अमेरिका में डीईआई अर्थात डाइवर्सिटी,इक्वालिटी और इन्क्लूसिवनेस के एजेंडे को लेकर लगातार कदम उठाए जा रहे हैं। पहले यह देखा गया था कि कई कॉर्पोरेट्स ने अपने कार्यालयों मे इस नीति को प्रतिबंधित कर दिया था तो वहीं अब इस वोक और कम्युनिस्ट एजेंडे को ओहिओ सीनेट ने भी सरकारी कॉलेजेस से प्रतिबंधित कर दिया है।
सीनेट ने बुधवार को एक बिल पारित किया, जिसके अनुसार राज्य के सरकारी संस्थानों पर यह प्रतिबंध लगा दिया गया कि वे डीईआई अर्थात डाइवर्सिटी,इक्वालिटी और इन्क्लूसिवनेस का कार्यालय बनाएंगे या फिर किसी भी विवादास्पद विषय पर कोई भी अपना स्टैंड लेंगे।
इतना ही नहीं एसबी1 नामक इस बिल के अनुसार अब वहाँ पर पूर्णकालिक फ़ैकल्टी अब किसी भी प्रकार की कोई हड़ताल नहीं कर पाएंगी और साथ ही सभी कॉलेजेस को एक पाठ्यक्रम प्रकाशित करना होगा, जिसमें हर कक्षा के लिए इन्स्ट्रक्टर की पेशेवर योग्यताऐं एवं संपर्क सूचना शामिल होगी।
इस बिल को लेकर काफी विरोध भी देखा जा रहा था। डेमोक्रेट्स की ओर से इसका विरोध भी किया गया, और इसके साथ ही इस प्रस्तावित बिल का विरोध बाहर भी हो रहा था, मगर विरोध का कोई लाभ नहीं हुआ और एक लंबी बहस के बाद इसे पास कर दिया गया।
डीईआई अर्थात डाइवर्सिटी,इक्वालिटी और इन्क्लूसिवनेस का एजेंडा एक वोक और कम्युनिस्ट एजेंडा है, जिसमें योग्यता के स्थान पर जबरन थोपी गई डाइवर्सिटी अर्थात विविधता के आधार पर समानता और समावेशीकरण किया जाता है।
अभी हाल ही में कैलिफोर्निया के जंगलों में आग लगी थी तो उसे बुझाने में जो अव्यवस्थाएं सामने आई थीं, उनमें भी एलन मस्क सहित कई लोगों ने यह दावा किया था कि चूंकि आग बुझाने वाले विभाग में वोक एजेंडे का पालन करते हुए एलजीबीटीक्यू लोगों की नियुक्ति की गई थी, और इस विभाग के लिए योग्य लोगों के स्थान पर ऐसे लोगों की नियुक्ति की गई, जो उनके एजेंडे के अनुसार थे। इस आग में जलकर मरने वाले लोगों के लिए “डेथ बाई डीईआई” कहा गया था।
अमेरिका में डीईआई एजेंडे के प्रति लोगों का भी विरोध बढ़ रहा है। लोगों का कहना है कि नियुक्ति या किसी शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश योग्यता के आधार पर होना चाहिए, एजेंडे के आधार पर नहीं। daytondailynews के अनुसार ओहिओ में जो बिल पारित हुआ है, उसकी मुख्य बातें हैं:
1- डीईआई अर्थात डाइवर्सिटी,इक्वालिटी और इन्क्लूसिवनेस के कदमों को कैंपस में प्रतिबंधित करना और जो डीईआई अभियान अभी चल रहे हैं, उन्हें रोकना।
2- यदि कोई भी इस बिल का पालन नहीं करता है तो राज्य को यह अधिकार देना कि वह पैसा रोक ले।
जो बिल में तीसरी बात है वह बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें लिखा है कि
3- विश्वविद्यालयों से यह अपेक्षा करना कि वे “इस बात की पुष्टि करें और घोषणा करें कि सरकारी संस्थान छात्रों, शिक्षकों या प्रशासकों को किसी विचारधारा, राजनीतिक रुख या सामाजिक नीति के दृष्टिकोण का समर्थन, सहमति या सार्वजनिक रूप से अभिव्यक्ति करने के लिए प्रोत्साहित, हतोत्साहित, बाध्य या निषिद्ध नहीं करेंगे और न ही संस्थान छात्रों को स्नातक या स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त करने के लिए इनमें से कोई भी कार्य को करने की आवश्यकता बताएगा।
भारत में हमने कई मौकों पर देखा है कि सरकार विरोधी प्रोफेसर्स अपने विद्यार्थियों को बाध्य करते हैं या फिर बहकाते हैं कि सरकार का विरोध ही असली लोकतंत्र है। सरकार कोई भी कदम उठाए उसकी आलोचना करना ही एक निष्पक्ष व्यक्ति का कर्तव्य है। वे विद्यार्थियों को कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रति आकर्षित करते हैं और चूंकि परिणाम आदि उन्हीं के हाथों में होता है, साहित्यिक मंच उन्हीं से प्रभावित होते हैं, तो विद्यार्थियों का उस ओर आकर्षित होना सहज ही है।
इसके बाद इस बिल में प्रावधान है कि सरकारी पूर्ण कालिक फ़ैकल्टी अब हड़ताल नहीं करेंगी। और साथ ही एक और महत्वपूर्ण बात है कि विद्यार्थियों के लिए यह आवश्यक होगा कि वे एक बैचलर डिग्री लेने से पहले अमेरिकी नागरिक या इतिहास की कक्षा लें।
हालांकि इसे लेकर डेमोक्रेट्स नेताओं का दृष्टिकोण सरकार का जबरन दखल देने वाला है। उनके अनुसार सरकार संस्थानों में जबरन दखल दे रही है।
इस बिल के पारित होने के एकदम बाद ही विद्यार्थियों का एक समूह आया और सीनेट चैंबर में बैठकर नारे लगाने लगा कि “किसने उच्च शिक्षा को मारा, ओहिओ सीनेट ने!”
यह सारे दृश्य सीएए के आंदोलन जैसे ही दिख रहे हैं। जैसे ही संसद में नागरिकता संशोधन अधिनियम पारित हुआ था, वैसे ही दिल्ली के कई कॉलेज के विद्यार्थी सड़कों पर आ गए थे। जबकि उनका उससे कोई भी लेना देना नहीं था।
जैसे कि ओहिओ में भी जो बिल पारित हुआ है, वह वास्तविक समानता की बात करता है, वह योग्यता की बात करता है और वह यह कहता है कि किसी खास राजनीतिक विचार के शिकार युवा न बनें, मगर उसका विरोध करने के लिए विद्यार्थियों को आगे कर दिया गया।
ऐसा प्रतीत होता है कि भारत हो या ओहिओ, लेफ्ट और वोक एजेंडा और उसे लागू करने का तरीका लगभग एक सा ही पूरी दुनिया में होता है।
टिप्पणियाँ