दोनों नेताओं ने आतंकवाद बढ़ने पर चिंता व्यक्त करते हुए इससे मिलकर लड़ने की कसम खाई है। लेकिन यह बात भी उस पाकिस्तान को नहीं भायी है जो आतंकवादियों को अपनी गोद में बैठाकर पुचकारता आ रहा है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय का बयान देखें। उससे साफ है कि प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप ने पाकिस्तान को लक्षित करके जो फटकार लगाई है उसका सही जगह असर हुआ है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ताजा अमेरिका यात्रा कई मायनों में उपलब्ध्यिों से भरी रही। भारत और अमेरिका के बीच यूं भी पिछले कई वर्ष से नजदीकी और मिठास भरे रिश्ते रहे हैं। पूर्ववर्ती बाइडेन प्रशासन ने भी भारत की मोदी सरकार के साथ कदम से कदम मिलाकर काम किया था और अब अमेरिका में सत्ता संभाले ट्रंप प्रशासन के साथ भी भारत ने अनेक आयामों पर साथ साथ बढ़ने की बात की है। यह यात्रा निसंदेह मोदी सरकार की कूटनीतिक सफलताओं में एक और आयाम जोड़ गई है। इसके साथ ही दोनों शीर्ष नेताओं के बीच आतंकवाद से लड़ने को लेकर जो बात हुई है उससे आतंकवाद के पोषक कहे जाने वाले जिन्ना के देश का तिलमिलाना स्वाभाविक ही रहा।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच समन्वय की झलक उनकी ‘बॉडी लेंग्वेज’ ही मिल गई थी, लेकिन ट्रंप का मोदी को अपने से बेहतर ‘नेगोशिएटर’ बताना बहुत कुछ बयां करता है। भारतीय अवैध अप्रवासियों के संदर्भ में मोदी का स्पष्ट रूप से उन्हें वापस लेने की बात करना अमेरिका को आश्वस्त करता है कि मोदी सरकार गैरकानूनी हरकतों के साथ नहीं खड़ी है।
तकनीकी, एआई, व्यापार, संपर्क और रक्षा सहित अनेक विषयों पर ट्रंप प्रशासन भारत के साथ काम करने को उत्साहित है। भारत की प्रतिरक्षा पंक्ति को और मजबूत करने के लिए अमेरिका ने भारत को एफ-35 फाइटर जेट देने की पेशकश की है। इस पेशकश पर भी पाकिस्तान बौराया है। शाहबाज सरकार चिढ़ी है। पाकिस्तान को लगता है कि ऐसा होने से ‘क्षेत्र में ताकत असंतुलित हो जाएगी।’ पाकिस्तान के इस बयान के क्रूा मायने हैं, यह तो शाहबाज के नीतिकार ही ज्यादा समझते होंगे।
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प्रधानमंत्री मोदी के साथ राष्ट्रपति ट्रंप की द्विपक्षीय चर्चा हुई। इसी में दोनों देशों के बीच व्यापार को और संतुलित करने पर बल दिया गया। रक्षा क्षेत्र में कई समझौते किए गए। इस बैठक के जो चित्र सामने आए उनके सरकारी रस्मों से परे एक निकट रिश्ते जैसे दृश्य दिखे। ट्रंप का मोदी के लिए पीछे से कुर्सी ठीक करना, उन्हें अपने हस्ताक्षर करके पुस्तक भेंट करना और हाथ पकड़ने का अंदाज आधिकारिक प्रोटोकॉल से अधिक लगा।
दोनों नेताओं ने आतंकवाद बढ़ने पर चिंता व्यक्त करते हुए इससे मिलकर लड़ने की कसम खाई है। लेकिन यह बात भी उस पाकिस्तान को नहीं भायी है जो आतंकवादियों को अपनी गोद में बैठाकर पुचकारता आ रहा है। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय का बयान देखें। उससे साफ है कि प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रंप ने पाकिस्तान को लक्षित करके जो फटकार लगाई है उसका सही जगह असर हुआ है।
मोदी और किस्मत से ट्रंप भी साफ तौर पर जानते हैं कि वैश्विक आतंकवाद को खाद—पानी कहां से मिल रहा है और इसे कैसे रोकना है। दोनों देशों के संयुक्त बयान में इसीलिए आतंकवाद का उल्लेख करने के साथ ही उसे बढ़ावा दे रहे पाकिस्तान का उल्लेख करके उसे इससे बाज आने को कहा गया है। पाकिस्तान को साफ जता दिया गया है कि वह अपने यहां से सीमा पार आतंकवाद न फैलाए। अपनी जमीन से सीमा आतंक हमले न करे।
संयुक्त वक्तव्य कहता है कि आतंकवाद एक वैश्विक मुसीबत है, इससे लड़ाई में सबको जुटना होगा। दुनिया में जहां जहां भी आतंकवादियों को पनाह मिलती है, वहां वहां उनके अड्डों को ध्वस्त करना होगा। 26/11 का मुंबई हमला हो या 26 अगस्त 2021 का अफगानिस्तान में एबी गेट बम धमाका, ऐसे भी संगीन अपराधों को रोकना है तो अल कायदा, जैशे-मोहम्मद, लश्करे-तैयबा और आईएसआईएस सरीखे आतंकवादी गुटों के विरुद्ध सहयोग बढ़ाने की बात की गई है।
ऐसी चीजें और भारत अमेरिका की निकटता को देखकर चिढ़ते हुए पाकिस्तान का विदेश मंत्रालय कहता है, ‘भारत तथा अमेरिका के संयुक्त वक्तव्य में पाकिस्तान का जिक्र एकतरफा है, भ्रम फैलाने वाला तथा कूटनीतिक मानदंडों के विरुद्ध है।’ बयान में जिन्ना के देश ने ‘आश्चर्य’ व्यक्त करते हुए कहा है कि पाकिस्तान ने तो अमेरिका के साथ ‘आतंकवाद विरोधी अभियान’ में सहयोग किया था तो भी पाकिस्तान का इस तरह जिक्र करना ठीक बात नहीं है।
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