जर्मनी की कार कंपनी ‘वॉक्सवेगन’ अपनी कार की गुणवत्ता अथवा खराबी के लिए नहीं बल्कि आयात शुल्क देने में हेराफेरी के लिए चर्चा में है। यह कंपनी भारत में ‘आडी’ और ‘स्कोडा’ नाम से कारें बनाती है। भारतीय बाजार में विदेशी कार बनाने वाली कंपनियों की खासी मांग है। विदेशों से आने वाली कारों पर लगने वाला आयात शुल्क भी काफी ज्यादा है। वहीं कलपुर्जे मंगाने पर कम आयात शुल्क लगता है। कंपनी ने पूरी कारें मंगवाईं लेकिन उनका वर्गीकरण कलपुर्जे के तौर पर किया।
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पूर्व प्रोफेसर, पीजीडीएवी, कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय
इसके चलते कस्टम विभाग ने इस कंपनी पर 1.4 अरब डॉलर की टैक्स मांग चस्पां की है। विभाग का कहना है कि जर्मनी की कार कंपनी ‘वॉक्सवेगन’ ने कारों के लिए कलपुर्जे आयात करने के शुल्क में घपला किया है। ‘वॉक्सवेगन’ कंपनी पूरी कार ही आयात कर रही थी, लेकिन आयात शुल्क देने में उन्हें कलपुर्जों के रूप में वगीकृत कर रही थी। विभाग का आरोप है कि इस प्रकार से अलग-अलग कलपुर्जों पर कंपनी मात्र 5 से 15 प्रतिशत ही आयात शुल्क दे रही थी। जबकि पूरी बनी हुई कार (जिसे सीकेडी, यानी कंपलिटली नॉक्ड डाऊन) पर 30 से 35 प्रतिशत आयात शुल्क अपेक्षित है।
चोरी के तरीके का खुलासा
विभाग ने कंपनी द्वारा कर चोरी के तरीके का भी खुलासा किया है। विभाग का कहना है कि वॉक्सवेगन की स्थानीय इकाई द्वारा अपने आंतरिक सॉफ्टवेयर के माध्यम से जर्मनी, चेक गणराज्य, मैक्सिको और दूसरे देशों में अपने आपूर्तिकर्ता को थोक आॅर्डर भेजे जाते रहे। आॅर्डर भेजने के बाद उन्हें विभिन्न मुख्य कलपुर्जों, जिनकी संख्या मॉडल के अनुसार प्रति वाहन 700 से 1500 थी, में बांटा गया और इन सब कलपुर्जों की अलग-अलग समय पर आपूर्ति करवाई। कस्टम अधिकारियों का कहना है कि यह हथकंडा इसलिए अपनाया गया ताकि पूरी किट पर ऊंचे शुल्क के भुगतान से बचा जा सके।
कोरियाई कंपनी भी शामिल
केवल वॉक्सवेगन ही नहीं दक्षिण कोरिया की एक कार कंपनी ने भी इस तरह से फर्जीवाड़ा किया है। इस कंपनी पर भी कलपुर्जों के गलत वर्गीकरण द्वारा कर चोरी करने का आरोप है। कस्टम विभाग द्वारा अप्रैल 2024 में ‘किया’ की भारतीय इकाई पर 1350 करोड़ रूपए के कर की चोरी का नोटिस भेजा गया था। विभाग द्वारा उस पर कंपनी के जवाब की समीक्षा की जा रही है। कस्टम विभाग ने अपने नोटिस में यह कहा था कि ‘किया’ कंपनी ने एक रणनीति तैयार कर यह सुनिश्चित किया कि उनके आयात के प्रकार को कस्टम विभाग न पकड़ पाए। रणनीति यह थी कि एक खेप में पूरी कार को एक बार में न मंगा कर उसे अलग-अलग कलपुर्जों के रूप में मंगाया जाए ताकि 30 से 35 प्रतिशत के आयात शुल्क की बजाय उन पर केवल 10 से 15 प्रतिशत का ही आयात शुल्क लगे। टैक्स नोटिस में यह कहा गया है कि ‘किया’ कंपनी द्वारा अपने कारनिवल मॉडल की 9887 इकाइयों को ‘सीकेडी’ के रूप में 2020 और 2022 के बीच में बेचा गया। जानकारों का मानना है कि मुकदमा हारने की सूरत में ‘किया’ को आयात शुल्क और जुर्माने के रूप में 3100 लाख डॉलर और वॉक्सवेगन को 2.8 अरब डॉलर का भुगतान करना पड़ सकता है।
‘किया’ और ‘वॉक्सवेगन’ के मामले में अंतर केवल इतना है कि ‘वॉक्सवेगन’ के मामले में जांच 14 कारों के मॉडल तक फैली हुई है, जबकि ‘किया’ के मामले में यह 7 सीटों वाली कार्निवल कार, जिसकी कीमत 73,500 डॉलर के आसपास है, तक ही सीमित है। लेकिन दोनों मामलों में एक जैसी रणनीति अपनाकर ऊंचे कर से बचने का प्रयास किया गया है। दोनों कंपनियों के मामलें में यह भी अंतर है कि जहां ‘किया’ कंपनी निजी रूप से कर चोरी के मामले का सामना कर रही है, वहीं ‘वॉक्सवेगन’ ने उस मुद्दे को सार्वजनिक भी किया है। ‘वॉक्सवेगन’ ने भारत सरकार पर मुकदमा दायर कर ‘असंभव और विशाल’ 1.4 अरब डॉलर के आयात शुल्क की मांग को रद्द करने की मांग की है। ‘वॉक्सवेगन’ का कहना है कि विभाग की आयात शुल्क की मांग कार के कलपुर्जों पर आयात शुल्क के नियमों के विपरीत है और इससे कंपनी की व्यावसायिक योजना प्रभावित होगी।
निवेश न करने की धौंस
वॉक्सवेगन नियमों का उल्लंघन करने के बाद होने वाली कार्रवाई के खिलाफ यह तर्क दे रही है कि सरकार अगर मांग जारी रखती है तो इससे देश में निवेश का माहौल खराब हो जाएगा और विदेशी कंपनियां देश में निवेश नहीं करेंगी। ‘वॉक्सवेगन’ ने यह धमकी दी है कि वह भारत में 1.5 अरब डॉलर का निवेश करने जा रही थी यदि कार्रवाई की गई तो वह खटाई में पड़ सकता है। कंपनी यह आरोप लगा रही है कि आयात शुल्क का यह नोटिस विदेशी निवेशकों के भरोसे की नींव पर ही एक आघात है।
यह पहली बार नहीं है कि विदेशी कंपनियों के साथ भारत के किसी कर विभाग का विवाद हुआ हो। इससे पहले भी इस प्रकार का एक बड़ा मामला वोडाफोन कंपनी के संदर्भ में आया था। उस मामले में वोडाफोन कंपनी द्वारा भारतीय नियमों का गलत उपयोग करते हुए आयात किया गया था। तब वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी थे। तब वोडाफोन कंपनी पर भारी टैक्स लगाया गया था। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को आलोचना का सामना करना पड़ा था। हालांकि बाद में सरकार द्वारा अपने निर्णय को बदला गया और वोडाफोन कंपनी कर देने से बच गई।
लेकिन ‘वॉक्सवेगन’ के मामले में विभाग का कहना है कि कंपनी ने जान-बूझकर पूरी कार को अलग-अलग भागों में आयात करके कर की चोरी की है। समाचार एजेंसी रॉयटर के अनुसार सरकारी सूत्र यह कहते हैं ‘‘यदि कंपनी यह मामला हारती है तो उसे भारी टैक्स का भुगतान करना पड़ सकता है। यहां यह समझना होगा कि यदि सरकार द्वारा कर चोरी के नोटिस का कोई कंपनी तकनीकी रूप से विरोध करे तो कोई कठिनाई नहीं है। लेकिन विडंबना यह है कि ‘वॉक्सवेगन’ कंपनी यह तर्क दे रही है कि यदि उस पर से कर का नोटिस नहीं हटाया गया तो वह अपने भविष्य के निवेश के निर्णयों को बदल देगी। भारत में निवेश का माहौल खराब हो जाएगा। इसलिए सरकार नोटिस को वापस ले।’’ यह एक तरह की धुड़की है।
विदेशी निवेशकों को समझना होगा कि वे भारत में व्यवसाय करने के लिए आए हैं। ऐसे में वे भारतीय नियमों का अनुपालन को लिए बाध्य हैं। उन्हें यह भी समझना होगा कि पूरी सीकेडी पर ऊंचे कर और कलपुर्जों पर कम कर के प्रावधान पहले से ही हैं और इस कंपनी के लिए या उस समय के लिए उनमें कोई बदलाव नहीं किया गया था। यदि ‘सीकेडी’ पर उच्च कर लगता है और इसके भागों को कम शुल्क पर आयात करने की अनुमति दी जाती है, तो इसके पीछे भारत की स्पष्ट आर्थिक नीति है जिसका उद्देश्य देश में मूल्य संवर्धन को प्रोत्साहित करना है। ऐसे में जानते-बूझते पूरी सीकेडी को अलग-अलग भागों में रणनीतिक तरीके से मंगाते हुए कर की चोरी का मामला बनता है और इस कंपनी और अन्य कंपनियों पर कानूनी कार्रवाई न्यायसंगत है। लिहाजा विदेशी कंपनियों को इसे तथ्य से वाकिफ होना होगा कि भारत में कानून सबके लिए समान है, और विदेशी कंपनियां उससे अलग नहीं हैं।
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