नई दिल्ली । हंसराज महाविद्यालय एवं प्रणयन संस्था द्वारा गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ प्राचार्या प्रो. रमा, कमांडो समोद सिंह और विशिष्ट अतिथि स्वदेश चरौरा द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। इसके बाद उत्सव शास्त्री, लक्ष्मण न्यौपाने, धनंजय, साक्षी, उमाकांत और रवि ने मंगलाचरण प्रस्तुत कर मां सरस्वती की वंदना की।
भारतीय ज्ञान परंपरा को बनाए रखने का संदेश
मुख्य अतिथि प्रो. रमा ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा निरंतर प्रवाहमान रहनी चाहिए और उसमें किसी प्रकार की कलुषता नहीं आनी चाहिए। उन्होंने कवियों को संदेश देते हुए कहा कि जब तक भारतीय ज्ञान परंपरा समृद्ध रहेगी, तभी काव्य परंपरा भी जीवित रहेगी।
वीर रस से ओतप्रोत अध्यक्षीय काव्य पाठ
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कमांडो समोद सिंह ने वीर रस से ओतप्रोत अपनी कविता प्रस्तुत की—
“अपना जीवन नहीं गंवाया तुमने भोग विलास में,
पूरा जीवन बीत गया है युद्धों के अभ्यास में,
जब तक यह धरती जिंदा है दिनकर है आकाश में,
सैनिक तेरा नाम रहेगा भारत के इतिहास में।”
विशिष्ट अतिथि का संदेश और कवियों की प्रस्तुतियाँ
विशिष्ट अतिथि स्वदेश चरौरा ने देशभक्ति और सौहार्द्र को केंद्र में रखते हुए कविता पाठ किया—
“तिरंगे की सजावट को, सुमन दल से सजाती हूं,
इसी से नेह की खातिर, नए अनुबंध पाती हूं,
वतन से आशिकी मेरी, सरहद से दिल्लगी मेरी,
अमन और देशभक्ति के अनूठे छंद गाती हूं।”
कवि धरमवीर धरम ने प्रणयन संस्था के उद्देश्यों को स्पष्ट करते हुए संस्था का परिचय दिया। मशहूर शायर विष्णु विराट ने अपनी ग़ज़लों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने युवा पीढ़ी को नसीहत देते हुए कहा—
“किसे सिखा रहे हो इश्क़ तुम नए लड़के,
ये राग मियां हमने गा बजा के छोड़ दिया।”
राजू ने भाग्य आधारित प्रेम पर आधारित शेर प्रस्तुत किया—
“उसकी हर बात कितनी अच्छी थी,
सिर्फ़ तक़दीर थी मेरे जैसी।”
गौरव तिवारी ने प्रेम और वियोग की अभिव्यक्ति करते हुए कहा—
“अश्क़ बनकर चश्म-ए-तर से उतर जाऊँ,
मैं तेरी आँख से निकलूँ तो अपने घर जाऊँ।”
समाज और राजनीति पर कटाक्ष
कवि सचिन सर्वत्र ने समाज और राजनीति के जटिल संबंधों पर शेर पढ़ा—
“कभी मज़हब, कभी ज़ातें, कभी तहज़ीब का मसला,
बनाकर जंग फ़ितरत में सियासत मुस्कुराती है।”
रागिनी ने मां भारती को समर्पित अपनी कविता में देशभक्ति का ओजस्वी भाव प्रस्तुत किया—
“जैसे ऊपर नभ में एक सूर्य चमकता तारा है,
वैसे इस धरती पर यारों हिंदुस्तान हमारा है।”
श्रृंगार रस की अभिव्यक्ति
कवि महेश कुमार शुक्ल ‘कृशाङ्ग’ ने प्रेम और श्रृंगार पर आधारित कविता प्रस्तुत की—
“परछाई से ऐसे मिलो जैसे मिल रहे हो उससे,
तन-मन तेरा नहीं दुखेगा चाहे लाख बिछड़ना हो।”
कार्यक्रम का सफल संचालन और उपस्थिति
कार्यक्रम का सफल संचालन राजू ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन इशिका ने दिया। इस अवसर पर प्रणयन संस्था के मार्गदर्शक सूर्य प्रकाश, अध्यक्ष अमितेश पाण्डेय ‘अमिश’, कोषाध्यक्ष देव प्रकाश पाण्डेय, महामंत्री निर्दोष रावत, उपसचिव हिमांशु शुक्ल ‘शिशिर’, तथा अन्य पदाधिकारी साक्षी, साकेत एडिशन, चंद्रप्रकाश, अतिशी सहित बड़ी संख्या में श्रोता उपस्थित रहे।
समारोह की भव्यता और प्रभाव
यह कवि सम्मेलन गणतंत्र दिवस की भावना को सजीव करता हुआ भारतीय ज्ञान, वीरता, प्रेम, राजनीति और समाज के विविध पहलुओं को समाहित किए हुए था। कवियों की सशक्त प्रस्तुति, श्रोताओं की भागीदारी और राष्ट्रप्रेम की भावना ने इसे एक ऐतिहासिक और यादगार आयोजन बना दिया।
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