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ग्रूमिंग गैंग के बीच ब्रिटेन में इस्लामोफोबिया पर काउंसिल, क्या हैं इसके मायने, क्यों हो रहा विरोध

ब्रिटेन में लेबर पार्टी इस्लामोफोबिया की परिभाषा तय करने के लिए काउंसिल बना रही है, जिससे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरे की आशंका बढ़ी। ग्रूमिंग गैंग्स पर चर्चा को भी अपराध बनाने का प्रयास? पढ़ें पूरी रिपोर्ट।

by सोनाली मिश्रा
Feb 5, 2025, 08:30 pm IST
in विश्लेषण
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एक तरफ ब्रिटेन में जहां ग्रूमिंग गैंग्स के नए नए मामले सामने आ रहे हैं, तो वहीं ब्रिटेन से एक और हैरान करने वाला समाचार आ रहा है। ब्रिटेन में उप प्रधानमंत्री एंजेला रेनेर एक काउंसिल का गठन, इस्लामोफोबिया पर करने जा रही हैं, जिससे कि इस शब्द को एक औपचारिक परिभाषा दी जा सके।

spectator.co.uk के अनुसार उप प्रधानमंत्री एंजेला मुस्लिमों के साथ बढ़ते हुए भेदभाव के लिए सरकारी परिभाषा बनाएंगी और इसके साथ यह भी सलाह प्रदान की जाएगी कि कैसे इससे निबटा जाए। इस काउंसिल की अध्यक्षता उबेर-रिमेनर और पूर्व अटॉर्नी-जनरल डोमिनिक ग्रीव करेंगे।

ये ग्रीव ही थे, जिन्होनें वर्ष 2018 में ब्रिटिश मुस्लिम्स पर आल पार्टी संसदीय समूह रिपोर्ट का प्राक्कथन लिखा था, जिसने इस्लामोफोबिया की परिभाषा बताई थी और जिसे लेबर पार्टी ने अपनाया था। ग्रीव की रिपोर्ट के अनुसार “’इस्लामोफोबिया नस्लवाद में निहित है और यह एक प्रकार का नस्लवाद है जो मुस्लिम होने या कथित मुस्लिम होने की अभिव्यक्ति को निशाना बनाता है।“

ग्रीव की रिपोर्ट का यह भी मानना है कि कानून का पालन करने वाले मुस्लिम मौजूदा समय में भेदभाव और उत्पीड़न का शिकार हो रहे हैं।

वहीं इस कदम का लोग विरोध कर रहे हैं। क्योंकि ब्रिटेन में बेअदबी का कोई कानून नहीं है, मगर कथित इस परिभाषा से ब्रिटेन में बेअदबी का कानून अपने आप ही लागू हो जाएगा। ऐसा मानने के कारण भी है, क्योंकि हाल ही में सलवान मोमिका की हत्या के विरोध में जब कई लोगों ने कुरान जलाकर विरोध दर्ज किया, तो मेनचेस्टर में भी एक व्यक्ति ने कुरान जलाकर विरोध किया। उसे तत्काल ही गिरफ्तार कर लिया गया और उस पर समुदाय पर नस्लवादी और मजहबी उत्पीड़न का आरोप लगाया गया था। इतना ही नहीं वर्ष 2021 में एक टीचर को छिपना पड़ा था, क्योंकि उसने क्लास में इस्लाम के प्रोफेट मोहम्मद का कार्टून दिखा दिया था।

इस काउंसिल का विरोध लगातार सोशल मीडिया पर होने लगा है। जिम फर्गुसन ने एक्स पर लिखा कि क्या इस्लाम की आलोचना पर प्रतिबंध होगा, जबकि और धर्मों की आलोचना करना ठीक होगा? क्या यह ब्लेसफेमी कानून का दूसरे नाम से वापस आना है? और इस समय जब ब्रिटेन के नागरिकों के सामने असली मुद्दे हैं, जैसे अपराध, इमग्रैशन, और महंगाई तो लेबर पार्टी इसे प्राथमिकता क्यों दे रही है?

उन्होनें लिखा कि यह खतरनाक है। पॉलिटिकल करेक्टनेस के लिए अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला क्यों?

🚨 FREE SPEECH UNDER ATTACK – RAYNER’S ‘ISLAMOPHOBIA’ COUNCIL COULD CREATE A UK BLASPHEMY LAW! 🚨 🇬🇧

Angela Rayner is setting up an advisory council on Islamophobia, with Ex-Tory Dominic Grieve tipped to lead it—but critics warn this could criminalize free speech.

🔴 Will… pic.twitter.com/SKKyTQLdMR

— Jim Ferguson (@JimFergusonUK) February 5, 2025


लोगों का कहना है कि जहां एक तरफ ब्रिटेन में पाकिस्तानी ग्रूमिंग गैंग्स दशकों तक बिना रोकटोक के लड़कियों के साथ उत्पीड़न आदि करते रहे, तो वहीं लेबर पार्टी के लिए अब इस्लामोफोबिया समस्या है।

पत्रकार एलिसन पेयरसन ने भी लिखा कि हमें इस्लामोफोबिया की परिभाषा का विरोध करना चाहिए। ब्रिटेन में ब्लेसफेमी कानून नहीं है। यह एक मुक्त देश है, जहां हम उस विचार का विरोध कर सकते हैं, जो हमें पसंद नहीं है।

दरअसल इस्लामोफोबिया की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है और यह भी निश्चित नहीं है कि आखिर क्या-क्या इस्लामोफोबिया के दायरे में आएगा। इस्लामोफोबिया का अर्थ ऐसा कहा जाता है कि यह इस्लाम के खिलाफ घृणा, डर और दुराग्रह पूर्ण व्यवहार है।

मगर यह नहीं बताया जाता है कि इस्लाम के अनुयायी जो दूसरे धर्मों का पालन करने वालों के खिलाफ जो कुछ भी कहते हैं, वह किस दायरे में आएगा। वे इस्लाम न मानने वालों को काफिर कहते हैं और काफिरों के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए, ऐसा दावा करने वाले कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हैं। इस्लामिक मुल्कों में मुस्लिम महिलाओं के साथ जो व्यवहार किया जाता है, क्या उसके विरोध में लिखना भी इस्लामोफोबिया के दायरे में आएगा?

मजहबी पहचान के आधार पर दुराग्रह पूर्ण व्यवहार का आरोप लगाने वाले लोग, दूसरे मतावलम्बियों के प्रति जो दुराग्रहपूर्ण व्यवहार करते हैं, वह किस दायरे में आएगा? ब्रिटेन में श्वेत लड़कियों को इसलिए भी शिकार बनाया गया क्योंकि वे ग्रूमिंग गैंग्स की दृष्टि में नीच लड़कियां थीं और उनके साथ कुछ भी व्यवहार किया जा सकता था।

पत्रकार कोनर टॉमलिन्सन ने भी चिंता व्यक्त करते हुए एक्स पर लिखा कि लेबर पार्टी की सरकार ग्रूमिंग गैंग्स को “राइट विंग चरमपंथियों” द्वारा बनाया गया नेरटिव बताकर आरआईसीयू की रिपोर्ट को अस्वीकार करती हैं तो वहीं अब वह इस्लाम की उस परिभाषा को लागू करने जा रही है, जो पाकिस्तानी मुस्लिम हमलावरों के बारे में बात करने को ही अपराध बनाना चाहती है।

वे लिखते हैं कि इस्लामोफोबिया के जो उदाहरण दिए गए हैं, उनमें से एक है “”‘ग्रूमिंग गैंग’ का मुद्दा: […] स्पष्ट रूप से, इसका उद्देश्य व्यक्तिगत मुसलमानों को नुकसान पहुंचाना है (और ऐसा किया भी जा सकता है), और यह किसी भी सार्थक धार्मिक बहस पर आधारित नहीं है, बल्कि सामान्य रूप से ‘अन्य’ मुसलमानों के लिए एक नस्लवादी प्रयास है,”

Britain is getting an Islamic blasphemy law board.

Deputy Prime Minister, Angela Rayner is building a 16-member council on Islamophobia.

After rejecting the RICU report which called grooming gangs a “grievance narrative” invented by “right-wing extremists” they are set to… pic.twitter.com/B5Cc69CISZ

— Connor Tomlinson (@Con_Tomlinson) February 4, 2025

उन्होनें लिखा कि यह ब्रिटेन में ब्लेसफेमी कानून की वापसी है, और मैं इसे नहीं मानूँगा।

इस्लामोफोबिया शब्द गढ़कर कहीं न कहीं अपराधों को न्यायोचित ठहराने का प्रयास किया जाता है। इस बहाने उन तमाम दुर्व्यवहारों को ढका जाता है जो मजहबी श्रेष्ठता और वर्चस्ववाद के कारण दूसरे मतावलंबियों पर किये जाते हैं। दुर्भाग्य से इस्लामोफोबिया पर तो चर्चा तमाम होती है, मगर इस्लामी वर्चस्ववादी मानसिकता के चलते दूसरे मतों के साथ जो व्यवहार मजहबियों द्वारा किया जाता है, उसे नजरंदाज किया जाता है।

जो बांग्लादेश में इस समय हिंदुओं के साथ इस्लामी चरमपंथियों द्वारा किया जा रहा है, क्या उसका विरोध करने को भी इस्लामोफोबिया कहा जाएगा? अफगानिस्तान में लड़कियों के साथ जो अन्याय और अत्याचार किया गया है, क्या उसके विषय में बोलना भी इस्लामोफोबिया के दायरे में आएगा? या फिर ईरान में जो लड़कियों के साथ हो रहा है, उसके विरोध में लिखना किस दायरे में आएगा, इन सब पर कोई भी चर्चा नहीं होती है। यह प्रश्न तो उठेगा ही कि आखिर इस्लाम के अनुयायी ही आलोचना के प्रति इतने संवेदनशील क्यों हैं कि वे न केवल आलोचना करने वालों की जान के पीछे पड़ जाते हैं, बल्कि वे हिंसा को जायज भी ठहराते हैं।

सलमान रश्दी, तस्लीमा नसरीन से लेकर सलवान मोमिका तक सूची वर्तमान में ही बहुत लंबी है, अतीत के उदाहरण तो छोड़ भी दिए जाएं, तो।

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