दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद देश की राजनीति में कई बड़े परिवर्तन के संकेत मिलने शुरू हो गए हैं। कई राज्यों में यह परिवर्तन देखा और स्पष्ट समझा जा सकता है। यह परिवर्तन भाजपा और सत्तारूढ़ दलों के लिए नहीं, बल्कि विपक्षी दलों को ज्यादा परेशान करने वाला है। पहला परिवर्तन पश्चिम बंगाल में देखने को मिला जहां ममता बनर्जी परेशान और डरी हुई दिख रही हैं। महाराष्ट्र में विपक्ष की राजनीति में बड़ा परिवर्तन दिख रहा है। वहां शिवसेना (यूबीटी) के कई विधायक और सांसद पाला बदलने के दहलीज पर खड़े दिख रहे हैं। शरद पवार की पार्टी एनसीपी (एससीपी) के भी कई विधायक और सांसद पाला बदलने के मुहाने पर खड़े हैं।
सबसे बड़े परिवर्तन के संकेत उत्तर प्रदेश में दिख रहे हैं। उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव चुनाव में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पार्टी ने मिलकर उत्तर प्रदेश में अच्छा प्रदर्शन किया था और दोनों ने मिलकर 43 सीटें जीती थी। उस समय इस गठबंधन का हिस्सा ममता बनर्जी की पार्टी भी थीं। दोनों दलों के लोकसभा चुनाव में अपने कुछ खास और सीमित उद्देश्य थे, जिस कारण ये दोनों दल आपस में समझौता किये थे। जहाँ, कांग्रेस पार्टी को अमेठी और रायबरेली की सीटों को अपने पाले में करना था, वहीं सपा को अखिलेश यादव के परिवार को संसद में दुबारा पहुंचना ही मुख्य लक्ष्य था। अब कांग्रेस पार्टी और सपा का गठबंधन लगभग टूट चुका है। केवल इसकी घोषणा ही शेष है। दोनों दल इस घोषणा से अपने को बचाना चाहते हैं।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में इंडि गठबंधन के घटक दलों की आपसी संबंधों की हकीकत पूरी तरह से खुल कर सामने आ गए। ये सभी दल लोकसभा चुनाव में केवल अपने अस्तित्व को बचाने के लिए गठबंधन में बंधे थे। इनके बीच जनता के लिए कोई भी मुद्दा नहीं था। हालांकि, इस तथ्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता हैं कि आने वाले समय में ये सभी दल अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए भी एक-दूसरे के साथ फिर से खड़े दिखे।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में सबसे पहले आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पार्टी ने एक-दूसरे को झटका देते हुए पल्ला झाड़ा। लोकसभा चुनाव में ये दोनों दल एक साथ होकर भाजपा के जीत के अंतर को अवश्य कम करने में सफल रहे थे। भाजपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली में 2014 हुए 2019 की तरह सभी सातों सीटों पर जीत दर्ज़ करने में सफल रही, मगर इस बार की भाजपा के सातों सीटों पर जीत का अंतर पिछले दो चुनावों से काफी कम रहा है। 2014 की लोकसभा चुनाव में सातों सीटों पर भाजपा के जीत का संयुक्त वोट 11,15,963 वोट था, जो 2019 में बढ़कर 27,41,499 मत तक पहुंच गया। फिर 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के गठबंधन के भाजपा को इन सभी सीटों को जीतने से रोक तो नहीं सकी, मगर भाजपा के जीत के अंतर को 2019 की अपेक्षा आधे से भी कम अवश्य किया और भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव में सभी सातों सीटों पर 10,14,331 मतों से ही जीत का अंतर बना सकी। इन हालातों में अगर विधानसभा चुनाव में दिल्ली में आप और कांग्रेस पार्टी आपस में गठबंधन करके भाजपा को मुश्किल हालातों में खड़ा करने का प्रयास कर सकती थी।
मगर दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक अन्य भी मामला सामने आया जो कांग्रेस पार्टी के लिए काफी पीड़ादायक रही, वो थी इंडि गठबंधन दलों का कांग्रेस को पूरी तरह दरकिनार करते हुए आप के लिए समर्थन जारी करना। अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे सहित कई अन्य नेताओं और उनके दलों ने कांग्रेस पार्टी को छोड़कर आप को समर्थन करके अपने को पूरी तरह अनावृत कर लिया।
अखिलेश यादव और ममता बनर्जी दोनों का यह कोई कांग्रेस पार्टी को दिया गया कोई पहला जख्म नहीं है। अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा के उपचुनावों में कांग्रेस पार्टी को एक भी सीट देना उचित नहीं समझा, वहीं ममता बनर्जी ने कांग्रेस पार्टी को बड़ा ही गहरा घाव दिया है। 2023 में मुर्शिदाबाद जिले की मुस्लिम बाहुल्य सीट सागरदिघी विधानसभा सीट पर तृणमूल कांग्रेस पार्टी के विधायक के निधन के कारण हुए उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी ने तृणमूल और भाजपा को मात देकर पश्चिम बंगाल विधानसभा में अपना खाता खोला था। मगर कांग्रेस पार्टी के इकलौते विधायक बायरन बिस्वास को ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी में शामिल करके कांग्रेस पार्टी को राज्य में करारा झटका देते हुए फिर से राज्य विधानसभा में शून्य पर लाकर खड़ा कर दिया।
अब विपक्ष की राजनीति वहीं पर आकर खड़ा हो गया है, जहां से इसकी शुरुआत हुई थी। सभी दल अपने-अपने सुर में बात करते दिख रहे हैं। ममता बनर्जी कांग्रेस पार्टी के एकमात्र विधायक बायरन बिस्वास को अपने पार्टी में शामिल करवाकर कांग्रेस पार्टी के प्रति काफी चिंता भरी निगाहों से देख रही हैं, कांग्रेस पार्टी अगले साल होने वाले पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी से अपने इस अपमान और धोखाधड़ी का बदला अवश्य लेगी। वहीं अखिलेश यादव 2027 के शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस पार्टी के रुख से काफी परेशानी के हालात में दिख रहे हैं।
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