ बैलेंस’ (कार्य-जीवन संतुलन) पर बहस जोर पकड़ती जा रही है। इस बहस के पीछे कुछ दिग्गज उद्योगपतियों के बयान हैं, जो अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराने के लिए सप्ताह में 70 घंटे से 90 घंटे काम करने की आवश्यकता बता रहे हैं। यहां तक कि रविवार के अवकाश को भी ‘गैर जरूरी’ बताया जा रहा है। कोरोना जैसी वैश्विक आपदा से निपटने के बाद हम सभी ने बहुत मुश्किल से अपने कार्य और परिजनों के मध्य समय का संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया है। कोरोना जैसी भयावह आपदाजन्य विपरीत परिस्थितियों से जूझते हुए भी अपनी विकास दर को कम नहीं होने दिया, ऐसे में यह बहस निरर्थक लगती है।

सनातन परंपरा का दृष्टिकोण

प्रो. रसाल सिंह
प्राचार्य, रामानुजन कॉलेज
दिल्ली विश्वविद्यालय

भारतवर्ष की सनातन परंपरा में मानव जीवन और उसकी कार्यक्षमता के संबंध में अत्यंत मानव-केंद्रित वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाया गया है। इस परंपरा में हम विकास और भौतिकवाद की अंधी दौड़ में शामिल होकर गलाकाट प्रतिस्पर्धा नहीं करते, बल्कि स्वस्थ और संतुलित जीवनशैली अपनाते हुए अपनी व्यक्तिगत और सामूहिक उत्पादकता के शिखर तक पहुंचने का प्रयास करते हैं। इस क्रम में हम यह भी देखते हैं कि जीवन और जीवन-मूल्य ही हमारे लिए महत्त्वपूर्ण हैं। हम उत्पादकता को बढ़ाने के लिए शारीरिक व मानसिक संतुलन को नहीं बिगड़ने देते, क्योंकि हमारे यहां कहा गया है कि ‘अति सर्वत्र वर्जयेत’। हमारे जीवन-दर्शन का लक्ष्य व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का सर्वांगीण विकास है, न कि एकाग्र भौतिक विकास।

गौतम बुद्ध से लेकर महात्मा गांधी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे भारतीय विचारकों ने संतुलन, संयम और सामरस्य की प्रस्तावना करते हुए व्यष्टि, समष्टि, सृष्टि और परमेष्टि की एकात्मता को आवश्यक माना है। उनके अनुसार जीवन के परम लक्ष्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष नामक पुरुषार्थ-चतुष्ट्य की प्राप्ति के लिए शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा का स्वास्थ्य, संतुलन, सामरस्य और समन्वय होना जरूरी है।

उपयोगितावादी दृष्टि खतरनाक

भोगवादी जीवन पद्धति मानव को मशीन के रूप में देखती है। इसके अनुसार मानव जीवन की मूल्यवत्ता उसके श्रम और कौशल से अर्जित उत्पादन के अनुपात में होती है। मानव जीवन का मशीनीकरण होने से उसके जीवन की गुणवत्ता के प्रभावित होने के साथ मनुष्य का मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। यदि उपयोगितावादी दृष्टि से मानव जीवन को देखा जाएगा तो केवल मानसिक विक्षिप्तता और सामाजिक विकृतियां ही बढ़ेंगी। मानव-संबंध भी क्षीणतर होंगे। परिवार और समाज जैसी संस्थाएं भी संकटग्रस्त होंगी।
उपयोगितावादी दृष्टि समाज के लिए खतरनाक है, क्योंकि यह मानव जीवन को उसकी उपयोगिता के अनुसार वर्गीकृत करते हुए अवमूल्यित करती है। इससे समाज में विखंडनकारी, विभेदकारी और विनाशकारी जीवन पद्धति को प्रोत्साहन मिलता है।

आज चहुंओर क्रोध, आक्रोश, असंतोष, गाड़ी लगने या पार्किंग जैसी मामूली बातों पर हिसंक व्यवहार, आपाधापी में बढ़ती सड़क दुर्घटनाएं, आनंद-प्राप्ति (हाइक) के लिए नशे, शॉपिंग, उच्छृंखल यौन-संबंध जैसे शॉर्टकट, पैसे से खरीदी गई भौतिक वस्तुओं से आनंद प्राप्ति की लालसा, अधिकाधिक पैसा कमाने की होड़/भूख, प्रदर्शनप्रियता आदि विकृतियां लगातार बढ़ रही हैं। विचित्र बात है कि सभ्यता के शीर्ष पर पहुंचकर मनुष्य मानवीय जीवन-मूल्यों से विमुख हो रहा है। समाज में सद्भाव, सौहार्द और समरसता के भाव का लोप हो रहा है।

वैज्ञानिक दृष्टि से विचार किया जाए तो सप्ताह में 70 या 90 घंटे कार्य करने से मनुष्य की सेहत पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ेगा और वह धीरे-धीरे उसके तन और मन को खाली और खोखला कर देगा।

2021 की संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट भी लंबी कार्यावधि का विरोध करती है। संयुक्त राष्ट्र ने अपने अनेक शोधों में यह बताने का प्रयास किया है कि अत्यधिक काम करने वाले मनुष्य की मृत्यु का सबसे महत्वपूर्ण कारण उसे होने वाली उच्च रक्तचाप, मधुमेह, अवसाद और हृदय संबंधी बीमारियां हैं। देर तक बैठ कर काम करने वालों में इन जीवनशैली संबंधी बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। युवाओं में आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति और कम होती प्रजनन क्षमता भी काम के अतिशय दबाव और नकारात्मक वातावरण की देन हैं। विभिन्न अध्ययनों में यह तथ्य निकल कर सामने आया है कि अधिकतम मृत्यु का कारण क्रॉनिक आॅब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिसीज है। इस बीमारी का कारण फेफड़ों में ठीक तरह से वायु का उत्सर्जन न हो पाना है। मेहनतकश मजदूर व फैक्ट्रियों में काम करने वाली बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है, जो इससे ग्रस्त हैं।

मानसिक स्वास्थ्य रखना होगा ठीक

कृत्रिम बुद्धिमता (एआई) और मशीनीकरण के इस युग ने निश्चित ही मानव जीवन तथा मानवीय संवेदनाओं पर प्रश्नचिह्न लगाया है, लेकिन हमें इस तथ्य को नहीं भूलना चाहिए कि विचारों का आदि-स्रोत मानव मस्तिष्क ही है। यदि हम नवीन तथ्यों का अनुसंधान करना चाहते हैं तो इसके लिए मानसिक स्वास्थ्य को ठीक रखना होगा। ऐसा तभी संभव होगा, जब वर्क-लाइफ बैलेंस होगा। दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मौलिक चिंतन स्वस्थ मस्तिष्क से ही संभव हो पाता है। हम एआई और रोबोटिक्स आदि के द्वारा अपने कार्य को आसान तो बना सकते हैं, लेकिन उसी कार्य को नवीनता या मौलिकता के साथ नहीं कर सकते।

काम के अनावश्यक दबाव के कारण मानव की जीवन शैली प्रभावित होती है। आज जीवन की उत्पादकता और उपलब्धियों को एकांगिता में नहीं, बल्कि सम्पूर्णता में देखने की आवश्यकता होती है। परिवार और समाज से अलग व्यक्ति का न कोई व्यक्तित्व है और न ही अस्तित्व। परिवार और समाज में रह कर ही उसके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास होता है। इससे उसकी सकारात्मकता, रचनात्मकता और उत्पादकता बढ़ती है। इसलिए कर्मशील जनसंख्या को अपने पारिवारिक और पेशेवर जीवन के मध्य उचित तालमेल बनाना होगा। बहुत ज्यादा काम के घंटों से अकेले बच्चे भटकावग्रस्त और बुजुर्ग उपेक्षित और एकांकी हो जाएंगे। ऐसी स्थिति किसी भी समाज और राष्ट्र के लिए शुभकर नहीं है।

निश्चित ही, अधुनातन प्रौद्योगिकी यथा- एआई, रोबोटिक्स तथा सूचना-उपकरणों— मोबाइल फोन, लैपटॉप आदि के अत्यधिक और अनावश्यक इस्तेमाल से भी जीवन अभिशापित हो रहा है। संवाद के लिए आविष्कृत सोशल मीडिया प्लेटफार्म भी पारिवारिक संवादहीनता और अकेलेपन के कारक बनते जा रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे सामाजिक-सांस्कृतिक संगठनों ने इसकी चिंता करते हुए कुटुंब प्रबोधन पर कार्यारम्भ किया है।

महिंद्रा समूह के चेयरमैन आनंद महिंद्रा, आईटीसी के चेयरमैन संजीव पुरी और ओयो के सह-संस्थापक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी रितेश अग्रवाल ने काम के घंटे बढ़ाने की बात का विरोध करते हुए काम और जीवन की गुणवत्ता को प्राथमिकता देने की बात की है।
कहने का आशय यह है कि कार्य जीवन संतुलन के कारण ही व्यक्ति समाज और संस्थान में अपना सर्वोत्तम योगदान दे सकता है। इससे काम और कार्यस्थल से होने वाले अलगाव और अवसाद को नियंत्रित करने की शक्ति भी स्वत: ही विकसित हो जाती है। इसलिए यह जरूरी है कि एक कर्मचारी को कंपनी उसकी आवश्यकता को समझकर उसे उचित अवकाश प्रदान करे। कंपनी अपनी समयावधि में योग, ध्यान तथा इंडोर खेल को भी प्रोत्साहित कर सकती है। विभिन्न कंपनियों को कुछेक महत्वपूर्ण त्योहारों पर अपने सभी कर्मचारियों के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित करने चाहिए। इससे उनके मन में अपने काम के प्रति लगाव, संस्था के प्रति जुड़ाव का भाव प्रबल होगा और उनकी सकारात्मकता, रचनात्मकता और उत्पादकता में भी वृद्धि होगी।

कुटुंब प्रबोधन : परिवार-समाज को सहेजने का भगीरथ प्रयास

पश्चिमी जीवनशैली और उपभोक्तावादी संस्कृति ने परिवार और समाज को प्रभावित किया है। 1991 में शुरू हुए आर्थिक उदारीकरण, निजीकरण और भूमंडलीकरण ने व्यक्तिवाद और उपभोगवाद को बढ़ावा दिया। परिणामस्वरूप भारत की सबसे मजबूत और पुरानी आधारभूत सामाजिक इकाई ‘परिवार’ क्षतिग्रस्त होने लगी। पारिवारिक जीवन में अशांति, अहम का टकराव, ईर्ष्या-द्वेष, असहिष्णुता, अलगाव और स्वार्थपरकता बढ़ने लगी। पारिवारिक संबंधों से अपनेपन, आत्मीयता, सौहार्द, संवाद, समन्वय, रस और राग का लोप होने लगा।
अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्।।
अर्थात् यह मेरा है, यह पराया है, ऐसी गणना छोटे चित्त वालों की होती है। उदार चित्त वाले तो पूरे विश्व को ही अपना परिवार मानते हैं। सहस्त्राब्दियों से इस औदात्य व विश्वव्यापी चिंतन से प्रेरित-संचालित भारतीय समाज अब धीरे-धीरे पश्चिमी व्यक्तिवाद से आक्रांत होने लगा है। बड़े कुटुंब से संयुक्त परिवार और फिर एकल परिवार से अब एक व्यक्ति तक सिमटता जा रहा है। लोग विवाह संस्था से विमुख हो रहे हैं, विवाह विखंडित हो रहे हैं। लिव-इन और समलैंगिक संबंध-विवाह जैसी विकृतियां बढ़ रही हैं। कॅरियर और भौतिकता की आपाधापी में बुजुर्ग माता-पिता अकेलापन और उपेक्षा सहने को अभिशप्त हैं। दादा-दादी, नाना-नानी, ताऊ-ताई, बुआ-फूफा, मौसी-मौसा जैसे संबंध पारिवारिक जीवन से गायब हो रहे हैं। ‘हम’ हाशिए पर है और ‘मैं’ और ‘मेरा’ हर ओर हावी है।

महाकवि तुलसीदास ने रामचरितमानस में भारत की परिवार-व्यवस्था का आदर्श और अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होंने दिखाया है कि एक व्यक्ति (कैकेयी) के मानसिक विचलन से पूरा परिवार कितना कष्ट झेलता है और सामाजिक जीवन भी उससे अप्रभावित नहीं रहता। रामचरितमानस भारत की संयुक्त परिवार व्यवस्था का कीर्ति स्तंभ है। पारिवारिक संबंधों की प्राणवायु पारस्परिक प्रेम, समर्पण, संवेदनशीलता और त्याग प्रचुरता में है। यह विशिष्ट परिवार व्यवस्था भारतीय समाज की अभूतपूर्व उपलब्धि रही है, जबकि पश्चिम समाज के लिए कौतूहल का विषय।

भारतीय समाज के गहराते संकट को देखते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कुटुंब प्रबोधन को अपनी एक प्राथमिक गतिविधि बनाया है, ताकि परिवार, समाज और संबंधों को बचाया जा सके। परिवार में संवादहीनता के बड़े कारणों में मोबाइल फोन, टेलीविजन और सोशल मीडिया भी हैं। इसलिए कुटुंब प्रबोधन में इस बात पर जोर दिया जाता है कि परिवार के सभी सदस्य सप्ताह में कम से कम एक दिन मोबाइल और टेलीविजन से दूर एक साथ समय बिताएं। सभी साथ बैठकर भोजन करें, भारतीय संस्कृति, परंपरा और देश-समाज से जुड़े विषयों पर चर्चा करें। सगे-संबंधियों की सुध लें, सप्ताह या महीने में एक दिन मित्रों-परिजनों से सपरिवार मिलें और साथ पर्व-त्योहार मनाएं या कहीं घूमने जाएं। इससे न केवल परिवार और संबंधों की टूटती कड़ी जुड़ेगी, बल्कि पहले से और अधिक मजबूत होगी।

स्वस्थ और सुखद पारिवारिक जीवन ही संगठित समाज और सशक्त राष्ट्र की नींव होती है। परिवार सामाजिक गुणों की भी प्रथम पाठशाला होता है। अगर परिवार बचेगा तभी देश और समाज बचेगा। देश और समाज को संगठित करने के लिए सबसे आधारभूत सामाजिक इकाई ‘परिवार’ को बचाने का संघ का यह प्रयास सराहनीय है। समाज और राष्ट्र की आवश्यकता के अनुरूप प्रबोधन और परिवर्तन करना रा.स्व.संघ की पहचान है। समाज और राष्ट्र के संकटों का पूवार्भास करके उनके समुचित और सम्यक समाधान की दिशा में सामूहिक और संगठित उपक्रम करना उसकी परंपरा है। संघ शताब्दी वर्ष में ‘पंच परिवर्तन’ (कुटुंब प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी जीवनशैली, सामाजिक समरसता और नागरिक कर्तव्य) का संकल्प उसकी सामाजिक प्रतिबद्धता का प्रमाण है।

 

Topics: Work-Life Balanceमानव जीवन तथा मानवीय संवेदनासनातन परंपराSanatan ParamparaWork Life Balance and Human Resourcesभारत में वर्क-लाइफ बैलेंसमहिंद्रा समूहएकाग्र भौतिक विकासजीवन का लक्ष्य व्यक्तिसमाज और राष्ट्र का सर्वांगीण विकासपाञ्चजन्य विशेषसमाज में विखंडनकारीHuman Resourcesविभेदकारी और विनाशकारी जीवन पद्धति
ShareTweetSendShareSend
Subscribe Panchjanya YouTube Channel

संबंधित समाचार

न्यूयार्क के मेयर पद के इस्लामवादी उम्मीदवार जोहरान ममदानी

मजहबी ममदानी

गुरु पूर्णिमा पर विशेष : भगवा ध्वज है गुरु हमारा

यत्र -तत्र- सर्वत्र राम

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

राष्ट्रीय विद्यार्थी दिवस: छात्र निर्माण से राष्ट्र निर्माण का ध्येय यात्री अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद

India democracy dtrong Pew research

राहुल, खरगे जैसे तमाम नेताओं को जवाब है ये ‘प्‍यू’ का शोध, भारत में मजबूत है “लोकतंत्र”

कृषि कार्य में ड्रोन का इस्तेमाल करता एक किसान

समर्थ किसान, सशक्त देश

टिप्पणियाँ

यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

ताज़ा समाचार

न्यूयार्क के मेयर पद के इस्लामवादी उम्मीदवार जोहरान ममदानी

मजहबी ममदानी

फोटो साभार: लाइव हिन्दुस्तान

क्या है IMO? जिससे दिल्ली में पकड़े गए बांग्लादेशी अपने लोगों से करते थे सम्पर्क

Donald Trump

ब्राजील पर ट्रंप का 50% टैरिफ का एक्शन: क्या है बोल्सोनारो मामला?

‘अचानक मौतों पर केंद्र सरकार का अध्ययन’ : The Print ने कोविड के नाम पर परोसा झूठ, PIB ने किया खंडन

UP ने रचा इतिहास : एक दिन में लगाए गए 37 करोड़ पौधे

गुरु पूर्णिमा पर विशेष : भगवा ध्वज है गुरु हमारा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को नामीबिया की आधिकारिक यात्रा के दौरान राष्ट्रपति डॉ. नेटुम्बो नंदी-नदैतवाह ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया।

प्रधानमंत्री मोदी को नामीबिया का सर्वोच्च नागरिक सम्मान, 5 देशों की यात्रा में चौथा पुरस्कार

रिटायरमेंट के बाद प्राकृतिक खेती और वेद-अध्ययन करूंगा : अमित शाह

फैसल का खुलेआम कश्मीर में जिहाद में आगे रहने और खून बहाने की शेखी बघारना भारत के उस दावे को पुख्ता करता है कि कश्मीर में जिन्ना का देश जिहादी भेजकर आतंक मचाता आ रहा है

जिन्ना के देश में एक जिहादी ने ही उजागर किया उस देश का आतंकी चेहरा, कहा-‘हमने बहाया कश्मीर में खून!’

लोन वर्राटू से लाल दहशत खत्म : अब तक 1005 नक्सलियों ने किया आत्मसमर्पण

  • Privacy
  • Terms
  • Cookie Policy
  • Refund and Cancellation
  • Delivery and Shipping

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies

  • Search Panchjanya
  • होम
  • विश्व
  • भारत
  • राज्य
  • सम्पादकीय
  • संघ
  • ऑपरेशन सिंदूर
  • वेब स्टोरी
  • जीवनशैली
  • विश्लेषण
  • लव जिहाद
  • खेल
  • मनोरंजन
  • यात्रा
  • स्वास्थ्य
  • धर्म-संस्कृति
  • पर्यावरण
  • बिजनेस
  • साक्षात्कार
  • शिक्षा
  • रक्षा
  • ऑटो
  • पुस्तकें
  • सोशल मीडिया
  • विज्ञान और तकनीक
  • मत अभिमत
  • श्रद्धांजलि
  • संविधान
  • आजादी का अमृत महोत्सव
  • लोकसभा चुनाव
  • वोकल फॉर लोकल
  • बोली में बुलेटिन
  • ओलंपिक गेम्स 2024
  • पॉडकास्ट
  • पत्रिका
  • हमारे लेखक
  • Read Ecopy
  • About Us
  • Contact Us
  • Careers @ BPDL
  • प्रसार विभाग – Circulation
  • Advertise
  • Privacy Policy

© Bharat Prakashan (Delhi) Limited.
Tech-enabled by Ananthapuri Technologies