उग्रवादियों और कैंसर को एक ही समझने की जरूरत
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उग्रवादियों और कैंसर को एक ही समझने की जरूरत

कैंसर और उग्रवाद दोनों की सबसे खतरनाक विशेषता यह है कि ये प्रारंभ में गुप्त रूप से बढ़ते हैं। कैंसर की कोशिकाएँ धीरे-धीरे बढ़ती हैं और जब तक व्यक्ति को इसके लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं, तब तक यह गंभीर अवस्था में पहुँच चुका होता है।

by डॉ. प्रभात दीक्षित
Feb 16, 2025, 02:28 pm IST
in भारत, विश्लेषण
Comparision between cancer and naxalism

प्रतीकात्मक तस्वीर

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केंद्र सरकार उग्रवादियों/नक्सलियों को जड़ से खत्म करने का अभियान चला रही है। हाल के दिनों में बड़ी संख्या में उग्रवादी/नक्सली मारे गए हैं या फिर उन्होंने आत्मसमर्पण किया है। अभी समय है कि हम उग्रवादियों/नक्सलियों को कैंसर की तरह ही समझें। उग्रवाद और कैंसर, ये दोनों शब्द सुनते ही हमारे मन में भय उत्पन्न होता है। एक ओर कैंसर शरीर के भीतर उत्पन्न होने वाली एक गंभीर बीमारी है, जो धीरे-धीरे पूरे शरीर को प्रभावित करता है, वहीं दूसरी ओर उग्रवाद समाज और देश की शांति एवं स्थिरता को नष्ट करने वाला एक सामाजिक रोग है। उग्रवादी भी हमारे बीच के ही लोग होते हैं जो कुछ मनगढ़ंत कारणों से अपने देश और अपनों के खिलाफ काम करना शुरू कर देते हैं। उन्हें लगता है कि वे सही कर रहे हैं। ठीक इसी तरह कैंसर की कोशिकाएँ भी हमारे अपने शरीर का हिस्सा होती हैं और हमें ही नुकसान पहुँचाती हैं, लेकिन उन्हें लगता है कि वे हमारी भलाई के लिए कार्य कर रही हैं। जब हम इन दोनों की तुलना करते हैं, तो पाते हैं कि इन दोनों में कई अन्य गहरी समानताएँ भी हैं। इस लेख में हम इन समानताओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

कैंसर और उग्रवाद दोनों की सबसे खतरनाक विशेषता यह है कि ये प्रारंभ में गुप्त रूप से बढ़ते हैं। कैंसर की कोशिकाएँ धीरे-धीरे बढ़ती हैं और जब तक व्यक्ति को इसके लक्षण स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं, तब तक यह गंभीर अवस्था में पहुँच चुका होता है। ठीक इसी प्रकार, उग्रवाद भी समाज में धीरे-धीरे अपनी जड़ें फैलाता है। शुरू में यह एक छोटे समूह या विचारधारा के रूप में उभरता है, लेकिन जब तक समाज इस खतरे को पहचान पाता है, तब तक यह व्यापक स्तर पर फैल चुका होता है। कैंसर शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं को नष्ट कर उन्हें असामान्य रूप से बढ़ने के लिए प्रेरित करता है। यह शरीर के विभिन्न अंगों को धीरे-धीरे प्रभावित करता है और अंततः पूरे शरीर को कार्य करने से रोक देता है। उग्रवादी संगठन भी ठीक यही करते हैं। वे किसी भी स्वस्थ समाज या राष्ट्र के मूल तंत्र पर हमला करते हैं, उसकी विचारधारा, शासन प्रणाली, और शांति को कमजोर करने की कोशिश करते हैं।

कैंसर का इलाज तभी संभव है जब इसे प्रारंभिक चरण में पहचाना जाए। यदि इसका जल्द निदान और उपचार न किया जाए, तो यह असाध्य हो सकता है। इसी तरह, उग्रवाद को भी प्रारंभिक स्तर पर पहचानना और उसे नियंत्रित करना बहुत महत्वपूर्ण है। अगर इसे शुरुआत में ही नहीं रोका गया, तो यह समाज और देश की जड़ों को कमजोर कर देता है। कैंसर के विकास में आंतरिक (अनुवांशिक) और बाहरी (तंबाकू, प्रदूषण, जीवनशैली) दोनों कारक भूमिका निभाते हैं। इसी तरह, उग्रवाद भी बाहरी (अंतरराष्ट्रीय समर्थन, विदेशी वित्तपोषण) और आंतरिक (अशिक्षा और अफवाहें) कारकों के कारण बढ़ता है। इन दोनों समस्याओं से निपटने के लिए आंतरिक और बाहरी कारणों की पहचान और समाधान आवश्यक है।

कैंसर न केवल रोगी बल्कि उसके परिवार को भी मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक रूप से प्रभावित करता है। इसी तरह, उग्रवाद भी पूरे समाज और राष्ट्र को गहरे घाव देता है। उग्रवादी हमलों में मारे गए लोगों के परिवार शोक में डूब जाते हैं और समाज में अस्थिरता बढ़ती है। कैंसर का उपचार लंबा और जटिल होता है। कई बार इसे पूरी तरह से ठीक करना संभव नहीं होता और इसे नियंत्रित करने के लिए निरंतर प्रयास करने पड़ते हैं। उग्रवाद का समाधान भी सरल नहीं है। इसके लिए कड़े कानून, शिक्षा, जागरूकता और सामाजिक सुधार की आवश्यकता होती है। यह एक दीर्घकालिक प्रक्रिया है जिसमें समाज को लगातार सतर्क रहना पड़ता है।

कैंसर का इलाज करने के बाद भी यह दोबारा उभर सकता है। इसी प्रकार, उग्रवाद को समाप्त करने के प्रयासों के बावजूद यह नए रूपों में वापस आ सकता है। ऐसे संगठन समाप्त होने के बाद भी नए नामों और नई विचारधारा के साथ फिर से उभर सकते हैं। इसलिए, सतत निगरानी और रोकथाम आवश्यक है। कैंसर रोगी के मन में भय, चिंता और असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है। वहीं, उग्रवाद भी समाज में आतंक और भय का वातावरण बनाता है। लोग सार्वजनिक स्थानों पर जाने से डरने लगते हैं, सामान्य जीवन प्रभावित होता है और सामाजिक तानाबाना कमजोर हो जाता है।

कैंसर और उग्रवाद दोनों के संबंध में कई मिथक और गलतफहमियाँ समाज में व्याप्त होती हैं। कैंसर के बारे में कई भ्रांतियाँ होती हैं कि यह छूने से फैलता है या इसका कोई इलाज नहीं है। इसी तरह, उग्रवाद को लेकर भी कई झूठी धारणाएँ फैलाई जाती हैं, जिससे लोगों में भ्रम पैदा होता है। कैंसर के प्रति जागरूकता और सही जानकारी से इसे रोका जा सकता है। लोग अगर सही जीवनशैली अपनाएँ, तंबाकू और शराब से दूर रहें, और नियमित स्वास्थ्य परीक्षण कराएँ, तो कैंसर की संभावना को कम किया जा सकता है।

कैंसर और उग्रवाद, दोनों ही खतरनाक और विनाशकारी हैं। एक शरीर को खत्म करता है तो दूसरा समाज को। दोनों से लड़ने के लिए सतर्कता, प्रारंभिक पहचान, जागरूकता और सही नीतियों की आवश्यकता होती है। कैंसर को रोकने के लिए हमें स्वस्थ जीवनशैली अपनानी होगी, नियमित जाँच करानी होगी और सही उपचार कराना होगा। वहीं, उग्रवाद को समाप्त करने के लिए हमें शिक्षा, विकास, सामाजिक समरसता और मजबूत प्रशासन की आवश्यकता होगी। अगर हम इन दोनों खतरों के प्रति सतर्क रहेंगे और मिलकर प्रयास करेंगे तो निश्चित रूप से हम एक स्वस्थ शरीर और एक सुरक्षित समाज की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

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