सीरियाई शरणार्थियों ने स्वीडन का कर दिया ये हाल (फोटो साभार: ईसी)
इन दिनों यूरोप का देश स्वीडन चर्चा में है। स्वीडन में लगातार बम धमाके हो रहे हैं, श्वेत लड़कियों के साथ बलात्कार हो रहे हैं और लगातार गोलीबारी की घटनाएं हो रही हैं। प्रश्न उठता है कि आखिर ये कौन लोग हैं? एक समय में सबसे सुरक्षित माना जाने वाला देश आखिर बलात्कारों का देश कैसे बन गया है? सोशल मीडिया पर लगातार स्वीडन के विषय में लिखा जा रहा है।
आँकड़े बहुत कुछ कह रहे हैं। स्वीडन में वर्ष 2015 में 163,000 शरणार्थियों को शरण दी गई थी। उनमें से अधिकतर युद्ध ग्रस्त सीरिया से थे। डेली मेल में स्वीडन में लगातार हो रहे इन विस्फोटों और अपराधियों के गिरोहों पर डेविड जोंस ने कुछ कम्युनिस्ट दृष्टिकोण के साथ लिखा है। इसमें आँकड़े तो हैं ही, और यह भी बताया है कि ड्रग्स आदि के गिरोहों में श्वेत अपराधी न के बराबर हैं, और जो भी ये गिरोह हैं वे शरणार्थियों की दूसरी पीढ़ी के हैं।
इसमें वे इस बात को स्वीकारते हैं कि बीस वर्ष पहले तक, स्वीडन में गन क्राइम अर्थात बंदूकों वाले अपराध थे ही नहीं। मगर अब स्वीडन में वास्तविक जीवन के पॉडकास्ट, डॉक्यूमेंट्री और पुस्तकें भरी पड़ी हैं। वे लिखते हैं कि अब स्वीडन में सिनेमा भी ऐसा होने लगा है, जिनमें वास्तविक जीवन के अपराध हैं, जैसे उन्होंने एक डॉक्यू-ड्रामा के विषय में लिखा कि जो एक 12 वर्षीय मिस्र के लड़के द्वारा किये गए अपराध के विषय में है।
ऐसा नहीं है कि स्वीडन में बढ़ रही इस मजहबी कट्टरता के विषय में लिखा नहीं जा रहा है या फिर लोग आवाज नहीं उठा रहे हैं। स्वीडन में कट्टर मजहबी लोगों और हथियारबंद गिरोहों के चलते कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां पर कोई बाहरी या कहें स्वीडन का कोई मूल नागरिक नहीं जा सकता है। इन्हें “नो-गो ज़ोन” कहा जाता है, इन क्षेत्रों में पुलिस भी नहीं जा सकती है। यहाँ तक कि विकिपीडिया पर भी वलनेरेबल एरिया अर्थात खतरनाक क्षेत्र के नाम से पेज है।
डेली मेल में जोंस लिखते हैं कि अब लिबरल लेफ्ट भी इस बात पर सहमत हैं कि देश की विफल इमिग्रेशन नीति के कारण यह सब हो रहा है, जिसने हाल ही के सालों में स्वीडन के बॉर्डर खोल दिए हैं और वह भी ऐसे देशों के नागरिकों के लिए, जिनके अपने देश में संघर्ष था। स्वीडन में जहां लगभग 2 मिलियन शरणार्थी रह रहे हैं, जो पूरी जनसंख्या का 20% हैं, तो वहीं डेली मेल में जोंस का कहना है कि देश उन्हें समाज के साथ मिलाने में विफल रहा है।
यह बहुत हैरान और चौंकाने वाली बात है कि देश की लड़कियों को अपना शिकार बनाने वाले समुदाय के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए अपने नागरिकों को ही इस बात के लिए कोसा जाए कि उन्होंने बाहरी लोगों को अपने साथ नहीं मिलाया।
स्वीडन में लगातार हो रही ऐसी घटनाओं को अपने सोशल मीडिया हैंडल और अपनी वेबसाइट के माध्यम से उठाने वाले पत्रकार पीटरस्वीडन ने 6 फरवरी को एक पोस्ट लिखा था कि स्वीडन में होने वाले कुल 85% बलात्कार वे लोग करते हैं जिनका जन्म देश से बाहर हुआ है और अधिकतर मामलों में हमलावर और पीड़िता एक दूसरे को जानते भी नहीं हैं।
5 फरवरी को उन्होनें पोस्ट लिखा था कि स्वीडन अब एक ऐसा खतरनाक देश बन गया है, जहां पर पुलिस का नियंत्रण समाप्त हो गया है। अब यहाँ पर रोज घरेलू आतंकी हमले हो रहे हैं। जनवरी में 32 हमले हुए थे और लगभग 60 नो-गो ज़ोन हैं।
पीटर स्वीडन आज से नहीं बल्कि कई वर्षों से कम्युनिस्ट मीडिया के एजेंडे के खिलाफ लिखते आ रहे हैं। उन्होंने यह भी लिखा था कि 2023 से अब तक 300 घटनाएं बमबारी की हो चुकी हैं। यह डेली मेल के जोन्स भी मानते हैं। मगर इन तमाम घटनाओं के लिए वह कहीं न कहीं स्वीडन के लोगों को ही कसूरवार ठहराते हैं। 13-14 साल तक के बच्चे तक सेमी-ऑटोमैटिक हथियारों के साथ पकड़े जा रहे हैं। उनका कहना है कि बच्चों के गिरोहों के कुछ सदस्य तो स्कूल के थर्मस फ्लास्क में विस्फोटक लेकर जाते हैं। एक पुलिस अधिकारी के हवाले से उन्होंने बताया कि नौ साल के बच्चों को मुखबिर की तरह और ड्रग और बंदूक छिपाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
वे यह भी लिखते हैं कि घेटो क्षेत्र अब और भी अच्छे इलाकों में फैल गए हैं। घेटो ऐसे क्षेत्र को कहा जाता है, जहां पर एक विशेष समुदाय की आबादी इस प्रकार घेरकर रहती है कि बाहरी हवा तक का प्रवेश उस इलाके में न हो। वहाँ पर अब सरकार का कोई भी दखल नहीं है। उन इलाकों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया है। डेली मेल की इस रिपोर्ट के अनुसार इन क्षेत्रों में पुलिस स्टेशन, वेल्फेयर ऑफिस, नौकरी के केंद्र और अन्य सार्वजनिक इमारतें बंद कर दी गई हैं।
इसमें एक सामाजिक कार्यकर्ता बर्गकविस्ट का अनुभव बताया गया है। उन्होंने कहा कि वे लेफ्ट विंग की हैं, मगर जब आप इन बच्चों के साथ काम करते हैं तो वास्तव में कठिनाई सामने आती है। उन्होंने कहा कि “मेरा दृष्टिकोण बदल गया है। गैंग के सरगना बहकहों को इस्तेमाल कर रहे हैं और मुझे नहीं लगता कि एक बेहतर कानूनी तंत्र के होने पर वे ऐसा कुछ कर पाएंगे।“
स्वीडन में ऐसे किशोरों द्वारा हत्याएं लगातार बढ़ रही हैं, जिन्हें उम्र के आधार पर दंड में छूट दी जाती है। पीटर स्वीडन ने एक बहुत ही रोचक पोस्ट 2 फरवरी को किया था। उन्होंने लिखा था कि स्वीडन में रहने वाले लगभग 80% शरणार्थी अपने उन्हीं देशों में छुट्टी मनाने जाते हैं, जहां से वे भागकर आए हैं। तो वे अब शरणार्थी नहीं हैं। क्या उन्हें अब वापस जाना चाहिए?
स्वीडन में ऐसा भी हो रहा है कि बच्चियों के बलात्कारियों को बहुत ही कम सजा मिल रही है। कभी उनकी मजहबी पृष्ठभूमि के कारण तो कभी उनके मुल्क की पहचान के कारण। स्वीडन का हाल इस समय बहुत बुरा है, मगर समस्या यही है कि जो भी समस्या के विषय में बात करता है उसे चरम दक्षिणपंथी करार दे दिया जाता है। ऐसा कहकर विरोधियों का मुंह तो बंद कर दिया जाता है, मगर उन अपराधों पर पर्दा नहीं पड़ सकता है जो कम्युनिस्ट और वोक नीतियों के चलते स्वीडन में लगातार हो रहे हैं।
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