भुवनेश्वर । शिवराम महापात्र शांत स्वभाव. काफी सरल और मृदु भाषी थे । लेकिन उनमें प्रचंड शक्ति भरी हुई थी । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत संघचालक जैसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का उन्होंने निर्वहन किया । स्वयंसेवक को कैसा होना चाहिए उसका उन्होंने उदाहरण प्रस्तुत किया। वे एक आदर्श स्वयंसेवक थे। ओडिशा के पूर्व प्रांत संघचालक शिवराम महापात्र की स्मृति में भुवनेश्वर के जयदेव भवन में आयोजित श्रद्धांजलि सभा को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा. मोहन भागवत जी ने यह बात कही।
शिवराम महापात्र जी का जीवन एक आदर्श
डॉ. मोहनराव भागवत जी ने अपने संबोधन में कहा- “संघ का स्वयंसेवक प्रतिज्ञा में कहता है कि मैं संघ का कार्य प्रामाणिकता से, निस्वार्थ बुद्धि से और तन, मन, धन से करूंगा। यह प्रतिज्ञा के शब्द स्वयं डॉ. साहब (डॉ. हेडगेवार जी) ने लिखे हैं। गुरुजी (माधव सदाशिव गोलवलकर जी) कहते थे कि एक विशिष्ट आध्यात्मिक स्तर पर आरूढ़ होकर उन्होंने यह लिखा है। अब प्रामाणिकता से, निस्वार्थ बुद्धि से और तन, मन, धन पूर्वक यानी कैसा? तो हम निश्चित रूप से शिवराम जी का उदाहरण दे सकते हैं। इस व्रत का मैं आजीवन पालन करूंगा, यानी कैसे? हम निश्चित रूप से शिवराम जी का उदाहरण दे सकते हैं।”
“वे दिखने में जितने शांत थे, उनके भीतर उतनी ही गहरी भावना थी, जो उनके जीवन में परिलक्षित होती थी। और जब हम आज उन्हें स्मरण कर रहे हैं, तब हमें यह महसूस हो रहा है कि उनके साथ रहना कितना सौभाग्यपूर्ण था। लेकिन जब वे हमारे बीच थे, तब हमें कभी यह अहसास नहीं हुआ कि हम एक असाधारण व्यक्तित्व के साथ हैं।”
उन्होंने आगे कहा- “संघ के स्वयंसेवक, कार्यकर्ता और अधिकारी सभी के साथ सामान्य जीवन जीते हैं, लेकिन वे अपनी लोक-संग्रही प्रवृत्ति, आत्मीयता, स्नेह और कर्तव्यबोध से संपूर्ण समाज को जोड़ते हैं। स्वर्गीय शिवराम महापात्र जी जैसे अनेक कार्यकर्ताओं ने अपने जीवन से इसका उदाहरण प्रस्तुत किया है।”
“शिवराम महापात्र जी का आचरण सभी स्वयंसेवकों के लिए एक प्रेरणा है। उनका कार्य करने का तरीका हमें सिखाता है कि मोह से परे रहकर प्रेम देना ही सच्चा कर्तव्य है। उन्होंने संघ कार्य को समाज के हर वर्ग तक पहुँचाने का कार्य किया। वे आदर्श परिवार निर्माण के साथ-साथ आदर्श समाज निर्माण के प्रति समर्पित थे।”
संघ कार्य में शिवराम महापात्र जी की भूमिका
प्रांत संघचालक समीर कुमार महांती जी ने कहा कि 1978 में जब वे संघ में नए थे, तब शिवराम महापात्र जी से पहली बार मिले थे। उनकी सरल प्रकृति और शब्दों में निहित संस्कारों ने उन्हें और कई अन्य कार्यकर्ताओं को उनकी ओर आकर्षित किया।
संघ के क्षेत्र प्रचारक प्रमुख प्रसन्न कुमार मिश्र जी ने कहा कि शिवराम महापात्र जी साहित्य सृजन के लिए ब्रह्मपुर क्षेत्र में प्रसिद्ध थे। संघ में जुड़ने के बाद उन्होंने ब्रह्मपुरवासियों को संघ से जोड़ने का कार्य किया। वे जीवनभर संघ के निष्ठावान कार्यकर्ता के रूप में जिम्मेदारियाँ निभाते रहे।
क्षेत्र कार्यवाह दुर्गा प्रसाद साहू जी ने कहा, “श्रद्धा के बिंदुओं के प्रति अखंड विश्वास होना चाहिए। जो भी कार्य कर रहे हैं, वह भारत माता के लिए समर्पित होना चाहिए।” इसी प्रकार की बातों से स्वर्गीय महापात्र जी कार्यकर्ताओं को प्रेरित करते थे।
संघ के अखिल भारतीय सद्भावना प्रमुख डॉ. गोपाल प्रसाद महापात्र जी ने कहा कि वे एक आदर्श गृहस्थ थे, जिन्हें सभी ‘बड़े भाई’ के रूप में संबोधित करते थे। संघ में भी उन्होंने बड़े भाई की भूमिका निभाई।
पूर्व प्रांत संघचालक ईं. अशोक कुमार दास जी ने भी स्वर्गीय महापात्र जी के साथ बिताए गए क्षणों को याद किया।
श्रद्धांजलि सभा में संघ के वरिष्ठ पदाधिकारियों की उपस्थिति
इस श्रद्धांजलि सभा की अध्यक्षता ओडिशा (पूर्व) प्रांत के संघचालक समीर कुमार महांती ने की, जबकि प्रांत कार्यवाह डॉ. अनिल कुमार मिश्र ने इसका संयोजन किया। मंच पर पूर्व क्षेत्र के संघचालक डॉ. जयंत राय चौधुरी, सह-प्रांत संघचालक मनसुखलाल सेठिया, भुवनेश्वर महानगर संघचालक श्रीनिवास मानसिंह उपस्थित थे।
इसके अलावा, पूर्व क्षेत्र प्रचारक प्रमुख प्रसन्न कुमार मिश्र, पूर्व क्षेत्र कार्यवाह दुर्गा प्रसाद साहू, अखिल भारतीय सद्भावना प्रमुख डॉ. गोपाल प्रसाद महापात्र, पूर्व प्रांत संघचालक ईं. अशोक कुमार दास सहित अन्य गणमान्य लोग भी सभा में उपस्थित रहे और स्वर्गीय महापात्र जी को श्रद्धांजलि अर्पित की।
श्रद्धांजलि सभा के अन्य प्रमुख आयोजन
इस अवसर पर कटक के तेलेंगापेठ अनंत बलिया वैदिक विद्यापीठ के विद्यार्थियों द्वारा वेदपाठ किया गया। इसके साथ ही, अतिथियों द्वारा एक स्मृति-स्मारिका का विमोचन किया गया।
शिवराम महापात्र जी का जीवन परिचय
स्वर्गीय शिवराम महापात्र जी को स्नेह और सम्मानपूर्वक ‘बड़ भाईना’ (बड़े भाई) कहा जाता था। उनका जन्म 29 नवंबर 1929 को अविभक्त पुरी जिले (वर्तमान खोरधा जिला) के बाणपुर क्षेत्र के कुमारांगशासन में हुआ था। उनके पिता श्रीधर महापात्र जी और माता गौरी देवी जी थीं। वे धर्म, साहित्य, कला और संस्कृति के पवित्र प्रवाह में निमग्न रहते थे और देशात्मबोध के मंत्र से प्रेरित होकर भारत माता की नित्य सेवा में समर्पित थे। वे प्रतिदिन शाखा में उपस्थित रहते और शाखा कार्य को सुव्यवस्थित रूप से संचालित करते।
‘राष्ट्रदीप’ साप्ताहिक पत्रिका में वे कविताएँ और निबंध लिखते थे। साथ ही, वे ‘बार्ताबिलास’ नामक एक स्तंभ का लेखन भी करते थे।
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