सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव से पहले राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सुविधाएं देने पर नाराजगी जताई है। बुधवार 2 फरवरी 2025 को कोर्ट ने कहा कि कई लोग मुफ्त सुविधाओं के कारण काम नहीं करना चाहते हैं, जिससे एक नया परजीवी वर्ग तैयार हो रहा है। यह टिप्पणी उस मामले की सुनवाई के दौरान की गई, जिसमें शहरों में बेघर लोगों को रात्रि आश्रय देने की बात हो रही थी।
यह याचिका कई वर्षों से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। इस मामले की सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी ने बताया कि केंद्र सरकार शहरी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम को अंतिम रूप दे रही है, जिसके तहत शहरों में रहने वाले गरीबों की आवास और अन्य समस्याओं का समाधान किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने अटॉर्नी जनरल से कहा कि वे सरकार से जानकारी लें और बताएं कि यह कार्यक्रम कब लागू होगा। न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि अगले छह हफ्तों बाद इस मामले की सुनवाई होगी। इसके साथ ही न्यायाधीशों ने यह भी कहा कि लोगों को मुफ्त चीजों की आदत डालने के बजाय उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोड़ने की कोशिश की जानी चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि वोटों के लालच में मुफ्तखोरी और परजीवियों का एक वर्ग तैयार किया जा रहा है। बिना काम किए लोगों को मुफ्त राशन और पैसा देना सही नहीं है। सरकार को इन लोगों को मुख्यधारा में लाकर उन्हें देश के विकास में योगदान देने का अवसर देना चाहिए।
न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने कहा कि मुफ्त राशन और पैसे देने के बजाय बेहतर होगा कि इन लोगों को समाज का हिस्सा बनाया जाए, ताकि वे भी देश के विकास में योगदान कर सकें। अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमानी ने कहा कि सरकार शहरी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम को अंतिम रूप दे रही है, जो गरीब शहरी बेघर लोगों को आवास और अन्य सहायता उपलब्ध कराएगा।
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