अरुणाचल प्रदेश को लेक​र बांग्लादेश को क्यों फटकारा कम्युनिस्ट विस्तारवादी चीन ने!
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अरुणाचल प्रदेश को लेक​र बांग्लादेश को क्यों फटकारा कम्युनिस्ट विस्तारवादी चीन ने!

इस्लामी देश के सर्वेक्षण विभाग की वेबसाइट पर जो नक्शे दिए गये हैं उस पर चीन ने आपत्ति जताई है। बीजिंग का कहना है कि नक्शे में भारत तथा चीन के बीच बार्डर का रेखांकन गलत किया है

by Alok Goswami
Feb 11, 2025, 12:18 pm IST
in विश्व, विश्लेषण
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग

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बांग्लादेश जिस अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है उसमें चीन चाहता है कि असमंजस में पड़े देश पर उसका दबदबा कायम हो जाए। भारत के अन्य पड़ोसियों के संदर्भ में भी उसकी यही रणनीति है। बात चाहे नेपाल की हो, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका या पाकिस्तान की, भारत के हर पड़ोसी देश को चीन अपने पैसे के दम पर अपनी ‘कॉलोनी’ जैसा बना लेना चाहता है। यही वजह है कि इन देशों की आंतरिक गतिविधियों में वह दखल देता रहा है। भारत में मजबूत राष्ट्र भक्त सरकार के आगे उसकी दाल नहीं गल रही है।


कम्युनिस्ट विस्तारवादी चीन अब बांग्लादेश के पीछे पड़ गया है। उसने यूनुस सरकार को फटकारा है और दो स्कूली किताबों में बदलाव का फरमान सुनाया है। दरअसल चीन को आपत्ति है कि स्कूल की उन दो किताबों में हांगकांग और ताइवान को स्वतंत्र देश बताया गया है। इसी तरह सर्वे विभाग से आपत्ति है कि अरुणाचल प्रदेश और अक्साईचिन को भारत के भाग क्यों दिखाया गया है। सर्वे आफ बांग्लादेश के नक्शे से ​चीन कुढ़ा बैठा है। बीजिंग ने बौखला कर यूनुस की अंतरिम सरकार को नक्शे में ‘सुधार’ करने का हुक्म सुनाया है।

चीन की भारत के प्रदेश अरुणाचल प्रदेश और अक्साईचिन की वर्षों से कुदृष्टि रही है। वह नहीं मानता कि इन दोनों पर भारत का अधिकार है। अरुणाचल को चीन ‘दक्षिण तिब्बत’ पुकारता है। बांग्लादेश के सरकारी स्कूलों में पढ़ाई जा रहीं दो किताबों में प्रकाशित भारत के नक्शों में स्वाभाविक रूप से अरुणाचल प्रदेश और अक्साईचिन को भारत के भाग दिखाया गया है। लेकिन यह देखकर चीन चिढ़ा बैठा है।

बीजिंग ने बांग्लादेश की इस ‘हरकत’ को लेकर गंभीर शिकायत दर्ज कराई है और कहा है कि ‘इसे ठीक करिए’। कम्युनिस्ट ड्रैगन खुद को दखिण एशियाई देशों का थानेदार माने बैठा है। वह चाहता है दुनिया के इस हिस्से में सब कुछ उसके हिसाब से चले। भारत की संप्रभुता पर उंगली उठाने के अलावा बीजिंग ने उन्हीं किताबों में प्रकाशित हांगकांग तथा ताइवान के संदर्भों के बारे में भी शिकायत की है।

साफ है कि बांग्लादेश जिस अस्थिरता के दौर से गुजर रहा है उसमें चीन चाहता है कि असमंजस में पड़े देश पर उसका दबदबा कायम हो जाए। भारत के अन्य पड़ोसियों के संदर्भ में भी उसकी यही रणनीति है। बात चाहे नेपाल की हो, बांग्लादेश, भूटान, श्रीलंका या पाकिस्तान की, भारत के हर पड़ोसी देश को चीन अपने पैसे के दम पर अपनी ‘कॉलोनी’ जैसा बना लेना चाहता है। यही वजह है कि इन देशों की आंतरिक गतिविधियों में वह दखल देता रहा है। भारत में मजबूत राष्ट्र भक्त सरकार के आगे उसकी दाल नहीं गल रही है।

इस संबंध में प्रकाशित समाचारों से पता चला है कि बांग्लादेश के सर्वेक्षण विभाग पर भी चीन खासा नाराज है क्योंकि उसकी वेबसाइट पर दिए गए कई नक्शे चीन के गले नहीं उतर रहे हैं। उन नक्शों में अरुण्णचल प्रदेश, अक्साईचिन, हांगकांग और ताइवान को लेकर जो ‘त्रुटियां’ हैं, उनको नवंबर के आखिर तक ‘ठीक’ करने का चीन ने फरमान जारी किया है।

हांगकांग और ताइवान को चीन अपनी ‘मुख्यभूमि’ के हिस्से मानता है जिन्हें ‘अंतत: एक हो जाना है’। बांग्लादेश को ड्रैगन ने ऐसी गलती फिर से न दोहराने की ‘सीख’ देते हुए किताबों में नक्शों और सर्वे विभाग की वेबसाइट पर दी गई ‘भ्रामक’ जानकारी को दुरुस्त कर लेने को कहा है। सर्वे विभाग की वेबसाइट हांगकांग तथा ताइवान को चीन के हिस्से न ​दर्शाकर अलग देश दिखाती है। हालांकि हांगकांग में चीन ने अपना कठपुतली शासन स्थापित किया हुआ है जो बीजिंग के हुक्म पर चलता है। लेकिन ताइवान एक संप्रभु राष्ट्र के नाते स्वाभिमान के साथ अपनी स्वतंत्रता को ले​कर कोई दुष्प्रचार सहन नहीं करता। वह चीन को बराबरी से टक्कर देता आ रहा है।

कूटनीतिक सूत्र बताते हैं कि बांग्लादेश सरकार को चीन ने पत्र लिखकर अपनी ‘इच्छा’ जताई है। इस पत्र के बाद, दोनों देश आपस में इस बारे में बात कर चुके हैं। सुना है, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने चीन से हाथ जोड़कर विनती की है कि फिलहाल इस मुद्दे पर गर्म न हों, वक्त के साथ सब ठीक हो जाएगा।

चीन के हायतौबा मचाने के बाद यूनुस सरकार के विदेश विभाग और शिक्षा विभाग ने स्कूली किताबें प्र​काशित करने वाले अपने बोर्ड एनसीटीबी से इस बारे में चर्चा की है। एनसीटीबी की ओर से बताया गया है कि नई किताबें छापने का काम कब का खत्म हो चुका है। इसलिए फौरन तो उनमें ‘सुधार’ करना मुश्किल है। बांग्लादेश का विदेश विभाग चीन को लिख चुका है कि ऐसी ‘गलतियां’ एकदम से ठीक नहीं की जा सकतीं। कुछ समय चाहिए। बताते हैं, बांग्लादेश के हाथ जोड़ने पर अब शायद चीन कुछ वक्त तक इस तरफ आपत्ति नहीं जताएगा लेकिन बदलाव करने का दबाव बनाए रखेगा।

हैरानी की बात है कि चीन को जिन नक्शों को लेकर ‘दिक्कत’ है वे कोई नए नई रचे गए हैं बल्कि पिछले अनेक सालों से प्रयोग किए जा रहे हैं। लेकिन शायद तब की शेख हसीना सरकार ने इस बारे में चीन को भाव नहीं दिया। अब चूंकि भारत के इस पड़ोसी देश में भारत विरोधी इस्लामी तत्वों की तूती बोल रही है इसलिए बीजिंग इसके माध्यम से मनमानी करना चाहता है। वह जानता है कि यूनुस की अंतरिम सरकार उसकी घुड़की में आकर बदलाव कर देगी और फिर सालों वही चलेगा। साफ है कि भारत के प्रति बांग्लादेश के वर्तमान सत्ताधीशों में चिढ़ को बीजिंग भुनाना चाहता है।

विवादित स्कूली पुस्तकें क्लास 9 और 10 में पढ़ाई जा रही हैं। इसमें पाठ है जो बताता है कि बांग्लादेश से सामान किन किन देशों में निर्यात किया जाता है। इन्हीं देशों में हांगकांग तथा ताइवान भी हैं यानी दोनों स्वतंत्र देश बताए गए हैं। इस्लामी देश के सर्वेक्षण विभाग की वेबसाइट पर जो नक्शे दिए गये हैं उन पर भी आपत्ति जताई है। बीजिंग का कहना है कि नक्शे में भारत तथा चीन के बीच बार्डर का रेखांकन गलत किया है। चीन चाहता है कि बांग्लादेश उसकी ‘वन चाइना’ नीति को सिर—माथे बैठाए।

Topics: bangladeshहांगकांगborderIndiaबांग्लादेशChinaarunachalताइवानyunustext bookssurvey of bangladeshtaiwanhong kongचीन
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