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जिन्ना के देश से तौबा कर रहा कम्युनिस्ट ड्रैगन! Pakistan-China में चौड़ी होती दरार पर एक नजर

जिन्ना का कंगाल देश चाहता है कि परियोजना जारी रहे ताकि उसके बहाने उसके खाली खजाने से कुछ सिक्कों की खनखनाहट यदा कदा सुनाई देती रहे। वहां से मिले कर्ज की मियाद बढ़वाता रहे और उस 'ताकतवर' देश का बगलगीर बने रहकर दुनिया के सामने एक देश के नाते अपना अस्तित्व बचाए रखे

Published by
Alok Goswami

चीन और पाकिस्तान, जिन्हें विशेषज्ञ अक्सर “आयरन ब्रदर्स” कहते थे और एक समय में पक्के सहयोगी के रूप में देखा जाता था, वर्तमान में अपने संबंधों में एक जटिल दौर से गुजर रहे हैं। इसके पीछे तनाव से भरे आर्थिक और रणनीतिक संबंध हैं जिनमें फिर से जान फूंकने के लिए प्रयास हो रहे हैं। इसमें मुख्य भूमिका चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की है।


अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना ‘चीन—पाकिस्तान आर्थिक गलियारे’ यानी सीपीईसी के कारण जिन्ना के देश को पुचकारते आ रहे कम्युनिस्ट ड्रैगन ने अब पाकिस्तान से एक दूरी जैसी बनानी शुरू की है। इसमें परियोजना और उस पर काम कर रहे चीनियों की सुरक्षा में चूक और उनकी मौतों का एक बड़ा हाथ माना जा रहा है। लाख वादे करने के बाद भी, पाकिस्तान चीन को सुरक्षा के मुद्दे पर आश्वस्त करने में नाकाम रहा है। दक्षिण एशिया मामलों पर नजर रखने वाली एक पत्रिका ने इस बारे में गहन विश्लेषण किया है।

पता चला है कि सुरक्षा को लेकर चीन के सार्वजनिक बयानों से आहत महसूस कर रहे जिन्ना के देश का एक प्रतिनिधिमंडल जल्दी ही बीजिंग जाकर अपने आका के तेवर नरम करने की कोशिश करने वाला है। इस विषय में पाकिस्तान पर जबरदस्त कूटनीतिक दबाव पड़ रहा है जिसके और गहराने का भी खतरा बना हुआ है। कुल मिलाकर पाकिस्तान को खुद के सीपैक परियोजना में हाशिए पर जाने का डर सता रहा है।

इस बारे में द डिप्लोमेट पत्रिका में छपे आलेख में कहा गया है कि चीन और पाकिस्तान, जिन्हें विशेषज्ञ अक्सर “आयरन ब्रदर्स” कहते थे और एक समय में पक्के सहयोगी के रूप में देखा जाता था, वर्तमान में अपने संबंधों में एक जटिल दौर से गुजर रहे हैं। इसके पीछे तनाव से भरे आर्थिक और रणनीतिक संबंध हैं जिनमें फिर से जान फूंकने के लिए प्रयास हो रहे हैं। इसमें मुख्य भूमिका चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की है।

सीपैक परियोजना के तहत, चीन ने पाकिस्तान में बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए लगभग 62 अरब डॉलर देने का वादा किया है। इसमें मेगा पोर्ट, राजमार्ग, रेलवे और बिजली संयंत्र जैसी महत्वपूर्ण परियोजनाएं शामिल हैं।

ग्वादर बंदरगाह

हालांकि, परियोजना के शुरू होने के एक दशक बाद भी इसकी कई परियोजनाएं बढ़ तो रही हैं लेकिन बहुत धीमी गति से। इन चुनौतियों के केंद्र में चीन की सुरक्षा चिंताएं हैं जो क्षेत्रीय अस्थिरता और पाकिस्तान के भीतर शासन से जुड़ी समस्याओं से पैदा हुई हैं।

पत्रिका का विश्लेषण बताता है कि, 2021 में काबुल में अफगान तालिबान के सत्ता में आने के बाद, पाकिस्तान में आतंकी हमलों में बढ़त ने देश में सुरक्षा स्थिति पर काफी असर डाला है। इसका सीधा असर चीनी कामगारों की हिफाजत पर पड़ा है। मार्च, 2024 में उत्तरी पाकिस्तान में हुए एक हमले में पांच चीनी इंजीनियरों की जान गई थी। गत नवंबर माह में कराची हवाई अड्डे के पास एक आतंकवादी हमले में दो चीनी नागरिकों की मौत हुई थी और कम से कम दस अन्य घायल हुए थे।

दोनों देशों के बीच इन हमलों से तनाव उपजा है। पाकिस्तान में मौजूद परियोजना के चीनी अधिकारियों के बीच निराशा बढ़ रही है। वे सुरक्षा और परियोजनाओं की प्रगति पर पड़ने वाले इसके प्रभाव को लेकर अपनी चिंताओं को व्यक्त करने में अधिक मुखर और सार्वजनिक हुए हैं।

आगे पत्रिका कहती है कि इस्लामाबाद में चीन के राजदूत ज्यांग ज्दांग ने हाल ही में एक कार्यक्रम में पाकिस्तानी विदेश मंत्री इशाक डार से कहा था, “सिर्फ़ छह महीने में हम पर दो बार हमला होना किसी सूरत में स्वीकार्य नहीं है।” यह सार्वजनिक टकराव असामान्य था, क्योंकि दोनों देश आमतौर पर अपनी शिकायतों को खुले में व्यक्त करने से बचते रहे हैं। लेकिन शायद अब पानी सिर पर आ गया है और बात चीनियों की चुप रहने की हद से बाहर जा रही है।

ग्वादर में चीन की परियोजनाओं का स्थानीय जनता सदा विरोध करती रही है (फाइल चित्र)

यहां इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि चीन द्वारा पाकिस्तान की मुखर आलोचना-विशेषकर सुरक्षा से जुड़े मुद्दों और संयुक्त परियोजनाओं में नाकाबिलियत को लेकर-गलतफहमी पैदा कर सकती है। यह चीज ऐतिहासिक रूप से रहे द्विपक्षीय संबंधों पर असर डाल सकती है।

गत दिनों द गार्जियन ने एक रिपोर्ट में लिखा था कि पाकिस्तान में चीन के राजनीतिक सचिव वांग शेंगजी ने इस्लामाबाद की निंदा की है क्योंकि उसने सुरक्षा संबंधी समस्याओं को हल करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं। उनका कहना था, “ग्वादर और बलूचिस्तान में चीनियों के प्रति दुश्मनी दिखती है।” चीनी अधिकारी की इस टिप्पणी ने यह आभास दिया है कि उक्त दोनों स्थानों के लोग सीपैक के पक्ष में आ ही नहीं सकते।

हैरान करने वाली इस रिपोर्ट ने पाकिस्तानी अधिकारियों में चिंता पैदा कर दी है। उन्हें यह समझ में नहीं आया है कि अपने चीनी समकक्षों द्वारा उनकी एक के बाद एक आलोचना का हल क्या निकाला जाए। पाकिस्तान के अधिकारियों ने दूतावास को भरोसे में लेने के प्रयास किए हैं लेकिन चीनियों की ओर से कब सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान को लताड़ पड़ जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता।

पाकिस्तान में चीनी दूतावास ने द गार्जियन में छपे इस लेख पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा था कि अखबार में प्रकाशित दावे “एकतरफा गढ़े गए” थे और लिखने वाले में “चीन की स्थिति की बुनियादी समझ की कमी थी।”

अपने उसी बयान में, चीन ने खासकर ग्वादर पोर्ट और सामान्य रूप से बलूचिस्तान प्रांत के विकास का समर्थन करने की अपनी प्रतिबद्धता पर फिर से बल दिया। चीनी दूतावास ने पिछले वर्ष की ठोस उपलब्धियों पर रोशनी डाली, जिसमें आपातकालीन सहायता, बुनियादी ढांचा परियोजनाएं और सांस्कृतिक आदान-प्रदान भी गिनाए गए हैं। हालांकि दूतावास कहता तो है कि ‘ये सब प्रयास व्यावहारिक सहयोग को मजबूत करने और पाकिस्तान में स्थानीय रोजगार को बढ़ाने के बीजिंग के दृढ़ संकल्प को दिखाते हैं।’ लेकिन अंदर की रिपोर्ट कोई बहुत सकारात्मक नहीं है।

दिलचस्प बात यह भी है कि बीजिंग ने इस बात से साफ साफ इनकार नहीं किया है कि उसके अधिकारियों की इस विषय पर मीडिया के साथ चर्चा हुई है। इस घटनाक्रम से पाकिस्तान के साथ बात करने के चीन के नजरिए में आ रहे एक बारीक बदलाव का संकेत मिलता है, जो संभवतः सीपैक परियोजनाओं में देरी और अड़चनों को लेकर ड्रैगन की बढ़ती हताशा से झलकता है। हालांकि चीन अब भी सार्वजनिक रूप से खुद के पाकिस्तान के साथ खड़े होने का भाव ही दे रहा है। लेकिन असल में इस वक्त पाकिस्तान और चीन के बीच संबंध डगमगाहट महसूस कर रहे हैं।

जिन्ना का कंगाल देश चाहता है कि परियोजना जारी रहे ताकि उसके बहाने उसके खाली खजाने से कुछ सिक्कों की खनखनाहट यदा कदा सुनाई देती रहे। पाकिस्तान की चाहत यही है कि उसकी आर्थिक स्थिरता को सहारा देने के लिए चीन से अधिक से अधिक पैसा बंटोर ले। वहां से मिले कर्ज की मियाद बढ़वाता रहे और उस ‘ताकतवर’ देश का बगलगीर बने रहकर दुनिया के सामने एक देश के नाते अपना अस्तित्व बचाए रखे। लेकिन ऐसा कब तक चलेगा, यह तो समय की गर्त में छुपा है।

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