दिल्ली

‘आप’दा मुक्त दिल्ली, चुनाव में AAP की हार के 5 बड़े कारण

दिल्ली में कांग्रेस के वोट बैंक पर सेंध लगाकर और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर सत्ता में आई आम आदमी पार्टी खुद भ्रष्टाचार के दलदल में फंसती चली गई। 2025 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की हार के दस बड़े कारण पर नजर डालते हैं

Published by
यीशू

अक्तूबर 2012 में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी और एक साल के अंदर ही इसने दिल्ली के विधानसभा चुनाव में जबर्दस्त एंट्री की और सरकार भी बना ली। उस समय 28 सीटें मिली थीं और कांग्रेस ने इसे बाहर से समर्थन दिया था, लेकिन यह सरकार 49 दिन ही चल सकी। इसके बाद 2015 में जब सरकार बनी तो अरविंद केजरीवाल की पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला। 2015 में 70 में से 67 सीटें जीतीं। अरविंद केजरीवाल नायक बनकर उभरे। वैगनआर में चलते मुख्यमंत्री और मफलर मैन की इमेज के सहारे वह आम आदमी से जुड़े।

इसके बाद 2020 के दिल्ली के चुनाव में आप को 62 सीटें मिलीं। यह भी बड़ी जीत थी। लेकिन कुर्सी और सत्ता का नशा जब सिर चढ़कर बोलने लगे तो उल्टी गिनती शुरू हो जाती है। दिल्ली में कांग्रेस के वोट बैंक पर सेंध लगाकर और भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर सत्ता में आई आम आदमी पार्टी खुद भ्रष्टाचार के दलदल में फंसती चली गई। 2025 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की हार के पांच बड़े कारण पर नजर डालते हैं –

 

कथनी-करनी में अंतर

आम आदमी पार्टी के पहली बार सत्ता में आने पर अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने। उन्होंने लोगों से अपील की कि कोई रिश्वत मांगे तो वीडियो बनाकर सीएम ऑफिस में भेज दें। धीरे-धीरे दिल्ली के लगभग सभी मंत्री भ्रष्टाचार में फंसते गए। अरविंद केजरीवाल खुद आबकारी नीति घोटाले में जेल गए। जमानत पर बाहर आए तब पार्टी का प्रचार कर सके। दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया जेल गए, स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन भी जेल गए। केजरीवाल की पूरी पार्टी ने भाजपा पर आरोप लगाए, लेकिन कोर्ट की गंभीर टिप्पणियों और जमानत न मिल पाने से दिल्ली की जनता समझ गई कि केजरीवाल की कथनी और करनी में अंतर है। केजरीवाल ने इतने सालों में आम आदमी से लेकर शीशमहल तक का सफर तय किया। लेकिन जनता के हिस्से में झोपड़ी ही रह गई। खुद को कट्टर ईमानदार कहने वाले केजरीवाल जेल तक पहुंच गए।

मुफ्त की रेवड़ियां बांटी, बातें हवा-हवाई

पानी हाफ, बिजली माफ की राह पर चली आम आदमी पार्टी की सरकार ने कई बड़े वादे किए। दिल्ली को पेरिस बनाने का वादा किया। लेकिन उनकी वादों की पोल उनकी ही पार्टी की नेता स्वाति मालीवाल ने चुनाव के आखिरी दिनों में खोल दी। पानी के लिए दिल्ली तरसती रही। पिछले साल गर्मी में दिल्ली प्यासी ही रही। स्वास्थ्य को लेकर मोहल्ला क्लीनिक का दावा किया गया, लेकिन यह मॉडल भी फेल हो गया। मोहल्ला क्लीनिक को लेकर भी घोटाला सामने आया। प्रदूषण पर वह दूसरे राज्य की सरकारों को घेरते रहे, जबकि पंजाब में आम आदमी पार्टी की ही सरकार है और पराली का प्रदूषण वहां से भी आता है। इस पर वह रोक नहीं लगा पाए। यमुना की सफाई को लेकर भी वह हरियाणा और केंद्र पर आरोप लगाते रहे। दिल्ली की जनता यह सब देख रही थी।

तुष्टिकरण की राजनीति

आम आदमी पार्टी तुष्टिकरण में भी पीछे नहीं रही। कश्मीर में हिंदुओं की हत्या को आवाज देती फिल्म द कश्मीर फाइल्स पर उनका बयान सभी को याद होगा। उन्होंने कहा था कि द कश्मीर फाइल्स को टैक्स फ्री क्यों किया जाए, इसे यूट्यूब पर डाल दो, फिर सभी लोग इसका आनंद लेंगे। विधानसभा में अरविंद केजरीवाल के पीछे बैठीं राखी बिड़ला इस पर ठहाके लगाकर हंस रही थीं। केजरीवाल के मुख्यमंत्री रहते ही दिल्ली में दंगे हुए और इसमें आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन का भी नाम आया।

अपनों ने छोड़ा साथ

आम आदमी पार्टी और केजरीवाल से उनके पुराने साथी या तो अलग हो गए या फिर उन्हें निकाल दिया गया। इससे आप की छवि खराब हुई। संगठन भी कमजोर हुआ। आप से अलग होने वाले में कपिल मिश्रा, कुमार विश्वास, योगेंद्र यादव, मुनीश रायजादा प्रमुख नाम हैं। अन्ना हजारे का भी बयान आया कि अरविंद केजरीवाल की राजनीति दूषित हो चुकी है। केजरीवाल जब जेल गए तो उनकी पत्नी अचानक से उस कुर्सी पर आ गईं, जहां से केजरीवाल भाषण देते थे। यह भी लोगों को नागवार गुजरा।

अपनी पहचान बचाती और विकास को तरसी दिल्ली

अरविंद केजरीवाल तीन बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने, लेकिन वे दिल्ली का विकास नहीं कर पाए। लोगों में यह चर्चा आम थी कि शीला दीक्षित की सरकार के बाद से दिल्ली में विकास रुक गया। देश की राजधानी की साख गिरती जा रही थी। दिल्ली को जहां पहले विकास के नाम पर जाना जाता था, उसकी पहचान घोटालों और केजरीवाल की कारगुजारियों की वजह से बनने लगी। बिंदास जीने वाली दिल्ली अपनी पहचान खोती जा रही थी। अपने सभी कार्यकाल के दौरान उनका टकराव उपराज्यपाल से होता रहा। दिल्ली का बॉस कौन, इस पर उनका ध्यान रहा। केंद्र के साथ उनका टकराव चलता रहा। यहां तक कि आयुष्मान भारत जैसी योजना भी उन्होंने दिल्ली में लागू नहीं की।

 

 

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