दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रचंड जीत के साथ 27 साल का लंबा वनवास समाप्त कराने में सफल रही है। वहीं, वर्ष 2013 में पहली बार सत्ता का स्वाद चखने वाली आम आदमी पार्टी (आप) को अपने जन्म के 13वें साल में सबसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा है। यही नहीं पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद अपनी सीट (नई दिल्ली) भी नहीं बचा पाए हैं। ऐसे में अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आम आदमी पार्टी के भविष्य को लेकर तमाम सवाल उठ रहे हैं कि अब ‘आप’ का क्या होगा? अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की हार के कारणों में से एक शराब घोटाला है। शराब घोटाले में आम आदमी पार्टी को आरोपी बनाया गया है। तो प्रश्न यह है कि क्या अरविंद केजरीवाल जेल जाएंगे या फिर जमानत पर बाहर रहेंगे?
पिछले वर्ष मार्च में प्रवर्तन निदेशालय की टीम 10वें समन के साथ दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल के घर पर पहुंची थी। शराब घोटाले मामले में दो घंटे तक पूछताछ करने के बाद वे केजरीवाल को उनके घर से गिरफ्तार करके अपने साथ ले गए थे। इस मामले में उन्हें तिहाड़ जेल की हवा भी खानी पड़ी। हालांकि उन्हें कुछ समय बाद जमानत मिल गई, लेकिन अभी भी वह इस मामले मे मुख्य आरोपित हैं।
‘आप’ के भविष्य पर सवाल उठने का कारण
आम आदमी पार्टी हमेशा से कट्टर ईमानदारी, कट्टर देशभक्ती और इंसानियत को अपनी विचारधारा बताती रही है। राजनीति में आने से पहले अरविंद केजरीवाल ने वीवीआईपी कल्चर के खिलाफ आवाज उठाई थी। उन्होंने कहा था कि वे सरकारी सुविधाओं का उपयोग नहीं करेंगे, लेकिन दिल्ली सरकार में ऐसा कोई विभाग नहीं है, जहां उनका और उनके दिग्गज नेताओं का नाम भ्रष्टाचार के मामलों में न आया हो। दिल्ली में शराब घोटाले और शीशमहल घोटाले ने पार्टी की कट्टर ईमानदारी वाली छवि को एक्सपोज कर दिया। रही बात कट्टर देशभक्ति की तो उस मामले में पहले से ही बीजेपी उनसे कहीं आगे है। विचारधारा के स्तर पर आम आदमी पार्टी उतनी खरी नहीं उतरी। उनका वीवीआईपी कल्चर सबके सामने आ चुका है। दिल्ली की सत्ता में आने के बाद पार्टी के हाईकमान की साख पर भी बट्टा लगा है। हालांकि यहीं से उन्होंने पूरे देश में अपनी पार्टी बनाने का सपना खुली आंखों से देखा था। यहां आम आदमी पार्टी के भविष्य पर सवाल उठना इसलिए भी लाजमी है, क्योंकि उसने खुद की जड़ें मजबूत करने की बजाय दूसरे की जड़ें काटने की कोशिश। यहां तक कि अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री बनने तक के ख्वाब भी देख लिए थे।
ध्यान दें कि देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का स्तर आज पहले की तुलना में कहीं अधिक गिर चुका है, लेकिन अभी भी वह राष्ट्रीय स्तर तमाम परेशानियों के बावजूद खड़ी है। हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक और तेलंगाना में कांग्रेस की सरकार है। उसके पीछे कहीं ना कहीं मजबूत हाईकमान और विचारधारा का होना बताया जा रहा है। बीजेपी भी मजबूत हाईकमान और विचारधारा के दम पर ही अपने आपको यहां तक लाई है। भले ही पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है लेकिन सवाल ये भी है कि वहां की सरकार और मुख्यमंत्री भगवंत मान पर हाईकमान कितना होल्ड रख पाता है।
पार्टी को एकजुट रखने की चुनौती
दिल्ली में करारी शिकस्त मिलने के बाद ‘आप’ के सामने पंजाब, गोवा, गुजरात से लेकर अन्य राज्यों तक पार्टी को एकजुट बनाए रखने की सबसे बड़ी चुनौती है। पार्टी को एक सूत्र में बांधने वाले नेता अपनी ही सीट नहीं बचा पाए हैं, ऐसे में पार्टी के अंदर भी उनकी किरकिरी हुई है। इस दौरान यह देखना खास होगा है कि क्या उनकी पार्टी के नेता उनके दिखाए रास्ते पर चलेंगे या फिर अपनी अलग रणनीति बनाएंगे। हालांकि, यह पहला मौका नहीं है, जब शराब घोटाले के कारण किसी नेता को सीएम पद की कुर्सी गंवानी पड़ी हो। दिल्ली की तरह छत्तीसगढ़ में भी शराब घोटाले का मामला उजागर हुआ था। यहां पर भी बीजेपी ने ही उलटफेर किया था। ऐसे में अरविंद केजरीवाल को समय रहते इससे सबक ले लेना चाहिए था।
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