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आखिर Taliban क्यों लेना चाहते हैं भारत में Afghanistan Embassy की कमान! काबुल की अपील पर क्या फैसला लेगी New Delhi?

नई दिल्ली में अपने दूतावास की चाबी जिनके हाथों में तालिबान लड़ाके देना चाहते हैं उनकी सूची में एक व्यक्ति है नजीब शाहीन जिसका पिता सुहैल शाहीन कतर की राजधानी दोहा में बैठकर तालिबान के लिए 'जनसंपर्क' का काम देखता है

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Alok Goswami

भारत को ईरान के रणनीतिक रूप से अति महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह के संचालन का बहुत हद तक जिम्मा संभालना है। इसके लिए तीसरे साथी अफगानिस्तान से चर्चा करनी जरूरी है। साथ ही व्यापार, मानवीय सहायता आदि विषयों पर भी अफगानिस्तान के साथ आपसी संबंधों को आगे ले जाने का मकसद भी है। इन दोनों विषयों पर भारत ने कूटनीतिक रास्ते अपनाए हैं। भारत के इन सब प्रयासों को देखते हुए संभवत: तालिबान को लगा कि भारत उससे संबंध बनाने का इच्छुक है। इसलिए उसे लगा कि यही मौका है नई दिल्ली के अफगान दूतावास को भी अपने हाथ में ले लिया जाए।


अफगानिस्तान में बंदूक के दम पर कुर्सी पर काबिज हुए तालिबान को एक बार फिर भारत स्थित अफगानी दूतावास की याद आई है। उसने भारत सरकार से अनुरोध किया है कि इस दूतावास की कमान उनके हाथों में सौंपी जाए। वह यहां एक पूर्ण दूतावास तैनात करना चाहता है जिसकी चाबी उसके चुनिंदा ‘राजनयिको’ के हाथों में रहेगी। तालिबान द्वारा बताए इन ‘राजनयिकों’ की सूची में एक नाम उस व्यक्ति का है जिसका पिता इस वक्त दोहा में तालिबान का प्रतिनिधित्व कर रहा है। वही दोहा जिसकी कथित ‘सलाह’ पर तालिबान कूटनीति चला रहे हैं।

आखिर तालिबान को अचानक राजनय की सुध कैसे आई? इसके पीछे तालिबान हुकूमत का धीरे धीरे वैश्विक स्तर पर अपने अस्तित्व को मान्य बनाने की कसक बताई जा रही है। चीन तो बहुत पहले उसके साथ राजनयिक संबंध जोड़ चुका है और काबुल में अपना दूतावास भी चला रहा है। लेकिन अन्य देश फिलहाल कुछ दूरी ही बनाकर चल रहे हैं। भारत ने उसकी तरफ मदद के हाथ बढ़ाए हैं लेकिन राजनयिक स्तर पर बहुत आगे नहीं गया है।

नई दिल्ली में अपने दूतावास की चाबी जिनके हाथों में तालिबान लड़ाके देना चाहते हैं उनकी सूची में एक व्यक्ति है नजीब शाहीन जिसका पिता सुहैल शाहीन कतर की राजधानी दोहा में बैठकर तालिबान के लिए ‘जनसंपर्क’ का काम देखता है।

भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री भी पिछले माह दुबई जाकर तालिबान के विदेश मंत्री मुत्तकी से मिल आए थे

भारत को यह आग्रह किया है तालिबान हुकूमत के विदेश विभाग ने। विभाग की चिट्ठी में लिखा है कि ‘भारत नई दिल्ली में पहले से मौजूद अफगानी दूतावास को तालिबान के हाथों में दे दे।’ दरअसल, भारत की ओर से विश्व के हर देश से अच्दे संबंध बनाने और सबकी तरफ मदद का हाथ बढ़ाने की नीति के तहत तालिबान राज से भी राजनयिक स्तर पर संपर्क साधा गया था। भारत के विदेश मंत्रालय का एक प्रतिनिधिमंडल संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी के साथ काबुल जाकर वहां की ‘सरकार’ से अनेक द्विपक्षीय विषयों पर चर्चा कर आया था। उस उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल के बाद भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री भी पिछले माह दुबई जाकर तालिबान के विदेश मंत्री मुत्तकी से मिल आए थे।

भारत को ईरान के रणनीतिक रूप से अति महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह के संचालन का बहुत हद तक जिम्मा संभालना है। इसके लिए तीसरे साथी अफगानिस्तान से चर्चा करनी जरूरी है। साथ ही व्यापार, मानवीय सहायता आदि विषयों पर भी अफगानिस्तान के साथ आपसी संबंधों को आगे ले जाने का मकसद भी है। इन दोनों विषयों पर भारत ने कूटनीतिक रास्ते अपनाए हैं। भारत के इन सब प्रयासों को देखते हुए संभवत: तालिबान को लगा कि भारत उससे संबंध बनाने का इच्छुक है। इसलिए उसे लगा कि यही मौका है नई दिल्ली के अफगान दूतावास को भी अपने हाथ में ले लिया जाए।

उल्लेखनीय है कि 24 नवम्बर 2023 को नई दिल्ली स्थित अफगान दूतावास ने एक विज्ञप्ति जारी करके बताया था कि दूतावास अनिश्चितकाल के लिए बंद किया जा रहा है। इसके पीछे वजह बताई गई थी ‘मेजबान देश से राजनयिक सहयोग न मिलना।’ उसके बाद से ही अफगान दूतावास काम नहीं कर रहा है। इसके बाद अफगान दूतावास के कर्मियों का कहना था, उनका वीसा नहीं बढ़ाया गया है।

तालिबान की ‘राजनयिकों’ की यह सूची भारत के विदेश सचिव के दुबई दौरे के आलोक में भेजी गई मालूम देती है। वह पहले भी कुछ ‘राजनयिकों’ के नाम भारत को दे चुका था लेकिन अब दोबारा से नई सूची भेजी गई है।

लेकिन क्या भारत तालिबान की इच्छा पूरी करेगा? यह सवाल एशियाई मामलों के जानकारों के दिमाग में चल रहा है। कुछ मानते हैं कि भारत को इस संबंध में बहुत सावधानी से कदम उठाना होगा। तालिबान की अपील पर तो गौर किया जा सकता है, लेकिन ‘राजनयिकों’ की सूची का बड़ी बारीकी से पोस्टमार्टम करने की आवश्यकता होगी। इसकी वजह है अफगानिस्तान पर पाकिस्तान की मदद से काबिज तालिबान के पाकिस्तान की गुप्तचर एजेंसी आईएसआई और फौज के साथ करीबी रिश्ते। भारत को देखना होगा कि अफगान ‘राजनयिकों’ में कौन हैं जो पाकिस्तान के भी चहीते हैं। मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा जो है।

विदेश मामलों के कुछ जानकार बताते हैं कि नई दिल्ली के अफगान दूतावास को फिर से खोलने के साथ, भारत भी काबुल का अपना राजनयिक मिशन दोबारा आरम्भ कर दे। भारत का यह मिशन तबसे ही बंद है जब अगस्त 2021 में तालिबान ने काबुल की सत्ता जबरन अपने हाथ में ली थी। अफगानिस्तान के नई दिल्ली स्थित दूतावास के अलावा भारत में मुंबई और हैदराबाद में वाणिज्यिक दूतावास भी हैं। मुंबई के अफगानी वाणिज्य दूतावास का काम तालिबान द्वारा ही भेजे व्यक्ति इकरामुद्दीन कामिल देख रहा है।

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